ONDC ई कॉमर्स में सम्पूर्ण क्रांति

ONDC जिसका मतलब है ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स इसे जल्द सरकार शुरू करने वाली है. सरकार ने यह योजना ई-कॉमर्स मार्केट में एकाधिकार खत्म करने के लिए बनाया है। सरकार के मुताबिक डिजिटल पेमेंट स्पेस में जो काम UPI का है, वही ई-कॉमर्स स्पेस में ONDC का होगा और मकसद डिजिटल ई-कॉमर्स स्पेस में सबके लिए बराबरी के मौके देना और समूची वैल्यू चेन डिजिटाइज करना होगा जिससे ईकॉमर्स की कारोबारी प्रक्रिया स्टैंडर्डाइज हो जाएगी, ज्यादा-से-ज्यादा सप्लायर ऑनलाइन स्पेस में आ सकेंगे और कस्टमर्स को ज्यादा वैल्यू मिलेगी। इसके नाम से स्पष्ट है की यह एक ओपन डिजिटल कॉमर्स प्लेटफॉर्म होगा जिसका सोर्स कोड विक्रेता, क्रेता, सर्विस प्रोवाइडर, लॉजिस्टिक, पेमेंट गेटवे, या कोई भी सबके लिये खुला रहेगा. इसे अमली जामा पहनाने और इस क्षेत्र में एकाधिकार तोड़ने के लिये सरकार ने अपना निजी और क्लोज्ड प्लेटफार्म चलाने वाले लोगों जैसे की अमेजन और फ्लिपकार्ट से लगायत सभी ई कॉमर्स कंपनियों को इस प्लेटफार्म पर आना अनिवार्य करेगी। इसे ठीक ऐसे समझ लीजिये की यूपीआई आने से पहले पेटीएम या अन्य फिनटेक कंपनियों के अपने निजी प्लेटफार्म थे, यूपीआई लांच करने के बाद सरकार ने सबको यूपीआई प्लेटफॉर्म पर आना अनिवार्य कर दिया। अब पेमेंट की टेक्नोलॉजी पर किसी का एकाधिकार नहीं है यूपीआई का सोर्स कोड का इस्तेमाल कर फिनटेक कंपनियां पेमेंट सुविधा दे सकती हैं और ग्राहक किसी भी यूपीआई एप को डाउनलोड कर किसी भी पेमेंट एप से किसी दूसरे पेमेंट एप पर भुगतान कर सकता है. इसे समझने हेतु हमें मौजूदा ई कॉमर्स मॉडल और यूपीआई मॉडल समझना पड़ेगा. जैसे अमेजन जिसमें बेचने और खरीदने वाले को सिर्फ अमेजन पर जाकर ही सौदे करने होते हैं, आप अमेजन पर जाकर फ्लिपकार्ट पर रजिस्टर विक्रेता से माल नहीं खरीद सकते हैं अब ONDC ने इस मसले को हल कर दिया है. अब यूपीआई मॉडल समझते हैं, यूपीआई से पहले पेमेंट का लेन देन हम देख चुके हैं, अब तो हर मोबाइल यूजर, दूकानदार का अपना अपना QR कोड है, हर जगह वह QR कोड दिख जायेगा और कोई भी उस कोड के माध्यम से पेमेंट ले और दे सकता है. अब यह यूपीआई काम कैसे करता है दरअसल यह यूपीआई एक ओपन नेटवर्क वाला डिजिटल कॉमर्स इकोसिस्टम है, इसमें एक तरफ फिनटेक कंपनियां एवं बैंक एक सर्विस प्रोवाइडर एप्लीकेशन के माध्यम से क्रियाशील हैं तो दूसरी तरफ हम जैसे ग्राहक या दूकानदार यूजर एप्लीकेशन के द्वारा जुड़े हुए हैं. इस प्लेटफॉर्म पर दोनों तरफ के एप्लिकेशन जुड़े हुए हैं. ग्राहक अपने एक यूजर अप्लीकेशन जैसे की उसने यदि पेटीएम का डाउनलोड किया है तो वह भीमपे, जीपे फोनपे से लगायत किसी भी सर्विस प्रोवाइडर के