CBDC और इसकी जिज्ञासायें

डिजिटल होती दुनिया और मेटावर्स के दौर में जहां लोग अब चाय और पान का भुगतान भी डिजिटल करने लगे हैं वहां डिजिटल रूपी आना स्वाभाविक था. विनियम के माध्यम में डिजिटल करेंसी की अनुपस्थिति के कारण ही क्रिप्टो करेंसी अपना पैर पसार रहा था जिससे भारत समेत कई सरकारें चिंतित थीं. हालांकि वह करेंसी की जगह निवेश का प्रकार था लेकिन भुगतान में स्वीकार होने के कारण वह करेंसी का स्थानापन्न भी बन रहा था. इन्ही सब बातों को दृष्टिगत रखते हुए डिजिटल दुनिया से कदमताल करते हुए समय की मांग पर रिजर्व बैंक ने आखिर डिजिटल रूपये में प्रवेश कर ही लिया. इसके जारी होने से  अनजान व्यक्ति को जानकारी शेयर करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। निजता बरकरार रहेगी। नगदी पर निर्भरता घटेगी। फिजिकल रुपए को छापने की लागत घटेगी। नगद अर्थव्यवस्था घटाने का लक्ष्य पाने में मदद मिलेगी। लेनदेन की लागत घटाने में भी मदद मिलेगी।              

भारत में दो प्रकार के डिजिटल करेंसी जारी की गई है जिसका नाम CBDC-W और CBDC-R रखा गया है. इसे ऐसे जाने लें पहला जो है होलसेल भुगतान में प्रयोग होगा और दूसरा CBDC फुटकर भुगतान में मतलब आम आदमी के लिए है. यहां CBDC का मतलब सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी है. CBDC-W 1 नवंबर को जारी किया गया था जबकि CBDC-R 1 दिसंबर को जारी किया जा रहा है. यह रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति के अनुरूप जारी की गई एक संप्रभु मुद्रा है। 1 दिसंबर से रिटेल डिजिटल रुपये के इस्तेमाल का पहला मौका मुंबई, नई दिल्ली, बेंगलुरु और भुवनेश्वर के लोगों को मिलने वाला है। इसके बाद इसे अहमदाबाद, गंगटोक, गुवाहाटी, हैदराबाद, इंदौर, कोच्चि, लखनऊ, पटना और शिमला जैसे शहरों में जारी किए जाने की योजना है।  

आम आदमी को जारी किये गए इस डिजिटल करेंसी को लेकर लोगों के मन में कई जिज्ञासाएं हैं. पहली जिज्ञासा की यह कैसा होगा? तो यह डिजिटल टोकन के रूप में होगा। जैसे आप अपने गाड़ी की आरसी और ड्राइविंग लाइसेंस एक डिजिटल लाकर में रखते हैं और आपको अब गाडी चलाते वक़्त आपको ओरिजिनल लेकर चलने की जरुरत नहीं है. आप अपने डिजिटल लाकर में डिजिटल फॉर्म में रखी आरसी और ड्राइविंग लाइसेंस दिखा सकते हैं. यह ठीक कुछ मोटा मोटी ऐसा ही समझिये। यह टोकन एक "बेयरर इंस्ट्रूमेंट" की तरह होगा एकदम बैंकनोट्स की तरह. जिसका अर्थ है कि जो कोई भी 'धारक' एक समय विशेष पर इस टोकन का होगा वही उसका स्वामी होगा । हां जेब की जगह डिजिटल डिवाइस या मोबाइल की जरुरत पड़ेगी.

दूसरी जिज्ञासा की इस डिजिटल लाकर जिसे वॉलेट कहा गया है और करेंसी कौन देगा? तो फिलहाल रिजर्व बैंक अप्रत्यक्ष मोड का इस्तेमाल कर रही है. बजाय खुद द्वारा जारी और इसे मैनेज करने के यह मध्यस्थों मतलब बैंकों के माध्यम से इसे आम आदमी के पास पहुंचा रही है. शुरू में कुछ चुनिंदा बैंक हैं. 1 दिसंबर को पहले चरण के रूप में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक में इसे शुरू किया जा रहा है। RBI के अनुसार, इस पायलट में भागीदारी के लिए कुल आठ बैंकों की पहचान की गई है। आम आदमी इनके माध्यम से अपना डिजिटल वॉलेट अपने डिवाइस में खुलवा सकता है और इसके लिए जरुरी नहीं है की उसका बैंक में अकाउंट हो. इस डिजिटल वॉलेट में उसके पास पैसा उसी रंग रूप और डेनोमिनेशन में टोकन रूप में होंगे जैसे असल में होते हैं. ऐसा इसलिए किया गया है ताकि लोगों को लगे की यह वाकई में वही करेंसी है जो भौतिक रूप में उनके पास अब तक होती रही है. इसका टोकन रूप में होना इसे डिजिटल बैंकिंग एवं UPI पेमेंट के मॉडल से इसे अलग करता है. 

