बांग्ला देश : बास्केट केस से उड़ान तक का सफर

इसी 16 दिसम्बर को बांग्लादेश मुक्ति के 50 साल पूरे हो रहें हैं और अब ५० साल पूरा कर यह शिशु राष्ट्र से प्रौढ़ राष्ट्र बन चुका है । एक वक्त था जब पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस ने इसके बंदरगाह शहर चटगांव के अपने खाते में सिर्फ 117 रुपये छोड़े थे, सेना ने बैंक नोटों और सिक्कों को भी नष्ट कर दिया ताकि नकदी ना रहे, से आज यह 46.4 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार की नींव पर खड़ा है। इसके शून्य से ले अरबों के भंडार तक की यात्रा में दशकों का संघर्ष शामिल है और इस प्रौढ़ राष्ट्र ने इसके लिये एक लंबा सफर तय किया है। बांग्लादेश के वर्तमान में इतिहास की उस टिप्पणी जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने 1972 में उसे इंटरनेशनल बास्केट केस कहा था को अब झुठला दिया है पिछले 15 साल के कठिन मेहनत ने आज एक औसत बांग्लादेशी की आय को औसत पाकिस्तानी या भारतीय की तुलना में अधिक किया है। इसके 50 साल पूरा होने पर तमाम रिपोर्ट्स एवं मीडिया रिपोर्ट के संकलन के आधार पर आइये चर्चा करते हैं की एक बास्केट केस कैसे चांदी के कटोरे में बदल रहा है। बांग्लादेश को वर्ल्ड बैंक ने भी विकास और गरीबी में कमी के प्रभावशाली ट्रैक रिकॉर्ड के लिये सराहा है । वर्ल्ड बैंक के अनुसार जनसांख्यिकीय लाभांश, मजबूत रेडी-मेड गारमेंट निर्यात और स्थिर मैक्रोइकॉनॉमिक स्थितियों के कारण यह पिछले एक दशक में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहा है। निर्यात और खपत में निरंतर सुधार से इसे वित्त वर्ष 2021-22 में विकास दर 6.4 प्रतिशत तक बढ़ने में मदद मिलेगी। बांग्लादेश का वित्तीय समावेशन में अच्छी प्रगति है। विश्व बैंक के ग्लोबल फाइंडेक्स से पता चलता है कि भले ही बैंक खातों वाली आबादी का अनुपात भारत की तुलना में कम है, लेकिन निष्क्रिय बैंक खातों का अनुपात बहुत कम है। इसी तरह, स्वच्छता पर, जबकि बुनियादी स्वच्छता की पहुंच कम आबादी तक है, लेकिन ख़राब पानी या स्वच्छता के कारण मृत्यु दर भारत की तुलना में बहुत कम है। यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक 2020 में, बांग्लादेश भारत से कुछ ही रैंक नीचे है भारत 131 तो ये 133 । हालांकि शिक्षा प्राप्ति के मामले में भारत से पीछे है लेकिन स्वास्थ्य और पोषण मेट्रिक्स की बात करें तो इसका पिछड़ना अब अतीत की बात है। इसके अलावा, यह ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत (101) और पाकिस्तान (92) दोनों की तुलना में ऊँचे पायदान (76) स्थान पर है। जबकि कुपोषित आबादी के अनुपात में इसका स्कोर भारत का आधा है। बांग्लादेश की जीडीपी वैसे तो तुलनीय नहीं है आकर के कारण लेकिन वृद्धि दर के मामले में कम समग्र जनसंख्या और धीमी जनसंख्या वृद्धि दर के कारण इसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत पाकिस्तान की तुलना में अच्छी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आज,बांग्लादेश में दुनिया की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली है, यहां 40 लाख छात्र, दस लाख से अधिक शिक्षक और 200,000 शैक्षणिक संस्थान हैं। 2018 में, प्राथमिक विद्यालय स्तर पर देश की शुद्ध नामांकन दर 97 प्रतिशत से ऊपर और माध्यमिक विद्यालय स्तर पर लगभग 69 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, और विद्युतीकरण 99.50 प्रतिशत है। मध्यम वर्ग के विकास के कारण बांग्लादेश के लोगों की आय का स्तर और क्रय शक्ति लगातार मजबूत हो रही है। महिलाओं के मामले में भी इसने सभी बाधाओं को तोड़ते हुये उनके कौशल को विकसित करने, महिला श्रम बल की पहचान करने और उन क्षेत्रों में तैनात करने के लिए व्यापक प्रयास किए हैं जहाँ उनकी प्राकृतिक दक्षता है जैसे की टेक्सटाइल्स और कृषि-खाद्य प्रसंस्करण