श्रीलंका संकट के सबक लेखक

भारत और श्रीलंका में पौराणिक संबंध रहें हैं और सम्मृद्धि के मामले में उसे सोने की लंका तो हमें सोने की चिड़िया कहा जाता था. लेकिन आज उसी सोने की लंका का भाव लोहे से भी कम हो गया है और उसने आपने आपको लगभग दिवालिया ही घोषित कर दिया है. वहां महंगाई आसमान छू रही है लोग अब सामान न्यूनतम से भी न्यूनतम मात्रा में खरीद रहें हैं ताकि किसी तरह काम चला सकें और भविष्य के लिए कुछ पैसे बचे रहें . सूचना यह आ रही है कि पूरे देश में बिजली ठप हो गई है, और बिजली कमी का आलम यह है कि अस्पताल में मरीजों की जरूरी सर्जरी नहीं हो पा रही, फैक्ट्रियों में कामकाज बंद हो रहा है, कागज की किल्लत के कारण परीक्षाएं रद्द हो रहीं हैं, तेल की कमी से रेल-बस नेटवर्क ठप हो गया है. दरअसल श्रीलंका में सप्लाई चेन पूरी तरह से टूट गया है, घरों के चूल्हे तक बंद हो रहें हैं और खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो गई है. मीडिया में खबर बताते हैं कि श्रीलंका में दैनिक आवश्यकता की चीजें चावल, गेंहू , चीनी , तेल, मिल्क पाउडर कल्पना से परे कई गुना बढ़ गया है. अप्रैल 2021 में श्रीलंका पर कुल कर्ज 35 अरब डॉलर का था, जो महज एक साल में बढ़कर 51 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. श्रीलंका के कर्ज में ज्यादातर हिस्सा ऐसे कर्ज का है, जिसे न चुका पाने की कीमत उसे भारी पड़ रही है. श्रीलंका के कुल कर्ज में 47 फीसदी कर्ज बाजार से, 15 फीसदी कर्ज चीन से , एशियन डेवलेपमेटं बैंक से 13 फीसदी, वर्ल्ड बैंक से 10 फीसदी, जापान से 10 फीसदी भारत से 2 फीसदी और अन्य जगहों का कर्ज 3 फीसदी है. श्रीलंका सरकार इजी मनी कर्ज के जाल में फंस चुकी है और जब वक्त चुकाने का आया तो खजाना खाली, जनता और विपक्ष सड़क पर हैं. सोने की लंका के नाम से मशहूर श्रीलंका के दिवालिया होने के कई कारण है, इसमें प्रमुख हैं श्रीलंकन आर्थिक थिंक टैंक का प्रभावी ना होना और उसकी बातों को वहां की सरकार द्वारा नजरअंदाज करना। इसके साथ सरकार की नीतियां, गवर्नेंस और कोरोना भी जिम्मेदार हैं. नीतियों में प्रमुख रूप से अचानक से रासायनिक खादों पर शत प्रतिशत रोक लगा जैविक खाते को बढ़ावा देना जबकि खाद्य पदार्थों का वर्तमान और भविष्य में आवश्यकता उत्पादन और स्टॉक का मूल्याङ्कन किया ही नहीं गया, इस कारण से अचानक से खाद्य संकट पैदा हो गया, उन चीजों की कीमतें जो जीने के लिए सबसे जरुरी होती हैं आसमान छूने लगीं, काला बाजारी इस तरह से बढ़ी की वितरण में सेना लगाना पड़ा. आज आलम यह है की दैनिक चीजों को भी उसे आयात करना पड़ रहा है श्रीलंका का कृषि क्षेत्र रासायनिक खाद पर बैन के कारण अब उतना उत्पादन ही नहीं कर पा रहा. एक अन्य बड़े कारणों में आसान मुद्रा का स्वीकार करना और कर्ज पर कर्ज लेते हुए विदेशी कर्ज के जाल में फंसते जाना। आज तेजी से उसका विदेशी मुद्रा भंडार ख़त्म होता जा रहा है और उसके कर्ज और ब्याज अदायगी फेल होती जा रही है. उसके मुद्रा का मूल्य लगातार गिर रहा है. इसके अन्य कारणों की मीमांसा करेंगे तो पायेंगे की श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर काफी निर्भर थी, कोरोना के