कोरोना इफ़ेक्ट : किराए खर्च की लागत कुशलता

कोरोना ने पूरे दुनिया में लागत उत्पादकता और कुशलता का प्रचलन लेकर आ रहा है. लोग अब गैर जरुरी खर्चों में कटौती कर स्थायी खर्चों को उतना ही रख रहें हैं जिससे काम चल जाए और सामने आय हो तो उसके लिए ही खर्चा कर रहें हैं. सरल शब्दों में कहें तो लागत को जितना ज्यादे हो सकता है उसे लोग स्थायी खर्चों की जगह आय के समक्ष परिवर्तनशील खर्चों में बदल रहें हैं.

लागत कुशलता एवं उत्पादकता का यह प्रयोग बदलती हुई परिस्थितिओं की मांग है, सनातन अर्थशास्त्र के नियमों के अनुसार है जो बताता है की कि कोई अपने आप में सम्पूर्ण नहीं और हर किसी के पास शेष बची हुई शक्ति है जिसका लोग एक दुसरे के साथ शेयर कर लागत कुशलता, उत्पादकता एवं लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

कोरोना के कारण लागत उत्पादकता और लागत कुशलता प्राप्त करने के लिए सबसे ज्यादे जिस खर्चे पर काम हुआ है वह है किराया खर्च. सबने अपने किराये के खर्च का पुनर्गठन किया है और लोग अब ऑफिस पर खर्च न कर इसे न्यूनतम रख व्यवसाय चलाने का प्रयास कर रहें हैं. कोरोना ने कार्य करने की संस्कृति और तरीके दोनों बदल दिए हैं. कोरोना पहले के माहौल में यह को-वर्क एक नए विचार के रूप में धीरे धीरे जगह बना रहा था लेकिन कोरोना के अनलॉक के दौर में जबसे कुछ आर्थिक गतिविधियां चालू हुई हैं तबसे इसमें बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है, बड़े कार्यालय बंद हो रहें और लोग अपने स्टाफ को या तो  वर्क फ्रॉम होम या को-वर्क में शिफ्ट कर रहें हैं. आज से कुछ साल पहले जब को-वर्क चालू हुआ था तो यह इतना बड़ा बाजार का आधार बनेगा किसी ने सोचा नहीं था. काफी समय से को-वर्क का कांसेप्ट धीरे धीरे जगह बना रहा था लोग अपने ऑफिस के खाली जगह को भी आय के अवसर में बदल रहे थे या को-वर्क उपलब्ध कराने वाली नई नई कम्पनियां बाजार में आ गईं थी जिस कारण बाजार को और लोगों को न केवल अधिक से अधिक स्थान उपलब्ध हो रहा है, बल्कि यह बजट के अंदर भी हो रहा था. इस ट्रेंड के विकसित होने के साथ ही इसमें एक से बढ़कर एक  नई अवधारणाएं भी बाजार में आ रही हैं जो एकदम से नया अनुभव दे रहीं है और सबकी आवश्यकताओं के अनुरूप हैं. पहले सुनने में अजीब और डर जैसा लगता था कि हम अपना वर्क स्पेस साझा कर रहें हैं संभवतः शुरू में तो कई नये लोगों के साथ वर्क स्पेस साझा करना ज्यादे नया और थोड़ा डराने वाला लगता थालेकिन जब आप को-वर्क में आज का माहौल देखेंगे तो आपको लगता है कि अरे यह उतना डरावना नहीं है जितना लगता था, और पहले से ज्यादा रोमांचकारी है।

को-वर्किंग” शब्द ब्रैड न्युबर्ज द्वारा गढ़ा गया था, जब उन्होंने 2005 में सैन फ्रांसिस्को में स्पेस शेयरिंग शुरू किया था। उनकी विजन था की एक ऑफिस हो जो काम करने की स्वतंत्रता और कार्यालय के संरचनात्मक ढांचे और माहौल को एक साथ मिलाये, और इसके लिए वह एक शब्द ढूंढ रहे थे और उन्होंने तब “को-वर्किंग” शब्द की रचना की जिसमें कि कोई  हाइफ़न नहीं लगा है।
 
कोरोना से पहले बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में Google और फेसबुक जैसी कंपनियों ने खुले कार्यस्थानों के महत्व और उत्पादकता के अंतर्संबंधों को सबसे पहले महसूस किया, जिसे अब सब अपनाने की कोशिश कर रहें हैं । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने टीम में विचार और रचनात्मकता के प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए खुले कार्यक्षेत्रों इस्तेमाल करना चालू किया और धीरे धीरे स्टेटस आधारित या सिंगल वर्क स्टेशन कांसेप्ट खत्म करते गए।

