हम भारत में रहते हैं और उसे ही अपना राष्ट्र मानते हैं और उसे ही अपना टैक्स देना चाहते हैं. लेकिन जो टैक्स देने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है आजादी के बाद हम उसी का पालन क्यूँ करें? क्यों हम विदेशों में चली आ रही अर्थव्यवस्था के नियम को ही अपना आदर्श बनायें? क्यूँ न हम कुछ नया सोचें? यह दौर यह सरकार और सरकार को दिया गया मैंडेट पिछले १९८९ के बाद अभूतपूर्व है, यह मौका है इस सरकार के पास कि इस मौके का अर्थव्यवस्था में इनोवेशन का चिंतन करे. भारत की जो नई इकनोमिक पालिसी हो वह पुरे विश्व के इकनोमिक पालिसी के लिए लिया गया एक नया स्टार्ट अप स्टेप हो. सरकार को सिर्फ देशवासियों को ही इनोवेशन के लिए नहीं आवाहन करना चाहिए अर्थव्यवस्था में भी नई चिंतन का समावेश करना चाहिए. खुद से प्रश्न करना चाहिए की सिर्फ दो प्रकार के ही टैक्स क्यूँ प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर और प्रत्यक्ष कर में आयकर ही क्यूँ और आयकर में आय के ५ हेड ही क्यूँ. खुद से प्रश्न कर चिंतन करना चाहिए सरकार को तब जा के देश टैक्स के प्रक्रियावों के इन मकडजाल से बच पायेगी. कहने को तो कह दिया गया की एक देश एक कर हो गया लेकिन कैसे? आप आयकर को इस नारे से बाहर क्यूँ रखते हैं? आप पेट्रोल डीजल और शराब को इस दायरे से बाहर क्यूँ रखते हैं? जब तक सभी प्रकार के करों को मिलाकर एक छतरी के नीचे नहीं लाया जायेगा तब तक एक देश एक कर हो ही नहीं सकता.
मेरे जेहन में एक सवाल आता है और वो बार बार आता है और यह सवाल मुझे बार बार परेशान करता है भारत में करों का इतना मकडजाल क्यूँ? एक उदाहरण मैं बार बार देता हूँ और यहाँ भी दे रहा हूँ, एक बिस्किट का पैकेट है उसका मूल्य १० रुपये है. उस दस रुपये में उत्पादक, थोक व्यापारी और फुटकर व्यापारी का कुल मिलाकर तीन रुपये का लाभ है जिसपे सरकार आयकर ले चुकी है. बेसिक मूल्य पे आलरेडी GST लग चूका है. इसके अलावा इस १० रुपये के मूल्य में GST का भाग, लाभ का भाग उस लाभ पे भुगतान किये गए आय कर का भाग निकाल दें तो उत्पादन खर्च का भाग आता है जो किसी तीसरे पक्ष का लाभ है जिसपे उस तीसरे पक्ष ने भी आयकर दिया ही होगा यदि वो आयकर की श्रेणी में आता है तो कुल मिला के टैक्स का भार तो उस १० रुपये में कई हिस्सों में बंट के वसूल हो ही गया है. सरकार अगर चाहे तो करों का यह मकडजाल समाप्त कर के इस कार्यकाल के अंतिम पूर्ण बजट में टैक्स क्रांति ला सकती है.
