चीन का विकल्प बन सकता भारत

अभी हाल ही में यूरोपियन यूनियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के हवाले से खबर आई थी की चार में से लगभग एक यूरोपीय फर्म चीन से बाहर जाने पर विचार कर रही है, एक सर्वे में लगभग 23 प्रतिशत लोग अपने वर्तमान या नियोजित निवेश को चीन से दूर ले जाने के बारे में सोच रहे हैं. चीन की वर्तमान कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए जीरो टॉलरेंस नीति और जीरो एग्जिट पालिसी इसके मुख्य कारण हैं. यह पलायन भारत के लिए मौका है जो अपने नीतियों और टैक्स के कारण इन्हे भारत की तरफ खींच सकता है. आइये देखते हैं की भारत इसके लिये कितना सज्ज है. दरअसल कोरोना महामारी ने केवल कुछ समय के लिए अर्थशास्त्र की दशा नहीं बदली यह लंबे समय तक के लिए सीख है, श्रीलंका और पकिस्तान की हालत तो हम देख ही रहें हैं. कोरोना के दौरान और बाद में भी कई आंकड़े हमें नकारात्मक संकेत देते हैं लेकिन फिर भी, भारत के लिए बहुत सारी उम्मीदें और सकारात्मक संकेत हैं. भारत के लिये यह संकट काल के साथ साथ एक कदम पीछे ले उछाल लेकर वापसी करने का समय है।अर्थव्यवस्था रीसेट मोड में थी तो बड़े बड़े बदलाव देखने को मिले फिजूलखर्ची बंद हुई. भारत में कौशल के विकेंद्रीकरण से क़स्बे के स्तर पर आर्थिक गतिविधियां तेज हुई हैं. और UPI और ONDC से पूरे भारत में समान गति और स्तर से विकास संभव और आर्थिक तानाबाना मजबूत होने का ढांचा बना है। आर्थिक गतिविधियों के विकेंद्रीकरण से माइक्रो सेक्टर बढ़ेगा और नए और पहले से अधिक मजबूत आर्थिक ताने-बाने का निर्माण होगा। हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक सेक्टर में वृद्धि होगी।कुटीर उद्योगों के साथ सेवा क्षेत्र में भी स्वरोजगार बढ़ा है। सरकार एमएसएमई और प्रभावित क्षेत्र को कई पैकेज भी दे रही है. सरकारी खरीद और व्यय में भी वृद्धि के प्रयास हो रहें हैं । प्रक्रियागत लागतें कम हो रही हैं कौन सा काम हाइब्रिड सिस्टम में हो सकता है इसपर मंथन चालू हो गया है. वैश्विक स्तर पर भी, खरीदार पहले से ही भारत से चीनी मिट्टी के बरतन, घर, फैशन और जीवन शैली के सामानों की खरीददारी कर रहें हैं अब कम लागत के कौशल और बढ़ती हुई मांग और उत्पादन के कारण यह गति बढ़ेगी। उपरोक्त कारणों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के विकल्प के रूप में भारत कच्चे माल और निर्मित वस्तुओं के आपूर्तिकर्ता के रूप में कई व्यापार चैनलों में प्रवेश कर सकता है और रिज़र्व बैंक ने इधर रूपये को अंतरराष्ट्रीय सौदे के रिकॉर्डिंग और सेटेलमेंट के माध्यम की आज्ञा देकर एक अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय समावेशीकरण की नींव भी रख दी है । बदलती विश्व अर्थगति और नई अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला मॉडल में, भारत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। रूस यूक्रेन के कारण अनाज की बढ़ती हुई वैश्विक संकट में भारत सुरक्षित है क्यों की वह इस मामले में आत्मनिर्भर है यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है. इसलिये चीन की तुलना में हमारे पास सांस लेने की क्षमता अधिक है. भारत चीन से निकल रहे और कई विदेशी निर्माताओं को भारत में उत्पादन संयत्र को स्थानांतरित करने के लिए आमंत्रित करने में लगा हुआ है। चीन आगे हैं क्यूंकि उसने अपनी बढ़ी हुई आबादी को विनिर्माण में झोंक दिया आबादी को बोझ बनाने की जगह उन्हें लाभ केंद्र में बदला और ब्रांडेड की जगह दुनिया भर में अनब्रांडेड सामानों की बाढ़ ला दी. इसके जबाब में मौजूदा सरकार के लगातार प्रयासों से आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया लाया गया ताकि आबादी और संसाधनों को लाभ केंद्र में बदल विनिर्माण पर फोकस बढ़ाया जाय, आज नई विनिर्माण यूनिट पर दुनिया में सबसे कम आयकर