मेटावर्स (मायाजाल) कहीं हम खुद ही तो मेटावर्स में नहीं - गल्प

आज पूरी दुनिया मेटावर्स की बात कर रही है। आइये इसी मेटावर्स को समझने का प्रयास दूसरे एंगल से करते हैं। मेटावर्स जिसे हम मायाजाल कह सकते हैं , कल्पना से परे एक दुनिया, एक आभाषी दुनिया, एक मायावी दुनिया । मेटा का अर्थ होता है "परे (Beyond)" और वर्स शब्द यूनिवर्स (अंतरिक्ष) से आया है मतलब एक ऐसे कल्पना से परे रहस्यमयी दुनिया जो अंतरिक्ष के अनसुलझे सूत्र की तरह परे हो। कहीं हम ऐसा तो नहीं जिसे एक्चुअल दुनिया समझ रहें हों और हम खुद अपने एक्चुअल दुनिया से परे मेटावर्स में हो, यह पृथ्वी खुद भी तो अंतरिक्ष में लटकी है. यह पृथ्वी की पूरी दुनिया कहीं खुद ही तो मेटावर्स नहीं है ? एक मायाजाल तो नहीं ? पौराणिक कथाओं में इसे मायावी दुनिया तो ही बोला गया है ! यह भी तो बोला गया है की पृथ्वी पर हम माया से ही illusion से एक दूसरे से बंधे हैं। कहीं यह illusion यह माया हमारे लिये हमारी ही दुनिया को मेटावर्स बताने का कोई संकेत तो नहीं ! मेटावर्स यही है ना की आप एक जगह उपस्थित होते हुये आँखों में एक चश्मा लगा आप दूसरी दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं और वह सब उस आभाषी दुनिया में प्रवेश कर करते हैं जो आप अपने एक्चुअल दुनिया में करते हैं , आप शॉपिंग जमीन खरीद, इवेंट, मनोरंजन, अपराध, चोर पुलिस सारी चीजों को उस आभाषी दुनिया में प्रवेश करके कर सकते हैं। मतलब एक जगह रहते हुए एक लूप के द्वारा दूसरी दुनिया में प्रवेश करते हैं जिसे हमीं ने पहले से डिज़ाइन और स्क्रिप्ट किया है, सारे कैनवास और आर्किटेक्चर हमारे ही बनाये हुए हैं जिसमें हम अपने आपको एक अवतार के रूप में बदल कर करते हैं। कहीं ऐसा हमारे साथ ही तो नहीं हो रहा है. हम भी तो एक सुरंग के द्वारा एक गर्भ के झिल्ली में प्रवेश करते हैं और 9 महीने के बाद झिल्ली तोड़ बाहर आते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह NEO 1999 में रिलीज हुई फिल्म The Matrix के माध्यम से कंप्यूटर में घुस दूसरी दुनिया में जाता है, मेटावर्स ऐसा ही कुछ तो लग रहा है ! कहीं हम खुद ही तो इस प्रयोग के पात्र नहीं ! क्यों हमारे धर्मस्थलों के सारे छत अंतरिक्ष की तरफ सिग्नल भेजने वाले टावर की तरह हैं ? हमारे मंदिर क्या हमें हमारे इस पृथ्वी मेटावर्स से अपने किसी पर-ग्रह पर जाने का कोई सूत्र तो नहीं, जैसे The Matrix फिल्म में टेलीफोन बूथ था। हम अपने मेटावर्स में खुद इतना खो गए या जहाँ से हम इस दुनिया में आये उसने हमें ऑटोमेशन में तो डाला लेकिन वहीँ कुछ उथल पुथल हुआ और हम डिसकनेक्ट हो गए. कहीं ऐसा तो नहीं हमारा दिमाग और उसका सेंसर ही सबसे बड़ा यंत्र हैं जिसकी सम्पूर्ण क्षमता को आज तक कोई पकड़ ही नहीं पाया। दिमाग से ताकतवर सेंसर आज तक बना ही नहीं। हमारी मायावी दुनिया के मेटावर्स होने का संकेत हमारे पौराणिक सूत्रों में जो बातें कहीं गई कहीं वहीँ तो नहीं। टेलीपैथी कहीं हमारी दिमागी शक्ति के सेंसर का कमाल तो नहीं। कहीं सपने के माध्यम से ही हमारा दिमाग पुनः किसी मेटावर्स में प्रवेश तो नहीं करता है ! कहीं हमारे उत्पत्ति के सारे सूत्र हमारे अवचेतन मष्तिष्क में तो नहीं छुपा है ! कहीं जिसे हम आत्मा कहते हैं वह हमारे शरीर जिसे हम कंप्यूटर हार्डवेयर की संज्ञा दे सकते हैं का सॉफ्टवेयर तो नहीं ! कहीं हम प्रोग्राम्ड होकर तो नहीं उतारे गये थे, कहीं हमारी कहानी पहले से स्क्रिप्टेड तो नहीं, कहीं हमारी इस प्रोग्राम्ड स्क्रिप्टेड आभाषी दुनिया में कोई वायरस आ गया हो, हम डिसकनेक्ट हो गए और स्वतः ऑटोमेट हो गए और स्मृतियों के माध्यम से ज्योतिष और अन्य श्रुति आधारित पौराणिक संदर्भो में कुछ बातें इसका इशारा हो पृथ्वी के इस मायावी (मेटावर्स) दुनिया में। कहीं हमारा ज्योतिष शास्त्र उसी प्रोग्राम का कोई कोडिंग प्रोग्राम तो नहीं जिसे हम पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। क्यों हम को-रिलेट करते हैं की जब ग्रहों की दशा बदलती है तो यहाँ मानवों की भी दशा बदलेगी। कहीं यह कोई ऐसा इशारा तो नहीं जिसे हम पकड़ नहीं पा रहे और एक धुंधले सूत्र ज्योतिष के रूप में हमारे पास टुकड़े टुकड़े में मिल रही हो। हो सकता है इस पृथ्वी रुपी मेटावर्स की कहानी अंतरिक्ष के किसी अनजाने हिस्से में लिखी जा रही हो, हम खुद ही उनके मेटावर्स के पात्र और मोहरे हैं और आज डिस्कनेक्टेड हैं और आज खुद का मेटावर्स बना रहें हैं. आखिर दुनिया के सारे धर्मों में यह समानता क्यों हैं की हमें बनाने वाला हमें नियंत्रित करने वाला पृथ्वी से परे किसी और ग्रह का है, हम तो उसकी बनाई मायावी दुनिया में माया के आवरण में जी रहें हैं. यदि हम मानव होकर जिसने अभी तक अपने मष्तिष्क का एक फीसदी नहीं जाना और उसने उतने अल्पज्ञान से ही मेटावर्स बना लिया तो कहीं ऐसा तो नहीं की हम खुद ही दूसरे के मेटावर्स में हो. क्रमशः .. अध्ययन जारी .

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