बहुत लोगों को लगता है की आयकर एक सामाजिक न्याय व्यवस्था के हिसाब से सही कर व्यवस्था है अमीरों पे ज्यादे कर भार कम आय वालों पर कम आयकर भार. लेकिन जब GST लागू करते वक़्त दैनिन्दिनी एवं मूलभूत वाली चीजों पर जब पहले से ही शुन्य GST लागू है और जैसे जैसे भोग विलास की वस्तुवों की तरफ बढ़ते हैं तो उच्च GST की दर आलरेडी है तो सामाजिक न्याय कर व्यवस्था के सिद्धांत GST में हैं ही फिर अलग से सामाजिक कर व्यवस्था के नाम पर आयकर रहे न रहे या यह कैसा रहे का पुनर्विचार तो अब इस सरकार को करना ही चाहिए. हालाँकि यह बहुत ही बड़ा साहसिक फैसला होगा लेकिन जब सरकार नोटबंदी और GST जैसे बड़े फैसले एक झटके में ले सकती है तो आयकर का पूरा फॉर्मेट बदलने का फैसला क्यूँ नहीं ले सकती है. मेरे कुछ विचार हैं जो क्रांतिकारी लग सकते हैं, आज की सोच के विपरीत लग सकते हैं लेकिन विचार में नवाचार है, और वो यह है कि सरकार को आयकर को भी सप्लाई कांसेप्ट पे लाना चाहिए, सरकार को वेतनभोगियों से आयकर नहीं लेना चाहिए साथ ही साथ उन मैन्युफैक्चरिंग में लगे हुए व्यक्तियों से तथा इस मैन्युफैक्चरिंग चेन के अंतिम सोर्स तक में लगे व्यक्तियों जैसे की फुटकर व्यापारी से टैक्स नहीं लेना चाहिए इन चेन में लगे व्यक्तिवों से टर्नओवर को ही आधार बनाकर कुछ प्रतिशत तर्कसंगत आयकर लगा देना चाहिए . इसके लिए सरकार को आयकर के ५ हेड वेतन एवं व्यवसाय एवं पेशे से आय हेड का पूरी तरह से पुनर्गठन करना पड़ेगा. पूंजीगत लाभ , हाउस प्रॉपर्टी से आय एवं अन्य श्रोत से आय के हेड को सरकार यथावत रख सकती है. सैलरी हेड में सिर्फ उसी आय पे आयकर लेना चाहिए जो आय भारत में खर्च नहीं होने वाली हो और जिसे भारत से बाहर भेजा जाने वाला हो और इसके लिए कमाए गए वेतन से उस आय के भाग को टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है यदि उनके उस भाग का विदेश में रेमिटेंस हो रहा हो और इसके लिए सरकार चाहे तो रेमिटेंस प्रणाली को नियमित कर सकती है और फॉर्म १५ CB में इसकी व्यवस्था कर सकती है. मैन्युफैक्चरिंग में लगे हुए व्यक्तियों से तथा इस मैन्युफैक्चरिंग चेन के अंतिम सोर्स तक में लगे व्यक्तियों जैसे की उत्पादक वितरक थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी को भी वर्तमान की आयकर व्यवस्था से से मुक्त कर देना चाहिए क्यूँ की इनके द्वारा किये जा रहे हर सौदे मतलब सप्लाई पे आप GST ले ही रहे हो और इसकी जगह टर्नओवर आधारित कुछ आयकर की प्रणाली लानी चाहिए जैसा की वर्तमान में कुछ सीमा तक की आय पर है इससे आयकर का सरलीकरण हो जायेगा और GST एवं आयकर एकरूप व्यवस्था में आ पाएंगे वह है सप्लाई आधारित कर व्यवस्था . सरकार को आयकर की इस कमी की भरपाई करने के लिए GST एवं टर्नओवर आधारित टैक्स व्यवस्था पे ही सामजिक न्यायिक कर व्यवस्था को तर्कसंगत रूप में बैठाना चाहिए. आयकर का इन मदों में यह छूट विश्व में अपने आप में एक अनोखा छूट होगा और वैश्विक कंपनिया मेक इन इंडिया के लिए यहाँ निवेश करेंगी हालांकि ऐसी दशा में हमें GST निर्यात में भी लगानी पड़ेगी भले ही वो रियायती दर पे हो, इसकी भरपाई निर्यात करने वाला व्यक्ति अपने आयकर में प्राप्त हो रही छूट के माध्यम से निर्यात की जाने वाली वस्तुवों के दर में गिरावट कर के कर सकती है और विश्व बाजार में अपने प्रतिस्पर्धात्मक दर को बनाये रख सकता है. निर्यात की दशा में GST की एक विशेष दर भी रक्खी जा सकती है. विदेशी कंपनियों की दशा में यदि वह आय बाहर ले जाना चाहती हैं और भारत में यह खर्च नहीं होने वाली है तो उस आय पर भी ऐसी दशा में आयकर लगा देना चाहिए. कुल मिला के आज यह थोडा आश्चर्यजनक लग रहा है लेकिन यदि कर की प्रक्रियावों का सरलीकरण कर दिया जाय, एकरूप कर व्यवस्था वह है सप्लाई आधारित कर व्यवस्था तो हमें लगता है की ब्लैक मनी की भी समस्या को बड़े पैमाने पे साधा जा सकता है. और अंत में एक बात, सरकार जिस तरह नोटबंदी से पूर्व IDS जैसे बड़े एमनेस्टी स्कीम लाई थी उसे GST लागू करने से पहले इसे लाना चाहिए था, अभी भी देर नहीं हुई है सरकार को इस बजट में पुराने सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष करों के लिए एक एमनेस्टी स्कीम लाना चाहिए, GST स्वीकार्यता की दर में अभूतपूर्व उछाल आएगा और सरकार की GST को लेकर बनाई गई मंशा भी पूरी होगी.
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