आक्सिमीटर + थर्मामीटर से जीत सकते जंग

कोरोना की लहर जैसे जैसे आगे बढ़ रही है भारत के शहरों के साथ साथ गांव भी संकट में आ रहें हैं. गांव के केस का अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे की वहां बहुत ही बेसिक जरुरत है, वह है थर्मामीटर और आक्सिमीटर की यदि इसकी पर्याप्त पूर्ति कर दी जाए तो आक्सीजन की जरुरत से ले हॉस्पिटल बेड की वर्तमान जरूरतों को अस्सी फीसदी तक कम किया जा सकता है. गांव में शायद ही किसी के पास आक्सिमीटर होता है जिस कारण उनको आक्सीजन स्तर गिरने का शुरुवाती पता और इसके अलार्म स्तर का पता ही नहीं चलता और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. यदि गाँवों और कस्बों में एकदम से बेसिक चीज थर्मामीटर और आक्सीमीटर की उपलब्धता करा दिया जाय तो गंभीर अवस्था और मौतों को रोका जा सकता है क्यों की मरीज और मरीज के परिवार वालों को यह पता चल सकेगा की हॉस्पिटल जाने का अलार्म कब बज रहा है इससे मरीज के पास भी रिस्पांस करने और हॉस्पिटल समय से पहुँचने के लिए पर्याप्त समय मिल जायेगा. गांव में बहुत से लोग कोरोना मर्ज को सामान्य मौसमी बुखार के भुलावे में भी आकर खतरनाक स्तर पर पहुँच जा रहें हैं यदि उनके पास आक्सिमीटर उपलब्ध करा दिया जाए तो समय रहते उन्हें पता चल जायेगा की यह सामान्य मौसमी सर्दी बुखार नहीं कोरोना है तो कोरोना को इस मामूली हथियार से ही शुरू में ख़त्म किया जा सकता है. इसकी उपलब्धता संभव हो सकती है माइक्रो निगरानी समिति के क्रियान्वयन के माध्यम से . पिछले दो लेखों में मैंने बताया था की की शहरी संक्रमण को रोकने के लिए मुंबई महानगर पालिका का माइक्रो प्रबंधन कितना कारगर है और जिसकी तारीफ सुप्रीम कोर्ट से ले प्रधानमंत्री तक ने की है . इस लेख में हम चर्चा करेंगे की ग्रामीण स्तर पर कैसे माइक्रो निगरानी समिति कारगर हो सकती है . वर्तमान में गांव में सबसे बड़ी चुनौती है मरीजों को समय पर मर्ज की पहचान हो जाए , और उन्हें मौसमी सर्दी जुकाम या वायरल बुखार तथा कोरोना बीमारी में अन्तर पता चल सके. यदि शुरू में ही इसको साध लिया जाय तो संक्रमण के बाद जो विस्फोटक हालात हो रहें हैं उसे बिलकुल ख़त्म किया जा सकता है. प्रवासी उत्तर प्रदेश निवासियों के लिए काम करने वाली संस्था उत्तर प्रदेश डेवलपमेंट फोरम के प्रमुख सलाहकार स्वास्थ्य स्वीडन निवासी डॉ राम उपाध्याय जो विश्व विख्यात दवा वैज्ञानिक के साथ साथ संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ भी हैं के अनुसार यदि ग्रामीण नागरिकों के पास थर्मामीटर और आक्सिमीटर की व्यवस्था पहुंचा दी जाय और साथ में टेलीमेडिसिन से इसे लिंक कर दिया जाय तो ग्रामीण संक्रमण के बाद उपजे अफरातफरी और मौत के आंकड़ों को शून्य किया जा सकता है. गांव में ऑक्सीजन के स्तर को लेकर भी जानकारी नहीं है, और कोरोना से मिलने जुलने वाले अन्य मर्ज के लक्षण होने के कारण ग्रामीण पहले से ही भ्रम बना रहें हैं की उन्हें कोरोना नहीं है और ऐसा कर तत्काल में तो अपने मन को दिलासा दे रहें हैं लेकिन अंत में जाकर जंग हार रहें हैं. कोरोना में प्रथम सप्ताह ही महत्वपूर्ण होता है, यह समझिये की पहला हफ्ता कोरोना वायरस की पहली सीमा रेखा है जहाँ आप कोरोना को मामूली हथियारों और मामूली दवाओं से ही मार सकते हैं और वह इन हथियारों से खत्म भी हो सकता है लेकिन यदि उसने यह सीमा रेखा पार किया तो उसकी ताकत काफी बढ़ जाएगी और वह क्षरीर में कई धमाल कर आगे बढेगा. ऐसे में अदि उनके पास बेसिक मेडिकल डिवाइस थर्मामीटर ओक्सिमीटर के साथ स्थानीय स्तर पर निगरानी तंत्र में डाल दिया जाय जो सिर्फ इनकी निगरानी ही न करें इन्हें समय समय पर मार्गदर्शन दे शासन , हॉस्पिटल और मरीज के बीच कड़ी बन काम करे तो दूसरी लहर क्या तीसरी लहर से भी आसानी से मुकाबला कर इसे हराया