यह लेख दुनिया के कई दर्शनों के सूत्रों को जोड़ते हुए उनके अन्तर्सम्बन्धों में समानता ढूंढने की एक परिकल्पना है जो कोई परिणाम की जगह इस पर शोध के के आवश्यकता का संकेत करती है. यह लेख विचारों को संकलित कर जिज्ञासु के रूप में एक विश्लेषण है ताकि संजोगों के संकलन संयोजन की प्रायिकताओं पर भी विमर्श किया जा सके. तो आइये सर्वप्रथम बात करते हैं अद्वैतवाद की. भारत में अद्वैतवाद दर्शन के प्रवर्तक शंकराचार्य को माना जाता है जिसका शाब्दिक मतलब है गैर द्वैतवाद, दो नहीं एक, मतलब जो जीव और ब्रह्म के दो अलग आस्तित्व को न मान उन्हें एक मानता है. इसका ब्रह्मसूत्र है अहं ब्रह्मास्मि और सिद्धांत है तत्वमसि मतलब (तुम भी वही (ब्रह्म) हो)। यह संसार ब्रह्म की माया (मेटावर्स) है। "जगत् माया (मेटावर्स है Illusion है) है, जीव मिथ्या है और मोक्ष निष्काम है जिसमें जगत्, जीव तथा जीवन तीनों का ब्रह्म में विलय हो जाता है। यह दर्शन ब्रह्मांड में केवल एक परमतत्त्व मानता है जो ईश्वर और प्रकृति दोनों है। स्वामी विवेकानंद का भी कहना था कि "अद्वैतवाद ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो आधुनिक वैज्ञानिकों के सिद्धान्तों के साथ भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दिशाओं में मिल जाता है". इसे हम आगे विश्लेषित भी करेंगे।
आज
भौतिकी की खोजों ने चाहे न्यूटन से लेकर आइंस्टीन, हाइजनबर्ग
से हाॅकिन्स तक विज्ञान को अध्यात्म की दहलीज पर ला खड़ा कर दिया है। क्वांटम फिजिक्स
की आधुनिक अवधारणाएं, हजारों वर्षों पूर्व पहले के
वैदिक सिद्धांतों के तर्कों की कसौटी पर चढ़ रहीं हैं जिन्हे पहले लोग विज्ञान के नाम
पर ख़ारिज कर देते थे। आज आधुनिक क्वांटम भौतिकी अद्वैत वेदान्त के वैज्ञानिक दर्शन
शास्त्र के समानांतर सूत्रों पर चल रही है. क्वांटम भौतिकी, के नवीनतम सिंद्धातों ने संकेत किया है कि विश्व का कारण पदार्थ नहीं है बल्कि उसमें
व्याप्त चेतना है और इस चेतना को वैदिक ग्रंथों में ‘ब्रह्म’ कहा गया है जिसे क्वांटम
भौतिकी अंतरिक्ष में व्याप्त तरंग,
ऊर्जा या
वेव के रूप में समझता है. यह तरंग,
ऊर्जा या
वेव का समुच्चय ही परमात्मा और कण कण में व्याप्त इसकी इकाई प्राण (आत्मा) है.
