यत्र तत्र सर्वत्र तरंग ही तरंग
पहले हम पृथ्वी की बात करते हैं. हालांकि मेरा मानना है की
यह आत्मा दर्शन ज्ञात एवं अज्ञात अंतरिक्ष के हर हिस्से में लागू है जो परमात्मा
आत्मा और प्राण के आस्तित्व का अध्ययन करेगी . पहले हम बात करते हैं बिखरी हुई
ऊर्जा और तरंगों की. पूरा अंतरिक्ष अनंत काल से ऊर्जा एवं तरंगों से भरा हुआ है.
यह तरंग ज्ञात और अज्ञात अंतरिक्ष में बिखरे और फैले हुए पदार्थों एवं जीवों से
निकल रहा है. इन ऊर्जा और तरंगों के प्रत्यक्ष उदाहरण को देखना है तो हम इंटरनेट, टेलीफोन, मोबाइल या टीवी सॅटॅलाइट, रेडियो फ्रीक्वेंसी के रूप में समझ सकते हैं जो चारों तरफ
फैली हुई है. इन तरंगो को हम उतारते हैं एक निर्धारित विशेष कम्पोजीशन से बने एक
मैकेनिकल यंत्र में जैसे की लैपटॉप, मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी, रेडियो वायरलेस आदि आदि. हम बोल सकते हैं की ये मैकेनिकल
यंत्र इन ऊर्जाओं और तरंगों के रिसेप्टर हैं रिसीवर हैं. ये यंत्र किसी काम के
नहीं हैं, अपनी
उपयोगिता के मामले में मृत समान हैं यदि इन तरंगों को इनमें ना उतारा जाय. अगर
मोबाइल में कोई नेटवर्क नहीं है तो वह किस काम का. अगर टीवी सॅटॅलाइट या
ब्रॉडकास्ट स्टेशन से नहीं जुड़ा तो खाली डब्बा है. अगर रेडियो में कोई फ्रीक्वेंसी
ही नहीं पकड़ेगी तो रेडियो बेकार है. उसी तरह लैपटॉप में अगर नेटवर्क नहीं है तब तो
वह प्री इन्सटाल्ड प्रोग्राम तक ही काम करेगा। मोबाइल या लैपटॉप को प्री इन्सटाल्ड
प्रोग्राम से अतिरिक्त काम करने के लिए तरंगों की आवश्यकता है अब वह या तो वह सॅटॅलाइट
से आये या अन्य डिवाइस से जैसे ब्लूटूथ तकनीक है तभी वह कुछ एक्स्ट्रा काम करेगी.
अच्छा ब्लूटूथ कैसे काम करता है वह भी तो एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस से तरंगों से
जुड़ा हुआ है. हमने इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स के बारे में सुना है, इसमें डिवाइस ही दूसरे डिवाइस से संवाद करते हैं. इसमें कुछ
तो सेलुलर तरंगों के माध्यम से संवाद करते हैं तो कुछ रेडियो फ्रीक्वेंसी या
ब्लूटूथ के माध्यम से करते हैं. वर्ष 2022 में क्वांटम इंटाग्लीमेन्ट के लिए नोबल
मिला वह क्या कहता है की दो पार्टिकल अंतरिक्ष के इस हिस्से में या किसी भी हिस्से
में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, उनके बीच क्रिया प्रतिक्रिया का एक अंतर्संबंध हैं. मतलब
अगर दो पार्टिकल जुड़े हुए हैं और एक दूसरे से 100 करोड़ प्रकाश वर्ष भी दूर हैं तो
भी इनके बीच संवाद जीरो सेकंड में होगा मतलब रियल टाइम में होगा। तो यह संवाद कैसे
होता है, कुछ
तो संकेत जाते होंगे इसे तो विज्ञान ने भी बोल दिया है की दो पार्टिकल संवाद करते
हैं चाहे संवाद की स्थिति कोई हो तो मतलब इन दोनों के बीच कोई तो माध्यम है तो
मेरा मानना है वह तरंग है जो संवाद को पूरा कर रही है. ये तो हुआ तरंगों की
उपस्थिति के प्रमाण के कुछ उदाहरण। तो यह अनुच्छेद
तरंगों की उपस्थिति को सिद्ध करता है.
रिसेप्टर क्या है ?
ऊपर ये तो हो गई तरंगों की बात जो
ओमनीप्रेजेंट हैं, सर्व-भूत
हैं और इनकी सर्वव्यापी उपस्थिति है. इन तरंगों को जो रिसेप्टर जैसा बना होता है
अपने बनावट के हिसाब से अपने अनुकूल की तरंगों को कैच करता है और अपने बनावट के
हिसाब से क्रिया करता है. जैसे मोबाइल और टेलीफोन अपने अनुकूल तरंगों को रिसीव
करते हैं और संवाद हस्तान्तरण की क्रिया करते हैं. उसी प्रकार स्मार्टफोन लैपटॉप
अपने अनुकूल इंटरनेट की तरंगों को रिसीव करते हैं और अपने बनावट के हिसाब से जैसे
और जितने एडवांस लेवल तक डिज़ाइन होते हैं उतना परफॉर्म करते हैं. बनावट और डिज़ाइन
में सुधार होते जाता है उनका परफॉरमेंस बढ़ते जाता है. ठीक इसी तरह से रेडियो की
तरंगे विभिन्न फ्रीक्वेंसी पर फैली हुई हैं उन फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल कर रेडियो, वायरलेस या संदेशों के आदान प्रदान किये जाते हैं. यह
रेडियो तरंगे ओमनी प्रेजेंट हैं इनके अनुकूल डिवाइस लगा हम इनसे परफॉरमेंस प्राप्त
कर लेते हैं. ऐसे ही टीवी है ब्लू टूथ है इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स के डिवाइस हैं और ऐसे
सैकड़ों उदाहरण हैं. यह सब उदाहरण यह सिद्ध करते हैं की कई प्रकार की तरंगे हैं और
इनका ओमनी प्रजेंस हैं, जिस
प्रकार का रिसेप्टर डिज़ाइन होगा अपने उस अनुकूल प्रकार के तरंग को कैच करेगा और
जिस जनरेशन और एडवांस लेवल तक बना होगा उस लेवल तक परफॉर्म करेगा. इस पैरा का
संक्षिप्तीकरण करें तो कह सकते हैं की तरंगे होती हैं. तरंगे अनंत काल से हैं.
