अमृत महोत्सव और भारत की अर्थ यात्रा

भारत की आजादी का 75 वां साल है फिर भी यह प्रश्न आपको सालता है की हम अब तक विकासशील क्यों है? हम विकसित क्यों नहीं कहलाते ? जबकि मानव संसाधन से लगायत प्राकृतिक संसाधनों के मामले में भारत समृद्ध और अतुलनीय है, भारत के ही प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों का प्रयोग कर पूर्व में अंग्रेज और अब कई देश विकसित बने हुए हैं, जबकि हम अभी तक विकासशील. इसकी मीमांसा करने पर कुछ कारण साफ़ दिखाई देता है। पहला भारत विकास के उलटे ट्रैक पर दौड़ गया, दूसरा सिर्फ हिन्दू कोड बिल लाया गया अन्य कोड बिल नहीं लाया गया. प्रथम प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नेहरु जी के भारत के प्रति स्वप्न और विकास के लिए किये गए प्रयास और निष्ठा में कहीं भी प्रश्नचिन्ह नहीं है, उनके द्वारा विकास के लिए की गई दौड़ भी सही थी बस ट्रैक उन्होंने गलत ले लिया जिस कारण देश को मेहनत अधिक करना पड़ा मंजिल पर पहुँचने हेतु, भारत के सामाजिक चरित्र में धार्मिक मनोविज्ञान की बड़ी भूमिका है और यह चरित्र वामपंथी विचारधारा की तरफ झुका नहीं है, भारत का वामपंथ अंत्योदय के साथ सर्वे भवन्तु सुखिना की बात करता है जबकि पश्चिम का अमीर से छीन गरीबों में बाँटने का. भारत ने समाजवादी विकास का चरित्र अपनाने के साथ ही यह दौड़ वामपंथी ट्रैक पर तो दौड़ाई लेकिन वहां भी इसके हिसाब से ना चलते हुये सरकारी साम्राज्यवाद की नींव रख दी जो ना तो सनातन अर्थशास्त्र के नजदीक था और ना ही वामपंथी के. आपको भी मालूम है की एक व्यक्ति धारा की दिशा में तैर रहा हो और एक धारा के विपरीत तैर रहा हो तो कौन ज्यादे थकेगा और कौन मंजिल पर पहुंचेगा और कौन मंजिल से दूर होता चला जायेगा, बस यही हुआ भारत के साथ. वामपंथी और समाजवादी विचार के गड्डमगड्ड के गणितीय सोच का शिकार हो गया था देश, कोटा प्रथा और राशनिंग ने कई दशकों तक अवसरों को रोक कर रखा था. मै वामपंथी विचारधारा को यहाँ ख़ारिज नहीं कर रहा हूँ लेकिन भारत के परिप्रेक्ष्य में यूरोपियन वामपंथी विचारधारा अप्रासंगिक है भारत का वामपंथ अंत्योदय के साथ सर्वे भवन्तु सुखिना की बात करता है जबकि पश्चिम का अमीर से छीन गरीबों में बाँटने का, भारत एक धार्मिक और उत्सव धर्मी देश है वह धर्म उदासीन हो ही नहीं सकता यहां के समाज दर्शन में धार्मिक मनोविज्ञान हावी है उसको उपेक्षित कर के यदि आप कोई नीति बनाएंगे तो समाज से बार बार घर्षण आयेगा. धर्म सुधार हेतु जब हिन्दू कोड बिल आया तो उसे सबके लिये लाना चाहिए था और हर धर्म में जो भी सामाजिक बुराइयां थी और जो भी मानवीय मूल्यों और सहजीवन आस्तित्व के खिलाफ थी उसमें सुधार करना चाहिए था, हिन्दू कोड बिल के कारण हिन्दू धर्म के प्रैक्टिस में तो सुधार आया लेकिन अन्य समाज इस सुधार की प्रक्रिया से वंचित रह गये जिस कारण आज भी आप पाएंगे की सच्चर कमेटी के रिपोर्ट के अनुसार मुसलमान आज भी शिक्षा और जीवन स्तर में पिछड़ा है. दुबारा 1975 में हुई जब संविधान में धर्मनिर्पेक्ष शब्द जोड़ा गया तब सम्पूर्ण चिंतन नहीं हुआ. धर्मनिर्पेक्ष का निर्पेक्ष अर्थ होता है शासकीय निर्णयों में किसी भी धर्म के प्रति शासन उदासीन रहेगा पक्ष नहीं लेगा। जबकि भारत का चरित्र मूलतः सभी धर्मों के प्रति उदासीन नहीं सम भाव और स्वागत भाव रखने वाला देश है और वह किसी धर्म के प्रति उदासीन हो ही नहीं सकता यदि भारत हिन्दू धर्म के उत्सव दिवाली और होली और दशहरा को बड़े पैमाने पर मनाता है तो सरकार और देश की अवधारणा के तहत उसी स्तर पर मुसलमानों और ईसाईयों के भी उत्सव मनाया जा सकता है. सर्व धर्म सम भाव होने पर जो जो एक को मिलेगा वह सबको मिलेगा और यह अधिकार संविधान सम्मत क़ानूनी अधिकार भी हो जायेगा. इस कारण यदि सरकार भव्य स्तर पर दिवाली और देवदीपावली का आयोजन करती है तो भव्य स्तर पर संविधान और कानून के तहत ईद भी मनाई जाएगी. भारत के संविधान शिल्पी डॉ बी आर अम्बेडकर दूरद्रष्टा थे और इसके परिणाम को जानते थे इसलिए उन्होंने संविधान के भीतर भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना को घोषित करने का विरोध किया था। संविधान सभा में 1946 में संविधान तैयार करने पर बहस के दौरान के.