ग्रीन हाइड्रोजन है भविष्य का ईंधन

सनातन अर्थशास्त्र का सबसे सटीक उदाहरण है ग्रीन हाइड्रोजन ईंधन। यह ब्रह्मांड में स्वतः ही सबसे प्रचुर मात्रा में उपस्थित है और जीवाश्म ईंधन की तुलना में तीन गुना अधिक ऊर्जा प्रदान करता है और बदले में शुद्ध पानी को ही उपोत्पाद के रूप में छोड़ता है। ग्रीन हाइड्रोजन एक ईंधन के रूप में स्वच्छ, लचीला और ऊर्जा कुशल है। यह नवीकरणीय ऊर्जा के सबसे सस्ता विकल्प और लम्बी अवधि की भण्डारण की क्षमता का विकल्प रखता है। हाइड्रोजन पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से गैस के रूप में नहीं होता है यह हमेशा अन्य तत्वों के यौगिक रूप में होता है जैसे पानी (H2O) के रूप में । इसलिए हाइड्रोजन को अलग करने के लिए एक बाहरी ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता होती है। वर्तमान में कोयले या जीवाश्म ईंधन का उपयोग लगभग हाइड्रोजन को अलग करने के लिए किया जाता है जो ग्रे हाइड्रोजन पैदा करता है जो अपने आप में प्रदूषणकारी है। लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन नया विचार है जिसमें जीवाश्म ईंधन की जगह रिन्यूएबल स्रोतों का इस्तेमाल की बात की जा रही है । विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2030 तक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था 500 बिलियन डालर के आसपास सकती है। हालांकि अभी भी यह लक्ष्य आसान नहीं है और व्यापक रूप से अपनाने में अभी भी कई बाधाएं हैं लेकिन भविष्य का ईंधन विकल्प के रूप में विज्ञान इसे देख रहा है । पृथ्वी पर पानी सबसे बड़े संसाधन के रूप में उपस्थित है। जल (H2O) में हाइड्रोजन के दो परमाणु होते हैं। बिजली की सहायता से हाइड्रोजन को ऑक्सीजन से अलग करना संभव है और इस प्रक्रिया में प्राप्त हाइड्रोजन का प्रयोग ईंधन के रूप में हो सकता है। हालांकि, अभी हाइड्रोजन इंडस्ट्री अपने शुरुआती दौर में है किंतु 2018 से ऑस्ट्रेलिया में हुई एक रिसर्च में हाइड्रोजन का प्रयोग करके कार, स्टील प्लांट, पानी के जहाज आदि चलाने पर शोधकार्य हो रहा है। दुनिया के सात सबसे बड़े हरित हाइड्रोजन परियोजना डेवलपर्स अगले छह वर्षों में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को 50 गुना बढ़ाने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन कैटापल्ट नाम के पहल के साथ आगे आये हैं। ग्रीन हाइड्रोजन जो कि नेचर फ्रेंडली है और चूंकि पानी को विभाजित कर इसका उत्पादन किया जाता है इसलिये इस पर लागत सस्ता हो इसपर प्रयोग हो रहें हैं और इनका उद्देश्य हरित हाइड्रोजन की लागत को 2 डॉलर/किलोग्राम से भी कम करना है जो इस्पात निर्माण, शिपिंग, रसायन उत्पादन और बिजली उत्पादन सहित दुनिया के सबसे अधिक कार्बन-गहन उद्योगों से कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने में मदद करेगा। उधर ग्रीन अमोनिया, जो हरे हाइड्रोजन से बना है, का थर्मल पावर उत्पादन में जीवाश्म ईंधन के संभावित प्रतिस्थापन के रूप में परीक्षण किया जा रहा है, जो मौजूदा ऊर्जा बुनियादी ढांचे की उत्सर्जन तीव्रता को काफी कम कर देगा। वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 C तक सीमित करने में मदद करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ाना सरकारों के लिये आवश्यक है । गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, ग्रीन हाइड्रोजन 2050 तक दुनिया की ऊर्जा जरूरतों का लगभग 25 फीसदी तक आपूर्ति कर सकता है और 2050 तक यूएस में 10 ट्रिलियन डॉलर का बाजार बन सकता है। कई देशों ने हाल ही में अपनी राष्ट्रीय हाइड्रोजन नीतियों को प्रकाशित