मेटावर्स या मायाजाल

मेटावर्स का अर्थ है, एक ऐसी दुनिया जो हमारी सोच और हमारी समझ से बहुत आगे है। मेटावर्स जिसे हम आसानी से समझने हेतु मायाजाल , आभाषी या मायावी दुनिया भी कह सकते हैं । मेटा का अर्थ होता है "परे (Beyond)" और वर्स शब्द यूनिवर्स (अंतरिक्ष) से आया है मतलब अनंत और अनजान। दरअसल मेटावर्स एक ऐसी दुनिया है जहां आप वर्तमान में रहते हुये अपने ही एक अवतार के रूप में वर्चुअल दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं और वह सब करते हैं जो आप असली में करते हैं । दरअसल 1992 में स्टीवन स्टीफेंसन ने अपनी Snow Crash नाम की साइंस फिक्शन नॉवेल में Metaverse टर्म का इस्तेमाल किया था. उन्होंने कल्पना की थी कि मेटावर्स एक स्पेस होगा जहां लोग अपने अवतार के जरिए एक दूसरे से बातचीत कर पाएंगे. मार्क ज़करबर्ग का फ़ेसबुक का नाम बदल मेटा कर अरबों डॉलर का निवेश बताता है की इसका भविष्य क्या होने वाला है. अब तक हम क्रिप्टो करंसी के सूत्र सुलझा ही रहे थे की इसी में मेटावर्स रूप में वर्चुअल दुनिया भी आ गई। इस वर्चुअल दुनिया में भी आप जमीन खरीद कर आप वहां घर बना सकते , बिजनेस कर सकते, पैसे कमा सकते,म्यूजिशियन हैं तो कॉन्सर्ट , आर्ट गैलरी लगा सकते हैं, या एक देश बना सकते हैं उसके जिले से लगायत टाउन प्लानिंग बना सकते हैं। मेटावर्स में आए दिन लोग करोड़ों रुपये देकर वर्चुअल प्लॉट खरीद रहे हैं। बारबेडोस ऐसा पहला देश बन गया है जिसने मेटावर्स में अपनी एंबेसी खोलने का ऐलान किया है. बारबेडोस मेटावर्स के डिसेंट्रालैंड में अपना डिप्लोमैटिक कंपाउंड तैयार कर रहा है.आने वाले समय में कई देशों की एंबेसी खुलेंगी. धीरे धीरे ट्रेंड बदलेगा और वो दिन दूर नहीं जब लोग स्मार्टफोन से ज्यादा मेटावर्स में समय बिताने लगंगे. पैसे कमाने के नए जरिए की तरह भी लोग इसे देख रहे हैं. क्योंकि अभी मेटावर्स में प्लॉट जिस कीमत पर मिल रहे हैं आने वाले समय में उनकी भी कीमतें क्रिप्टोकरेंसी की तरह तेजी से बढ़ने की उम्मीद है. मेटावर्स के लिए कई अलग-अलग टेक्नोलॉजी ऑग्मेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी और वीडियो टूल का इस्तेमाल किया जाता है और इसका कॉन्सेप्ट है कि एक डिजिटल स्पेस में लोग एक दूसरे के साथ डिजिटली साथ हों, एक ऐसी दुनिया जहां आपकी एक आईडेंटिटी होगीआप घर पर होंगे, लेकिन आपका अवतार मेटावर्स में होगा. उदाहरण के तौर पर अगर आप मेटावर्स में हो रहे किसी लाइव कॉन्सर्ट में हिस्सा लेना है तो आप ये भी कर सकते हैं. ये वीडियो फॉर्मेट के कॉन्सर्ट से अलग होगा. क्योंकि यहां इस कॉन्सर्ट में आपका अवतार दूसरे लोगों के साथ उपस्थित होगा. आप मेटावर्स के लिए यूज की जाने वाली डिवाइस के जरिए ये महसूस कर पाएंगे कि आप भी उस कॉन्सर्ट में हिस्सा ले रहे हैं और लोगों को छू पा रहें हैं , क्योंकि वहां दूसरे लोग भी अवतार के रूप में होंगे और आप उनसे वहां पर ही बातचीत भी कर सकेंगे. यहां तक कि डिजिटल स्पेस में अपने अवतार के जरिए लोग दुनिया भर की वर्चुअल ट्रिप्स भी कर सकते हैं. अपने पसंदीदा मूवी में अपने पसंदीदा करैक्टर का प्रतिरूप धारण कर उस मूवी में अपने को हीरो रूप में देख सकते हैं. हजारों किलोमीटर दूर बैठे किसी से ऐसे बात कर सकेंगे जैसे आमने सामने हों. आपने वर्चुअल दुनिया का अनुभव कई बार वीडियो गेम या स्पेस टूर एक विशेष चश्मे को लगा कर किया होगा। मेटावर्स टेक्नोलॉजी मूवी देखने का , शॉपिंग, घूमने, वर्क फ्रॉम होम, वर्चुअल क्लास की दुनिया को पूरी तरह बदल देगा वर्चुअल दुनिया में व्यक्ति वीडियो कॉल, इमेज और मीटिंग के माध्यम की बजाय एक साथ एक दूसरे को देख यह सब कर पाएंगे। अब इसी मेटावर्स विमर्श को एक गल्प के माध्यम से कल्पना से परे ले जाते हैं । कहीं ऐसा तो नहीं हमारी दुनिया ही वर्चुअल