टी. शाह ने भारत को "धर्मनिरपेक्ष, संघीय, समाजवादी" राष्ट्र घोषित करने के लिए एक संशोधन का प्रस्ताव रखा। संशोधन के विरोध में, अंबेडकर ने कहा, "मेरी आपत्तियां, संक्षिप्त रूप से दो हैं। पहली जगह में संविधान राज्य के विभिन्न अंगों के काम को विनियमित करने के उद्देश्य से एक मैकेनिज्म है। यह ऐसा मैकेनिज्म नहीं है जहां सदस्य विशेष या दल विशेष को स्थापित किया जाता है। राज्य की नीति क्या होनी चाहिए, समाज को अपने सामाजिक और आर्थिक पक्ष में कैसे व्यवस्थित किया जाना चाहिए यह ऐसे मामले हैं जो समय और परिस्थितियों के अनुसार लोगों द्वारा स्वयं तय किए जाने चाहिए। यह संविधान में खुद को निर्धारित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह लोकतंत्र को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है। यदि आप संविधान में कहते हैं कि राज्य का सामाजिक संगठन एक विशेष रूप लेगा, तो आप मेरे फैसले में स्वतंत्रता की स्वतंत्रता को ही ले लेंगे। देश के लोगों को यह तय करना है कि उन्हें किस सामाजिक संगठन में रहना चाहिए। यह आज पूरी तरह से संभव है, बहुसंख्यक लोगों के लिए समाज का समाजवादी चरित्र होना बजाये पूंजीवादी चरित्र के लेकिन यह भी हो सकता है की समय के प्रवाह में समाज का कोई और फॉर्म बेहतर हो, यह भी हो सकता है की लोग समाजवादी चरित्र से इतर के किसी अन्य रूप को विकसित करने की सोचें जो कि आज या कल के समाजवादी संगठन से बेहतर हो सकता है। इसलिए मैं यह नहीं चाहता कि क्यों संविधान द्वारा लोगों को एक विशेष रूप में रहने के लिए बाध्य किया जाए, इसे खुद लोगों के लिए छोड़ना चाहिए कि वे इसे खुद तय करें। यही यह एक कारण है कि इस संशोधन का विरोध किया जाना चाहिए। दरअसल भारत निर्माण के समय ही भारत के मूल चरित्र से इतर नीतियां बनती गईं, यूरोपियन अंग्रेजों के चंगुल से निकलने के बाद भी नीतियों से लगायत कानून तक के ढांचे में यूरोपियन दर्शन हावी रहा,और अर्थ योजना उसी अनूरूप उलटी धारा के खिलाफ घर्षण करने लगी.आज भी आप देखिये की देश में बिजनेस मार्च अप्रैल और सितम्बर अक्टूबर नवम्बर में ही ज्यादे रहता है क्योंकी देश का वही समय उत्सवों का रहता है चाहे फसलों की कटाई के उत्सव हों या शादी के उत्सव हों या होली दिवाली दशहरा छठ, ईद, क्रिशमस या अन्य उत्सव हों, जिस देश का ढांचा और ताना बना उत्सवधर्मी हो उस धर्म का ढांचा आप धर्म उदासीन या धार्मिक उत्सव उदासीन बनायेंगे तो देश को विकास के लिए कड़ी मशक्कत करनी ही पड़ेगी. जब इस जड़ कांग्रेस के प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव जी ने पहली बार सरकारी साम्राज्यवाद को ढहाते हुये सुधारवादी कदम की शुरुआत की तभी से देश में सर्वांगीण विकास की बयार शुरू हुई और गुजरात ने इसमें बाजी मारी. आज इस सुधार के वर्तमान अगुवा प्रधानमंत्री मोदी जी ने जिस तरह सनातन अर्थशाष्त्र का प्रयोग करते हुए जैसा संसाधन वैसी योजना, बहुत से अप्रचलित पुराने कानूनों को खत्म कर जीएसटी और व्यावसायिक कानूनों में सुधार ला अंत्योदय को आगे बढ़ा रहें हैं वह वही लक्ष्य है जिसे नेहरू जी ने सोचा तो था लेकिन ट्रैक गलत चुन लिया था, आज देश सही ट्रैक पर आगे बढ़ रहा है, हालांकि हर निर्णय का मूल्यांकन आगे आने वाला वक़्त ही करता है वर्तमान में तो सिर्फ आशा है और हम आशा करते हैं की भारत अपने सर्वश्रेष्ठ को प्राप्त करेगा.

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