तरंगे ओमनी प्रेजेंट होती हैं, इन तरंगों को प्राप्त कर क्रिया करने के लिए रिसेप्टर होता
है. यह रिसेप्टर अपने अपने अनुकूल
तरंगों को प्राप्त कर क्रिया करता है. यह उस रिसेप्टर के एडवांस लेवल पर निर्भर
करता है की कितना और कैसा क्रिया करेगा. तो यह
अनुच्छेद रिसेप्टर की उपस्थिति और उसकी उपयोगिता को
सिद्ध करता है.
रिसेप्टर
का मूल
अब विमर्श करते हैं की इन रिसेप्टरों का
मूल क्या है ? तो मूल है इनका पदार्थ से बना होना। पदार्थ किससे बने होते
हैं तो जबाब है प्रोटॉन न्युट्रान इलेक्ट्रान, और मूल में जायें तो क्वार्क और मूल में जायें तो वेव जिसे
तरंग कहते हैं वह है आधार। ये पदार्थ कैसे रेस्पॉन्ड करते हैं तो इसका जबाब है की
इसमें तरंगों का और इनकी बनावट का योगदान है. कैसा रेस्पॉन्ड करते हैं तो यह
निर्भर करता है की इनकी बनावट और तत्पश्चात इनमें उन्नतिकरण के बदलाव कैसे हुए
हैं. अब बात करते हैं क्या पदार्थ आपस में संवाद करते हैं तो जबाब है हां करते
हैं. रेडियो फ्रीक्वेंसी, ब्लूटूथ
और अब क्वांटम इंटाग्लीमेन्ट की थ्योरी इस बात को सिद्ध करती है की दो पदार्थ आपस
में संवाद कर सकती है. क्वांटम इंटाग्लीमेन्ट की थ्योरी से यह भी एक संकेत मिलता
है की पदार्थ से भी तरंग निकलता है, मतलब इसे कह सकते हैं की रिसेप्टर से भी तरंग निकलता है.
वैसे तो बहुत वैज्ञानिक उदाहरण हैं उपरोक्त क्वार्क और उसके नीचे वेव होना है ही
पदार्थ से तरंग निकलने का सबसे सरल उदाहरण है की कई बार आपको किसी लोहे लकड़ी या
किसी के शरीर से भी अचानक से बिजली का करंट महसूस होना .
पृथ्वी पर जीवों की बनावट। क्या ये रिसेप्टर
हैं ?
अब आते हैं पृथ्वी पर जीवों की बनावट के
बारे में. जीव से मतलब वनस्पति और जंतु दोनों हैं जिसमें पौधे जानवर से लगायत
मौजूदा इंसान भी शामिल है. अच्छा जीव विज्ञान को कई लोग समझते हैं यह एक स्वतंत्र
विज्ञान है. नहीं मेरा मानना है की यह फिजिक्स और रसायन शास्त्र का सम्मिलित
विज्ञान है. हर जीव ( वनस्पति
और जंतु ) की बनावट मेकनिकल है. आप कोशिका की बनावट का अध्ययन करिये आप को मेकनिकल
तरह की एक व्यवस्थित बनावट लगेगी ताकि वह कोशिका परफॉर्म करे. वहीं इसके निर्माण
में रसायन का योगदान है जैसे इसके निर्माण में रसायन का योगदान है जैसे जीवद्रव्य का
निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा अनेक कार्बनिक (organic) तथा अकार्बनिक (inorganic) पदार्थो द्वारा होता है। इसमें जल लगभग 80% प्रोटीन 15%, वसाएँ 3% तथा कार्बोहाइड्रेट 1% और अकार्बनिक लवण 1% होता है।.
और भी सारे इंजीनियरिंग के बनावट हैं. कुल मिलाकर उपरोक्त सारे विश्लेषण बताते हैं की एक विशेष
सरंचना में बनावट हुई है जिसे आप बायो मेकनिकल इंजीनियरिंग बनावट कह सकते हैं और
इसके मूल में पदार्थ है , रसायन
शास्त्र का मैटर है. इसलिये कोशिका के स्तर पर भी जीव विज्ञान फिजिक्स और
केमिस्ट्री का सम्मिलित विज्ञान है कोई स्वतंत्र विज्ञान नहीं इसीलिए इसकी नई शाखा
विकिसित हुई बायो इंजीनियरिंग एवं बायो केमिस्ट्री.
यह तो हुई क्वांटम स्तर पर जीवों की
बनावट को समझने की अगर हम बृहदाकार की तरफ जायें जैसे वनस्पतियों की बनावट या
जंतुओं की बनावट इसमें भी आपको फिजिक्स और केमिस्ट्री का ही मिश्रण मिलेगा। सारी
बनावट ऐसी यंत्रवत की वह पौधा या जंतु अपना जीवन चक्र चला सके और।और उनकी बुनियाद
में पदार्थ और रसायन पर निर्भरता। पौधे की बनावट पर भी बात कर सकते हैं लेकिन
चलिये बात करते हैं बृहदाकार मसले पर मनुष्यों की बनावट की. मनुष्यों की बनावट
चाहे उसके हड्डियों का ढांचा हो, ह्रदय, धमनियों और सिराओं की बनावट हो, मष्तिष्क नसों और स्नायुओं की बनावट हो, नाक और श्वसन तंत्र की बनावट हो, पाचन और उत्सर्जन तंत्र की बनावट हो. प्रोटीन ऑक्सीजन
सोडियम पोटेशियम आयरन पानी ( हाइड्रोजन डाई ऑक्साइड ) की आवश्यकता और उपलब्धता हो.
