एक गांव एक बाजार पूर्वोत्तर की जरुरत

भारत में पूर्वोत्तर राज्य भारत के सबसे खूबसूरत जगह और लोगों को समेटे हुये हैं. यहां सिर्फ जगह ही नहीं खूबसूरत है यहां के लोग भी दिल से खूबसूरत हैं, इन्हे सिर्फ प्यार करने की जरुरत है. अभी इस सप्ताह मेरे पूर्वोत्तर दौरे के दौरान बोडोलैंड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रमोद बोरो से मुलाकात हुई उस दरम्यान उन्होंने बताया की जब उनसे पहली बार 8 साल पहले वह प्रधानमंत्री मोदी जी से मिले तो प्रधानमंत्री ने उन सब से अपने क्षेत्र के समस्याओं के बारे में पूछा और कोई पत्रक लाये हैं तो माँगा. प्रमोद बोरो जो उस समय पत्र भी लेकर गये थे उन्होंने बोला की प्रधानमंत्री जी हमारे पास समस्या नहीं है मैं जो पत्र लाया हूं वह भी आपको नहीं दूंगा, प्रधानमंत्री अवाक् थे उन्हें ऐसे जबाब की उम्मीद नहीं थी, उन्होंने पूछा तो आपको क्या चाहिये, तो प्रमोद का जबाब था की सिर्फ "प्यार" हमें सिर्फ प्यार चाहिये, आप पूर्वोत्तर के लोगों से सिर्फ प्यार करिये यहां की और इनकी सबकी समस्या ख़त्म हो जायेगी और यह सही बात है इन्हे सिर्फ प्यार और सम्मान दिया जाय तो यह देश और दुनिया के लिए सबसे बड़े मानव संपत्ति हैं, हॉस्पिटैलिटी और एविएशन इंडस्ट्री के लिए सबसे अधिक प्राकृतिक योग्यता है उनके पास. बकौल प्रमोद उसके बाद प्रधानमंत्री अपने पहले कार्यकाल में 48 बार पूर्वोत्तर आये, जो आजादी के बाद रिकॉर्ड है. और यह सही बात है की पूर्वोत्तर में काम किये जाने की जरूरत प्रकृति ने इन्हे हॉस्पिटैलिटी और एविएशन इंडस्ट्री के साथ कई गुणों से दक्ष कर के भेजा है, लेकिन शिक्षा और रोजगार में समानुपात नहीं होने के कारण बड़े पैमाने पर यहां से युवाओं का पलायन जारी है. जिस दर से यहां के गांव के गांव रोजगार के लिए पूर्वोत्तर छोड़ रहे हैं वह भविष्य के लिए चिंताजनक है, पूरी व्यवस्था को एक लम्बी अवधि के उद्देश्य के साथ इस पलायन को रोकने पर काम करना पड़ेगा नहीं तो पूर्वोत्तर युवावों से खाली हो जायेगा. और यह हो सकता है वहां स्थानीय उद्यमिता के द्वारा स्थानीय स्तर पर ही रोजगार प्रदान कर प्रति व्यक्ति आय बढ़ाकर। इस उद्देश्य को जापान की एक योजना की तर्ज पर "एक गावं एक बाजार' को लागू कर पाया जा सकता है जिसमें उद्देश्य प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना हो और बाहर ने निवेशक नहीं खरीददार बुलाने की योजना हो ताकि स्थानीय लोग ही बेचें और यहाँ के प्राकृतिक जगहों पर पर्यटन बढ़े। पूर्वोत्तर में "एक गावं एक बाजार' से ही ग्रामोत्थान संभव दिखता है. सरकार का लॉन्ग टर्म विज़न एक बड़ी आबादी को गांवों में ही रोकने की होनी चाहिए ना की उन्हें पूर्वोत्तर के बाहर शहरों में रोजगार देने की . आज जरुरत है पूर्वोत्तर में विकास की शुरुवात गांवों से हो जो की वहां के इको सिस्टम के अनुकूल हो. सन 1979 में जापानी गवर्नर मोरिहिको हिरामत्सू ने एक गाँव एक उत्पाद योजना की वकालत की थी जिसे 1980 में जापान में लागू किया गया. इस योजना के पीछे तर्क एकदम सरल था कि गाँव को आत्मनिर्भर बनाया जाये, इसका मुख्य उद्देश्य गाँवों को वित्तीय, तकनीकी और विपणन सहायता के माध्यम से ग्रामीण विकास और रोजगार सृजन करना . आधुनिक व्यवसाय कलाओं के साथ सामुदायिक कौशल भागीदारी के द्वारा वस्तु एवं हुनर की विशेषज्ञता और ब्रांड विकास को प्रोत्साहित करना और ब्रांड बाजार का फायदा उठाना . इसके तहत उपभोक्ताओं के साथ छोटे उत्पादकों को जोड़ने के लिए नई तकनीक का उपयोग करना ताकि एक ग्राम्य समुदाय का स्तर और आर्थिक विकास ऊपर की तरफ बढ़े। एक गांव एक प्रतिस्पर्धी और मुख्य उत्पाद का निर्माण करता है, बाजार को पता होता है की एक ही जगह यह उत्पाद मिल सकते हैं, व्यापारी को माल और मूल्य प्रतिस्पर्धा की गारंटी और ग्राम