नेशन स्टेट पर क्रिप्टो एक बड़ा खतरा लेखक

आज इन दो मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।पहला वह जो मैं हमेशा कहता आया हूँ कि क्रिप्टो करेंसी नेशन स्टेट थ्योरी पर एक बड़ा खतरा हो सकता है । और दूसरा पीएम के इस बयान का उल्लेख की नये ज़माने में युद्ध के हथियार भी बदल रहें हैं. मेरा मानना है कि क्रिप्टो करेंसी भी ग्लोबल वेपन हो सकता है जो भविष्य में कई राष्ट्रों को लील सकता है, यदि इसे ठीक से समझा और लागू नहीं किया गया . जनतांत्रिक करेंसी के आवरण में यह उस इकोसिस्टम की बुनियाद तैयार कर रहा है जो आर्थिक विद्रोह कभी भी भड़का सकता है. आज के आधुनिक राष्ट्र राज्य आहट सुन संभल ले तो ठीक है लेकिन यह डिजिटल साम्राज्यवादवाद का डिजिटल वेपन भी हो सकता है. यह वैसे ही पैर पसारेगा जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने पसारा था और जिसे निजी हितों के लिये शुरुआती पोषण हमने ही दिया था। अब युद्ध में न्यूक्लियर वार न्यूक्लियर बम से किसी राष्ट्र को खत्म करने की जगह उस राष्ट्र की सोच को न्यूक्लियर बना राष्ट्रवाद से विमुख कर भी उस पर हावी हुआ जा सकता है। शायद इसी के प्रति आशंका व्यक्त करते हुए डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था की हम संविधान में राष्ट्र की प्रकृति नहीं निर्णीत कर सकते, यह तो आने वाला वक़्त और लोग तय करेंगे। क्रिप्टो करेंसी के खतरे को समझने से पहले तीन चीजें समझनी पड़ेंगी. राष्ट्र राज्य के निर्माण में करेंसी की योगदान, ईस्ट इंडिया कंपनी या ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार एवं अरब स्प्रिंग. तो पहला समझते हैं की कैसे राष्ट्र राज्य निर्माण में इसकी भूमिका है. राष्ट्र राज्य निर्माण की प्रक्रिया में जब गांवों की संख्या बढ़ने लगी तो राज्य बने और सत्ता या राज्य प्रतिष्ठान का जन्म हुआ। इस राज्य प्रतिष्ठान की प्रमुख जिम्मेदारियों में नागरिक प्रशासन एवं सुविधा के साथ व्यापार एवं लेन देन के नियमन की प्रक्रिया तथा उन पर नियंत्रण प्राप्त करना था जिस कारण वस्तु विनिमय की जगह सत्ता या राज्य प्रतिष्ठान द्वारा मान्यता प्राप्त धातु की एक भौतिक मुद्रा का चलन प्रारम्भ हुआ और विनिमय का मानकीकरण मुद्रा के रूप मे हुआ साथ में राज्यों का नियंत्रण मुद्रा के माध्यम से नागरिकों के उपर बढ़ता चला गया। वस्तु विनिमय में जहां विनिमय हो रही मुद्रा का मानकीकरण नहीं था और विनिमय हो रही वस्तुओं के मूल्यों का निर्धारण विनिमय कर रहे दो व्यक्तियों के खुद के जरूरत और निर्धारण पर निर्भर करता था और राज्य का हस्तक्षेप “कर भार” को छोड़ दें तो नगण्य था। जब मुद्रा का जन्म हुआ तो राज्य को इन सौदों को, कर को, राज्य के नागरिकों को और विभिन्न राज्यों के बीच अपने आपको मजबूत करने का एक साधन मिल गया और इसी के माध्यम से राज्य अपना सत्ता और उसका नियंत्रण कसते गये. मुद्रा का आस्तित्व नेशन थ्योरी के लिये एक बड़ा आविष्कार था जिसने नागरिक जीवन को व्यवस्थित करने के साथ साथ किसी भी राष्ट्र राज्य के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक प्रशासन का मेरुदंड बना । दूसरा हमने देखा की कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी और उसके पीछे पीछे ब्रिटिश सरकार कई देशों में घुस उनके सत्ता पर काबिज होने लगी. इसका सबसे बड़ा मिसाल भारत है जहां वह शुरू में व्यापारी के रूप में आये थे और तब के नवाबों और राजाओं को पता ही नहीं चला की भेंटो और व्यापार की आड़ में कैसे धीरे धीरे वह इस