जा सकता है और इसी बीच जब टीकाकरण का अभियान पूरा हो जाय तो अगले १५ अगस्त या २६ जनवरी तक भारत को मास्क फ्री बनाने का संकल्प भी पूरा हो सकता है इसके लिए जरुरी है इस प्रकार की प्रभावी माइक्रो लेवल की योजना बनाई जाए. यह सच्चाई है की गांव में अभी भी सबके घर में थर्मामीटर नहीं है और ओक्सिमीटर तो सिर्फ डॉ के पास है जबकि यह दोनों मेडिकल डिवाइस ही इस दुश्मन से लड़ने का प्रारंभिक और कारगर हथियार है, इस छोटे से हथियार से ही आप कोरोना जैसे दुश्मन को भगा सकते हैं नहीं तो इसके आगे बढ़ने पर बड़े बड़े से बन्दूक लगाने पर भी लड़ाई कठिन हो जाती है ऐसे में निगरानी समिति के पास दिया गया आक्सिमीटर उनका ऑक्सीजन का स्तर जांच करता रहेगा जिससे समय रहते यह यदि मानक स्तर से गिरता है तो उनको मेडिकल अटेंशन दिया जा सकता है. यह थर्मामीटर और ओक्सिमीटर की समय पर उपलब्धता ही कोरोना की बीमारी को प्रथम सप्ताह में सिर्फ पकड़ ही नहीं लेगी निगरानी समिति के लोग उसका टेलीमेडिसिन के द्वारा इलाज भी करवा उसे प्रथम सप्ताह में ही ख़त्म करने में सहायक होंगे. शहरी इलाकों के लिए जैसे मुंबई का मनपा मॉडल एक आदर्श हो सकता है ठीक उसी प्रकार ग्रामीण संक्रमण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश की निगरानी समिति योजना है जो देश के लिए कारगर हो सकती है.मौजूदा महामारी में प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोरोना संक्रमण रोकने में योगी आदित्यनाथ की पहल पर बनाई गई निगरानी समितियां बड़ा हथियार बन कर सामने आ रही हैं । इस निगरानी समिति की संरचना में हर उन लोगों को रखा गया है जो ग्रामीण स्तर पर लोगों को जानने और पहचानने में कारगर हो सकते हैं और लोगों के संपर्क में रहते हैं. इस निगरानी समिति मॉडल में स्थानीय लेखपाल, रोजगार सेवक, एनजीओ, एसएचजी, कोटेदार से लेकर सफाई कर्मचारी तक को शामिल किया गया है. इन निगरानी समिति के सदस्यों को थर्मामीटर और ओक्सिमीटर से लैस किया गया है ताकि गांव के लोग अगर कोरोना संभावित होते हैं या उन्हें सर्दी जुकाम बुखार जैसे मौसमी लक्षण भी आते हैं तो उन्हें मॉनिटर किया जा सके. देश यदि यह दोनों मॉडल स्वीकार करता है तो निगरानी समिति के सदस्‍य घर-घर घूमकर संक्रमित लोगों की पहचान कर, उनका तापमान नाम, आक्सीजन जांच कर जरुरत है तो उन्हें दवाएं व होम आइसोलेट कर संक्रमण को शुरू में ही रोकने का काम कर सकते हैं । इस प्रकार माइक्रो मैनेजमेंट के सूत्र ट्रेस, टेस्ट, ट्रीट के आधार पर कोरोना संक्रमण के मामले रोकने व कोरोना की चेन तोड़ने में निगरानी समितियां कांटेक्‍ट ट्रेसिंग के जरिए अहम भूमिका अदा कर सकती हैं। इस मॉडल से कोरोना की लड़ाई शत प्रतिशत जीती जा सकती है और मृत्यु दर को शून्य किया जा सकता है. माइक्रो निगरानी समिति की योजना से इस कोरोना को संक्रमण होने के पहले ही हफ्ते में पकड़ इसे ख़त्म किया जा सकता है . इसके कई फायदे हैं पहला फायदा शुरुवाती चरण में यह वायरस कमजोर होता है अतः सामान्य दवाइयों, कोविड प्रोटोकाल के पालन और कुछ अनुशाषित दिनचर्या से ही इसको ख़त्म किया जा सकता है, दूसरा मरीज और मरीज के परिवार वाले हैरान और परेशान नहीं होते और उनका घर पर ही इलाज हो जाता है, तीसरा विशेषज्ञों का मानना है की यदि संक्रमण को घर पर फर्स्ट स्टेज पर ही रोक दिया तो ना तो बीमारी ऑक्सीजन की जरुरत के स्तर पर बीमारी पहुंचती और ना ही अस्पताल जाने की जरुरत पड़ेगी जिससे ऑक्सीजन आधिक्य की स्थिति के साथ साथ क्रिटिकल मरीजों के लिए अस्पतालों में बेड उपलब्ध रह सकेगा. निगरानी समिति एक साथ कई मोर्चों का समाधान कर सकता है. भारत जहां ग्रामीण और कस्बाई आबादी की एक बड़ी संख्या है उसके लिए निगरानी समिति का कांसेप्ट काफी कारगर और यूनिक है.

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