किडनी, लीवर
फेफड़े का काम हो. आंख कान जीभ की बनावट, प्रजनन तंत्र की बनावट। इन सब की बनावट में मेकनिकल यंत्र
के सूत्र संयोजन का आधार है जो इन्हे अनुकूल कम्पोजीशन में जोड़े हुए है तथा ये जिन
चीजों से बने हुए हैं इसकी बुनियाद में पदार्थ और केमिस्ट्री है.
शरीर क्यों एक मेकनिकल मशीन ?
शरीर क्यों एक मेकनिकल मशीन ( फिजिक्स
का विषय ) की तरह काम करता है उसे ऐसे समझते हैं. शरीर इनपुट के रूप में भोजन पानी
प्रकाश धूप वायु को प्राप्त करता है और फिर उसका प्रोसेस करता है उससे जो ऊर्जा
प्राप्त होती है उससे क्रियाशील होता है और जो परित्यक्त बच जाता है उसे उत्सर्जित
करता है यही काम तो एक मशीन करता है फैक्ट्री भी करता है. चीनी मिल का उदाहरण देख
लीजिये। दूसरा उदाहरण प्रजनन तंत्र। प्रजनन तंत्र की ऐसी बनावट की है की इसमें
पुरुष या उसके वीर्य को और स्त्रियों या उसके अंडे की एक दूसरे पर अंतर्निर्भर बना
कर उत्पादन तंत्र विकसित किया गया है. आज निषेचन या भ्रूण को गर्भ से बाहर करने और
विकसित करने की मशीन बना ली गई है लेकिन यही मशीन तो हमारे अंदर है जो निषेचन से
लगायत प्रजनन तक का काम करती है. प्रजनन भी कितना बड़ा अपने आप में एक मेकनिकल
यंत्र है, तंत्र
है. वैसे ह्रदय की पम्पिंग क्रिया समझिये, किडनी का फ़िल्टर क्रिया समझिये, फेफड़े का प्रोसेस समझिये, मष्तिष्क का सॉफ्टवेयर, इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, मेमोरी और इंस्ट्रक्शन जैसी प्रक्रिया समझिये। शरीर के अंदर
गुड वायरस और इम्यून सिस्टम के रूप में उपस्थित डॉ की बनावट को समझिये। अब बात
करते हैं की शरीर चौबीस घंटे अनवरत कैसे काम करता है. तो शरीर की बनावट मतलब
मेकनिकल इंजीनियरिंग ही ऐसी हुई है की यदि उसे ईंधन मिलता रहे तो स्वचालित रूप से
काम करता रहेगा, जैसे
आजकल सौर ऊर्जा चलित कार आ गई है, ग्रीन हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी आ गई है. एक निश्चित उम्र तक यह
सूर्य से या वायुमंडल से ऊर्जा लेते हुए स्वचालित रूप से कार्य करता रहता है और
यदि रोबोटिक्स, मशीन
लर्निंग और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ़ एवरीथिंग से जोड़ दें तो अपने आप
चलने के लिए डायरेक्शन भी लेता रहेगा। तो शरीर भी इसी तरह मशीन का बना यंत्र है जो
स्वचालित रूप से काम करता रहेगा बस उसमे ईंधन की सप्लाई होनी चाहिए। इसकी एक उम्र
भी है. ऐसे तमाम उदाहरण
हैं जो बतायेंगे की पूरा शरीर एक मेकनिकल यंत्र है फिजिक्स है और जिसकी बुनियाद
में केमिस्ट्री है धातु है रसायन है. इसपर पूरी एक पुस्तक लिखी जायेगी यहां
उपरोक्त का उल्लेख यही बताने के लिए है की वनस्पति और जीव मेकनिकल यंत्र हैं जिनकी
बुनियाद में पदार्थ है. तो यहां सिद्ध हुआ की जीव भी एक मशीन है मेकनिकल यंत्र हैं
जो पदार्थों से बने हैं. इसीलिए आजकल बायो इंजीनियरिंग एवं बायो केमिस्ट्री विषय
का विकास हुआ है.
रिसेप्टर का उत्तरोत्तर विकास और तरंगों
से अंतर्संबंध
अब तक सिद्ध हुआ तरंग हैं, तरंग ओमनी प्रेजेंट है. रेसेप्टर है, रिसेप्टर पदार्थ से बना है. पदार्थ में मूल में इलेक्ट्रान
प्रोटान न्यूट्रॉन, उसके
मूल में क्वार्क और उसके आधार ने वेव हैं तरंगे हैं. पदार्थ तरंगों के माध्यम से संवाद
करता है. पदार्थ तरंग भेजता है रिसीव करता है. रिसेप्टर एक मेकनिकल यंत्र है.
रिसेप्टर तरंग पर रेस्पॉन्ड करता है. आगे सिद्ध हुआ की जीवन की इकाई कोशिका से
लगायत सम्पूर्ण वनस्पति जंतु, और ज्यादा विशिष्टता से बात करें तो मनुष्य भी एक मेकनिकल
यंत्र है और यह यंत्र भी पदार्थ से बना है. तो यह भी सिद्ध होता है की यह जीव भी
एक रिसेप्टर है. सब कुछ तो है जो उपरोक्त रेसेप्टर की विशेषताएं बतलाई गईं हैं। अब
यदि पदार्थ से बना मेकनिकल यंत्र रूपी रिसेप्टर तरंग पर रेस्पॉन्ड करता है और
संचालित होता है या तरंग भेजता है तो जीव भी एक रिसेप्टर है वह इन तरंगों पर
रिसेप्टर पर प्रतिक्रिया करेगा तरंग पैदा
करेगा . जिस तरह मेकनिकल रिसेप्टर भी कई कई प्रकार के होते हैं जैसे रेडियो, मोबाइल, इंटरनेट और टीवी और अपने प्रकार के हिसाब से अपने अनुकूलन
के तरंग पर जैसे की रेडियो तरंग, टेलीफोन तरंग, स्पेक्ट्रम, सॅटॅलाइट पर प्रतिक्रिया करते हैं ठीक उसी प्रकार जीव भी
अपने अपने प्रकार के हिसाब से अनुकूलन तरंगों पर प्रतिक्रिया करते है. जैसे मोबाइल
के विभिन्न प्रकार अपने बनावट के एडवांस की हिसाब से कार्य करते हैं वैसे ही यह
जीव रिसेप्टर भी अपने बनावट के एडवांस लेवल के हिसाब से उन तरंगों को प्रतिक्रिया
करते हैं. जैसे जैसे एडवांस फोन का ईजाद होता गया वैसे वैसे एक कोशकीय जीव से
मनुष्यों तक का विकास होता गया.
