Sustainable = सनातन

पेरिस या ग्लास्गो का वैश्विक पर्यावरण सम्मलेन हो या संयुक्त राष्ट्र का सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल जिसे वह एसडीजी गोल बोलते हैं वह दरअसल सनातन अभ्यास के ऊपर अंग्रेजी का चढ़ा रैपर ही है. क्यूंकि सनातन का वास्तविक भाव होता है जो चिरकालिक हो शाश्वत हो और सस्टेनेबल का भी यही भाव होता है जो चिरकालिक हो टिकाऊ हो सतत हो इसीलिये मैं सनातन को सिर्फ एक धर्म के नजरिये से नहीं देखता हूं इसे एक दर्शन के रूप में देखता हूं जो चीजों को सस्टेनेबल रूप में परिभाषित करती है. इसीलिए मेरा मानना है की सनातन का मतलब सस्टेनेबल है. भारत के इस सनातन दर्शन में सब कुछ इसी प्रकृति से लिया हुआ होता है और एक आटोमेटिक प्रोसेस से चीजें मरती हैं पुनः पैदा होती है और जीवन आगे बढ़ता रहता है. पुरानी कोशिकाएं मरती हैं और नई कोशिकाएं पैदा होती हैं यही तो जीव की एक इकाई कोशिका के बारे में विज्ञान कहता है और यही बात हमारा गीता भी कहता है. भारत के इस सनातन दर्शन में आप अध्ययन करेंगे तो व्यवस्थाएं ऐसी बनाई गईं थी जो प्रकृति और मानव जीवन के अनुकूल थी, जैसे जैसे हमने प्रकृति की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के बीच मशीन का इस्तेमाल कर उसे प्रकृति चक्र से परे इस्तेमाल किया हम ने विकास की गोलाकार पथ की यात्रा शुरू कर दी जो पुनः हमें शून्य पर लाकर छोड़ेगा. आप अपने किचन की व्यवस्थाओं को देखिये पूर्व से स्थापित जितने भी खानपान की व्यवस्थाएं थी जिसमें फ्रिज एवं कूकर का इस्तेमाल न्यूनतम होता था. हम मौसमी सब्जियों को ही इस्तेमाल करते थे, आलू प्याज लहसुन कई दिनों तक रख उसका इस्तेमाल करते थे. खाने में भी हमने गेंहू और चावल को ही स्वीकार किया क्यूंकि इसे बिना फ्रिज के कई दिनों तक इस्तेमाल कर सकते थे. अचार का भी उदाहरण सामने है. ठेकुआ लड्डू बर्फी से लगायत खुरमा तक वही मिठाइयां बाजार में मिलती थीं जिसे बिना फ्रिज के कई दिनों तक रखा जा सके. लेकिन जब से जनसंख्या बढ़ी, मांग की गति बढ़ी यूरोप ने मशीन क्रांति शुरू की सबके घरों में उसने फ्रिज पहुंचाया जो की प्रोसेस्ड फ़ूड रखने के लिए एक आधरभूत ढांचा बना और पीछे पीछे उसने प्रोसेस्ड फ़ूड की बाढ़ ला दी, उसके पीछे पीछे एसिडिटी और लाइफ स्टाइल बिमारियों की बाढ़ आई उसके पीछे दवाई और दवाई कंपनियों का लंबा व्यापार आया और अंत समय में अब हाल यह है की बहुतायत आबादी का अंत समय मेडिकल मशीनों के सहारे ही बीत रहा है. जनसंख्या वृद्धि, तत्पश्चात मांग वृद्धि का दबाब जिस कारण मशीनों के इस्तेमाल का दबाब अब मशीनों ने हमें चारो तरफ से अपने शिकंजे में ले लिया है. बहुत साल पहले एक मूवी मैट्रिक्स आई थी जिसमें हीरो कहता है की आज हम मशीन बना रहें हैं लेकिन भविष्य में यह मशीनें ही हम पर राज करेंगी, और आज यही हो रहा है. हमारे बेमौसम असमय चाहत और शॉर्टकट सलूशन ने सनातन व्यवस्था का नुकसान किया और उसका खामियाजा हम आज भुगत रहें हैं. सनातन को मैं कभी धर्म के चश्मे से नहीं देखता यह प्रकृति की अनुकूलन व्यवस्था का नाम है जो सृष्टि को आगे बढ़ाती है.