किसान ही सनातन उद्यमी है

आज के एमबीए एवं इंजीनियरिंग शिक्षा के भेड़चाल में यह बहुत कम लोगों को पता होगा की सन 1952 में धार कमेटी की अनुसंशा पर आईआईटी खड़गपुर मे कृषि एवं खाद्य इंजीनियरिंग में बीटेक की शिक्षा शुरू की गयी थी। लेकिन समय के साथ बाजार के किसी अनजाने दबाब ने इसे कंप्यूटर एवं इन्फॉर्मेशन टेक्नालजी जैसा लोकप्रिय रोजगार परक विषय नहीं बनाया। आईआईटी या इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी पोस्ट हार्वेस्टिंग के कोर्स और रोजगार की जानकारी ज्यादा मिलेंगी। कोर्स की ड्राफ्टिंग में ही कृषि एवं खाद्य इंजीनियरिंग को एक साथ जोड़ देने से शिक्षा एवं रोजगार का ज्यादा फोकस खाद्य इंजीनियरिंग वाले पक्ष पर ज्यादा चला गया और कृषि इंजीनियरिंग को कृषि विश्वविद्यालयों के हवाले का विषय बना दिया गया। आप गूगल करेंगे तो पता चलेगा की रोजगार खाद्य इंजीनियरिंग में ज्यादा मिलेंगे लेकिन कृषि उद्यमी बनने के विकल्प नहीं बताये जायेंगे। नियोक्ताओं की लिस्ट भी इतनी आकर्षक नहीं है जिससे की युवा वर्ग इस विषय पर आकर्षित हो। इसे रोचक बनाने से पहले जानने की जरूरत है की इसके आर्थिक रोचक पहलू क्या हैं तभी युवाओं और देश के प्रबन्धकों का ध्यान इस तरफ आकर्षित कर सकते हैं। जरूरत है आज इसे इसका ग्लैमर दिलाने की। दुनिया मे सबसे अधिक उत्पादन कृषि का है। दुनिया के प्रत्येक देशों की जीडीपी महंगाई और अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि उत्पादन है। दुनिया के कई देशों मे कृषि उत्पादन नगण्य है मसलन खाड़ी देश जहां निर्यात की अनंत संभावना है। यह पूरी दुनिया का एक ऐसा उत्पादन है जिसकी पूंजीगत और मशीनरी लागत अन्य उद्योगों की तुलना मे नगण्य है। कृषि की मांग कभी भी कम नहीं हो सकती है, आबादी बढ़ने के साथ ही इसकी मांग बढ़ती जाती है। यह उत्पादों की श्रेणी में पूरे भारत एवं विश्व मे 100% व्यक्ति और यहां तक जानवरों के द्वारा दिन रात उपभोग किया जाता है। आज कृषि इलाके के पिछड़ेपन का कारण उनकी कृषि शक्ति का सर्वोत्तम उपयोग ना होना और नई पीढ़ियों द्वारा मुंह मोड़ना रहा है आज देश के कृषि इलाकों कि हालत ऐसे घर की हो गयी है जहां सारे इलेक्ट्रानिक संसाधन के मौजूद होने के बावजूद है लगता है जैसे करेंट नहीं है और सब के सब निष्क्रिय पड़े हैं । चाहे वो फ्रिज हो या वॉशिंग मशीन सब आलमारी कि तरह कपड़ा रखने के काम मे आ रहा है। कहने का मतलब की जब किसी संसाधनो को उसका उचित करेंट नहीं प्राप्त होता है तो वह यही गति प्राप्त करेगा। आज भी आपको इन इलाकों में कई युवा सर्वोत्तम सुविधा के अभाव मे टूटते भटकते हुये दिखाई देंगे जिनमें से कई को तो उनके सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करने की उम्र निकल गयी है तो कई अभी भी टकटकी लगाए बैठे हैं। कृषि संभावनाओं के दृष्टिकोण से बात करें तो आज भी ये इलाके अपने कृषि एवं मानव संसाधन क्षमता का कुछ प्रतिशत ही मूल्य प्राप्त कर पाते हैं क्यूं की इन कृषि उत्पादों के लिए ना तो अनुकूल राज्य की नीतियां ना तो अनुकूल कृषि बाजार ना भंडारण की व्यवस्था है और ना ही यहां का युवा वर्ग रोजगार के अवसर के रूप में कृषि को अपना रहा है और ना ही वह यहां टिक रहा है। शिक्षा के आरंभ में ही कृषि विज्ञान को गैर वरीयता वाले विषयों की सूची में रख दिया जाता है और कैरियर काउंसिलिंग के दौरान भी कोई बामुश्किल ही इस विषय के बारे में विद्यार्थियों के मन मे अभिरुचि पैदा करा पाता है, जिसके कारण यहां के कृषि को उसका सर्वोत्तम पेशेवर युवा और युवा को कृषि के प्रति उदासीन है और गांवों से आज भी उत्पादक युवाओं का पलायन जारी है। अब तो हालत यह है की देश का किसान भी यही चाहता है की उसका बेटा या बेटी आगे चल के खेती ना करे। कृषि की तरफ युवा उदासीनता का एक प्रमुख कारण शैक्षिक पाठ्यक्रमों में चाहे वो एमबीए हो या इंजीनियरिंग हो इसको इसकी महत्ता से परिचित नहीं कराना है। कृषि की तरफ युवा उदासीनता का