किया है, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, चिली, जर्मनी, यूरोपीय संघ, जापान, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, स्पेन और दक्षिण कोरिया शामिल हैं। एक स्टडी के अनुसार, ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में निवेश 2023 तक सालाना 1 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। भारत सरकार भी मिशन ग्रीन हाइड्रोजन के विकल्प पर कार्य कर रही है। नितिन गडकरी का दावा है कि वह जल्द ही दिल्ली में हाइड्रोजन संचालित कार चलाकर दिखाएंगे। उन्होंने एक कॉन्फ्रेंस में कहा भी ‛“मेरे पास ग्रीन हाइड्रोजन पर बसें, ट्रक और कार चलाने की योजना है, जो शहरों में सीवेज के पानी और ठोस कचरे का उपयोग करके उत्पादित की जाएंगी।” दरअसल पहले पेट्रोल डीजल गाड़ियों के पर्यावरण नुकसान को देखते हुये इलेक्ट्रिक व्हीकल की योजना आई है लेकिन यह भी सौ फीसदी पर्यावरण मित्र नहीं है। लिथियम आयन बैटरी की माइनिंग स्वयं में एक प्रदूषक प्रक्रिया है। एक बार लिथियम भूमि की सतह से प्राप्त कर लिया जाए तो उससे बैटरी बनाने में अत्यधिक ऊर्जा व्यय होती है। यहां पहली समस्या बैटरी की रीसाइक्लिंग की भी है। यदि सभी गाड़ियों को पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल में बदला दिया जाए तो इतनी बड़ी संख्या में बैटरी का उत्पादन और इसके रीसायकल की व्यवस्था भी चुनौतीपूर्ण है और अभी इसका कोई ठोस जबाब नहीं है। दूसरी समस्या आयेगी इन तमाम इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के लिए पर्याप्त बिजली आपूर्ति कैसे होगी । यदि इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों ने परंपरागत गाड़ियों को पूरी तरह स्थानांतरित कर दिया तो उनकी संख्या के अनुरूप चार्जिंग का आधारभूत ढांचा और उसी अनुपात में बिजली उत्पादन भी बढ़ाना पड़ेगा, जो कि एक कठिन चुनौती है। यह स्थिति केवल भारत के साथ नहीं है बल्कि अधिकांश विकासशील देशों में इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के प्रयोग के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं है। भारत में अधिकांश बिजली का उत्पादन परंपरागत ऊर्जा संसाधनों के दोहन से होता है और ज्यादातर बिजली संयंत्र मुख्यतः कोयले का उपयोग करते हैं। यदि इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों की बिक्री बढ़ेगी तो भारत को बिजली उत्पादन भी बढ़ाना पड़ेगा। ऐसे में, यदि कोयले का दोहन बढ़ता है तो पर्यावरण उतना ही प्रदूषित होगा, जितना अभी पेट्रोल संचालित गाड़ियों के कारण हो रहा है। ईवी बैटरी बनाने के लिए दुर्लभ धातुओं की सीमित आपूर्ति को देखते हुए, हाइड्रोजन जल्द ही शून्य उत्सर्जन परिवहन देने में एक अनिवार्य भूमिका निभाएगा। भारतीय रेलवे भी डीजल संचालित इंजन को हाइड्रोजन संचालित इंजन में परिवर्तित करने की योजना पर कार्य कर रही है। भारत की कार निर्माता कंपनियां भी अब ग्रीन एनर्जी लक्ष्य के लिए सरकार के साथ कदमताल को तैयार हैं। भारत में जिस प्रकार एथेनॉल और हाइड्रोजन फ्यूल इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्रांतिकारी सिद्ध हो सकता है। यदि भारतीय अर्थव्यवस्था हाइड्रोजन ईंधन का प्रयोग करने में विश्व की प्रथम अर्थव्यवस्था बन जाती है, तो हम पेट्रोल पर से अपनी निर्भरता पूरी तरह समाप्त कर सकेंगे और चालू खाते का घाटा, डॉलर बैंक बैलेंस के साथ पर्यावरण और स्वास्थ्य भी सही रख सकेंगे । इतना ही नहीं बल्कि भारत अपनी हाइड्रोजन ईंधन बनाने की तकनीक का निर्यात भी कर सकता है।

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