एप्लीकेशन पर पैसा ट्रांसफर कर सकता है ऐसा नहीं है की पेटीएम वाला केवल पेटीएम वाले को ही पैसा ट्रांसफर कर सकता है, ठीक उसी तरह दूसरे एन्ड पर पैसा प्राप्त करने वाला एप्लीकेशन है तो ऐसा नहीं है की वह केवल जीपे का है तो जीपे वाले से ही पैसा प्राप्त करेगा वह किसी भी एप्लीकेशन से आये पैसे को स्वीकृत करेगा। मतलब यूपीआई एक ऐसा ओपन नेटवर्क है जिसने इस एप्लीकेशन के निजी एकाधिकार को ख़त्म कर इसे और इन्हे सबके लिए खुला कर दिया है, भेदभाव रहित। और यूपीआई सुविधा के इस्तेमाल के लिए उन्हें इसी इकोसिस्टम का यूज करना पड़ेगा, अलग से कोई अन्य निजी प्लेटफॉर्म नहीं होगा। अब इसे ऐसे समझिये की यह यूपीआई की तरह ही अब हम सबके मोबाइल और गली मोहल्ले और सबके यहां दिखने वाला है. यह हमारे पास और हम इसके पास जाने वाले हैं. यह ई कॉमर्स को किसी एक कंपनी या किसी वेबसाइट के एकाधिकार से तोड़कर जनतांत्रिक करने वाला है. यूपीआई की तरह यह एक ऐसा ओपन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स इकोसिस्टम होगा जिसमें ई कॉमर्स के सभी किरदार एक साथ इसपर होंगे चाहे वह ई कॉमर्स के मौजूदा प्लटफॉर्म हों, परदे के पीछे रहने वाले सर्विस प्रोवाइडर जैसे की लॉजिस्टिक हो, पेमेंट गेटवे हो, किसी अनजान जगह का कोई कारीगर हो या हम जैसे ग्राहक हों. सिर्फ एक इकोसिस्टम जिस पर सभी ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म वाले को आना अनिवार्य किया जाने वाला है पर अब सब मिलेंगे। अब आप अमेजन पर जायेंगे तो सिर्फ अमेजन से जुड़े सेलर के ही लिस्टिंग नहीं दिखेगी आपको आपके सर्च क्राइटेरिया के आधार पर इसपर पंजीकृत हुए आपके सर्च अनुसार सभी सेलर मिलेंगे भले ही वह अमेजन की जगह फ्लिपकार्ट या किसी और प्लेटफॉर्म से जुड़े हों या अपना खुद का पोर्टल हो. इस खुले नेटवर्क पर निजी ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म जो की एक बॉक्स की तरह काम करते थे जिसमें एक बंधन बंडल के रूप में लॉजिस्टिक प्रोवाइडर, सेलर, पेमेंट गेटवे, कूपन आदि बंधे रहते थे अब वह सब अनबंडल हो जायेंगे मतलब स्वतंत्र रूप से इस प्लेटफॉर्म पर आ जायेंगे और पुनः आवश्यकतानुसार रीबंडल होंगे. एक सर्विस प्रोवाइडर या एक छोटा सा दूकानदार अब लॉजिस्टिक समस्या से मुक्त रहेगा उसे इसी प्लेटफॉर्म पर कई मौजूद लॉजिस्टिक प्रोवाइडर मिल जायेंगे जिसके साथ वह टाई अप कर अपना धंधा बढ़ा सकता है. अब तकनीक चुनिंदा हाथों की बपौती नहीं रहेगी यह ओपन फॉर आल रहेगी. चूंकि यह ओपन सोर्स कोड का प्लेटफॉर्म होगा अतः कोई भी इसका इस्तेमाल कर इसका एप्लीकेशन बना कर इस प्लेटफॉर्म पर आ सकता है जैसे की एंड्राइड. बहुत से लोग इसे सुपर एग्रीगेटर, सुपर प्लेटफॉर्म या प्लेटफॉर्म का प्लेटफॉर्म समझते हैं