जो जितना मेकनिकल उन्नत हुआ प्राणियों में वह उतना उन्नत रहा और उन्नत मशीन बनता
गया. इस उन्नत मशीन से मशीन लर्निंग और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के पैटर्न पर अपना
उत्तरोत्तर विकास किया और कई चीजें विकसित कर लीं। पौधे जंतुओं की तरह विकसित ना होकर अपने तरीके से विकसित हुए क्यूंकि
कोशिका के स्तर पर उनकी इंजीनियरिंग अलग है, ठीक वैसे ही जैसे हर लोहा या स्टील मोटर साइकिल या कार नहीं
होता कुछ केवल हथौड़ा या कुल्हाड़ी रह जाते हैं, यह ठीक वैसा ही है हर कोशिका की बृहदाकार की यात्रा मनुष्य
नहीं है, सब
अपनी अलग अलग समय पर कई कम्पोजीशन में विकसित हुए कोई वनस्पति बना तो कोई जंतु
बना. इन वनस्पति और जंतुओं में भी एडवांस लेवल के कम्पोजीशन का विकास हुआ तो ये और
उन्नत बनते गए तो कोई फल का पौधा फूल का पौधा औषधि का पौधा अन्न का पौधा तो कोई
कुत्ता बिल्ली शेर मछली और मनुष्य बना.
क्या चेतना की
उपस्थिति की जड़ में तरंग है ?
अब तक हमने देखा की तरंग हैं, तरंग ओमनी प्रेजेंट हैं. पदार्थ हैं. पदार्थ तरंगों के
माध्यम से संवाद करते हैं. संवाद का स्तर उनके मेकनिकल बनावट, पदार्थ और तरंगों के प्रति अनुकूलता पर निर्भर है. जीव भी पदार्थ से बने हैं. आगे
थोड़ा विशिष्ट होये तो जंतु भी पदार्थ से बने हैं और विशिष्ट होये तो मनुष्य भी
पदार्थ से बने हैं. ये मेकनिकल यंत्र हैं. तो मतलब मनुष्य भी तरंगो पर रिपॉन्स
करते हैं तो उत्तर हैं हां, तो क्या मनुष्य भी तरंगों से संचालित होते हैं तो उत्तर हैं हां, तो क्या चेतना की उपस्थिति की जड़ में तरंग हैं तो उत्तर हैं
हां. कैसे वह बताता हूँ. जैसे एक इंटरनेट के किसी पेज मतलब वेब पोर्टल को लीजिये।
इसकी इंजीनियरिंग तो हुई है लेकिन वह क्रियाशील तभी होता है जब उसमें इंटरनेट का
सिग्नल पकड़ता है. यदि सिग्नल नहीं पकड़ता है तो वह मृत समान है. यही फार्मूला टीवी
स्मार्टफोन रेडियो आदि सब पर लागू होता है. बिना तरंगों के ये डब्बे हैं. तरंग
मिलने पर इनमे जान आती है नहीं तो यह ऐसे पड़े रहते हैं. और जिस तरह तरंगों की
उपलब्धता होने पर भी यदि इनके अंदर कुछ खराबी है तो यह सिग्नल रिसीव करने में
परेशानी महसूस करते हैं वैसे हमारा शरीर भी है जो ख़राब होने पर ओमनी प्रेजेंट
सिग्नल को पकड़ने पर परेशानी महसूस करता है. जैसे कोई बड़ी खराबी होने पर या कोई
मुख्य मशीन ख़राब होने पर रिपेयर होना असंभव और टीवी स्मार्टफोन रेडियो जैसे रिसेप्टर
तरंग रिसीव करना बंद कर ख़राब हो जाते हैं वैसे बड़ी खराबी होने पर शरीर के वाइटल
अंगों के ना काम करने पर मेकनिकल खराबी आ जाती है या शरीर रुपी रिसेप्टर के ओमनी
प्रेजेंट तरंगों के हिसाब से ट्यून नहीं होने पर तरंग संवाद का ब्रेक हो जाता है और शरीर का बेकार हो
जाता है, मृत
हो जाता है. उपरोक्त रिसेप्टर और जीव रूपी रेसेप्टर में एक अंतर् पाया जाता है
पहला है क्षरण कब होता है और दूसरा है तकनीक का अंतर। टीवी स्मार्टफोन रेडियो
निष्क्रिय या निरर्थक तो हो जाते हैं लेकिन तुरंत क्षरण नहीं होते लेकिन ऐसा नहीं
है की नहीं होते यह होते हैं एक समय के बाद इनमे भी क्षरण होने लगता है। तो कह
सकते हैं की इनकी क्षरण अवधि लम्बी है और जीवों में कम है और यह हो सकता है इसे
चुनौती नहीं दी जा सकती संभव है और ऐसे तमाम उदाहरण हैं जैसे लकड़ी लोहे से जल्दी
क्षरण, लोहा
स्टील से जल्दी क्षरण आदि. और दूसरा कारण है तकनीक। जीव की तकनीक या इसे
इंजीनियरिंग ऐसी है जैसे ही इसका तकनीक से डिसकनेक्ट हुआ इसके कोशिका स्तर पर ऑटो
क्षरण का आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस मशीन लर्निंग का प्रोग्राम विकसित हो गया है जो
इसे फ़ास्ट क्षरण की ओर ले जाता है. इसे कह सकते हैं की इसकी इतनी काम्प्लेक्स
इंजीनियरिंग है की यदि तरंग रुपी बिजली नहीं है तो इसके मशीन में खराबी तेजी से
शुरू हो जाता है. बाकी टीवी रेडियो स्मार्टफोन की इसके तुलना में कम काम्प्लेक्स
इंजीनियरिंग है.