उप महाद्वीप के बड़े भाग के मालिक बन गए. जब तक वह सम्भलते तब तक बहुत देर हो चुकी थी व्यापार के पीछे सुरक्षा की गारंटी और नई तकनीकी तोप के इस्तेमाल ने अंग्रेजों को यहां काबिज होने दिया. अक्सर सत्ता पर कब्ज़ा करने वाले ऐसे ही क्षद्म आवरण और शांत क़दमों से आते हैं, असलियत तो नकाब खुलने पर पता चलती है. तीसरा उदाहरण है अरब स्प्रिंग. मध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में श्रृखंलाबद्ध विरोध-प्रदर्शन एवं धरना का दौर 2010 मे आरंभ हुआ, इसे अरब जागृति, अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह भी कहतें हैं। यह अरब स्प्रिंग, क्रान्ति की एक ऐसी लहर थी जिसने धरना, विरोध-प्रदर्शन, दंगा तथा सशस्त्र संघर्ष की बदौलत पूरे अरब जगत के संग समूचे विश्व को चौंका और हिला कर रख दिया था। इसकी शुरूआत ट्यूनीशिया से शुरू हुई और धीरे धीरे इसकी आग की लपटें अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन और यमन पहुँची जो शीघ्र ही पूरे अरब लीग एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में फैल गई। इस स्प्रिंग के कारण कई देशों के शासकों को सत्ता की गद्दी से हटने पर मजबूर होना पड़ा। बहरीन, सीरिया, अल्जीरिया, ईरक, सुडान, कुवैत, मोरक्को, इजरायल में भारी जनविरोध हुए, तो वही मौरितानिया, ओमान, सऊदी अरब, पश्चिमी सहारा भी इससे अछूते नहीं रहे। हालाँकि यह क्रान्ति अलग-अलग देशों में हो रही थी, परंतु इनके विरोध प्रदर्शनो के तौर-तरीके में कई समानता थी हड़ताल, धरना, मार्च एवं रैली। अमूमन, शुक्रवार को विशाल एवं संगठित भारी विरोध प्रदर्शन होता, जब जुमे की नमाज़ अदा कर सड़कों पर आम नागरिक इकठ्ठित होते थे। अब सवाल उठता है ऐसे कुछ मुल्क जहां आपको यूनियन तक बनाने का क़ानूनी अधिकार नहीं है वहां इतने बड़े पैमाने पर, संगठित रूप में एक ही पैटर्न पर ऐसी क्रांति ने कैसे जन्म ले लिया। तमाम कारणों के बीच जिस चीज ने इसे आधार और इकोसिस्टम दिया वह था सोशल मीडिया। सोशल मीडिया का अरब क्रांति में अनोखा एवं अभूतपूर्व योगदान था एवं बेहद ही ढ़ाँचागत तरीके से दूर-दराज के लोगों को क्रांति से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल हुआ। शुरू में जब सोशल मीडिया आया तो उनके शासकों को अंदाजा भी नहीं था की यह उनकी गद्दी उखाड़ देगा. ठीक इन दो उदाहरणों की तरह यह क्रिप्टो करेंसी भी नेशन स्टेट थ्योरी के लिए बड़ा खतरा है जो एक ऐसा आधार तैयार कर रही है जिसमें पीछे के दरवाजे से कोई भी उस राष्ट्र में घुसपैठ कर सकता है. डॉ आंबेडकर ने जो कहा था की भविष्य में राष्ट्र का स्वरुप क्या होगा वह हम वर्तमान में तय नहीं कर सकते. लगभग वैसा ही कुछ हो रहा है और आज के दौर में. मेटावर्स और क्रिप्टो करेंसी ने उसकी तरफ इशारा किया है अब हम सांस्कृतिक राष्ट्र से राजनैतिक राष्ट्र और अब तकनीक राष्ट्र की तरफ बढ़ रहें हैं. अब समाजवाद, साम्यवाद या पूंजीवाद नहीं देशों के चौखट पर डिजिटल साम्राज्यवादवाद का तकनीकीवाद दस्तक दे रहा है. यह सिर्फ दस्तक ही नहीं वह अंदर तक घुस आया है. सीमारेखाओं के अंदर बसे देश और उनकी व्यवस्थाओं जैसे की परिवहन, संवाद, व्यापार को इस तकनीक ने तोड़ ही दिया है हो सकता है की क्रिप्टो करेंसी के इस्तेमाल से जिस तरह यह सरकारों को बाईपास कर रहा है कल को सत्ता को ही अप्रासंगिक ना बना दे, इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इसको लेकर व्यक्त की गई चिंता जायज है.

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