उत्पादक को ग्राहक आने की निश्चिंतता. यह आईडिया ग्राम उत्पादन एवं व्यवसाय के माध्यम से गाँव को भी राजस्व प्राप्त करने के एक अच्चा माध्यम बनता है एवं उस गांव के निवासियों के लिए भी जीवन स्तर सुधार लाने का एक जरिया रहता है. और गाँव अपने आप में एक मार्केट प्लेस के रूप में परिवर्तित हो जाता है वो भी बिना पलायन के. यदि एक गांव बाजार के रूप में छोटी इकाई हो रहा है तो कई गांवो का क्लस्टर बना उसे बाजार बना सकते हैं. हाट और मोबाइल हाट का मॉडल विकसित कर सकते हैं. भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी देश में 'गांवों में उद्यमिता' विकसित करने के लिए IIT के स्टूडेंट का एक बार आवाहन किया था। कलाम साहब 'एक गांव, एक उत्पाद' के बड़े हिमायती थे. उनका कहना था कि गाँव और उनके उद्योग एवं उनके उत्पादों को विश्व स्तर पर विपणन योग्य उत्पादों का उत्पादन करने में समर्थ करेगा और उन्हें विश्व बाजार का आपूर्तिकर्ता बनाएगा . इस पहल के साथ, गांवों आत्मनिर्भर होकर राष्ट्रीय विकास को गति देंगे. अगर देखें तो पूर्वोत्तर राज्यों हेतु 'एक गांव, एक बाजार' के निम्न मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिये . पहला वैश्विक की जगह स्थानीय का विकास दूसरा जन की स्वतंत्रता और रचनात्मकता और तीसरा मानव संसाधन विकास गतिविधि के रूप में 'एक गांव एक बाजार' को लेना। पूर्वोत्तर यदि इन तीन मार्गदर्शक सिद्ध्नातों को अपना लेगा उसकी खुशहाली वाकई में कोई नहीं रोक सकता है. इसके तहत गाँव के या एक क्षेत्र के सामुदायिक समूहों को उनके प्रकृति और खुद के आईडिया पे बिजनेस का विचार विकसित करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है. इसके लिए वित्तीय सहायता बैंकों, निजी उद्यम पूंजी, सरकार की अपनी ग्रामीण विकास परियोजनाओं, सहकारी समितियों या माइक्रो फाइनेंस आदि से आ सकती है. स्थानीय उपभोक्ताओं पे फोकस के साथ साथ बाहर के बाजार को भी आमंत्रित किया जा सकता है. गाँव की पहचान एक बाजार के रूप में बनने से विज्ञापन खर्च कम होंगे। इस 'एक गांव, एक बाजार' आईडिया के पीछे उद्देश्य यही है कि एक गाँव की पहचान एक एक विशेष उत्पाद के बाजार के तौर पर होने से से होने पर मार्केटिंग आसान होगी, समूहों में सहकारिता बढ़ेगी, उत्पादों में क्वालिटी आएगी, लोगों के बीच एक तरह से उद्यमशीलता की भावना आएगी, पलायन रुकेगा, प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगा। कुछ चुनौतियां आ सकती हैं जैसे मांग से ज्यादे उत्पादन पर फोकस , कई गाँव एक ही उत्पाद बना सकते हैं यदि उनको एक सूचना सूत्र में न जोड़ा जाये और बड़े लेवल पे सहकारिता न विकसित की जाये, अलग अलग गाँवो के बीच प्रतिस्पर्धा, उत्पादों के मानकीकरण की समस्याएं निम्न स्तर की वित्तीय आपूर्ति और ब्याज की उच्च दर वित्त संस्थानों को डर यदि राज्य द्वारा गारंटी नहीं दी जाती आदि आदि. लेकिन यदि राज्य इस कार्य में आगे आती है और इसे एक विशेष योजना के तौर पर लागू करती है तो एक समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे विचार का अच्छा पहलु यह है की इसमें सहकारिता सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण रोल है सहकारी समितियां अपने सदस्यों की क्षमताओं और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रयास कर सकते हैं ऋण, सप्लाई चैन विकास, मार्केट प्लेस के रूप में वो अपने आपको विकसित कर सकती है। व्यापार की दुनिया में अब समय बदल रहा और अगर सहकारिता समय के साथ आगे नहीं आई तो वह एक बड़ा मौका खो देंगी और पलायन का दौर जारी रहेगा। अब समय पूर्वोत्तर से पलायन रोकने का है उन्हें बाजार में मत लाओ उनके गांवो को ही बाजार में बदल दो, पलायन अपने आप रूक जायेगा.

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