आज शिवलिंग को लेकर चर्चा है लेकिन क्या आपको मालूम है की शिवलिंग अपने आप में सभ्यता की स्थापना का प्रतीक और सृष्टि का सूत्र है. जब सृष्टि ने हमें बनाया तो हमें दो हिस्से में बनाया एक पुल्लिंग और दूसरा स्त्रीलिंग कोई एक स्वतंत्र रूप से प्रजनन नहीं कर सकता किसी को असीमित अधिकार नहीं दिया सहजीवन सहअस्तित्व और आटोमेटिक नियंत्रण की नींव रखी. हम एक तरीके से प्राकृतिक मशीन ही तो हैं जो प्रजनन करते हैं. पुल्लिंग स्त्रीलिंग दोनों को जिम्मेदारियां दी एक अकेला सृष्टि को आगे नहीं बढ़ा सकता और जिस सृष्टि सूत्र की हम पूजा करते हैं वह सृष्टि को आगे बढ़ाने का सूत्र ही है और इस सूत्र को बनाने के बाद सभ्यता को स्थापित करने के लिए सबसे पहले सम्भोग को ही नियमित किया गया विवाह व्यवस्था से तब जाकर परिवार नामक इकाई की स्थापना हुई जिससे समाज गांव और राज्य बने. आज यदि हम वैज्ञानिक प्रयोगों से या पश्चिम की संस्कृति से प्रजनन या विवाह व्यवस्था में बदलाव करेंगे तो यह सृष्टि के सूत्र और सभ्यता से छेड़छाड़ होगी जिसकी प्रतिक्रिया पुनः भयानक रूप में सामने आ सकती है. पश्चिम से जो भी व्यवस्थाएं लादी गईं हम पर उसने हमें मशीनों पर आश्रित बनाया, उन्होंने हमें स्वतंत्र चिंतन की जगह प्रक्रियागत चिंतन में डाला इसलिए आज भी शिक्षा प्रणाली हम उन्हीकी अपनाते हैं जबकि वह हमारी शिक्षा प्रणाली को इंटरनेशनल आईबी के नाम से पूरी दुनिया में चला अपने बच्चों को उसी में पढ़ाते हैं. हमारी सनातन व्यवस्था पर अपना रैपर चढ़ा उसे अपना नाम दे इस्तेमाल कर रहें हैं. कभी पश्चिम ने जहां के कार मॉडल के हम दीवाने हैं ने ये नहीं कोशिश किया बताने की की साइकिल आज भी वहां मुख्य वाहन में आते हैं और इसे चलाना हीन नहीं माना जाता. पहले तो हम बिना पेट्रोल के साधन से ही चलते थे ना, मशीन चालित मोटर ला हमारी स्पीड बढ़ा हमें अपने जीवन अंत की तरफ तेजी से धकेल दिया गया जिसके दुष्प्रभाव हम सबको मालूम है. खाने पीने रहने ओढ़ने के लिए नेचुरल और अप्रसंस्कृत चीजों पर आश्रित थे और आज पश्चिम ने सब जगह मशीनों और कारखानों को घुसेड़ दिया और अंत में पेरिस और ग्लास्गो में सस्टेनेबल गोल बना रहें हैं. पहले जब हम नीम के दातुन या नमक हल्दी का मंजन करते थे तो मजाक उड़ाते थे और आज आपके मंजन में नमक है की नहीं पूछते हैं। पहले इन्होने अंग्रेजी मंजन प्रमोट किया पीछे पीछे डेंटल का पूरा इकोसिस्टम खड़ा किया. हमारी सनातन व्यवस्था पहले ही सस्टेनेबल मॉडल पर थी मजाक उड़ाकर पहले उसे हटाया गया, नई चीजें लाई गईं और फिर हमारी ही चीजों को पुनः SDG के रैपर में परोसा जा रहा है. सनातन अभ्यास में ही तो सबसे प्रथम प्रकृति सूर्य, चंद्र, नदियां, उपयोगी वृक्ष और जानवरों को पूज्य बना उनके महत्व को रेखांकित किया ताकि वह सरंक्षित रहे इसलिए तो कहता हूं सस्टेनेबल और सनातन एक ही हैं.

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