कोरोना के कारण आज के समय में बाजार का यह प्रयोग प्रासंगिक और सफल रहा और लागत कुशलता और लागत उत्पादकता के हिसाब से इकनोमिक सस्टेनेबिलिटी की अवधारणा के अनूकूल रहा. यह अवधारणा पश्चिम में अधिक विकसित है, हालांकि भारत भी पोस्ट लॉकडाउन को-वर्किंग स्थानों की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है, क्यों की लोगों ने लॉकडाउन में भारी भरकम किरायों से मुक्ति पा ली थी और लोग अब सस्ते विकल्पों की तरफ रूख कर रहें हैं। भारत में अब घर या काफी शॉप पे काम करने की प्रवृत्ति अब इन कोवोर्किंग स्पेस की तरफ मुड़ गई है.
 
कोरोना की सबस अधिक मार रेस्तरां उद्योग पर पड़ा जिस कारण अब सिर्फ ऑफिस स्पेस ही को-वर्किंग कांसेप्ट पे नहीं चल रहा है इसमें किचन को-वर्क भी अपनी जगह बना रहा है. किचन को-वर्क में कई स्टार्ट अप भी अब कूद पड़े हैं. बहुत से काफी शॉप भी अब इसके मांग को देखते हुए अपने सेट अप को को-वर्किंग में बदल रहें हैं. वहां आप वाईफाई पा सकते हैं, केबिन पा सकते हैं वाइट बोर्ड से लेकर मीटिंग की कई सुविधाएँ पा सकते हैं. बदलते वक़्त के साथ अब चाय कॉफ़ी शॉप सिर्फ अब चाय काफी की शॉप नहीं रह गई.
 
को-वर्किंग का आधार है साझा स्पेस, संसाधनों का पूल, सुविधाजनक, आजादी, लोगों की नेटवर्किंग, बहु विचारों का मिलन, लागत कुशलता एवं उत्पादकता । यह अत्यंत लागत प्रभावी होने के साथ साथ कई तरह की परेशानी से मुक्त रहने वाला विकल्प भी है , जो उन्हें पारंपरिक कार्यस्थानों को खोजने, बनाने और स्थापित करने में लगने वाले समय, प्रयास और धन तीनों की बचत करता है। आप उन जगहों के बारे में भी सोच सकते हैं जो काफी महंगे और पॉश इलाके हैं, आप निरंतर मरम्मत, सेवा शुल्क और कार्यालय रखरखाव के कई झंझटों से मुक्त हो सकते हैं।
 
यह खुला, सामंजस्यपूर्ण और आंतरिक रूप से जुड़ा होने के कारण समान विचारधारा वाले और साथ ही अलग-अलग व्यक्तियों के साथ एक बेहतर बातचीत और मेलजोल का मौका प्रदान करता है। साझा कार्यस्थानों में कैफे और कॉमन एरिया अक्सर अन्य एवं नए लोगों के साथ सूचना और ज्ञान साझा करने, नेटवर्किंग और संपर्क बनाने का एक माध्यम बन जाता है। यह अलग-अलग पेशेवर पृष्ठभूमि के लोगों के साथ भी मेलजोल और बातचीत करने का एक अवसर देता है, जो भविष्य में एक उपयोगी कनेक्शन साबित होता है और या तो यह व्यापारिक या साझेदारी के अवसरों में बदल जाता है।
 
एक पदानुक्रम मुक्त व्यवस्था  होने पर कर्मचारियों के निर्णय लेने पर भी धनात्मक प्रभाव पड़ता है, जो किसी भी उद्यमी स्टार्टअप की आज की तारीख में ताकत है. आस पास  उत्साही माहौल मिलने से काम करने वाले अधिक प्रेरित होते हैं है और कई  बार कई प्रोजेक्ट पर वो बिलकुल नया दृष्टिकोण देते हैं जिन पर कभी विचार नहीं किया होगा। यहाँ पर विकसित हुआ आपसी सहयोग अक्सर व्यावसायिक विस्तार की ओर ले जाता है। हालाँकि यह को-वर्क कांसेप्ट उन्ही के लिए ज्यादे प्रभावकारी है जो स्वयं प्रेरित हैं.
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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