मैक्स
प्लांक, आइंस्टीन, नील बोहर लगायत हाईज़नबर्ग ने क्वांटम के कई विमर्श प्रस्तुत
किये जिस कारण क्वांटम भौतिकी को संभावना का विज्ञान भी कहा जाने लगा. सबसे बाद में
आया क्वांटम भौतिकी का आब्जर्वर प्रभाव सिद्धांत, जो
कहता है कि मापन करने पर क्वाण्टम तरंग,
एक कण की
तरह भी अस्तित्व में सकती हैं,
और नहीं देखे
जाने पर वह एक ही समय में एक से अधिक स्थानों पर हो सकती है, जिसे सुपर पोजीशन कहा जाता है। इसे जाॅन
वीलर ने भी कहा है कि ‘‘अगर देखने वाला नहीं
हो, तो जगत सिर्फ ऊर्जा है’’। यह अनिश्चितता
का सिद्धांत और कण-तरंग विरोधाभास ही नवभौतिकी का आधार है। जिसके अनुसार क्वांटम जगत
में प्रत्येक बार देखे जाने पर एक नई घटना का प्रारंभ होता है और देखे जाने हेतु चेतना
की आवश्यकता होती है और इस कारण इसमें रचना की अनंत संभावना अंतर्निहित है। ;
आइन्सटीन
के पदार्थ-ऊर्जा समतुल्य सिद्धांत (E=mc2)
ने जहां पदार्थ
और ऊर्जा का अंतर संबंध उजागर किया,
वहीं क्वाण्टम
क्षेत्र पर ‘आब्जर्वर प्रभाव’ एवं ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ ने भौतिकी को उस स्थान पर
लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ जगत के उद्भव,
स्थिति एवं
क्रियाविधि को जानने हेतु चेतना का अध्ययन ही संभावना बना है। यह प्राण ऊर्जा रूपी
वही चेतना है जो सभी शरीरों,
पशुओं और
वनस्पति को बनाये रखती है। यह पदार्थ में निहित ज्ञानपूर्ण ऊर्जा है जो चैतन्य प्राणियों में श्वास द्वारा गतिशील है। यह एक तरह
की जोड़ने वाली शक्ति है जो पूरे भौतिक जगत को जोड़कर रखती है। यह पूरा पारिस्थितिकी
तंत्र जिस प्राकृतिक इंटेलिजेंस से चलता है,
वह ऊर्जा
प्राण है। प्राण की आपूर्ति रूक जाने पर कोशिका की व्यवस्था टूट जाती है। और वह अपने
मूल अणुओं में टूट कर समाप्त हो जाती है,
सभी अंगों
एवं तंत्रों का समन्वय टूट जाता है,
जिसे मनुष्य, पशु, वनस्पति
में मृत्यु के रूप में बताया गया है। प्राण,
सूक्ष्म जगत
में प्रवेश कराने में सहायक होता है,
यही कारण
है कि चेतना को विकसित करने की विधियों में प्राण साधना का विशेष महत्व है।
इसे
और समझने के लिए क्वांटम एंटैंगलमेंट को समझना पड़ेगा। अभी 2022 में एलेन एस्पेक्ट, जॉन एफ. क्लॉसर और एंटोन ज़िलिंगर ने क्वांटम
एंटैंगलमेंट की खोज पर भौतिकी में 2022 का नोबेल पुरस्कार जीता है
जो यह कहता है कि दो या दो से अधिक कण पास पास या दूर दूर भी एक दूसरे से जुड़े होते
हैं। ऐसे में इन कणों में से एक पर की गई कार्रवाई
तुरंत पूरे उलझे हुए कणों के समूह में तरंगित कर सकती है, भले ही वे कितने भी बहुत दूर हों, चाहे वे ब्रह्मांड के विपरीत दिशा में किसी
और आकाशगंगा के कोने में हों। यह खोज आधुनिक क्वांटम प्रौद्योगिकियों का एक अनिवार्य
पहलू बन गया है, लेकिन शुरू में यह इतना प्रतिकूल
और असंभव प्रतीत होता थी की आइंस्टीन ने इसका मजाक उड़ाया था.