है. महामारी को देखते हुए, आपूर्ति श्रृंखला पर सबसे बड़ी मार पड़ी है और भारत को इस वैश्विक शून्य को भरने के लिए छलांग लगाने से पहले अपनी निर्भरता को भी चीन पर से काफी कम करना होगा क्यों कि लंबे समय से, चीन विभिन्न वस्तुवों के लिए भारत की आयात सूची में सबसे ऊपर है। उपरोक्त सभी सकारात्मक आशाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए सरकार और जनभागीदारी की मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। एमएसएमई से सरकारी खरीद को बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाना चाहिए और इसमें से भी 50 प्रतिशत माइक्रो सेक्टर से खरीदना चाहिए। एमएसएमई को तीन-भाग सूक्ष्म, लघु और मध्यम में अलग-अलग तीन प्रकोष्ठ के नेतृत्व में विभाजित करना चाहिए ताकि माइक्रो के साथ न्याय हो सके। सरकार को अंतिम स्तर पर बिक्री संभव बनाने और खपत बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। कम ब्याज दर के साथ अधिस्थगन की अवधि और सभी इन्फ्रास्ट्रक्चर खर्च बढ़ाए जाने चाहिए। जिस तरह वेज पदार्थों के लिए हरा और मांसाहारी पदार्थों के लिए लाल रंग का प्रयोग होता है ऐसे में विदेशी और स्वदेशी सामानों के लिए भी कलर कोड लाना चाहिए इससे राष्ट्रवादी व्यापार मजबूत होगा. दुनिया के निवेशकों को आकर्षित और विनिर्माण क्षेत्र में अग्रणी बनने के लिए भारत ने टैक्स सिस्टम के माध्यम से भी क्षमता निर्माण का काम किया है. चुनिन्दा टैक्स आक्रामकता को लेकर जो भारत की छवि दुनिया में बनी हुई थी वो अब बीते कुछ सालों से खत्म हो रही है. अब भारत टैक्स टेररिज्म वाला देश नहीं रहा. पूरे देश में GST लगाने से भी टैक्स की परिभाषाओं को समझने की जो सहूलियतें मिली उसने भी विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया है. भारत के इस कदम से विश्व में भारत की टैक्स साख खूब बढ़ी है और वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग ट्रेंड भारत की तरफ मुड़ने की सम्भावना है जो मेक इन इंडिया के लिए अच्छा होगा. कॉरपोरेट टैक्स की दर को कम किए जाने का भारत में संयंत्र लगाये हुये विदेशी कारोबारियों ने भी स्वागत किया है। उनका कहना है कि इससे देश की और विश्व की भी आर्थिक सुस्ती दूर होगी और विदेशी कंपनियों को भारत में मैन्यूफैक्चरिंग गतिविधि बढ़ाने का एक नया अवसर मिलेगा। वैश्विक स्तर पर जो शीर्ष के 10 मैन्युफैक्चरिंग देश हैं उनके यहाँ भी जो कर की प्रभावी दर है निर्माण कारखानों पर, वह हमसे ज्यादे हो गई है.ऐसी दशा में जो वैश्विक निवेशक हैं उनके लिए भारत अब नए ट्रेंड के रूप में सामने आ रहा है. विदेशी निवेशक भी अब महसूस कर रहें है कि भारत की सोच अब बदल रही है, अब भारत सरकार को विदेशों में जाकर अपनी नीतियों का रोड शो करना चाहिए ताकि इस मौके का जल्द से फायदा उठा सके. सडकों का जाल बिछ रहा है सरकार लोजिस्टिक नीति पर विशेष ध्यान दे रही है. सभी पुरानी अप्रासंगिक हो चुकी औद्योगिक नीतियों को बदला जा रहा है ताकि निवेश सुगम हो सके. राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति के तहत देशभर में बिना किसी अवरोध के वस्तुओं के परिवहन को बढ़ावा देना और कारोबारियों के लिए माल परिवहन पर होने वाले खर्च को कम करना है। प्रस्तावित नीति के तहत गोदामों की संख्या और क्षमता बढ़ाई जाएगी। खामियों को दूर की जाएगी, ताकि लॉजिस्टक्स खर्च में कमी आए। जेवर और बैंगलोर एयरपोर्ट पर विश्वस्तरीय कार्गो हब बन रहा है, चारों तरफ
एयर कनेक्टिविटी बढ़ रही है.भारत में जितना खर्च लॉजिस्टक्स पर होता है, वह जीडीपी के 14 फीसदी के बराबर है। सरकार इस खर्च को घटाकर जीडीपी के नौ फीसदी के बराबर लाने की योजना बना रही है। भारत सरकार के बदलाव और राज्यों के साथ सुसंगतता औद्योगिक क्रांति ला और चीन को टक्कर दे सकती है.

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