मिनी औद्योगिक पार्क आज की जरुरत
भारत की ७०% आबादी गांवों में रहती है इसलिए यह लाजमी हो जाता है की भारत सरकार की और राज्य सरकार की जो औद्योगिक नीतियाँ हैं वह इसी को ध्यान में रख के बननी चाहिए. नीति आयोग ने इस बारे में सोचा कि नहीं इसके प्रमाण अभी नहीं दिखते हैं लेकिन सरकार को अब इस पर सोचना चाहिए ताकि आबादी अब शहर की तरफ नहीं रोजगार के लिए कस्बों की तरफ ही जाए. अगर किसी सरकार को वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट की स्कीम को सफल करना है तो मिनी औद्योगिक पार्क की अवधारणा पे काम करना ही पड़ेगा.
इधर मैंने बहुत सारी औद्योगिक नीतियाँ पढ़ी जिसमे बड़े औद्योगिक पार्क बनाने की बात की गई है लेकिन उसके लिए लैंड साइज़ भी बड़ी निर्धारित कर दी गई है. सरकार को औद्योगिक पार्क की पालिसी को कृषि एवं नवीकरण उर्जा आधारित एवं कुटीर उद्योग की अवधारणा को प्राथमिकता में रखकर बनाना चाहिए, ताकि छोटे छोटे जगहों पे रोजगार स्थानीय तौर पे ही उपलब्ध मिले.
जैसे कि कस्बों , दूरस्थ क्षेत्रों में कुटीर उद्योग के तौर पर सोलर प्लांट की अच्छी संभावनाएं हैं यदि इसे कुटीर उद्योग के तौर पर लगाया जाय तो, लेकिन अब तक कई प्रदेशों में कई तरह की नीतियाँ है जो अक्सर बड़े प्लेयर को ज्यादे आकर्षित करती हैं. सरकारें टेंडर के माध्यम से सोलर की बोली लगाती हैं और बड़े ग्रुप विदेशों से कम दर के ब्याज वाले ऋण लेकर अपनी लागत काफी कम कर के कम रेट के टेंडर ले लेती हैं जिससे वह तो बड़ा प्लांट लगाती हैं और जिसमे रोजगार की संख्या कम होती है और अपने यहाँ का छोटा निवेशक मुंह ताकते रह जाता है. सोलर प्रोजेक्ट में सबसे कम मैनपावर चाहिए होता है अतः जब तक यह कुटीर उद्योग के रूप में विकसित नहीं होता है तब तक रोजगार की संख्या भी ज्यादे नहीं होगी, इसके लिए सरकार अपने अध्ययन के बल पर एक बेंचमार्क प्राइस निर्धारित कर दे ताकि इस प्राइस पे किसी निजी बड़े कारपोरेट की कुटिल कलाबाजी भी शामिल नही होगी और छोटे निवेशक भी आकर्षित हो सकते हैं. यही बातें अन्य उद्योगों पे भी कमोबेश लागू होती हैं.
आजकल गाँव गाँव पिपरमिंट और केले की खेती बहुत हो रही है ऐसे हर जगह कोई न कोई जिला आधारित विशेष चीज का उत्पादन हो रहा है. अगर सरकारें इन चीजों को और कुटीर उद्योग को ध्यान में रख कर मिनी औद्योगिक पार्क पालिसी बनाये तो गाँव गाँव का इको फ्रेंडली विकास हो सकता है. आप यूपी के गाँव में चले जाइये पिपरमिंट के छोटे छोटे प्लांट मिल जायेंगे अगर सबको एक जगह तहसील स्तर पर ही इकठ्ठा कर उसकी एक विशेष पालिसी लाई जाये तो पिपरमिंट पे अच्छा काम हो सकता है. उसी तरह केले के कुटीर उद्योग भी विकसित हो सकते हैं.
सरकार को हर तहसील या कसबे में १० एकड़ २० एकड़ या ऐसे ऐसे छोटे जगह जो परती पड़े हैं जहाँ खेती नहीं होते हैं उन्हें चिन्हित कर कर उसे मिनी औद्योगिक पार्क के तर्ज पर विकसित करने चाहिए और इसको वह सब लाभ देने चाहिए जो बड़े औद्योगिक पार्कों को यां उनमे लगने वाले इकाइयों को सरकार दे रही है. इससे कसबे और विकसित होंगे और उनके आसपास के गाँव भी विकसित होंगे. अगर आज शहरों से भार कम करना है तो कस्बों की इकॉनमी और विकास पे ध्यान देना होगा वहां नगरीय सुविधा और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे. इस मिनी औद्योगिक पार्क का मालिक या तो कोई निजी उद्यम या सहकारी समिति या पीपीपी के तर्ज पर या सरकार स्वयं हो सकती है. जिसमे प्लाटिंग के माध्यम से आधारभूत सरंचना विकसित कर के चार्जेबल बेसिस पर कुटीर उद्योगों को बढाया जा सकता है. आजकल आप देखते होंगे छोटे छोटे कस्बों में कटरा बनाने का बड़ा चलन है जिसमे कोई भी सरकारी प्रोत्साहन नहीं है ऐसे में सरकार को प्रोत्साहन इन मिनी औद्योगिक पार्कों को हस्तांतरित करना चाहिए ताकि लोग कटरा से ज्यादे मिनी औद्योगिक पार्क बनाने के लिए प्रेरित हों. और इस मिनी औद्योगिक पार्क को वहीँ इंसेंटिव दिए जाएँ जो बड़े औद्योगिक पार्क को दिए जाते हैं. इस मिनी औद्योगिक पार्क की मिनिमम साइज़ या तो १० या २० एकड़ के हों या कोई उद्यमी १० या २० या इससे ज्यादे औद्योगिक यूनिट मिल के एक जगह लगाना चाहता है जगह भले ही कम हो तो उस जगह विशेष को ही मिनी औद्योगिक पार्क का दर्जा दे देवें.