परमात्मा आत्मा रिसेप्टर ( शरीर ) का संबंध
इसे साधारण शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं
की परमात्मा समुद्र की तरह बहता हुआ जल प्रवाह है और रिसेप्टर रूपी लोटा में हम
जितना जल रोक पाए वही हमारी शरीर और उसमे समाया जल हमारी आत्मा है, और सरल बोलें तो परमात्मा बहता हुआ वायु है एक गुब्बारे में
हम जितनी हवा रोक पाए वही हमारी शरीर और उसमे समाया वायु हमारी आत्मा है.
अब हम कह सकते हैं की जंतु यानी हमारा
शरीर जो मेकनिकल यंत्र है एक रेसेप्टर के रूप में काम करता है. इसकी पूरी
इंजीनियरिंग के फंक्शन तभी एक्टिवट होते हैं जब इसके अनुकूल ओमनी प्रेजेंट तरंगों
से इसका संवाद होता है. यह तरंग यत्र तत्र सर्वत्र हैं. हमारा शरीर रुपी रिसेप्टर इन्ही
तरंगों के आधार पर रियेक्ट करता है
जिसे हम कहते हैं की यह जीवित है, प्रतिक्रिया कर रहा है क्रियाशील है. तरंग उपस्थित और
मैकनिकली शरीर ठीक है तो रियेक्ट होना रेस्पॉन्ड होना होगा, और यदि शरीर रुपी रिसेप्टर तरंग पर रियेक्ट नहीं कर पा रहा
है, या
रेस्पॉन्ड नहीं कर रहा है तो शरीर निष्क्रिय हो जायेगा, मृत माना जायेगा, शरीर में ऑटो क्षरण का आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस मशीन लर्निंग
प्रोग्राम होने से शरीर ऑटो क्षरण हो जायेगा.
ऐसा नहीं है की यह ओमनी प्रेजेंट तरंग
जब मानव आये तब से हैं हैं यह अनंत काल से हैं, बस इनके लायक रिसेप्टर आज उपलब्ध हुआ है. आज उपलब्ध हुआ है
मतलब रिसेप्टर में उत्तरोत्तर उन्नतिकरण हुआ है एक कोशकीय जीव से मनुष्य तक की
रिसेप्टर ने यात्रा तय की है. जैसा रिसेप्टर विकसित हुआ वैसा तरंग को उसने रिसीव
किया और वैसा परफॉर्म किया. आज हम अपने स्मार्टफोन में जो स्पेक्ट्रम या तरंग
प्रयोग करते हैं हैं ऐसा नहीं है की पहले 1950 में यह तरंग नहीं था या 1050 में
नहीं था या चाणक्य के समय नहीं था. यह तब भी था बस वैसा रिसेप्टर नहीं था. जिस जिस
तरह का रिसेप्टर विकसित हुआ वैसा वैसा तरंग ने परफॉर्म किया.
जीवों के विकास की क्वांटम थ्योरी : पदार्थ या कम्पोनेंट के कम्पोजीशन की अनंत
संभावनाएं
यह थ्योरी जीवों के विकास पर भी एक
दृष्टि डालती है. मेरा मानना है की जितने भी पदार्थ या कम्पोनेंट हैं उनके
कम्पोजीशन की अनंत संभावनाएं हैं अपने अपने अलग अलग तरह के कम्पोजीशन में हैं.
करोड़ों वर्षों की जीवन यात्रा में कई तरह के कम्पोजीशन बनते गये एक कोशकीय जीव से
लगायत अब तक. हम आज मनुष्य हैं इसमें कुछ हजार वर्षों की यात्रा नहीं है कम्पोजीशन
के प्रयोगों की करोड़ों वर्षों की यात्रा है उसी कम्पोजीशन बनने की यात्रा में एक
कम्पोजीशन मनुष्य का विकसित हो गया, जिसका रिसेप्टर आज के समय में सबसे एडवांस है. इसकी विकसित
होने का त्वरण भी तेज था तो और जीवों से यह अलग निकल गया. इसके अंदर मशीन लर्निंग
जैसे गुण थे तो अभ्यास से ही इसने अपने आपको बहुत विकसित कर लिया शरीर के साथ
मस्तिष्क के क्षेत्र में भी विकास हुआ। हो सकता है इस कम्पोजीशन की आगे की यात्रा
में लाखों सालों में मनुष्यों से भी विकसित जीवों का विकास हो जाये क्यूंकि हमें
विभिन्न कोशिकाओं के कितने कम्पोजीशन बन सकते हैं यह नहीं पता। इसकी अनंत संभावनाएं हैं. मनुष्य तो
एक पड़ाव है.
प्राण
क्या है?
तो अब इस स्तर पर सवाल पूछते हैं की
प्राण क्या है? तो प्राण जिसे हम कहते
हैं वह है ओमनी प्रेजेंट रूप में तरंग, जो अलग अलग तरह के रिसेप्टर को एक्टिवटे करती है जिसमें से
एक मनुष्य भी है, जिसने
हमारे शरीर को एक्टिवेट किया है. यह सर्वथा उपस्थित होती है कभी मरती नहीं है. जब
तक शरीर रुपी रिसेप्टर के साथ तरंगे ट्यून रहती हैं शरीर जिन्दा रहता है और जब
अनट्यून होती हैं शरीर निष्क्रिय हो जाता है ख़राब हो जाता है क्षरण शुरू हो जाता
है मष्तिष्क की बनावट और प्रोग्रामिंग खत्म हो जाती है. रिसेप्टर और तरंगों के बीच
इस बिलगाव का कारण रिसेप्टर में आई खराबी भी होती है जो कई कारणों से हो सकती है
उसमें से एक उम्र हो जाना पुराना हो जाना होता है. ऐसी संभावना भी है की तरंग भी
अचानक से अनट्यून हो जायें लेकिन प्रत्यक्ष रूप में स्वतः समाधि प्रक्रिया के
अलावा रिसेप्टर सही होने पर भी तरंगों के अचानक अनट्यून होने की कल्पना या संभावना
कम दिखती है.
कभी
रेडियो को काम करते हुए आपने देखा है. तरंगों की अपनी अपनी फ्रीक्वेंसी होती है.