आदि और उनका प्राकृतिक तौर पर बेहतर उपयोग हो सकता है । नतीजतन, हाल के दिनों में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 40 प्रतिशत से ज्यादा तक पहुंच गई है। इसकी प्रगति का जो सबसे मूल कारण है इसके माइक्रो इकॉनमी का विकास, माइक्रो फाइनेंस का विस्तार और भारत के विपरीत जहां कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था सेवा क्षेत्र वाली अर्थव्यवस्था में बदल गई की जगह यहां खेती की अर्थव्यवस्था का रूपांतरण औद्योगिक अर्थव्यवस्था में हुआ । इसने ऐसे श्रम कानूनों को अपनाया जो बड़े और रोजगार देने वाले उद्योगों को प्रोत्साहित करते थे। बांग्लादेश ने माइक्रो इकॉनमी को बढ़ावा देते हुये टेक्सटाइल्स में विशेषज्ञता हासिल की है और आज भारत और पाकिस्तान को भी पीछे छोड़ते हुए टेक्सटाइल्स उद्योग में चीन और ताइवान की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। एक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आजादी से लेकर अब तक के आंकड़े की बात करें तो जीडीपी जहां 1971 में थी 8.8 बिलियन डॉलर थी अब 2020 में 324 बिलियन डॉलर इतनी है, जीडीपी प्रति व्यक्ति जहां 1971 में 134 थी अब 2020 में 1969 है, जनसंख्या 1971 में थी 65.5 मिलियन थी अब 2020 में 165 मिलियन है , साक्षरता दर 1981 में 29 प्रतिशत थी अब 2020 में 75 प्रतिशत है, बीपीएल आबादी जहाँ 2000 में 49 प्रतिशत था वही 2016 में 24 प्रतिशत था, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 1971 में 46.6 वर्ष था वही 2020 में बढ़कर अब 72.6 वर्ष हो गया है, महिलाओं की श्रम सहभागिता जहां 1971 में 3.8 प्रतिशत था वह 2017 में 45 फीसदी हो गया, निर्यात जहां 1971 में 551 मिलियन डॉलर था 2020 में 40 बिलियन डॉलर पहुँच गया. सिर्फ इन्ही आंकड़ों ने नहीं स्वास्थ्य, स्वच्छता, वित्तीय समावेशन और महिलाओं की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति जैसे सामाजिक और मानव विकास मानकों में सुधार ने भी दुनिया को चौंकाया है। उदाहरण के लिए, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट (2021) ने बांग्लादेश को 156 देशों में 65वें स्थान पर रखा है जबकि भारत 140वें स्थान पर है। बांग्लादेश की वापसी में अहम भूमिका श्रम बल में महिला भागीदारी दर की वृद्धि है जो भारत की तुलना में अधिक है। हालांकि इतने के बावजूद आगे बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां भी हैं। कोरिया की तरह निर्यात में विविधता नहीं है और रेडीमेड की ही अधिकता है और उस निर्यात का जीडीपी में कम योगदान। एशियाई विकास बैंक के आंकड़ों के अनुसार, बांग्लादेश में अभी भी उच्च स्तर की गरीबी है और यह व्यापक असमानताओं से भी ग्रस्त है, कटटरपंथ की भी समस्या है । पिछले सप्ताह जारी विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, नीचे की 50 प्रतिशत राष्ट्रीय आय का केवल 17 प्रतिशत है, जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत का हिस्सा 43 प्रतिशत के पास है। भ्रष्टाचार में भी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2020 में 180 देशों में यह 146 पायदान पर है, जबकि भारत (86) और पाकिस्तान (124) पर है। यह देश दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिसने एक दशक से अधिक समय तक लगातार सात प्रतिशत से अधिक की औसत वृद्धि दर्ज की है। वैश्विक महामारी के दौरान भी, इसने अपेक्षाकृत प्रभावशाली गति दिखाया, जबकि कई देशों को नकारात्मक विकास का सामना करना पड़ा इन सब के बावजूद बांग्लादेश को सामाजिक-आर्थिक मापदंडों में निरंतर सुधार का निर्धारण लोकतांत्रिक सिद्धांतों को गहरा करने और बहुसंख्यकवादी, कटटरपंथ और अधिनायकवादी प्रवृत्तियों से दूर रहने की प्रतिबद्धता ही इसकी निरंतरता को सुनिश्चित करेगी।

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