कारण पर्यटकों की कमी के कारण यह सेक्टर डूब गया और पर्यटकों और उत्पादन की कमी से विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो गया. भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोपों के कारण गवर्नेंस फेल हो गया. साथ में चुनावी वादे को पूरा करने और नाराज जनता को लुभाने के लिए फ्री की स्कीम ने भी इसे दिवालिया कर दिया अब सवाल यह है की दो एकदम से लगे हुए देश में परिस्थितियां अलग अलग क्यों हैं तो इसका कारण समझ में आता है दोनों देशों का गवर्नेंस और भारत सरकार द्वारा कोरोनॉमिक्स का इस्तेमाल और भारत का रिजीलेयंस पावर । भारत के गवर्नेंस ने श्रीलंका की तुलना में कई गुना अच्छा परफॉरमेंस किया है. सरकारी संस्थायें, रिजर्व बैंक और खुद प्रधानमंत्री ने हालात पर लगातार नजर बनायी रखी और लगातार कदम उठाते चले गए. श्रीलंका जैसी स्थिति ना आये इसकी तैयारी भारत ने बहुत पहले से करना शुरू कर दिया था जिसमें सबसे बड़ा योगदान था मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर योजना की, जिसके तहत भारत ने डिफेंस से लगायत हर क्षेत्र में भारत में उत्पादन वृद्धि हो उस पर जोर दिया ताकि संकट में समय हमें बाह्य आपूर्ति पर निर्भर ना रहना पड़े. डिफेंस के आयात में कमी करते हुए, सतत ईंधन का प्रयास जारी रखा, साथ में अंतराष्ट्रीय बाजार में तेल का दाम गिरने के बाद भी तेल का मूल्य कम ना करते हुए उपभोग के मार्फ़त सरकारी आय और विदेशी मुद्रा का अच्छा भंडार जमा कर लिया। सरकार के साथ ही भारत के निजी क्षेत्रों ने भी अपने लागतों की समीक्षा की, ऋणों की समीक्षा की और उसमे कुशलता को प्राप्त किया. लागत कुशलता, कर की अच्छी वसूली और बढे हुए विदेशी मुद्रा के भंडार के के कारण ही कोरोना काल से ही भारत सरकार राहत की योजना चला पा रही है. भारत भी जैविक खेती और जीरो बजट फार्मिंग को बढ़ावा दे रहा है लेकिन इसके क्रम में उसने रासायनिक खादों के इस्तेमाल पर अचानक से शत प्रतिशत का रोक नहीं लगाया है इस मामले में वह पहले जैविक खेती के माध्यम से संतुलन साधते हुए खाद्य मामलों में आत्मनिर्भर होने के समय की प्रतीक्षा कर रहा है. भारत में भी लोक लुभावन योजनाएं हैं लेकिन उसके सामने सरकार के सामने कई रास्ते हैं जहां से वह इस एक्स्ट्रा लोड की भरपाई कर सकता है इसके लिए उसे अपने बचत खाते या आपदा खाते का प्रयोग नहीं करना है. अचानक से आये खर्चे हेतु पीएम केयर फंड भी एक अच्छी योजना थी जिसने खजाने पर लोड कम किया. भ्रष्टाचार रोकने के शार्ट टर्म प्रयासों के स्थान पर भारत दीर्घकालिक और संस्थागत प्रयास जारी रखे हुए हैं जिसमें एक दशक से भी चल रही उसकी ई-गवर्नेंस योजना, आरटीआई योजना और डिजिटल इंडिया योजना कारगर साबित हो रही है और धीरे धीरे सिस्टम को जिम्मेदार बना रही है. संकट के समय का इस्तेमाल और लोगों के पास तरलता पहुंचाने हेतु सरकार ने रेवेन्यू खर्च की जगह पूंजीगत खर्च बढ़ाये और मनरेगा का बेहतर इस्तेमाल किया. कुल मिला के सरकार ने नरम गरम क़दमों का संतुलन साधते हुए इस आपद काल में उन सधे क़दमों से आगे बढ़ रही है जो उसे लड़खड़ाने और गिरने से रोक रही है.

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