यूक्रेन युद्ध, भारत और दुनिया की अर्थव्यवस्था

युक्रेन यूरोप और एशिया को जोड़ने वाला यूरेशिया का सीमाई देश है जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा था और १९९१ के विघटन में अलग हुआ। कभी यूक्रेन ताम्र युग के लिये भी जाना जाता है और आज जिस सोवियत संघ का यह हिस्सा था उसके मुख्य देश रूस को आज कमोडिटी पावर हाउस कहा जाता है. इस युद्ध की रणनीतिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है, रूस के अपने रक्षा हित तो थे ही इसके आर्थिक हित भी थे काला सागर जो की विश्व व्यापार का मुख्य धमनी है और रूस के पास समुद्री किनारे पर गरम पानी का पोर्ट जो उसे जरुरत है. इस युद्ध से लम्बी महामारी ,आपूर्ति श्रृंखला की रुकावट , महंगाई , तेल और मेटल की कीमतों में उछाल, फेड रिज़र्व द्वारा बैंक ब्याज बढ़ाये जाने की आशंका के बीच वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था फिर संकट में फंस गई है महंगाई बढ़ रही है और ब्याज दर बढ़ने वाले हैं लोगों की बचत के साथ उनके ईएमआई पर असर एक बड़ा संकट है . पहले ही क्रेमलिन द्वारा रूसी सैनिकों को आदेश देने और अमेरिकी राष्ट्रपति बाईडेन द्वारा बदले में प्रतिबंधों को सख्त करते जाना , प्रत्युत्तर में रूसी प्रतिशोध की संभावना से पहले ही शेयर मार्किट में उतार चढाव जारी है और इधर और तेल और गैस की कीमतों में आग लग गई है. इस युद्ध से ऊर्जा और खाद्य कीमतों में भी उछाल आया है, आगे बढ़ती हुई मुद्रास्फीति निवेशकों को और डरा सकता है, तथा दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में निवेश और विकास की चलती हुई गाडी पर ब्रेक लग सकता है. यूरोप अपनी प्राकृतिक गैस का लगभग 40 प्रतिशत और तेल का 25 प्रतिशत रूस से प्राप्त करता है। यूरोपीय नेताओं ने रूस पर राजनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए इस आपूर्ति को कम करने का आरोप लगाया है। खाद्य कीमतें भी प्रभावित होंगी जिसे हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, महामारी में आपूर्ति श्रृंखला गड़बड़ी के कारण दशक में अपने उच्चतम स्तर पर हैं। रूस गेहूं का दुनिया में सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, और यूक्रेन को जोड़ें तो कुल वैश्विक निर्यात का लगभग एक चौथाई हिस्सा होता है। अफ्रीका मिस्र और तुर्की भी इससे प्रभावित होंगे। यह तुर्की पर और दबाव डालेगा, जो पहले से ही आर्थिक संकट के बीच में है और महंगाई से जूझ रहा है. यूक्रेन, जिसे लंबे समय से "यूरोप के ब्रेड का कटोरा" के रूप में जाना जाता है, अपने गेहूं और मक्के के निर्यात का 40 प्रतिशत से अधिक मध्य पूर्व एवं अफ्रीका को भेजता है, जहां चिंता है कि आगे भोजन की कमी और कीमतों में वृद्धि सामाजिक अशांति को भड़का सकती है। लेबनान, जो एक सदी से भी अधिक समय में सबसे विनाशकारी आर्थिक संकटों में से एक का सामना कर रहा है, यूक्रेन से अपने आधे से अधिक गेहूं आवश्यकता की आपूर्ति प्राप्त करता है के सामने गंभीर संकट आ खड़ा हुआ है। कोरोना में हमने देखा है की दुनिया के एक हिस्से की छोटी-छोटी रुकावटें भी दूर-दूर तक बड़े व्यवधान उत्पन्न कर सकती हैं। अलग-अलग कमी और कीमतों में वृद्धि- चाहे गैस, गेहूं, एल्यूमीनियम या निकल की हो महामारी से उबर रही दुनिया में स्नोबॉल हो सकता है। यह युद्ध कोढ़ में खाज होने जैसा है और दोहरा प्रभाव करेगा आर्थिक गतिविधि को धीमा और कीमतों में वृद्धि। अमेरिका पहले से ही 40 वर्षों में सबसे अधिक मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है,ऐसे में यूरोप में संघर्ष से ऊर्जा की कीमतें मुद्रास्फीति को और बढ़ायेंगी, हम शायद मुद्रास्फीति का एक नया विस्फोट देखें जिससे दुनिया का कोई देश शायद ही अछूता हो और जो अभी दिखना शुरू भी हो गया है. पैलेडियम, एल्युमीनियम और निकल जैसी आवश्यक धातुओं की संभावित कमी से मुद्रास्फीति की आशंका भी बढ़ रही है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक और