ऑस्कर शिंडलर का अर्थार्थ


आज ऑस्कर शिंडलर की कहानी के बहाने जीवन का अर्थार्थ समझाना चाहता हूं. यह किस्सा जरुरी है जब समाज हताश निराश हो,समाज में  खाई ,अंतर और बंटवारा बढ़ रहा हो. अमीर खूब अमीर और गरीब खूब गरीब हो रहा हो. तो ऐसे में हम लोगों की जिम्मेदारी है की हम अपने समाज में से ही ऐसे ही किस्से और चरित्र लेकर आयें जो इसे कम और खत्म करने का कार्य करे. जिससे हम प्रेरणा ले इस दौर से आगे बढ़ सकें. उन्ही किस्सों में से एक किस्सा है द्वितीय विश्व युद्ध में शिंडलर लिस्ट का किस्सा। यह किस्सा नाजी हुकूमत के नस्लीय नरसंहार के चरम पर उसी नाजी पार्टी के एक व्यक्ति ऑस्कर शिंडलर का किस्सा जिसने अपने नरसंहार के इस घुप्प अंधेरे में भी परोपकार की रोशनी से 1100 लोगों को बचा लाया।

 

आज हम बतायेंगे उस ऑस्कर शिंडलर के अर्थार्थ की जिसे उसने अपने 1100 यहूदी कर्मचारियों से युद्ध समाप्ति पर विदा लेते वक्त साझा किया था . यह उसके जिंदा रहते चला चली की बेला का अर्थार्थ संवाद है जिसे हमें अक्सर हमें हमारे जीवन की चला चली की बेला में याद आता है।  एक यहूदी कर्मचारी जिसके दांत में सोना लगा था जब वह उस दांत को तोड़ उस सोने से अंगूठी बना विदाई के वक्त शिंडलर को भेंट की तो शिंडलर को अपने जीवन का अर्थार्थ समझ आया. वह जमीन पर बैठकर फफक फफक रोने लगा. उसने कहा की वह कुछ और जिंदगीयां बचा सकता था अगर उसने और कमाई की होती तो. उसने क्यों नहीं कुछ और कमाया। अपनी गाड़ी को देख रोने लगा क्यों मैंने यह गाड़ी अपने पास रखी, यह गाड़ी तो मैं नाजी कमांडर गोइथ को देकर 10 और जिंदगीयां बचा सकता था. अपनी सोने की कोट पिन देखकर रोया की मैंने वह पिन क्यों रख ली इसे उस कमांडर को देकर 2 जिंदगीयां बचा सकता था. अपने जीवन भर में की गई पार्टियां और शराब को याद कर के रोया की यदि मैं यह खर्च नहीं करता तो और भी जिंदगीयां बचा सकता था, मैंने नहीं बचाया, मैंने नहीं कमाया, मैंने पैसे उड़ाये, पैसे का मोल नहीं समझा नहीं तो मैं और जिंदगीयां बचा सकता था. इसके जबाब में उसके अकाउंटेंट के जबाब की आपने जो 1100 जिंदगीयां बचाई हैं वह मात्र जिंदगी नहीं है आपने 1100 पीढ़ियां बचाईं हैं. हिब्रू की एक कहावत उसने बताई की अगर आप एक जान बचाते हैं तो आप सिर्फ एक जान नहीं बचाते हैं आप एक संसार बचाते हैं.

 

शिंडलर के जिंदगी और उसकी कमाई  का जो अर्थार्थ  है  वह इसी पल के संवाद में छिपा है जो मौजूदा समय में हमें उम्मीद की रौशनी दिखा सकता है. हमें बहुत बाद में समझ आता है और तब तक हम बहुत गंवा चुके होते हैं. इस प्रसंग से हमें जो सीख मिलती है की वह यह मिलती है की हमें अपने और दूसरे के वक्त और जीवन का मोल समझ में आना चाहिये। अगर आप बड़े फलक पर लोगों की सहायता करना चाहते हैं तो या तो आपको सक्षम पद पर होना चाहिये या आप को आय बढ़ानी चाहिये। आप या तो पद पर रहकर या वित्तीय सामर्थ्यवान होकर लोगों की सहायता कर सकते हैं. हम कुछ भी लेकर नहीं जा सकते सब यहीं छोड़कर जाना है इसलिये सम्पतियों का उपयोग दूसरे को जीवन और खुशियां देने में लगानी चाहिये। हम जो अपने जीवनकाल में पैसे की बर्बादी करते हैं या सुखमय जीवन से अधिक मिथ्या प्रदर्शन और विलासिता में खर्च करते हैं उस पैसे से कई परिवारों को वित्तीय सामर्थ्यवान बना सकते हैं. एक बड़े पैमाने पर गरीबी दूर कर सकते हैं. भारत में गरीबी और बेरोजगारी अभी भी बड़ी समस्या है आज भी 23 करोड़ लोग रोज 375 रूपये से कम कमाते हैं, वही देश की एक बड़ी आबादी है जो प्रतिदिन कई हजार बेवजह सिर्फ खाने और पीने में खर्च कर देती है, वह उसमें से कटौती कर कितनी जिंदगिया संवार सकते हैं.

