मोरेटेरियम में मनमानी से हैरान जनता


कोरोना फैलने के बाद लगे पाबन्दी से सबसे अधिक वह लोग बेचैन थे जिनकी बैंको या गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से होम लोन, वाहन लोन, पर्सनल लोन या अन्य लोन की ईएमआई चल रही थी व्यवसाय वाले भी परेशान थे की उनके टर्म लोन या कॅश क्रेडिट या ओवरड्राफ्ट खातों की किश्त और ब्याज कैसे भरी जाएगी क्योंकी चाहे आम आदमी हो या व्यापारी सबको आशंका थी की जो नगदी चक्र प्रभावित होने वाला है वह एक न एक दिन सबके चौखट को खटखटाएगा, साथ ही इन सब लोगों के जो ईन बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के रिकवरी प्रोसेस के अनुभव थे वह बहुत बुरे थे जिसमें बैंक एवं वित्तीय संस्थान का बंदा 90 दिन का इन्तजार नहीं करता था 4 दिन बीतने पर ही दरवाजे पर आ खड़ा हो जाता था. इन सब समस्याओं को समझते हुए भारत सरकार मोरेटेरियम की स्कीम लेकर आई की मार्च से लेकर मई महीने के बीच जितने भी ईएमआई या ब्याज देय होंगे वह जून में देय होंगे. इसके बाद से ही बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के तरह तरह के बयान आने लगे, इनकी तरफ से कई तरह के विडियो जारी हुए की यह मोरेटेरियम लेने से क्या नुकसान है. मोरेटेरियम का आवेदन इनके आधिकारिक ईमेल पर भेजने के बाद लम्बी अवधि तक कोई जबाब नहीं आया, इस बीच इनके यहाँ से फोन ग्राहकों के पास जाने लगे की यदि आपके पास मेल का जबाब नहीं आया इसका मतलब आपका मोरेटेरियम स्वीकृत नहीं हुआ है अतः आपको किश्त देनी पड़ेगी नहीं तो आपको बाउंस चार्ज लग जायेगा, सिबिल स्कोर ख़राब हो जायेगा आपको आगे लोन नहीं मिलेगा. फिर इनके तरफ से दूसरी रणनीति अपनाई गई की किसी तरह से ग्राहकों से किश्त लेना है इसके लिये इन्होने ग्राहकों से बोलना चालू किया की बताइए आपको सैलरी आई है की नहीं इसका प्रूफ दिखाओ यदि सैलरी आपको आई है तो मोरेटेरियम नहीं मिलेगा, और यदि नहीं आई है तो विचार किया जायेगा, इसी तरह जो बिजनेस वाले आये हैं उनसे बैंक स्टेटमेंट मांगे जाने लगा ताकि यह देखें की उनके पास पैसा है की नहीं. जबकि रिजर्व बैंक ने अपने नोटिफिकेशन में स्पष्ट कहा था की यह बैंकों को आदेश है की इसे लागू करें और इसके लिए कोई शर्त नहीं रक्खी थी.  लेकिन इन संस्थाओं के उच्चाधिकारी ने अपने कर्मचारियों को वसूली का टारगेट दे रक्खा था और इस लॉकडाउन में ये कर्मचारी अपनी नौकरी बचाने के लिय येन केन प्रकारेण हथकंडा अपनाने लगे जिससे की वसूली हो जाये और इनकी नौकरी बच जाए और इस तरह के हथकंडे से आम आदमी बिकुल त्रस्त हो गई और जिस उद्देश्य से कंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ने यह योजना घोषित किया था वही इनके लिए जंजाल बन गया क्यों की दिन भर फोन आना तरह तरह से इन्हें प्रताणित करना बाउंस चार्ज और सिबिल की धमकी मिलने लगी. इस हरकत से  कई आम आदमी डर गए साथ ही जिस तरीके से उन्होंने यह ईएमआई कैसे भारी पड़ेगी समझाना शुरू किया तो कई लोग उधार लेकर किश्त चुका दिए और कई लोगों ने जिन्होंने ईएमआई नहीं भरने का निर्णय किया उनके पास इन लोगों ने बैंक चार्जेज के नोटिस भेजने लगे जिससे बहुतों ने घबड़ा कर किश्त भर दिए जिस कारण केंद्र सरकार का आमजनों को राहत पहुंचे यह पूरा उद्देश्य ही विफल हो गया. साथ ही चूँकि यह निर्णय २७ मार्च को लिया गया था तो बैंकों ने यह सुविधा जो थोड़ी बहुत दी भी वह अप्रैल मई की दी और मार्च महीने का किश्त ले लिया विकल्प चुनने के बाद तो मूलतः उन्ह २ ही महीने की राहत मिली. साथ ही जब इसे सरकार ने फिर अगस्त तक बढाया तो बैंकों ने इसे स्वतः ही अगस्त तक नहीं बढाया ग्राहकों को दुबारा आवेदन का नियम बना दिया और जिन्होंने सोचा की यह स्वतः ही मिल जायेगा क्यों की पिछला मोरेटेरियम मिला हुआ है उनके पास फिर फोन और रिकवरी एजेंट की बाढ़ आने लगी. 

