CSR-लोकल बॉडी लिंक योजना

सीएसआर नीति का मुख्य उद्देश्य समाज के सतत विकास के लिए सीएसआर को व्यवसाय से जोड़कर एक प्रमुख प्रक्रिया बनाना है। सीएसआर नीति इस उद्देश्य को पारस्परिक रूप से प्राप्त करने के अपने प्रयासों में, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के अनिवार्य पालन के प्रावधानों को निर्धारित करता है। लखनऊ नगर निगम के बांड का शेयर बाजार में लिस्ट होने के पश्चात देश के स्थानीय निकायों में भी आत्मनिर्भर होने का भावबोध पैदा हो रहा है. सहकारी संघवाद के ढांचे में इस भावबोध को विस्तार देने के लिए यदि सीएसआर के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को जोड़ दिया जाय तो समावेशी विकास का लक्ष्य और इसके लिए वित्त संग्रह दोनों को आसान बनाया जा सकता है. बृहन्मुम्बई देश की सबसे बड़ी महानगर पालिका है और इसका सबसे बड़ा बजट है और मुंबई कर सबसे ज्यादे टैक्स में योगदान देते हैं, सीएसआर के पंचायतों के साथ जोड़ने के साथ ही देश के दोनों कर प्रणालियों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में स्थानीय निकायों की प्रत्यक्ष वित्त भागीदारी की शुरुवात मुंबई से हो सकती है, मुंबई इसका अगुवा हो सकता है. सीएसआर का जो उद्देश्य है उसकी सबसे प्रत्यक्ष क्रियान्वयन संस्था लोकल बॉडी जिसे स्थानीय पंचायत कहतें हैं वही हो सकती है . एक लोकल बॉडी वह सब करती है जो सीएसआर नीति के तहत होता है और इसका इम्पैक्ट एनालिसिस भी तुरंत होगा. कंपनियां यदि इसी प्रकार पंचायतों के कुछ प्रोजेक्ट लें लें या पंचायतों को ही अपने सीएसआर प्रोग्राम की तरह गोद लें लें तो कंपनियों को भी फंड खर्च करने में सुविधा और खर्च की संतुष्टि मिलेगी, कई बड़े प्रोजेक्ट भी जन हित के किये जा सकते हैं. इसके लिए सरकार को पंचायतों को 80G प्रमाण पत्र तथा सीएसआर योजना के तहत इन्हे क्रियान्वयन संस्था के रूप में मान्यता देना होगा। त्रिस्तरीय लोकतंत्र के सहकारी संघवाद ढांचे के इस वित्तीय सूत्र को स्थानीय निकायों के माध्यम से सीएसआर फंड और टैक्स की जनभागीदारी स्थापित कर पाया जा सकता है. वर्तमान में जो सीएसआर प्रणाली है वह उन्हें पंचायतों को फंड करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता , कोरोना काल में कुछ कंपनियों ने वस्तुओं के रूप में दान दिया था लेकिन इसे कैसे लिया जाय, कैसे खर्च किया जाय, कैसे गांवों या पंचायतों को या उनके किसी कार्यक्रमों को गोद लिया जाय, या कोई एक सम्पूर्ण कार्यक्रम ही लिया जाय और उसे एक ही साथ कई पंचायतों में चलाया जाय ऐसा कोई विधि अभी विकसित होनी है। सीएसआर की इस लिंकिंग के साथ ही साथ टैक्स संग्रह प्रणाली को भी जनभागीदार बनाना है. वर्तमान में जो टैक्स प्रणाली है वह इस त्रिस्तरीय लोकतंत्र में सिर्फ दो स्तर के सरकारों को ही इस टैक्स संग्रह में हिस्सेदार बनाता है. अभी सबसे जमीनी एवं प्रत्यक्ष सरकार पंचायत को इस टैक्स में भागीदार बनाया जाना है, क्यूंकि यह टैक्स उनके पंचायत से ही संग्रह होकर पुनः एक लम्बी प्रक्रिया एवं अप्रूवल के बाद उनके पास आता है. टैक्स की जनभागीदारी माध्यम से स्थानीय निकायों की प्रत्यक्ष वित्त भागीदारी का आशय यह है की पंचायतों एवं जन को एक निश्चित सीमा तक विवेकाधिकार देना चाहिए अपने कर योगदान के लिए। दुनिया में यह एक नए तरह का विचार है लेकिन मेरा मानना है कि इसकी पहली शुरुआत भारत से होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश और त्रि-स्तरीय सरकार की प्रणाली में, यह सहकारी संघवाद आधारित अवधारणा जमीनी स्तर के लोकतंत्र को मजबूत करने के साथ साथ संघीय ढांचे को मजबूत करेगी और देश के वित्तीय प्रशासन में सार्वजनिक भागीदारी को ज्यादे से ज्यादे बढ़ाएगी, लोग अपने गांवों, शहरों, राज्यों, योजनाओं को निधि दे सकते हैं और पसंद की या सरकार भी किसी विशेष योजना के लिए टैक्स दे सकते हैं, इससे सम्पूर्ण स्तर पर टैक्स का आधार और संग्रह दोनों बढ़ेगा, इसे आप अर्थशास्त्र के विश्वमान्य सिद्धांत "नज" सिद्धांत का अनुप्रयोग कह सकते हैं जिसे पिछले एक बजट में केंद्रीय सरकार ने भारत के कर वित्त सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया था। सरकार को अपने कर ढांचे में इस जनभागीदारी आधारित सीएसआर एवं टैक्स सिस्टम को शुरू करना चाहिए, पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किसी भी एक पंचायत से इसकी शुरुआत की जा सकती है । सीएसआर एवं टैक्स की यह जनभागीदारी, देश के नागरिक लोकतंत्र में नागरिकों की स्थानीय निकायों के माध्यम से प्रत्यक्ष वित्तीय भागीदारी होगी । वर्तमान कर संरचना में केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास संग्रहित कर के उपयोग के बारे में एक विवेकाधिकार है जो जिसका विस्तार पंचायत और जन तक बस कर देना है. इस व्यवस्था के तहत सरकारों के साथ साथ जो अब तक अपने विवेक के अनुसार सरकारी योजनाओं और खर्चों में वितरित करती रही हैं हैं उसमें कुछ हद तक पंचायतों एवं नागरिक को भी अधिकार मिल जायेगा, जिससे वहां निवास करने वाले निवासी नागरिक कर भुगतान के लिए आकर्षित होंगें । सरकार को यदि NUDGE सिद्धान्त का प्रयोग करना है तो यहाँ करना चाहिए. इसमें अधिकांश लाभार्थी पंचायत होंगे चाहे वह ग्राम पंचायत हो, नगर पंचायत या नगर निगम। पंचायती राज का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त होगा और सुराज और स्वराज की अवधारणा वास्तविकता में होगी। कस्बे और गाँव के विकास के लिए अधिक धन इस प्रणाली से ही आएगा। यदि कोई पंचायत अपनी पंचायत के लिए अपनी साधारण सभा में किसी भी विकास परियोजना को मंजूरी देता है, तो उसके लिए केवल कोष के लिए राज्य वित्त या केंद्र वित्त की तरफ देखना जरुरी नहीं है, वे कंपनियों एवं अपने नागरिकों से अपने कर विवेकाधिकार का उपयोग करने के लिए अपील कर सकते हैं और इसके माध्यम से, वे आवश्यक धन एकत्र कर सकते हैं, इससे कंपनियों का कंप्लायंस भी हो जायेगा और व्यक्तियों का टैक्स पेमेंट भी हो सकता है । यदि नागरिक अपनी स्वयं की पंचायत परियोजना में से कुछ का विकास करना चाहता है जैसे सीवर सिस्टम का निर्माण, पार्क का निर्माण, पेयजल की व्यवस्था आदि, और यदि पंचायत के सामान्य सदन द्वारा कार्य को मंजूरी दी जाती है, तो कंपनियां या नागरिक स्वयं अपने विवेक का उपयोग कर पसंद की योजनाओं की फंडिंग कर सकता है। सरकार इस प्रकार चाहे तो 80G, सीएससार और टैक्स को स्थानीय निकायों के वित्तपोषण से जोड़ वित्त संग्रह को आकर्षक बना सकती है। यह योजना लोकतंत्र को अंतिम स्तर तक मजबूत करेगी और व्यवस्था को जवाबदेह बनाएगी। नागरिकों के भीतर लोकतंत्र की भावना विकसित होगी और वित्त संग्रह को भी बढ़ाएगी, राज्यों एवं पंचायतो की वित्तीय भागीदारी रहेगी जो सहकारी संघवाद के सिद्धांत को और मजबूत करेगी.

Comments