 

ऑस्कर शिंडलर से हम बहुत सी चीजें सीख सकते हैं. वह नाजी पार्टी का सदस्य था और नाजी सैनिकों के बीच था फिर भी वह सहायता करने के रास्ते निकाल लेता था. एक बार एक ट्रेन में जानवरों की तरह ठूंस कर यहूदियों को भर दिया गया था जो उमस और प्यास से बेहोशी की हालत में थे ऐसे में शिंडलर वहां पहुंचता है. वह  यहूदियों की परेशानी समझ जाता है. ऐसे वह रास्ता निकालता है की यदि इन यहूदियों को पानी की तेज धार से ट्रेन में मारा जायेगा तो यह देख के कितना आनंद आयेगा। वह नाजियों की यहूदियों के प्रति घृणा का इस्तेमाल उन्हें सहायता पहुंचाने के लिए करता है और पानी की पाइप से पूरे ट्रेन में पानी की बौछार करवाता है. प्यासे और उमस से बेहोश हो रहे यहूदियों के मुंह में जैसे ही पानी की बूंद जाती है उनमें जान आ जाती है, पूरा ट्रेन जब पानी से तरबतर हो जाता है तो उमस भी गायब और सारे यहूदी पर्याप्त पानी भी पी जाते हैं और नाजी सैनिकों को कुछ समझ में ही नहीं आता है. वह हिटलर की भक्ति में इतने चूर रहते हैं की उन्हें लगता है की उन्होंने यहूदियों को कष्ट दिया है जबकि शिंडलर उन्ही के घृणा के इस्तेमाल से सबको जीवनदायिनी पानी पहुंचा चुका होता है.

                  

नाजी सैनिक बूढ़ों बीमारों और बच्चों से से कोई काम नहीं ले पाते थे तो इन्हे या तो गोली या फिर गैस चैंबर में डाल मार देते थे। ऐसे में कई मौके आये जब शिंडलर जो की एक उद्योगपति था, छोटे बच्चों और बूढ़ों की यह कह कर जान बचाई की इन सबका उसके कारखाने में एक महत्वपूर्ण रोल है. कोई इस काम में माहिर है तो कोई उस काम में माहिर है. बच्चों को तो यह कहकर बचाया की इनके छोटे छोटे हाथ बर्तनों के अंदर जाकर नक्काशी करते हैं जबकि बर्तनों के भीतरी भाग में बड़े हाथ नहीं जा पाते. नाजी खुफिया सेवा के लिए काम करने से शिंडलर को पता चल जाता था कि नाजियों को कौन से यातना शिविरो में ले जाया जा रहा है, इन्हें कहां, कब और कैसे मारा जा रहा है. इन्हीं जानकारियों का इस्तेमाल उन्होंने अपने यहूदी कर्मचारियों की जिंदगी बचाने में किया. समय के साथ-साथ वह नाजी अधिकारियों को महंगे तोहफे और रिश्वत के तौर पर बड़ी से बड़ी रकम देते रहे, ताकि अपने कर्मचारियों को बचाए रख सकें.

दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने तक 60 लाख यहूदी मारे जा चुके थे. लेकिन बेहद अमीर बिजनेसमैन शिंडलर ने अपना सबकुछ गंवाकर भी 1100 यहूदियों को तब तक बचाए रखा, जब तक जंग खत्म नहीं हो गई.

 

उसकी पहली कंपनी पोलैंड में थी, जहां यहूदियों से बर्तन बनवाये. लेकिन जब वो बंद हुआ और 1100 यहूदियों की जान खतरे में पड़ी तो उसने चेक गणराज्य में गोला बारूद की कंपनी शुरू कर उन्हें वहां ले गया.गोला बारूद की गुणवत्ता की अक्सर शिकायतें आतीं लेकिन शिंडलर कहते थे कि वो खुद नहीं चाहते कि उनके गोला बारूद काम करें. जब युद्ध खत्म हुआ, तब तक शिंडलर की जीवनभर की पूंजी रिश्वत देने और कर्मचारियों की जरूरत का सामान खरीदने में खत्म हो चुकी थी. बाद में इन्ही यहूदी लोगों ने शिंडलर की मदद की क्यूंकि नेकी का किया कभी जाया नहीं जाता।

 

उनके द्वारा बचाये गए यहूदियों से जो पीढ़ियां बनी उन्हें शिंडलरज्यूडन (शिंडलर द्वारा बचाए गए यहूदी) कहा गया यह एक तरह से उनका सम्मान हुआ और शिंडलर इन पीढ़ियों के माध्यम से 9 अक्टूबर, 1974 को शिंडलर की मौत के बाद भी अमर हो गए. जिन्हे इजराइल सरकार ने अपना सबसे बड़ा सम्मान दिया और अमरीकी यहूदी निर्देशक  स्टीवन स्पीलबर्ग ने 1993 में शिंडलर्स लिस्ट नाम की एक अत्यंत सफल फिल्म बनायी, जिसने सात ऑस्कर पुरस्कार जीते जिसे ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज भी किया गया.

 

कुल मिलकर शिंडलर ने अपने जीवन से सफल बिजनेसमैन होने के बाद भी यही सिखाया की हमे पैसे का इस्तेमाल कहां करना है जिससे हम इस पृथ्वी पर मानवता और पीढ़ियों को बचा सकते हैं. उनके द्वारा बचाये गए 1100 यहूदियों की जो हजारों पीढ़ियां हैं शिंडलर के अर्थार्थ के जिंदा दस्तावेज हैं.

  

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