नाम न छापे की शर्त पर एक वरिष्ठ  प्रोफेशनल ने रोते हुए बताया की ये इस कदर परेशान कर रहें हैं की इनका मानसिक संतुलन ख़राब हो रहा है, ये खासकर के गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान है और ये बोल रहें हैं की हर
महीने आप मोरेटेरियम का आवेदन डालो, रिकवरी एजेंट फोन कर कर के जीना हराम कर दिए हैं, उनकी बात से ऐसे लगा की यदि सरकार का ध्यान इस तरफ नहीं गया तो एक ऐसी बड़ी आबादी इस कारण अवसाद में जायगी और दुखद मामले देखने को मिलेंगे.

चूँकि सरकारी नियमों के कारण ग्राहकों के सिबिल रिपोर्टिंग पर रोक लगी है तो इन्होने एक नया मोडस ओपेरेंडी निकाली है वह है एक मूक सहमती सभी बैंकों का , जिसमें जिन्होंने मोरेटेरियम लिया है उन्हें लोन ना दिया जाय, यह अप्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों को नुक्सान कर रहा है जिस सिबिल रिपोर्टिंग को रुकवा कर ग्राहकों को राहत की व्यवस्था की गई थी उसे ही इन संस्थाओं ने हथियार बना मूक सहमती के आधार पर उनके लोन एप्लीकेशन रिजेक्ट कर रहें हैं. एक गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान ने तो जब मोरेटेरियम का मेल डालो तो बार बार मानक उत्तर भेज देता है और ऑनलाइन पोर्टल पर जाकर रिक्वेस्ट डालने को बोलता है और जब रिक्वेस्ट डालिए तो कोई जबाब नहीं आता है और फिर एक मेल की आप आवेदन ऑनलाइन डालिए . मोरेटेरियम स्वीकृति का कोई जबाब न देकर एक रणनीति बनाई गई है की ग्राहकों को लम्बा लटका के भ्रम में रक्खा जाए ताकि वसूली हो सके. इनका यह चरित्र महाजन सूदखोर या उन गुंडों से भी खतरनाक है जो दुःख के इस मुहाने पर खड़े आदमी से भी वसूल रहें है जो इन्हें मौत के मुहाने पर भी धकेल सकता है.

इसी तरह से सरकार ने इमरजेंसी क्रेडिट लाइन की व्यवस्था निकाली और यह ऑप्ट आउट स्कीम थी मतलब इसे बैंकों द्वारा ग्राहकों को आटोमेटिक दी जानी है और ग्राहकों को इसके लिए कोई आवेदन नहीं करना है. इसे न लेने का विकल्प ग्राहकों के पास था और नहीं देने का विकल्प बैंकों के पास नहीं था, लेकिन कागज एवं अन्य औपचारिकताओं के नाम पर वह यहाँ भी ग्राहकों को हैरान करते नजर आये जबकि अधिक से अधिक टर्नओवर प्रमाणित ही होना था वह भी यह देखने के लिए की कहीं आपका १०० करोड़ से ज्यादे टर्नओवर तो नहीं लेकिन बैंक यहाँ प्रोविजनल बैलेंस शीट तक  मांगते नजर आये कई जगह तो बैकों ने गारंटी फीस तक वसूल ली जबकि यह माफ़ है सरकार ने सौ फीसदी  सुरक्षा की गारंटी ली है. लोन के डिफ़ॉल्ट हों पर सरकार ७५ फीसदी तुरंत बैंकों को देगी और २५ फीसदी कोई वसूली यदि हुई है तो इसका हिसाब देखने के बाद, रिजर्व बैंक ने भी ईसे जीरो रिस्क श्रेणी में डाला है ताकि इन्हें ऋण मिलने में कोई दिक्कत ना हो. लेकिन लगता है ये बैंक और वित्तीय संस्थान सरकारों के उद्दश्यों में पलीता लगा के रहेंगे और लाख सदिक्षा दिखाने के बाद भी आम आदमी को हैरान करेंगे जिसका खामियाजा बैंकों को तो नहीं लेकिन  सरकारों को आम चुनाव में देखने को मिल सकता है.

Comments

Rajesh Joshi said…
100% true that is why so many people are in depressed and opting sucieds.
Rajesh Joshi said…
100% true that is why so many people are in depressed and opting sucieds.