रेलवे दे सकता लाखों को रोजगार

अभी हमने सुना की की रेलवे के खाली पड़े जमीनों पर कार्गो वेयरहाउस बनाने के लिए लीज पर दिया जायेगा, यह निर्णय अच्छा है यह निष्क्रिय सम्पत्ति को उत्पादकीय संपत्ति में बदलने जैसा है, देश के सप्लाई चेनइंफ़्रा के लिये यह बड़ा कदम होगा। इस बारे में मैं कई बार कह और लिख चुका हूं. पिछले बजट में एक स्टेशन एक उत्पाद की बात कही गई थी, यह भी स्थानीय उद्यमिता के लिये बड़ा कदम है. लेकिन यहां मैं रेलवे में छुपी और लॉक एक ऐसी वैल्यू की बात कर रहा हूं जिसे अनलॉक किया जाय तो लाखों का रोजगार दे सकता है. आज कोरोना के व्यापक खतरे के कम होने के बाद पुरे देश में यात्रायें बढ़ गई हैं । लाखों लोग यात्रा कर रहें हैं । हर आदमी लंबी दूरी के यात्रा में औसतन 500 रुपया प्रति व्यक्ति टिकट के अलावा भी बहुत खर्च कर देता है। यह तो चुनिंदा ट्रेनों के चुनिंदा महीनों का आंकड़ा है। रेलवे के वर्ष 2018-19 के प्रकाशित आंकड़े को देखें तो कुल 844 करोड़ यात्रियों ने रेलवे से यात्रा किया है मतलब प्रतिदिन 2.31 करोड़ से ज्यादे यात्री रेलवे से यात्रा कर रहे थे. ये करोड़ों यात्री कुछ नहीं एक चलते फिरते बाजार हैं, इन्हें ग्राहक और ग्राहक एक भगवान की अवधारणा पे ही ट्रीट करना चाहिए. आज की तारीख में ट्रेन से जो कोई भी यात्रा करता है उसके दिमाग में रास्ते में कुछ न कुछ यात्रा के दौरान खर्च करने का इरादा भी रहता है. इस खर्च का कोई रिकॉर्ड रेलवे के पास नहीं रहता है वह यह खर्च कुछ रेलवे के कैटरिंग सर्विस से तो कुछ रेलवे के अधिकारिक प्लेटफार्म वेंडर से और कुछ ट्रेन में घूम रहे अनाधिकारिक वेंडर से करता है. यदि कम से कम 50 रुपये प्रति यात्री खर्च को ही मान लिया जाय तो वर्ष में कम से कम 42200 करोड़ के व्यापार का बाजार है रेलवे हॉस्पिटैलिटी बाजार जो की यात्री भाड़े के लगभग आसपास ही है , यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है. मेरा सोचना है कि रेलवे और IRCTC एवं अन्य संबंध यात्री विभाग को ग्राहक एक भगवान और उनके द्वारा किये खर्च संभावना को एक हॉस्पिटैलिटी बाजार समझना चाहिये। आप अक्सर ट्रेन से जाते होंगे तो ट्रेन की कैटरिंग का खाना जो ट्रेन में ही बनाया जाता है उसे भी खाते होंगे, शायद ही कभी ऐसा होता हो कि आप ट्रेन के खाना एवं उसकी गुणवत्ता से संतुष्ट हों. लम्बी दूरी के ट्रेनों की बात करें तो लगभग सारी श्रेणियों एवं ओवरलोडेड रेलयात्रियों को जोड़ लें तो एक कुशीनगर एक्सप्रेस जैसी ट्रेन में एक फेरे में 2000 यात्री यात्रा करते हैं और लगभग हर यात्री प्रति दिन 200 के औसत से खर्च करता है. अगर इसकी गणना करें तो वह पैंट्री कार वाला एक दिन में 4 लाख का माल बेच सकता है सिर्फ एक पैंट्री कार लगा के. एक अच्छी दुकान लगाकर भी लोग इतना बिक्री नहीं कर पाते हैं जितना बिक्री ट्रेन में लगा एक पैंट्री कार वाला कर देता है क्यूँ की उसका एक निश्चित बाजार है और उस ट्रेन विशेष में उसका लगभग एकाधिकार और बेचने का विशेषाधिकार है. अगर उस पैंट्री कार वाले के दिमाग में यह डाल दिया जाय की भाई रेल यात्री को अपना ग्राहक और ग्राहक को भगवान् समझों तो व्यवस्था बदल सकती है, क्यूंकि यह एक सोच का ही मसला है जो वर्षों से दिमाग में बैठ गया है कि यह ऐसे ही चलता रहेगा. हालांकि कुछ चुनिन्दा ट्रेनों में स्थिति दूसरी ट्रेनों से थोडा बेहतर है. गोवा एवं मुंबई के बीच चलने वाली ट्रेन मांडवी एक्सप्रेस की सुविधा भी बेहतर है. उसमे आपको गरम गरम खाना और किस्म किस्म का खाना परोसा जाता है वो भी हॉट पॉट में. एक बार मैंने मांडवी