हो और हम एक्चुअल के भ्रम में हों और हम खुद एक मेटावर्स में हों, आखिर हम एक अनंत अनजान रहस्यमयी अंतरिक्ष में ही तो लटके हैं। पौराणिक कथाओं में पृथ्वी के जीवन को माया की दुनिया ही तो बोला गया , पृथ्वी पर हम माया से ही एक दूसरे से बंधे हैं और मेटावर्स का भावार्थ भी मायाजाल ही तो है। कहीं किसी का अचानक प्रकट होने का उल्लेख, होइहें वही जो राम रचि राखा, ईश्वर सब देख रहा है और माया जैसी अन्य चीजों का पौराणिक उल्लेख पृथ्वी को मेटावर्स बताने का कोई संकेत तो नहीं ! मेटावर्स यही है ना की आप एक जगह उपस्थित होते हुये आँखों में एक चश्मा लगा दूसरी दुनिया में प्रवेश कर वह सब कर सकते हैं जो आप अपने एक्चुअल दुनिया में करते हैं जैसे की शॉपिंग, जमीन खरीद, इवेंट, मनोरंजन, अपराध, चोर पुलिस जैसी सारी चीजें । मतलब एक जगह रहते हुए एक लूप के द्वारा दूसरी दुनिया में आप प्रवेश करते हैं जिसे हमीं ने पहले से डिज़ाइन और स्क्रिप्ट किया है, सारे कैनवास और आर्किटेक्चर हमारे ही बनाये हुए हैं और हम उसमें एक अवतार का रूप धारण कर प्रवेश करते हैं। ऐसा ही तो हमारे साथ हुआ है , हम भी तो एक सुरंग के द्वारा एक गर्भ के झिल्ली में प्रवेश करते हैं और 9 महीने के बाद झिल्ली तोड़ बाहर आते हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह नियो नाम का अभिनेता 1999 में रिलीज हुई फिल्म The Matrix में कंप्यूटर में घुस दूसरी दुनिया में जाता है। मेटावर्स ऐसा ही कुछ तो लग रहा है ! कहीं हम खुद ही तो इस प्रयोग के पात्र तो नहीं ! क्यों हमारे धर्मस्थलों के सारे छत अंतरिक्ष की तरफ सिग्नल भेजने वाले टावर की तरह हैं ? हमारे मंदिर क्या हमें हमारे इस पृथ्वी मेटावर्स से अपने किसी दूसरे ग्रह से सम्पर्क का कोई विस्मृत हुआ सूत्र तो नहीं, जैसे The Matrix फिल्म में टेलीफोन बूथ था। हम अपने मेटावर्स में खुद इतना खो गये या जहाँ से हम इस दुनिया में आये उसने हमें ऑटोमेशन में तो डाला लेकिन वहीँ कुछ उथल पुथल हुआ और हम डिसकनेक्ट हो गए. कहीं ऐसा तो नहीं हमारे दिमाग के सेंसर की क्षमता को आज तक कोई पकड़ नहीं पाया। टेलीपैथी कहीं हमारी दिमागी शक्ति के सेंसर का कमाल तो नहीं। कहीं सपने के माध्यम से ही हमारा दिमाग पुनः किसी मेटावर्स में प्रवेश तो नहीं करता ! कहीं हमारे उत्पत्ति के सारे सूत्र हमारे अवचेतन मष्तिष्क में तो नहीं छुपा ! कहीं जिसे हम आत्मा कहते हैं वह हमारे शरीर जिसे हम कंप्यूटर हार्डवेयर की संज्ञा दे सकते हैं का सॉफ्टवेयर तो नहीं ! कहीं हम प्रोग्राम्ड होकर तो नहीं उतारे गये थे ? कहीं हमारी कहानी पहले से स्क्रिप्टेड तो नहीं ? कहीं हमारी इस प्रोग्राम्ड स्क्रिप्टेड आभाषी दुनिया में कोई वायरस आ गया हो, हम डिसकनेक्ट हो गए और स्वतः ऑटोमेट हो गए और स्मृतियों के माध्यम से जितना हो सका ज्योतिष और अन्य श्रुति आधारित पौराणिक संदर्भो में कुछ बातें इसका इशारा हो, पृथ्वी के इस मायाजाल (मेटावर्स) दुनिया में। क्यों कहा जाता है कि जब ग्रहों की दशा बदलती है तो यहाँ मानवों की भी दशा बदलेगी। कहीं यह कोई ऐसे संकेत का डोर तो नहीं जिसे हम पकड़ नहीं पा रहे और यह धुंधला सूत्र ज्योतिष और पौराणिक सन्दर्भों के माध्यम से टुकड़े टुकड़े में मिल रही हो। हो सकता है इस पृथ्वी रुपी मेटावर्स की कहानी अंतरिक्ष के किसी अनजाने हिस्से में लिखी जा रही हो, हम खुद ही उनके मेटावर्स के पात्र और मोहरे हैं और आज डिस्कनेक्टेड हैं और आज खुद का मेटावर्स बना रहें हैं। आखिर दुनिया के सारे धर्मों में यह समानता क्यों हैं की हमें बनाने वाला पृथ्वी से परे किसी और ग्रह का है। यदि हम मानव होकर जिसने अभी तक अपने मष्तिष्क का एक फीसदी नहीं जाना और उसने उतने अल्पज्ञान से ही मेटावर्स बना लिया तो कहीं ऐसा तो नहीं की हम खुद ही दूसरे के मेटावर्स में हो.

Comments