अर्थ संघर्ष की ओर धकेलती बीजेपी सरकार

अब तक की भारत सरकारों या प्रदेश की सरकारों में यह पहली बार हुआ है की किसी सरकार ने जनता को अपना अहसान मापन कर के बताया हो। रेल मंत्रालय का यह फैसला बीजेपी सरकार के लिये घातक हो सकता है। रेल टिकट में यह बताना की आप लागत का 57% पे कर रहे हैं 43% सरकार सब्सिडी दे रही है, यह उसी तरह का है जिसमें घर का बाप यह बताता है की जो रोटी तुम खा रहे हो उसमे 57% ही तुम शेयर कर रहे ही 43% मुफ़्त की खा रहे हो। अब ऐसे हिसाबी माहौल में उस परिवार की एकता कब तक सलामत रहती है उसका अंदाज़ आप लगा लीजिये।

अभी तो भारत की ग्राम पंचायतों ने सरकार से हिसाब ही नहीं माँगा की उनके पंचायत से सभी तरह के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों का हिसाब दे दो क्यों की हम भी छाती चौड़ी करना चाहते हैं कि हे केंद्र सरकार हमारे यहाँ से जो कर वसूला जाता है उसका 10% ही हम अपने यहाँ खर्च कर पाते हैं और 90% तुम्हे दे देते हैं। जैसे तुम रेल टिकेट पे लिख रहे हो हम अपने गांव के मुख्य चौराहे पर इस आत्मसम्मान का बोर्ड लगाएंगे। फिर हम लेंगे तुम्हारे एक एक मशीनरी का भी हिसाब जो हमारे 90% से चल रही है। इस हिसाबी अर्थ संघर्ष की जमीन साबित होगा यह टिकट पे प्रिंट कराना।

Comments

Anonymous said…
मेरा विचार है की सब्सिडी का कितना प्रतिशत सरकार से आ रहा है लिखना गलत नहीं है, मेरा उसको देखने का नजरिया अलग है, अगर ईद विषय पर लोगों को अवगत कराना है तो लिखने में कोई बुराई नहींहै। वैसे भी गैस और पेट्रोलियम की सब्सिडी को छोडकर किसको पता है कि सरकार के पैसे कहाँ कहाँ लगाये जाते हैं, मेरा सोचना है कि ऐसा करने से कम से कम रेलवे को अपना समझ कर उसका उपयोग करेंगे।
बताना तो एक शुरुवात है, इसे बाद मे वसूल करने का यह पहला कदम है