लेकिन यह सत्य नहीं है, यह एक ऑर्केस्ट्रा की तरह काम करता है जो सभी प्रक्रियाओं को पहले अनबंडल करता है फिर उन्हें खुले बाजार में छोड़ देता है अपना सर्वश्रेष्ठ को प्राप्त करने के लिए और यह पुनः आवश्यकतानुसार रीबंडल होते हैं और बिलकुल एक ऑर्केस्ट्रा की तरह काम करते हैं जिसमें कोई एक अकेला नहीं होता है आपस में एक दूसरे से जुड़ सौदे की एक रिदम का निर्माण करते हैं और यह जितना ज्यादा होगा वह रिदम की आवाज उतनी ही ऊँची होगी. यह एक फैसिलिटेटर के रूप में काम करने वाला है ना की खुद एक ऑपरेटर। यह एक ऑपरेटर के रूप में संचालित स्वयंभू विशाल मंच-केंद्रित मॉडल से एक फैसिलिटेटर के रूप में संचालित इंटर ओपेरेबल विकेन्द्रीकृत नेटवर्क की तरफ एक बदलाव है जिसमें इस डिजिटल इकोसिस्टम के सब प्लेयर भागीदार हैं. यह पृथक पृथक प्लेटफॉर्मों में अन्तर्निहित समस्याओं के कारण खुद एक सुपर प्लेटफॉर्म बनने या प्लेटफॉर्मों के प्लेटफॉर्म बनने की बजाय यह सबको अनबंडल कर पुनः एकीकृत करता है ओपन नेटवर्क के माध्यम से और उन्हें मांग के आधार पर रीबंडल करने की स्वतंत्रता और सुविधा देता है . यह सनातन अर्थशास्त्र का अनुप्रयोग ही है जिसने डिजिटल इकोसिस्टम में अन्तर्निहित और अदृश्य वैल्यू को ढूंढ निकाला है जो अलग अलग प्लेटफॉर्म के दरवाजे पर बिखरी पड़ी थी. इसे ऐसे समझ लें यह एक ऑर्केस्ट्रा की तरह पृथक पृथक वाद्ययंत्रों की जगह सभी वाद्ययंत्रों के जरुरत आधारित स्वतः अनुशासित सम्मिलन से सौदों की ऐसे ऐसे संगीत की खोज की है जो अनंत तरीके की संगीत और उसका मूल्य पैदा करेगा। यह खुला नेटवर्क सप्लाईचेन को बिचौलियों के चंगुल से निकाल सभी प्लेयर्स उपभोक्ताओं, व्यापारियों और समर्थन सेवाओं के प्रदाताओं को शक्तिमान बनायेगा। यह छोटे व्यवसायों के लिए सबसे अधिक प्रभावशाली होगा जो नवाचार को अनलॉक करना चाहते हैं और डिजिटल कॉमर्स के माध्यम से अपने संचालन को बढ़ाना चाहते हैं जो पहले पहुँच से बाहर होने के कारण कर नहीं पाते थे अब डिजिटल होना उतना ही आसान होने वाला है जितना यूपीआई हो गया है। यह अवधारणा अब रिटेल सेक्टर तक ही सीमित नहीं है यह किसी भी डिजिटल कॉमर्स तक बढ़ाया जा सकता है चाहे थोक, मोबिलिटी, खाद्य वितरण, रसद, यात्रा, शहरी सेवाएं, आदि कोई भी चाहे B2C या B2B. यह खरीदारों और विक्रेताओं की स्वायत्तता को भी सक्षम बनायेगा और उन्हें किसी एक प्लेटफॉर्म के खूंटे से बांधने के बंधन से मुक्त करायेगा, ये अब किसी के भी सर्च इंजन पर दिखेंगे बस इन्हे इसके आसान खुले प्रोटोकाल के माध्यम से डिजिटल मैदान में आ जाना है जो मैदान अब सबके लिए लेवल प्लेइंग फिल्ड है और अब यहां किसी एक की मनमानी नहीं चलने वाली है.

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