व्यवधान पैदा कर रही है. इनसे बनने वाले उत्पाद ऑटो सेक्टर से लगायत इलेक्ट्रॉनिक या जहां जहां मेटल या पैलेडियम इस्तेमाल होता है वहां कीमत बढ़ गई है। हालाँकि इस युद्ध से अमेरिका, यूरोपीय संघ जो रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, की तुलना में बहुत कम असुरक्षित है. अमेरिका अपने आप में प्राकृतिक गैस का एक बड़ा उत्पादक है, इसलिए वहां कीमतों में बढ़ोतरी लगभग उतनी तेज और उतनी व्यापक ना हो जितनी भारत समेत अन्य जगहों पर इसीलिये शायद ही अमेरिका इस युद्ध में प्रत्यक्ष भागीदार हो. पश्चिम ने यूरोप पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। अमेरिका ने तरलीकृत प्राकृतिक गैस की डिलीवरी तेज कर दी है और कतर जैसे अन्य आपूर्तिकर्ताओं को भी ऐसा करने के लिए कहा है। रूस से आपूर्ति श्रृंखला की यह रुकावट ईरान के लिये उम्मीद की किरण हो सकती है जो अपने परमाणु कार्यक्रमों के लिये प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. तेल की मांग ईरान के साथ डील की वार्ता को पुनर्जीवित कर सकती है , जिसके पास 80 मिलियन बैरल तेल होने का अनुमान है. रूस के खिलाफ प्रतिबंध में सबसे पहले SWIFT अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली तक पहुंच में कटौती, कंपनियों को रूस को कुछ भी बेचने या खरीदने से रोकना जैसे कदम रूस के साथ व्यापार करने वाले किसी को भी नुकसान पहुंचाएगा। शेल और टोटल जैसी तेल कंपनियों के रूस में संयुक्त उद्यम हैं, वहीं बीपी का दावा है कि यह "रूस में सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में से एक है. यूरोपीय विमानन कंपनी एयरबस को रूस से टाइटेनियम मिलता है। और यूरोपीय बैंकों, विशेष रूप से जर्मनी, फ्रांस और इटली के बैंकों ने रूसी कर्जदारों को अरबों डॉलर का कर्ज दिया है. दोनों देशों ने हाल ही में एक नई पाइपलाइन के माध्यम से चीन को गैस की आपूर्ति करने के लिए 30 साल के अनुबंध पर बातचीत की है. यह भी हो सकता है की कमोडिटी पावरहाउस के रूप में रूस दुनिया के मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस चीन को सभी ऊर्जा और कमोडिटी निर्यात करना शुरू कर दे. जहां तक भारत की बात है युद्ध के बाद पड़ रहे आर्थिक दबाबों के कारण विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2022 के लिए भारत के विकास दर अनुमान को घटा दिया है। मंगलवार को मुद्रा कोष की तरफ से जारी रिपोर्ट में इस वर्ष के लिए भारत की इकोनोमी में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर होने का अनुमान लगाया है जबकि 2023 में भारत की विकास दर घट कर 6.9 प्रतिशत पर आ सकती है वहीं पिछले साल 2021 में देश की विकास दर 8.9 प्रतिशत तक थी। । हालांकि इस नए आकलन में वृद्धि दर की रफ्तार घटने के बावजूद भारतीय इकोनोमी चीन के मुकाबले तकरीबन दोगुनी रफ्तार से आगे बढ़ेगी। मुद्रा कोष के अनुसार वर्ष 2021 में 8.1 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने वाला चीन वर्ष 2022 में सिर्फ 4.4 प्रतिशत की वृद्धि दर ही हासिल कर सकेगा तथा वर्ष 2023 में यह घट कर 5.1 प्रतिशत रह जाएगा। । वैश्विक इकोनोमी की वृद्धि दर अनुमान को भी आइएमएफ ने 6.1 प्रतिशत से घटा 3.6 प्रतिशत कर दिया है। इन दो अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की तरफ से विकास दर अनुमान घटाना बताता है कि यूक्रेन-रूस युद्ध का भारत में भी बहुत उल्टा असर होने वाला है। जिसमें मुख्य कारणों में से एक खाद्य और पेट्रो उत्पादों की कीमतों में वृद्धि भी है। भारत की इकोनोमी में पेट्रो उत्पादों का बड़ा हिस्सा है और इसके लिए हम अधिकांश तौर पर आयात पर निर्भर है और इसमें आत्मनिर्भर के प्रयास अभी हमने शुरू ही किया है जिसमे समय लगेगा। हालांकि चीन की तुलना में हमारी दर ठीक है और अगर चीन से हम तुलना करें तो भारत आर्थिक मोर्चे पर चीन के मुकाबले इतनी तेजी से कभी आगे नहीं बढ़ा है।

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