तरंगे उपस्थित रहती हैं .रेडियो में उन फ्रीक्वेंसी को पकड़ने के लिए अलग अलग स्केल
होता है. जब एक पर्टिकुलर स्केल पर कांटा जाता है तभी तरंग उस स्टेशन विशेष का
तरंग ट्यून होता है और स्टेशन पकड़ता है और जहां कांटा इधर उधर हुआ कनेक्शन टूट
जाता है. ठीक उसी तरह से हमारे शरीर रुपी रिसेप्टर में प्राण रूपी तरंग ट्यून होता
है जिसे पकड़ने के लिए एक विशेष स्केल भी होता है, यदि शरीर उस स्केल से इधर उधर हुआ तो कनेक्शन टूटना संभव हो
सकता है.
परमात्मा कौन है ?
पूरा ब्रह्मांड ज्ञात और अज्ञात अंतरिक्ष
तरंगों से भरा हुआ है. यह तरंगों का समुच्चय ही परमात्मा है. जैसा की क्वांटम
फिजिक्स के अनुसार परमाणु से भी छोटा क्वार्क और क्वार्क का निर्माण अंत में वेव
से हुआ है तरंगों से हुआ है, जिसका मतलब हुआ है सूक्ष्म स्तर पर हम हो पदार्थ हो जीव हों
सब वेव है और और बृहद स्तर पर, ब्रह्मांड ज्ञात और अज्ञात अंतरिक्ष पर भी सब वेव है. हमारा
हो पदार्थ हो जीव हों
सब तो इन्ही पार्टिकलों से बना है मतलब सूक्ष्म स्तर पर हमारी इकाई तरंग ही ही है
विशाल स्तर पर भी तरंग ही है, इस सूक्ष्म स्तर के तरंग का बृहद स्तर के तरंग के साथ
एकाकार होने को आनंद और विलीन होने को मोक्ष के रूप में परिभाषित कर सकते हैं.
जिसे ही शायद हमारे यहां प्राण आत्मा और परमात्मा के विभिन्न आयामों के रूप में
समझाया गया है. अब अगर पदार्थ का
सर्व सूक्ष्म मूल आधार वेव है तो इस चक्र को उल्टा समझते हैं की वेव से सब एटम बने
सब एटम से एटम और एटम से पदार्थ बने। मतलब सम्पूर्ण पदार्थ जगत ( सजीव और निर्जीव
) चाहे यहां या वहां अनंत अंतरिक्ष में सबके निर्माण मूल में यही वेव है जो
परमात्मा है जिसे हम ब्रह्म नाम से भी समझते हैं.
आत्मा
कहां है ?
अब चार चीजों को संक्षिप्त करते हैं
परमात्मा, देह, प्राण और आत्मा। अब यह तो समझ गए की तरंगों का समुच्चय ही
परमात्मा, देह
पदार्थ और इंजीनियरिंग से बना एक रिसेप्टर है, प्राण सूक्ष्मतम स्तर का तरंग तो अब सवाल यह उठता है आत्मा
कहां है ? मेरे दर्शन के हिसाब
से प्राण और आत्मा मोटा मोटी तौर पर अमूर्त और एक ही हैं लेकिन यदि और फाइन मीमांसा करना है तो आत्मा को जिस रूप में बोला या समझा
जाता है उसे आप प्राण ( तरंग ) देह (रिसेप्टर) के मिलन से उत्पन्न लय/चेतना ( Rhythm
) समझिये, जो प्राण और देह के संयोजन में हुये निष्पादनों का लॉग भी
मेंटेन करती है, जिस
कारण इस आत्मा को अक्सर किसी ना किसी देह से जोड़ के समझा जाता है. हालांकि अमूर्त
और लय होने के कारण यह देह से बंधी तो नहीं है लेकिन उस बंधन से जो यह लॉग मेंटेन
करती है उसे कोशिका स्तर पर सरंक्षित और सुरक्षित कर आगे ट्रांसफर करती है उस कारण
लोग इसे उस देह विशेष से जोड़ के समझते हैं. पुनर्जन्म की संभावना भी कोशिका स्तर
पर इसी लॉग के सरंक्षित होने के कारण ही बनती है. जीन गुणसूत्रों डीएनए का जो
संयोजन है उसकी समय के अनंत पड़ाव पर दुहराव की संभावना रहती है और जब कभी भी उस
जीव में यह संयोजन पाया जाता है वह उसके पूर्व पड़ाव का दुहराव होता है, कई बार समान
बनावट की मशीन (रिसेप्टर) से समान फ्रीक्वेंसी मैच कर सकती है साथ
में उसी संयोजन का क्रोमोसोम भी मैच हो जाता है ऐसे में तरंगों के क्रियाशील रहने
पर कोशिका स्तर पर सरंक्षित पूर्व स्मृतियां भी उसे याद आ सकती हैं. इसीलिए भारतीय
सनातन दर्शन में पुनर्जन्म में विश्वास किया जाता है.
आत्मा प्राण ( तरंग ) देह (रिसेप्टर) के
मिलन से उत्पन्न वह लय/चेतना ( Rhythm
) है जो अमूर्त रहती है और दोनों प्राण और
शरीर के संयोजन के टूटने पर वह भी ख़त्म हो जाती है. लेकिन उसके द्वारा किए गए
निष्पादनों का चूंकि लॉग मेंटेन रहता है इसलिए वह कोशिका स्तर पर यह सुरक्षित होता
रहता है. यह मीमांसा लोग आत्मा को जिस रूप में समझते हैं उसकी थोड़ी विस्तृत
व्याख्या है. मेरा दर्शन कहता है की प्राण जिस लय/चेतना या ऊर्जा को पैदा करता है वह आत्मा है. आध्यात्मिक आनंद
को यदि और फाइन मीमांसा करें तो भौतिक देह में स्थित तरंग रुपी प्राण से उत्पन्न
हुआ लय जब ब्रह्माण्ड में स्थित तरंगों के समुच्चय यानि परमात्मा के लय से मेल
खाने लगता है तो वह आध्यात्मिक आनंद की स्थिति होती है जिसे ही आत्मा से परमात्मा
के मिलन से उत्पन्न आनंद बोला जा सकता है और मोक्ष तो इस प्राण और उससे उत्पन्न लय
का रिसेप्टर की समाप्ति पर तरंगों के समुच्चय में विलीन होने को बोला जाता है.