क्वांटम
एंटैंगलमेंट की खोज ने क्वांटम टेलीपोर्टेशन के साथ साथ क्वांटम सूचना तंत्र के जाल
को समझने की एक दिशा दे दी है. क्वांटम सिद्धांत में जो एक नया आयाम जुड़ा है। यह नया
सिद्धांत और भी ज्यादा रहस्यमय है। इस सिद्धांत के अनुसार क्वांटम ऑब्जेक्ट एक साथ
कई व्यवहारों का प्रदर्शन करते हैं और ऐसा इसलिए है कि वे एक साथ अनंत समानांतर ब्रह्मांडों
में अस्तित्व में रह सकते हैं।
दरअसल
क्वांटम भौतिकी में हम बहुत ही छोटे स्तर पर परमाणुओं तथा अन्य छोटे कणों का अध्ययन
करते हैं जो अंत में तरंग ही होते हैं. यह हमें ब्रह्माण्ड को क्वांटम स्तर पर समझने
में मदद करती है. क्वांटम भौतिकी एक ऐसा विषय है जिसे समझना काफी मुश्किल है, क्योंकि इसमें हम ऐसे कण की पढाई करते हैं
जिन्हे देखना बहुत ही कठिन है. क्वांटम भौतिकी के अनुसार एक पार्टिकल एक समय में एक
से अधिक स्थानों पर हो सकता है. क्वांटम भौतिकी के ऐसे ही अवधारणा की वजह से ही इसे
समझना काफी मुश्किल है यहाँ तक की सबसे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को भी पार्टिकल्स
के ऐसे बर्ताव को समझना शुरू में बहुत ही मुश्किल भरा था.
दर्शन
और विज्ञान के इस पदार्थ और ऊर्जा के अन्तर्सम्बन्ध के क्रमिक विश्लेषण के बाद आते
हैं प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया को समझने की. प्राण प्रतिष्ठा से जो हम समझते हैं
वह है मैटर (पदार्थ) में सीधे दिव्य ऊर्जा धारण करने का विज्ञान। जब एक योग्य एवं आलोकित
व्यक्ति आवाहन कर किसी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करता है तो वह मूर्ति दिव्य ब्रह्मांडीय
ऊर्जा का एक प्रत्यक्ष संवाद वाहक बन जाता है जो प्रार्थनाओं को क्वांटम स्तर पर टेलीपोर्ट
करने में सक्षम हो जाता है तथा प्रार्थना करने वाली आत्मा के संदेश को ब्रह्म से कनेक्ट
करता है। इस प्रकार पदार्थ में उच्चतम ऊर्जा को स्थापित करने का विज्ञान ज्ञात इतिहास
में केवल सनातन धर्म में ही बताया गया है। ऊर्जा को इस तरह से धारण कर ब्रह्म से एनटैंगल
करना ही प्राण प्रतिष्ठा का उद्देश्य है और मैटर (पदार्थ) को ऊर्जा में परिवर्तित करना
ही प्राण प्रतिष्ठा है। यह प्रक्रिया बताता है कि पदार्थ ऊर्जावान हो सकता, ऊर्जा धारण कर सकता है, ऊर्जा संग्रहीत कर सकता है और ऊर्जा विकीर्ण
कर सकता है। और यही क्वांटम फिजिक्स की विभिन्न शाखाओं में समझने का प्रयास किया जाता
है.
भारतीय
धर्मों में, जब किसी मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा
की जाती है तब मंत्र द्वारा उस देवी या देवता का आवाहन किया जाता है कि वे उस मूर्ति
में प्रतिष्ठित हों। इसी समय पहली बार मूर्ति की आँखें खोली जाती हैं। मूर्तियों की
प्राण प्रतिष्ठा में महत्व मूर्ति की शिल्पगत सुंदरता का नहीं होता । बारह ज्योतिर्लिंग
हजारों वर्ष पहले किसी महान सत्ता के द्वारा प्राणप्रतिष्ठा से जागृत किए गए थे । उनमें
स्थापित मूर्तियाँ शिल्प की दृष्टि से बहुत सुंदर नहीं कही जा सकती हैं । लेकिन उनकी
दिव्यता अद्भुत है। उस स्थान विशेष की परिधि में पहुँचते ही साधक को दिव्यता का अनुभव
होने लगता है, वह अपने आपको किसी कॉस्मिक
ऊर्जा से जुड़ा पाने लगता है। संसार में सब कुछ, जिसमें
आप स्वयं भी शामिल है दिव्य ऊर्जा के लिए एक योग्य पात्र हो सकते हैं. चूंकि इस दिव्य
ऊर्जा का तेज इतना प्रबल होता है कि इस ऊर्जा के साथ सीधे संवाद करना औसत मानव मन के
लिए आसान नहीं है, लेकिन एक पदार्थ माध्यम के
द्वारा इसके साथ जुड़ ऊर्जा से जुड़ा जा सकता है। जब एक सनातनी अपने इष्ट देवता, अपने पसंदीदा देवता की पत्थर की मूर्ति
की पूजा करता है, तो वह शायद ही पत्थर की पूजा
कर रहा होता है, बल्कि, उस मूर्ति के माध्यम से व्यक्त होने वाली
दिव्य ऊर्जा के साथ सीधे संवाद में होता है. चूंकि प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से सर्वोच्च
सत्ता के दिव्य ऊर्जा के दिव्य तेज को धारण करना होता है इसलिए इसका विधिपूर्वक और
उचित काल में होना आवश्यक है,
इसमें की
गई त्रुटि ऊर्जा की दिशा को किसी भी ओर मोड़ सकती है.