इसके बुनियादी ढांचे के विकास में आवश्यकता के आधार पर सड़क, बिजली, जल, ड्रेनेज लिंक, ईटीपी, डब्ल्यूटीपी और एसटीपी जैसी सामान्य सुविधा शामिल हो सकती है जो सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए और इसका रख-रखाव मिनी औद्योगिक पार्क की प्रबंधन समिति को दी जा सकती है । प्रबंध समिति सरकार को शुल्क वसूलेगी और सरकार को भुगतान करेगी.
मिनी औद्योगिक पार्क की जो प्रबंध समिति हो वह मौजूदा यूनिट धारकों द्वारा ही बनाई जानी चाहिए और इसके लिए चुनाव नियत समय पर होते रहने चाहिए ताकि व्यवस्था पारदर्शी रहे तथा इस पार्क तक बिजली और पानी की आपूर्ति सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए.
मंडी, बड़े मेगा फूड पार्क, फ्रेट कॉरिडोर, ठंडे भंडारण, गोदाम, बंदरगाहों आदि के साथ इसे जोड़ना जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधा लिंक की व्यवस्था सरकार की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए ताकि सप्लाई चेन इन्फ्रा की कमी के कारण इस पार्क का कोई उत्पाद होल्ड नहीं हो।
बैंक लोन, निवेश एवं सरकारी इंसेंटिव की योग्यता की गणना के लिए इस पार्क की परियोजना लागत में भूमि मूल्य के साथ साथ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और 5 साल के रखरखाव के अग्रिम खर्च को भी शामिल कर इसकी गणना करनी चाहिए. पीपीपी मॉडल या सहकारी मॉडल या निजी मॉडल पे ऐसे छोटे पार्क अगर बन रहें हैं तो बैंक लोन और इक्विटी मिक्स का पूंजी मॉडल भी इसके लिए विकसित किया जा सकता है ताकि बाहरी निवेशक भी आकर्षित हों. बैंक लोन के लिए मार्जिन मनी की गणना में जमीन का निवेश शामिल कर के रेडी रेकनर वैल्यू पे उसका मूल्यांकन कर बैंक लोन को सुगम बनाना चाहिए. निवेशक द्वारा मिनी पार्क के लिए जमीन या तो खरीदी जा सकती है या ३० वर्ष से अधिक के पट्टे पे ली जा सकती है या अगर स्थानीय जमीन मालिक चाहे तो वह खुद पार्क लगा सकता है या बाहरी निवेशक बुला सकता है. बाहरी निवेशक बैंक लोन एवं निवेश सुगम होने पर आसानी से निवेश कर सकता है और रिटर्न में लीज, इन्फ्रा एवं मेंटेनेंस शुल्क ले सकता है. अगर निवेशक लीज लैंड लेता है तो लीज्ड भूमि के मामले में, लीज होल्ड अधिकार की गणना संपत्ति के रूप में हो और इसे मार्जिन मनी के रूप में माना जाए. मार्जिन मनी परियोजना का 10% होना चाहिए और कार्यान्वयन एजेंसी द्वारा परियोजना को मंजूरी मिलने पर बैंक या वित्तीय संस्थान द्वारा 90% वित्तीय सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। परियोजना के लिए नेट वर्थ मानदंड 50 लाख होना चाहिए और इसमें नेट वर्थ गणना के लिए भूमि मूल्य भी शामिल की जानी चाहिए। अगर निवेशक कार्यान्वयन एजेंसी को आवेदन करता है तो आवेदन के लिए केवल भूमि मालिक से एलओआई ही प्रस्तावित मार्जिन पैसे के रूप में माना जा सकता है और और प्रक्रिया आगे बढाई जा सकती है।
अन्य ऐसे सभी छूट मसलन 100% स्टाम्प ड्यूटी फ्री ब्याज की सब्सिडी GST की माफ़ी समेत वो सब छूटें छोटे पार्कों को और इनमें लगने वाली यूनिटों को मिलनी चाहिए जो सरकारों ने बड़े पार्क के लिए बनाई है. ऐसे पार्कों में बनाई गई चीजों को सरकारी खरीद में वरीयता भी मिलनी चाहिए.
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