ट्रेन में पैंट्री कार वाले से पुछा की आप इतने तरह तरह के गरमा गरम खाने कैसे दे देते हो दुसरे तो नहीं दे पाते हैं खासकर उत्तर भारत की ट्रेनों में तो उसने बोला की यह तो हमारे चलते फिरते ग्राहक हैं जितना अच्छा देंगे उतना खरीदेंगे अगर वह पूरी यात्रा के दौरान 200 रूपया खर्च करना होता है तो अच्छा और लजीज और खाने की वैरायटी देख के लोग 400 का खर्च कर देते हैं और इससे मेरी बिक्री ही तो बढती है. कितना लाजबाब सोच उस वेटर ने हमें बता दिया था, मैं आश्चर्यचकित होकर उसे देखता ही रहा कि कितना बड़ा ज्ञान एक कम पढ़ा लिखा ट्रेन का वेटर दे गया, क्यूँ नहीं यही अवधारणा सभी ट्रेनों में विकसित की जाय. ट्रेन एक सहज सुलभ एवं निश्चित बाजार है जहाँ व्यापार होना ही होना है जरुरत हैं इसमें पेशेवराना रवैया लाने की. पैंट्री कार वालें प्लेटफार्म वेंडर एवं अन्य रेलवे अधिकारिक वेंडर के अन्दर यह भावना कूट कूट कर भरना चाहिए की भारतीय रेलवे के ग्राहक एक भगवान् हैं और यह एक हॉस्पिटैलिटी सेक्टर है. रेलवे एक दक्ष स्तर की स्किल सेट मांगती है जिसकी तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिए. अपनी शिक्षा नीति, कौशल विकास और होटल मैनेजमेंट के कोर्स में ट्रेन हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट का कोर्स भी शामिल करना चाहिए तथा जो स्टाफ ट्रेन पैंट्री में लगें हैं उनके लिए ट्रेन हॉस्पिटैलिटी का कोर्स करने को प्रेरित एवं वरीयता देना चाहिए. ट्रेन कस्टमर को मैनेज करना भी एक स्किल सेट मांगती है , साथ ही जो पैंट्री में किचन स्टाफ लगें हो उनमें भी होटल मैनेजमेंट कोर्स की वरीयता हो तो खाने से लेकर सर्विस तक की श्रंखला में पेशेवर रवैया लाया जा सकता है. आप ध्यान दें जब आप एअरपोर्ट पे जाते होंगे तो आप पाते होंगे की वहां एअरपोर्ट हैंडलिंग, कार्गो हैंडलिंग एवं ग्राउंड हैंडलिंग के स्टाफ रहते हैं. सरकार को भी यहाँ ध्यान देना चाहिए की रेलवे का प्लेटफार्म मैनेज करना एक विशेष तरह का स्किल सेट मांगती है सरकार को भी अपने स्किल प्रोग्राम की तरह प्लेटफार्म मैनेजमेंट का एक कोर्स चलाना चाहिए जिसमें फैसिलिटी मैनेजमेंट के साथ साथ कार्गो हैंडलिंग, पैसेंजर हैंडलिंग तक के कोर्स शामिल हों. देश के कुछ चुनिन्दा प्लेटफार्म को पायलट प्रोजेक्ट के तर्ज पर वहां प्लेटफार्म मैनेजमेंट की सुविधा शुरू की जानी चाहिए. इससे एक तो स्किल आधारित रोजगार का सृजन भी होगा और यात्रियों को बेहतर सुविधाएँ भी मिलनी शुरू हो जाएँगी तथा जो रेलयात्रियों को परेशानियाँ हो रही हैं जैसे की साफ सफाई, खान पान, लगेज हैंडलिंग आदि आदि इसे दूर किया जा सकता है. इस सम्बन्ध में प्लेटफार्म पर भीड़ कम करने के सम्बन्ध में भी कुछ काम किया जा सकता है. लम्बी दूरी की ट्रेनों में जल्दी चेक इन लगेज स्टोरेज एवं हैण्ड बैग आदि के नियम लाकर कुछ हद तक ट्रेन के अन्दर और बाहर साफ़ सफाई, सुविधा और अधिक खुले जगह की व्यवस्था की जा सकती है. साथ ही ट्रेन में एवं प्लेटफार्म पर अधिकारिक एवं अनाधिकारिक वेंडर के अन्दर भी अनुशासन एवं पेशेवराना रवैया विकसित किया जा सकता है. अब वक़्त आ गया है की सरकार की दृष्टि इस निश्चित बाजार की तरफ जाए उन्हें आरामदायक हॉस्पिटैलिटी भी दे और रेलवे को एक हॉस्पिटैलिटी बाजार की तरह से देखे, रेलवे में पैंट्री मैनेजमेंट, रेल यात्री प्रबंधन, प्लेटफार्म मैनेजमेंट कार्गो मैनेजमेंट, प्लेटफार्म फैसिलिटी मैनेजमेंट आदि स्किल सेट के कोर्स को मान्यता दे और उसकी भर्ती को प्रोत्साहित करे.

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