तीसरी जिज्ञासा है की यह क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग या UPI से कैसे अलग है? तो इसका उत्तर हुआ की क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग या UPI एक ऐसे मध्यस्थ हैं जो अपनी तरफ से धारक को जमा या क्रेडिट की सुविधा देते हैं. इसमें कहीं भी रिजर्व बैंक की गारंटी नहीं जुडी होती है. आपने जितना जमा किया या आपको जितना क्रेडिट मिला उतने का आप ट्रांसफर डिपाजिट या पेमेंट कर सकते हैं. बैंक इसका अकाउंट लेजर भी बनाती है जहाँ सौदों की पूरी श्रृंखला होती है. यहां आम आदमी और रिजर्व बैंक के बीच बैंक वित्तीय संस्थान मोबाइल नेटवर्क, इंटरनेट नेटवर्क, पेमेंट एप समेत कई मध्यस्थ होते हैं. क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग या UPI की व्यवस्था में दायित्व बैंक या वित्तीय संस्थान की होती है, रिजर्व बैंक की नहीं। जबकि डिजिटल करेंसी में पूरा दायित्व रिजर्व बैंक की होती है. इसे आप ऐसा समझिये की डिजिटल माध्यम से रिजर्व धारक को उसके वॉलेट में रखे टोकन की राशि का भुगतान का वचन देता है. जैसा आप हर भौतिक नोट में पाते हैं. आप UPI या इंटरनेट बैंक से सौदे कर लीजिये आप को कहीं ऐसा वचन नहीं मिलेगा। 

चौथी जिज्ञासा है की यदि यह डिजिटल वॉलेट है तो अन्य पेमेंट एप की तरह इंटरनेट की जरुरत पड़ेगी ? लेकिन इसमें ऐसा नहीं है अन्य डिजिटल भुगतान माध्यम की तरह इससे भुगतान के लिए इंटरनेट की जरुरत नहीं है, जैसे आप अपने जेब में नोट लेकर घूमते हैं वैसे ही इसे अपने मोबाइल या डिजिटल डिवाइस में लेकर घूमिये और जब भुगतान करना हो तो क्यूआर कोड से भुगतान कर दीजिये. इस भुगतान के लिए इंटरनेट की कोई जरुरत नहीं है यह डिवाइस से क्यूआर कोड का ट्रांसक्शन है इसमें तीसरे माध्यम की जरुरत नहीं है. डिजिटल वॉलेट से पर्सन-टु-पर्सन या पर्सन-टु-मर्चेंट ट्रांजैक्शन कर सकेंगे। ई-रुपी को पैसों के अन्य रूप में कनवर्ट किया जा सकेगा।

पांचवी जिज्ञासा है की यह तो बैंकों में जमा जैसे हुआ ? जबाब है ऐसा नहीं है क्यूंकि एक तो यह केवल माध्यम हैं रिजर्व बैंक और आम आदमी के बीच वॉलेट मैनेजमेंट के, यह जमा ना तो उनका दायित्व है नाही दायित्व के रूप में उनकी बैलेंस शीट का हिस्सा है. नाही जमा की तरह कोई ब्याज है. यह शुद्ध मध्यस्थ हैं, मेरी शब्दों में कह लीजिये बैंक केवल सुविधा प्रदान करने के लिए एक एजेंट हैं. जैसे बैंक एटीएम में पैसा डालता है और आप पैसा निकालते हैं, कुछ वैसा ही बैंक के स्तर पर होगा। बैंक के पास से वॉलेट में ट्रांसफर हुआ तो बैंक की नगदी संपत्ति और दायित्व दोनों कम हो जायेंगे जैसे बैंक से नगद निकालने पर होता है. इस वॉलेट में जमा पैसे पर कोई बीमा भी बैंक का नहीं है जैसे आप जमा पर DICGC होता है. इसकी पूरी जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की होती है.      

छठवीं जिज्ञासा है की क्या बैंक नोट की तरह यह धारक की गोपनीयता बरकरार रख पायेगा? सवाल जायज है क्यूंकि बैंकनोट में यह पता नहीं चल पाता है की किस किस से गुजर के आया है नोट. जबकि डिजिटल माध्यम में कुछ तो पदचिन्ह रह ही जाते हैं. स्पष्ट बोलें तो अभी भी यह चुनौती है किसी भी सीबीडीसी के लिए। अधिकांश देशों के केंद्रीय बैंकों और अन्य पर्यवेक्षकों का विचार किया है की शत प्रतिशत गोपनीयता से शैडो इकॉनमी और अवैध लेनदेन को बढ़ावा मिलेगा, इसलिए रिजर्व बैंक का भी मानना छोटी राशि तक तो ठीक है लेकिन बड़े राशि के लिए गोपनीयता का फीचर मुश्किल है हालांकि.  

सातवीं जिज्ञासा है डिजिटल डिवाइस खोने पर क्या होगा? ऐसे में परिक्षण तो जारी है लेकिन कांसेप्ट नोट में दो मॉडल का विकल्प बताया गया है पहला कस्टोडियन मॉडल जिसमें टोकन 'सेवा प्रदाता (TSP) डिजिटल की प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है तथा इसकी रिकवरी की जा सकती है, लेकिन दूसरा विकल्प जो है उसमें डिजिटल चाभी की जिम्मेदारी डिवाइस होल्डिंग यूजर की होगी जिसके पास डिवाइस है वहां वही हाल होगा जैसे आप बटुवा खोने पर उसे पुनः नहीं पा पाते वैसे इसमें भी होगा गायब तो गायब। इन विकल्पों में किसे चुनना बेहतर होगा परीक्षण में पता चल जायेगा।


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