वेव फंक्शन : सब एक सूत्र में बंधे हैं
अतः यदि भारतीय दर्शन में यह बात बोली
जाती है कि सब एक सूत्र में बंधे हैं तो यह सच साबित होता है की सब एक सूत्र में
बंधे हैं, सबके
मूल में तरंग है, इन
तरंगों के माध्यम से सब एक सूत्र में एक दुसरे से बंधे हैं. यदि भारतीय दर्शन में
यह बात बोली जाती है कि सबके अंदर परमात्मा है कण कण में परमात्मा है तो यह भी सच
है अंतरिक्ष में तरंगों का समुच्चय परमात्मा और यही तरंग सबके मूल में है तो सबके
अंदर परमात्मा है यह सिद्ध होता है.
इस तरह हम कह सकते हैं कि सारी चीजें
आत्मा परमात्मा शरीर रिसेप्टर अंतरिक्ष ज्ञात और अज्ञात ब्रह्माण्ड इस वेव फंक्शन
के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. और इस कारण यह भी संभावना बन जाती है की इन
जुडी हुई चीजों को प्रोग्राम किया जा सकता है नियंत्रित और निर्देशित किया जा सकता
है. मतलब पृथ्वी जीव जगत सजीव निर्जीव अंतरिक्ष ब्रह्मांड सब को प्रोग्राम किया जा
सकता है जैसे किसी एप्लीकेशन में या कृत्रिम मेटावर्स में हम चीजों को प्रोग्राम
कर सकते हैं. वेव फंक्शन की
प्रमाणिकता सिद्ध हो जाने के बाद यह संभावना तो बनती ही है. क्वांटम इंटाग्लीमेन्ट
भी तो यही बात बोलता है की दो पदार्थ आपस में संवाद करते हैं और पूरा जीव जगत
ब्रह्मांड पदार्थ से ही तो भरा है.
वेव फंक्शन और मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा
वेव फंक्शन के तहत आप भारतीय दर्शन के
मूर्तिपूजा विधि को भी समझिये। हर मंदिर टावर के शक्ल का होता है. अगर बिल्डिंग
नहीं हो पाता है तो जो लघु मंदिर होता है जहां मूर्ति रखा होता है वह टॉवरनुमा
होता है. हम मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करते हैं. मतलब परमात्मा का आवाहन करते
हैं कि उनका अंश उस मूर्ति में आ जाए. परमात्मा क्या है अनंत आकाश में तरंगों का
समुच्चय। हम पदार्थ से बनी मूर्ति के मूलाधार वेव के वेव फंक्शन को परमात्मा से
जोड़ने का प्रयास करते हैं. जब हम यह प्रक्रिया से मान लेते हैं की उस पदार्थ रूपी
मूर्ति का वेव फंक्शन परमात्मा जो की खुद वह वेव फंक्शन का समुच्चय है से जुड़ गया
है तो हम उस मंदिर में मूर्ति के समक्ष जाकर प्रार्थना और पूजा करते हैं और अपनी
बात पहुंचाते हैं. हम उस मूर्ति में कितना वेव फंक्शन, मंत्र द्वारा जनित तरंगों के माध्यम से
जगा पाते हैं यह अलग बात है लेकिन हां हम प्राण प्रतिष्ठा द्वारा उसे जाग्रत मान
परमात्मा से संवाद तो जारी कर ही देते हैं. भारतीय दर्शन के सगुण धारा की यह विधा
बताती है की पदार्थ के वेव फंक्शन में हमारा शुरू से विश्वास रहा है और यह भी रहा
है की यह वेव के समुच्चय परमात्मा से जुड़ता भी है.
क्या सभी तरंग एक ही प्रकार के हैं ?
अब आते हैं कि क्या सभी तरंग एक ही
प्रकार के हैं ? तो हाल फिलहाल ऐसा लगता
है की नहीं, क्यूंकि
रेडियो के अलग, इंटरनेट
के अलग और सॅटॅलाइट के अलग अलग हैं तो वैसे लगता है की जीवों वाले तरंग अलग हैं अंतरिक्ष
में. जैसी जैसी मशीन बनी, जैसा
रिसेप्टर है वैसी तरंग को धारण किया उसने.
मृत्यु
मृत्यु का अनुभव तब होता है जब तंत्रिका
तंत्र में रहने वाली क्वांटम तरंगे शरीर को छोड़ने लगती हैं या हमारा शरीर नुमा
रिसेप्टर इन्हे रोकने में सक्षम नहीं होता है, हमारा रिसेप्टर इन तरंगों से अनट्यून हो जाता है तब यह शरीर
छोड़ ब्रह्मांड में फैल जाती हैं। डॉ हैमरॉफ़ ने साइंस चैनल के थ्रू द वर्महोल को बताया: "मान लीजिए कि
हृदय धड़कना बंद कर देता है, रक्त बहना बंद हो जाता है, तो सूक्ष्मनलिकाएं अपनी क्वांटम अवस्था खो देती हैं। तब भी
सूक्ष्मनलिकाएं के भीतर की क्वांटम जानकारी नष्ट नहीं होती है, इसे नष्ट नहीं किया जा सकता है, यह बस ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर वितरित हो जाती है ”। रॉबर्ट लैंज़ा के अनुसार यह जानकारी न
केवल ब्रह्मांड में मौजूद है, यह शायद किसी अन्य ब्रह्मांड में भी मौजूद हो सकता है ।यदि
रोगी को पुनर्जीवित किया जाता है, तो यह क्वांटम जानकारी सूक्ष्मनलिकाएं में वापस जा सकती
हैं. वह आगे कहते हैं: "यदि उन्हें पुनर्जीवित नहीं किया जाता है, और रोगी की मृत्यु हो जाती है, तो संभव है कि यह क्वांटम जानकारी शरीर के बाहर मौजूद हो, शायद अनिश्चित काल तक, एक आत्मा के रूप में।" आपकी चेतना की ऊर्जा संभावित
रूप से किसी बिंदु पर एक अलग शरीर में पुन: आ सकती है, और इस बीच, यह भौतिक शरीर के बाहर वास्तविकता के किसी अन्य स्तर पर
किसी अन्य ब्रह्मांड में मौजूद होती है।
परमात्मा की ध्वनि, ॐ की ध्वनि
इस पृथ्वी पर हमने सारे शब्द खोज लिए
लेकिन एक शब्द हमने अंतरिक्ष से लिया, वह है परमात्मा की ध्वनि, ॐ की ध्वनि। यह क्या है वैज्ञानिक बताते हैं अंतरिक्ष में
यह नाद है, यही
शब्द सुनाई देते हैं जब आप अंतरिक्ष के शून्य में वैक्यूम में जाते हैं तब. यह
किसकी आवाज है, यह
उन्ही तरंगों के सम्मुच्चय की सम्मिलित ध्वनि है जो गूंजती है. अतः यदि कोई इसे
परमात्मा की ध्वनि कहता है तो सही ही कहता है तरंगों का सम्मुच्चय परमात्मा और
उनकी ध्वनि ॐ. ये तरंगे ही हैं जो गति करती रहती हैं और उनके गति से निकलती हुई
टकराती हुई यह ध्वनि है ॐ.