दूसरा कारण भारत में पेशेवर शिक्षा के बाद युवा वर्ग बहुतायत में गांव में रहना नहीं चाहता है कारण गांव मे शहरों जैसी सुविधा नहीं है। बड़ी बारीकी से इन सुविधाओं का आप अध्ययन करेंगे तो इसमे इस नव युवा वर्ग को चाहिये 24 घंटे बिजली, इंटरनेट बच्चों के लिए अच्छा स्कूल, अच्छी चिकित्सा सुविधा और परिवहन के लिए अच्छी सड़क वीकेंड मनाने की जगह तो युवा खुद ब खुद खोज लेता है। युवाओं की इस उदासीनता जिसके कारण इन कृषि भूमि का सर्वोत्तम प्रयोग नहीं हो पा रहा है , पैदा किए जा सकने वाले संभावित उत्पादों और स्थानीय श्रम और ब्रेन का उपयोग नहीं हो पा रहा है, पलायन हो रहा है , इस पलायन को रोकने के लिए बुनियादी स्तर पर आगे बताये गये उपाय किए जा सकते हैं। रोजगार परक पाठ्यक्रम जैसे की एमबीए, इंजीनियरिंग, आईटीआई, आईआईटी में कृषि को रोचक और आकर्षक रूप मे प्रस्तुत किया जाय। कृषि के लिए सर्वोत्तम सप्लाई चेन का विकास किया जाय जिसमें समुद्री एवं हवाई कार्गो एयरपोर्ट से लेकर अन्य क्षृंखलाबद्ध चीजें हों जैसा की अभी पूर्वांचल में कुशीनगर एयरपोर्ट बना है । इन शिक्षाओं के बाद इनके अनुप्रयोगों को विकसित कर के जैसे की इस तरह के कृषि, कृषि पूर्व और कृषि पश्चात एग्रो पार्क एवं स्थानीय ऐसे उद्यमों को विकसित करना जहां इस शिक्षा का उपयोग किया जा सके। रोजगार के विभिन्न विकल्पों के विकास के साथ साथ कृषि उद्यमिता को बढ़ावा देते हुये विशिष्ट वैज्ञानिक कृषि प्रबंधन को बढ़ावा देना। अगर सरकार शहरों की तरह पलायन रोककर इन मूलभूत और आधारभूत सुविधावों को गांवों और गांवों के आसपास बसे कस्बों के इर्द गिर्द विकसित कर दे तो इन युवाओं का शहरी पलायन रोका जा सकता है। जैसे की 24 घंटे बिजली, इंटरनेट बच्चों के लिए अच्छा स्कूल, अच्छी चिकित्सा सुविधा और परिवहन के लिए अच्छी सड़क। अगर कस्बों को विकसित करने पे ज्यादा ध्यान दिया जाय तो एक बड़े आबादी को वहां पर रोका जा सकता है. गांव के लिए उनका प्रथम शहर और प्रथम बाजार क़स्बा ही होता है, अतः कस्बों को ध्यान में रखकर कृषि उद्यमिता पर कार्य करना चाहिये. ऐसे करने से निम्न फायदे होंगे , युवा को स्थानीय रोजगार प्राप्त होंगे। युवा अपने बूढ़े होते हुये मां बाप के साथ रहेगा। युवा अपनी पत्नी और बड़े होते बच्चे के साथ रहेगा, जिससे बड़े होते हुये नौनिहालों को पिता का प्यार और दादा दादी का मार्गदर्शन और संचित ज्ञान मिलेगा। युवा और उनके नौनिहालों को स्वस्थ वातावरण मिलेगा तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और पूरा परिवार डिप्रेशन से दूर रहेगा। परिवार और समाज में सहकारिता का विकास होगा जिससे जोतों का बंटवारा नहीं होगा। परिवार और समाज में सौहाद्रता के साथ समृद्धि और खुशहाली आएगी। युवा के वहां पर निवास करने से वहां खरीददारी ज्यादा होगी और नकदी संकट की समस्या समाप्त होगी। स्थानीय लोगों का जागरूक युवाओं के साथ रहने से उन्हे नूतन मार्गदर्शन और तकनीक का ज्ञान होता रहेगा। रियल इस्टेट की महंगाई की समस्या समाप्त हो जायेगी । युवा अपनी कमाई का मोटा हिस्सा शहर में फिर से एक नये आशियाने बसाने में खर्च करने से बच जायेगा और यही बचत कहीं पर वह चल पूंजी के रूप मे प्रयोग कर के ज्यादा लाभ कमाएगा। युवाओं के गांव मे रहने से गांव को भी इनके सानिध्य और सामर्थ्य के अनेक लाभ मिलेंगे और ये युवा अपने नये सोच से अपने क्षेत्र की राजनीति से लेकर अर्थ तक क्रांतिकारी बदलाव लायेंगे। जीवन यापन के खर्च भी कम होंगे अतः बचत ज्यादा होगी, बचत ज्यादा होगी तो विनियोग ज्यादा होगा और विनियोग ज्यादा होगा तो देश की जीडीपी बढ़ेगी। क्षेत्र और देश की जीडीपी बढ़ेगी और सर्वांगीण ग्रोथ होगा। उपरोक्त अध्ययन से यही प्राप्त होता है की देश के नेतृत्व को ऐसे क्षेत्रों को लेकर एक विशेष योजना बनानी पड़ेगी जो वहां के संसाधनो को सर्वोत्तम उचित मूल्य दिलाते हुये देश का संतुलित विकास कर सके।

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