सुसाइड क्यूं करने का रे बाबा, बात करने का


अभी हाल ही में छात्रों के सुसाइड की ख़बरें सामने आई जो काफी दुखदाई है. छात्रों के सुसाइड करने का सिलसिला थम नहीं रहा है. देश के कई बड़े शहरों में इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए देशभर से छात्र-छात्राएं आते हैं इसलिए यह सिर्फ कोटा की समस्या नहीं है राष्ट्रीय समस्या है. सुसाइड की समस्या का हल करने के लिए हमें इसके जड़ में जाना पड़ेगा। 


मेरा मानना है की सुसाइड शब्द की ही ज्यादा चर्चा नहीं होनी चाहिए, बच्चों के दिमाग में यह सुसाइड शब्द गलती से भी नहीं आना चाहिए. शब्द भी आकर्षण पैदा करते हैं और लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन नियम के अनुसार बच्चा इसके बारे में चर्चा करने और सोचने लगता है. तीव्र भावना वाले क्षण में यह तनाव मुक्ति के विकल्प के रूप में दिखने लगता है क्यूंकि उसके आसपास वातावरण में यह शब्द तैर रहा होता है.  


छात्रों के सुसाइड का एक और कारण है कि तैयारी के लिए 16 साल से 19 साल के बच्चे ज्यादा होते हैं. इस उम्र में हार्मोन्स की तीव्रता ज्यादा होने के कारण भावनाओं की तीव्रता ज्यादा होती है. ऐसी जैविक परिस्थिति में बच्चा मां बाप भाई बहन और पुराने दोस्तों से दूर होकर एक अनजान शहर में आता है. इस शहर में उसे हर तरफ ऐसे दोस्त या छात्र दिखाई देते हैं जो बचपन के दोस्त नहीं होते। बच्चों में आपस में दोस्ती न होने की वजह से वो कोई भी बात शेयर नहीं करते। ज्यादातर बच्चे आत्म केंद्रित और सिर्फ अपने करियर के बारे में सोचते हैं. हर छात्र एक दूसरे को प्रतिद्वंदी और उसका मौका हड़पने वाले के रूप में देखता है. कई विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि माता-पिता बच्चों को खुद किसी से दोस्ती न करने की हिदायत देते हैं और उन्हें अपना प्रतिस्पर्धी मानने को बोलते हैं. तीव्र हार्मोन से प्रभावित बच्चा इतना दबाब झेल नहीं पाता जब उसके आसपास आत्म केंद्रित छात्रों का समूह, पुराने दोस्त माँ बाप भाई बहन का अभाव, अनजाने में माता पिता की तीव्र अपेक्षा, या माता पिता द्वारा उसके लिए किये गए आर्थिक एवं अन्य प्रयास उसके मानसिक बोझ को बढ़ा देते हैं. ऐसे में जब वह बच्चा उन अनजान बच्चों के भीड़ में अपने आपको पिछड़ते हुए पाता है तो टूट जाता है, उनमें से कुछ बच्चे इन बातों को वहां अन्य बच्चों से साझा नहीं कर पाते क्यूंकि वह अन्य बच्चा सिर्फ अपना सोच रहा होता है. उस अति तनाव की अवस्था में उसे लगता है कि यही एक हल है.    

    

इस समस्या का एक कारण यह भी है की उस उम्र में बच्चों को लगता है की करियर के विकल्प के रूप में सिर्फ इंजीनियरिंग या मेडिकल है, वह अमुक छात्र ने निकाल लिया और मेरा नहीं निकला तो मेरा करियर ख़राब हो जायेगा। ऐसे में सभी बच्चों को यह बताया जाना चाहिए की जीवन में करियर के रूप में सिर्फ यही दो एग्जाम नहीं है। बहुत सारे करियर के विकल्प हैं जो आने वाले कई सालों तक उनके पास हैं और उनमें से कई करियर का ग्लैमर तो इंजीनियरिंग या मेडिकल से भी ज्यादा है. 


8 साल की मेडिकल पढ़ाई या चार छह साल की इंजीनियर की पढाई से कम बेहतर नहीं है सीए, कंपनी सेक्रेटरी, CIMA, CPA,  देश दुनिया के कई संस्थानों से MBA, ब्यूरोक्रेट, वैज्ञानिक, यूनिक विषय पर पीएचडी, प्रोफेसर, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ, यूनाइटेड नेशन, वर्ल्ड बैंक, IMF एवं अन्य वैश्विक संस्थाओं में काम करना, अच्छे कालेजों से वकालत ऐसे कई कम्पटीशन जो ग्रेजुएशन से पहले और बाद में भी हैं.  बच्चे किसी  सीए, कंपनी सेक्रेटरी, सफल MBA, ब्यूरोक्रेट, सफल वकील, सफल कॉर्पोरेट, वैज्ञानिक प्रोफेसर आदि के जीवन का अध्ययन किसी डॉक्टर या इंजीनियर से कर लें कई मायनों में खासकर व्यक्तिगत लाइफ स्टाइल और कार्य के वातावरण और समाज में तो इज्जत के मामले में तो कहीं भी ये प्रोफेशन इंजीनियरिंग या मेडिकल से कम नहीं है और कई तो उससे भी बेहतर हैं. बेहतर माहौल बेहतर लाइफ बेहतर पैसा। ऐसे विकल्पों का इनके बीच प्रचार प्रसार करना चाहिए।    


इस उम्र के बच्चों में कम्पटीशन देने का भी बहुत धुन रहता है क्यूंकि उनके आसपास कोई ना कोई कम्पटीशन दे रहा होता है ऐसे में उन्हें जीवन का सबसे बड़ा कम्पटीशन उद्यमशीलता का कम्पटीशन उसके बारे में बताया जाना चाहिए जो कई मायनों में इन सबसे बेहतर होता है. इसके लिए स्टार्ट अप के विकल्प को शामिल करते हुए सरकार चाहे तो एक कोर्स का डिज़ाइन कर सकती है. क्यों की बिजनेस में सफल बच्चों की संख्या और सफलता कई मायनों में आज के प्रतियोगी परीक्षा से बेहतर होती है. उन्हें इस कोर्स के खत्म करने के बाद सरकारी सहूलियतों के साथ सीड फंड और बैंक फंड की व्यवस्था भी की जा सकती है. 


