रोजगार का मानकीकरण

वर्तमान में रोजगार के डेटा और उसके परिभाषा को लेकर स्थिति साफ़ नहीं है. चूंकि कानून के तौर पर रोजगार की समयानुकूल स्पष्ट परिभाषा नहीं है अतः रोजगार के आंकड़े के वक़्त वह आत्मविश्वास नहीं दिखता या अक्सर उसे चुनौती मिल जाया करती है. आज भी कोई भी एजेंसी संस्था रोजगार के प्रमाणिक आंकड़े देने में सक्षम नहीं है. यहाँ तक की कुछ वर्ष पूर्व संसद में माननीय प्रधानमंत्री को अनुमान के आधार पर आंकड़े पेश करने पड़े जिसे चुनौती भी दी जा सकती है क्यूँ की ये वास्तविक और प्रमाणिक नहीं है. रोजगार डाटा का यह संकट इसलिए और भी आया है की आजकल रोजगार के मायने और प्रकृति बदल गई है. लोग अब नौकरियों के अलावा स्वरोजगार और फ्रीलांसिंग पर ज्यादे काम कर रहें हैं. बड़ी बड़ी कम्पनियाँ रोल पर कर्मचारियों को रखने के बजाय कंसल्टेंसी पर रख रहीं है, इससे उनका पीएफ नहीं कट पा रहा है और ऐसे रोजगार का डाटा पीएफ डिपार्टमेंट के पास नहीं जा पा रहा है. कर्मचारियों के अलावा कम्पनियाँ भी आजकल अपने कर्मचारियों को अपने रोल पे रखने को इच्छुक नहीं है और ठेका पद्वति या कंसल्टेंसी पद्वति आजकल ज्यादे चलन में है. इसलिए सरकारी संस्थाओं जैसे की लेबर ब्यूरो या प्रोविडेंट फंड डिपार्टमेंट के आंकड़े अब उतने विश्वसनीय नहीं रह गए हैं. पहले के समय में जब इकॉनमी का ढांचा समाजवादी या सरकारी था तो रोजगार के केंद्र केंद्रीकृत थे लोग देश में सरकारी दफ्तर या स्कूल या बैंक के दफ्तर को ही संगठित रूप में पाते थे इसलिए उसमे ही काम करने को रोजगार मानते थे, लेकिन अब वक़्त बदल गया है उदारीकरण और विकेन्द्रीकरण के कारण अन्य निजी संस्थान के कार्यालय भी अब रोजगार के केंद्र बन गए हैं, सरकारी बिजनेस का एक बड़ा हिस्सा उनको हस्तांतरित होने के कारण निजी संस्थान भी अब रोजगार के केंद्र बन गए हैं. उदारीकरण और खुली अर्थव्यवस्था के कारण पूंजीवाद का गढ़ टूटा और लोगों को व्यवसाय के अवसर जब मिलने लगे तो बड़े पैमाने पर खुले और मुक्त बाजार में स्वरोजगार भी रोजगार का एक श्रोत हो गया है अतः जरुरी है की रोजगार और बेरोजगारी को पुनः परिभाषित किया जाय. आज देश के विकास के लिए सबसे मौलिक चुनौतियों में से एक है रोजगार का निरंतर उत्पादन, युवाओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है और यदि सबके हाथ को काम नहीं मिलेगा तो उनके गुमराह और भटकने की ज्यादे गुंजाईश है । आज की तारीख में लगभग सभी अनुमान बताते हैं कि नई सरकारी नौकरियों की संख्या नीचे की तरफ जा रही है, और हमारे पास कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है ताकि हम कोई नीति या कार्यवाही समय पर कर सकें. हमें और सरकार को इन नंबरों को जानने की जरूरत इसलिए है क्योंकि देश का एक बड़ा हिस्सा अपने आपको रोजगारविहीन मानता है और कई तो योग्यता और कौशल की तुलना में छोटी मोटी नौकरियां कर रहें हैं उनके अंदर अभी भी असंतोष है और वर्तमान कार्य में उनकी उत्पादकीयता नहीं प्राप्त हो रही. आज रोजगार के मायने एवं प्रकृति का क्षेत्र बहुत बदल और व्यापक हो गया है. जो डेटा बन रहें हैं वह व्यापक होना चाहिए और उसमें पूर्णकालिक, अंशकालिक, स्वरोजगार, फ्रीलांसिंग आदि सभी डाटा को समाहित किए वाला होना चाहिए। चूंकि आजकल नौकरियां प्रकृति में बहुत तेजी से कर्मचारी बदल रहा है और स्थायी से अस्थायी की तरफ बढ़ रहा है , इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि बताया गया डेटा निरंतर अन्तराल पर अपडेट किया जाता रहे। कई विकसित देशों ने नौकरी डेटा आंकड़े देने की एक ठीक ठाक प्रक्रिया विकसित कर ली है जो हमारे लिए एक मानक के रूप में कार्य कर सकता है। नीति आयोग को एकीकृत कार्मिक पूल पर काम करना चाहिये. पूरे देश में करोड़ों कर्मचारी हैं जो केंद्र या राज्य सरकार के अधीन काम करते हैं. इन कर्मचारियों की नियुक्ति और इनका परफॉरमेंस कई कारणों से प्रभावित होता है, उसमें प्रमुख कारण है कईयों को उनकी पढ़ाई और योग्यता के हिसाब से काम नहीं मिला है तो कई को रूचि के हिसाब से नहीं मिला है , किसी की नियुक्ति स्थान अप्रासंगिक है तो बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो सरकारी नौकरी के नाम पर जो भी नौकरी मिली उसे ही करने लगे. आपको आज भी प्राइमरी स्कूल के कई शिक्षक ऐसे मिल जायेंगे जिन्होंने इंजीनियरिंग या एमबीए की है. हिन्दुस्थान वैसे भी मानव संसाधन के रूप में दुनिया में सबसे धनी है और इसके पास सबसे बड़ी युवा आबादी है. यदि सरकार इस मानव संसाधन को सबसे महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में रेखांकित कर इस पर काम करे तो मानव संसाधन के क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी, कार्मिक वर्ग पहले से ज्यादे उत्पाद्कीय हो जायेगा। इस कार्मिक पूल में पूरे देश में किसी भी सरकार के तहत काम करने वाले लोगों का एक डाटा तैयार हो जायेगा, जो शैक्षिक योग्यता, कार्य अनुभव, रूचि, वर्तमान कार्य आदि के आधार पर एक बड़ा डाटा होगा और जिसके आधार पर सरकार कई तरह के कार्य कर सकती है. सरकार के कई विभाग पर योग्य परियोजना पर योग्य व्यक्ति की नियुक्ति हो सकती है. एक बार कार्मिक पूल बन जाने पर इन्हें आधार की तरह यूनिक आईडी दी जा सकती है जो इनके लिए सामाजिक सुरक्षा एवं अन्य मामलों में भी राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा काम का साबित होगा. आपातकाल जैसी या अन्य विशेष परिस्थितियों में यदि विशेष कौशल की आवश्यकता पड़ी तो इस डाटा से वैसे कार्मिकों को छांटकर निकाला जा सकता है. डेपुटेशन पे आना जाना भी सरल हो जायेगा.इस पूल से इनकी स्केलिंग का भी मानकीकरण किया जा सकता है और पूरे राष्ट्रीय स्तर पर वेतनमान का एक ही स्केलिंग होगा. इनसे सम्बंधित नीतियाँ एवं योजनायें बनाने में भी सरकारों को सहायता मिलेगी. इस कार्य के लिए पूरे देश भर के सभी केंद्रीय एवं राज्य के कर्मचारियों का एक सर्वे करा के एक निश्चित प्रारूप में उनसे सूचनाएँ भरकर ली जा सकती हैं जिसके आधार पर अपना ये कार्मिक पूल काफी व्यापक जानकारी और प्रयोग वाला बन सकता है. इसी के आधार पर “योग्य पद योग्य व्यक्ति” के सिद्धांत का पालन करते हुए कर्मचारियों का समायोजन किया जा सकता है. इस अभ्यास के द्वारा यह भी पता लग सकता है की किस विभाग में आवश्यकता से अधिक कर्मचारी हैं और किस विभाग में आवश्यकता से कम, और इस सूचना के आधार पर अतिरिक्त कार्मिकों का हस्तांतरण उस विभाग या जगह पर किया जा सकता हैं जहाँ आवश्यकता से कम कार्मिक हैं, इससे विभाग स्तर पर भी परफॉरमेंस अच्छा होगा और जो जरुरत से ज्यादे लागत होगी वह कम होकर दुसरे जरूरतमंद विभाग को हस्तांतरित हो जाएगी.

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