हम बोल सकते हैं कि जिन्हे ब्रह्मा बोला
जाता है वही परमात्मा हैं, बिखरी
तरंगे ब्रह्म ऊर्जा और पदार्थ डिवाइस जीवों एवं ऐसे सारे रिसेप्टर्स में समायी
तरंग ब्रह्मांश है.
स्त्री की भूमिका
इस पूरे दर्शन में स्त्री की भूमिका भी
प्राण प्रतिष्ठा के लिए बड़ी अहम होती है. माँ का गर्भ ही वह जगह है जहां तरंग
ऊर्जा चेतना रूप में पहली बार परिवर्तित होती है जब शुक्राणु और अंडाणु निषेचित
होते हैं. परमात्मा के अंश आत्मा ने भी वही संयोग चुना चेतना के प्रवेश के लिए. इस
लिहाज से स्त्री का स्थान और उनकी मजबूती स्वतः सिद्ध है.
द्वैत व अद्वैतवाद का संयुक्त बिंदु
आप पाएंगे की उपरोक्त आत्मा दर्शन द्वैत
और अद्वैतवाद को एक जगह जोड़ती है आत्मा और परमात्मा को अलग अलग परिभाषित करते हुए
भी जोड़ती है, एक ही
समय में वह अलग अलग हैं लेकिन उसी समय में वह जुड़े भी हुए हैं.
वेव फंक्शन संगीत ध्यान और कुंडलिनी जागरण
संगीत के समय आनंद की अनुभूति क्यों
होती है, इसका
कारण जो मुझे समझ में आता है की यह हमारे शरीर के सबसे सूक्ष्म आधार वेव को झंकृत
करता है और ऐसे में शरीर में आनंद का संचार होने लगता है और जब यह झंकार सूक्ष्म
आधार तरंग को परमात्मा रुपी तरंगों से एक सीध में ट्यून कर संवाद स्थापित करता है
तो संगीत ध्यान की स्थिति आ जाती है. मन्त्र की शक्ति भी तो यही कार्य करती है.
अगर हम सही उच्चारण में मन्त्र पाठ करें तो हमारे शरीर के सूक्ष्म तरंगों से संवाद
करते हैं, उन्हें
एक्टिवेट करते हैं और कई बार परमात्मा रुपी तरंगों से ट्यून कर संवाद स्थापित करते
हैं. इसीलिए तो कहा गया है कि मन्त्र में शक्ति है.
यही क्रिया ध्यान मैडिटेशन कुंडलिनी
जागरण के समय भी होती है, हमारी
मूलाधार वेव परमात्मा रुपी तरंगों से कनेक्ट होने का प्रयास करती है जो जितना
ट्यून करने में सफल होता है उसका ध्यान मैडिटेशन कुंडलिनी जागरण उतना सफल होता है.
हमारी कुण्डिलिनी या इन्द्रियां सक्रिय हो क्या करती हैं तरंगों का प्रक्षेपण ही
करती हैं. इसी कांसेप्ट पर तो ऋषि मुनि ध्यान ध्यान मैडिटेशन कुंडलिनी जागरण के
सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त करते हैं या करते थे.
टेलीपैथी और इनट्यूशन
कभी आपने टेलीपैथी पर ध्यान से विचार
किया है, आप
पाएंगे की किसी किसी से या किसी किसी का टेलीपैथी काफी तेज होता है. ऐसा क्यों
होता है क्यूंकि उनके पास से या उनके दिमाग से निकलने वाली तरंगों की फ्रीक्वेंसी
तेज होती है और आपको टेलीपैथी का अहसास होता है. कई बार दो व्यक्तियों का दिमाग
टेलीपैथी की तेज तरंगों के कारण आपस में इंटेंगल हो जाता है और कई बार एक व्यक्ति
जो कुछ सोचता है ठीक उसी समय उस व्यक्ति को भी वही चीज याद आती है या उससे जुडी
कुछ चीजें कर रहा होता है. यह टेलीपैथी का अलग अलग स्टेज है.
इनट्यूशन पूर्वाभास भी इसी सिद्धांत पर
काम करता है जिस पर टेलीपैथी काम करता है, टेलीपैथी में जहां दो लोग या उनका दिमाग आपस में जुड़ा रहता
है वही इनट्यूशन में क्वांटम फिजिक्स के सिद्धांत काम करते हैं और इसमें पूरा
वातावरण संवाद करता है.
क्रमशः - अगली संभावना अगली पुस्तक में चर्चा करेंगे वह है की हम इस मल्टीवर्स में
ईश्वर के बनाये मेटावर्स कैरैक्टर हैं जो फिलहाल स्वतंत्र हो गए हैं.
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