इसे
सरलता से समझना हो तो आप ऐसे समझ सकते हैं की रेडियो की किरण या इंटरनेट की किरण यत्र
तत्र सर्वत्र समस्त ज्ञात या अज्ञात ब्रह्मांड में फैली हैं लेकिन इसके द्वारा संवाद
या कोई क्रिया हम तभी कर पाते हैं जब हम उसे उतारे जाने लायक पात्र में उतारते हैं, जैसे की की रेडियो या मोबाइल या लैपटॉप।
अगर यह पात्र नहीं होगा तो भी सर्वव्याप्त तरंगो के होने के बावजूद उसकी उपस्थिति का
हम अहसास नहीं कर पाएंगे. इसलिए ऊर्जा को उतारने के लिए माध्यम चाहिए, मूर्ति वही माध्यम बनती है और ऊर्जा को
ब्रह्म संवाद के लिए प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से उस मूर्ति (पदार्थ) में उतारने का
प्रयास किया जाता है. उतारने की प्रक्रिया की एक विधि है जिसमें मन्त्रों की एवं क्रियाओं
की विधि से वेव और वेव के माध्यम से पदार्थ में छुपी ऊर्जा को क्रियाशील किया जाता
है जो क्वांटम टेलीपोर्ट और सूचना तंत्र की तरह ब्रह्म संवाद का माध्यम बन जाता है.
प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया समझना हो तो आब्जर्वर इफ़ेक्ट जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांत यहां
काम कर सकते हैं जो कहता है की सिर्फ ऑब्जर्व करने मात्र से ही वेव पार्टिकल में बदल
सकता है. मतलब वेव पार्टिकल - पार्टिकल वेव ऊर्जा के रूप में परिवर्तन यह आब्जर्वर
इफ़ेक्ट विधि से किया जा सकता है.
ज्ञात
अज्ञात ब्रह्मांड की उम्र खरबों साल होगी इन खरबों साल में पता नहीं कितने पार्टिकल
अंतरिक्ष के कोने में बिखर गए होंगे जो आपस में एंटैंगल भी होंगे, अगर नूतन क्वांटम एंटैंगलमेंट सिद्धांत
को मान लें तो अंतरिक्ष से हमें संवाद आ सकता है और अंतरिक्ष को पृथ्वी से संवाद भेजा
जा सकता है क्यूंकि इन जुड़े कणों में हुआ कोई बदलाव दूसरे कणों को प्रभावित कर सकता
है.प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति से प्रार्थना में यह इफ़ेक्ट, टेलिपोर्ट जैसी तमाम क्वांटम भौतिकी के
सूत्र काम करते हैं जो कायनात को संदेश भेज पृथ्वी की मांग को इस ब्रह्म को प्रस्तुत
करते हैं और इस प्रक्रिया में यदि सही जगह सही संयोजन में आवाज पहुंच गई तो क्वांटम
एंटैंगलमेंट सिद्धांत के कारण यहां की प्रतिक्रिया वहां और वहां की प्रतिक्रिया वहां
के माध्यम से ब्रह्म और आत्मा संवाद कर सकते हैं.
Comments