उन्हें काउंसिलिंग किया जाना चाहिए कि वह डाक्टर नहीं बन पाए तो क्या हुआ बड़ा बनकर हॉस्पिटल खोल उसमें डॉक्टर को नौकरी पर रख सकते हैं, इंजीनियरिंग कंपनी खोल इंजीनियर को नौकरी पर रख सकते हैं, बड़ा बिजनेस कर सीए सीएस वकील को नौकरी पर रख सकते हैं. धीरूभाई कोकिलाबेन अंबानी हॉस्पिटल खोलने के लिए मुकेश अंबानी या उनके बच्चों को मेडिकल परीक्षा नहीं पास करना पड़ा था. इसके लिए पैसा चाहिए और पैसा कमाने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है. रिलायंस की कंपनी में लाखों लोग काम करते हैं जो इंजीनियर डाक्टर सीए सीएस MBA समेत कई डिग्रीधारी हैं लेकिन इन सबके ऊपर धीरूभाई ने तो जीवन की परीक्षा दी थी, जीवन का कम्पटीशन दिया था उनके पास तो डॉक्टर या इंजीनियरिंग की डिग्री नहीं थी वह तो पेट्रोल पम्प पर काम करते थे. हमारे पास फर्श से अर्श उठने के कई मौके हैं . एक मौका चला गया तो चला गया इससे बड़े बड़े मौके और उदाहऱण पूरी जिंदगी में भरे पड़े हैं. वेदांता ग्रुप के अनिल अग्रवाल को देखिये कितने मौकों के बाद वह सफल हुए .पूरी दुनिया में सबसे आकर्षक जीवन बिजनेसमैन ही जीते हैं और ज्यादातर लोग उनके लिए काम करते हैं. 


जब इतने अच्छे अच्छे विकल्प मौजूद हैं जीवन में तो इन बच्चों को बताया जाना चाहिए हॉस्पिटल, इंजीनियरिंग कंपनी, बिजनेस कंसल्टेंसी फर्म, टेक बिजनेस या कंसल्टेंसी फर्म के खोलने के लिए इंजीनियर डॉक्टर सीए सीएस या आईएएस होना जरुरी नहीं है. जरुरी है तो अपने ऊपर भरोसा संकल्प और सतत प्रयास। सतत प्रयास इसलिए की सफलता उम्र से बंधी नहीं होती है 50 की उम्र में फाल्गुनी नायर ने नौकरी छोड़कर अपना ‘यूनिकॉर्न ब्रैंड नायका’ बनाया है . इसलिए आप कभी भी देर नहीं होते हैं, लेकिन सफलता पाने के लिए दुनिया को फिर से अपना लोहा मनवाने के लिए आपका जिन्दा रहना जरुरी है. इन सब विकल्पों की एक ही शर्त है की इसे आपको करना है आप जिन्दा रहे तो ही इसे कर सकते हैं. जब पेट्रोल पम्प पर नौकरी करने वाला कर सकता है, 50 साल की महिला इस उम्र में कर सकती है तो आप भी कर सकते हैं ,लेकिन यह आप तभी कर पाएंगे जब आप रहेंगे। जीवित रहने से ज्यादा सफलता कुछ भी नहीं है, जिन्दा रहेंगे तो कुछ भी कर सकते हैं, कभी भी कर सकते हैं किसी के लिए भी कर सकते हैं मां बाप परिवार के लिए कर सकते हैं, उन्हें आइना दिखा सकते हैं जिन्होंने आपको नीचा दिखाया है, कष्ट दिया है चिढ़ाया है या आपको छोड़कर गया है. इन सब घटनाओं को उत्प्रेरणा के रूप में इस्तेमाल कर डालिये अपने मोटिवेशन का इसे ही आधार बना डालिये।  हम भी एक नागरिक, माता पिता दोस्त, सरकार के रूप में इन्हे करियर और कम्पटीशन के तनाव और विकल्पों की सीमितता से भरे अंधेरों से निकाल बेहतर और करियर के विभिन्न प्रकाश से भरे विकल्पों की तरफ उनका मार्गदर्शन कर हम इन्हे इन अधेरों से निकाल अपनी भूमिका निभा सकते हैं. इसलिए आम मुम्बइया भाषा में कहता हूँ सुसाइड क्यूं करने का रे बाबा, एक बार बात करने का. राजस्थान सरकार का इस दिशा में स्टूडेंट थाना खोलना अच्छी पहल है हमें लगता है निःशुल्क स्टूडेंट काउंसलर की भी नियुक्त करना चाहिए और कोशिश करना चाहिए की वह फीमेल हो क्यूंकि भावनाओं को समझने में इससे आसानी होगी और लड़कियां भी खुलकर अपनी समस्या बता सकती है. 

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