विश्व जनक्रांति का बीज बो सकता क्रिप्टोकरेंसी

विश्व जनक्रांति का बीज हो कैसे हो सकता है क्रिप्टोकरेंसी इसको समझने के लिये हमें मुद्रा के जन्म को समझना पड़ेगा। मुद्रा का जन्म मानव जीवन का एक बड़ा आविष्कार है जिसने मानव जीवन को व्यवस्थित करने का कार्य किया और किसी भी राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक प्रशासन का मेरुदंड बना है। पृथ्वी पर हमने मानव बस्तियां बसाईं और उनके बीच हमने कुछ रेखायें खींच ली । ये रेखायें हमारी घर की चहारदीवारियां बन गईं और बड़ी रेखायें देशों की सीमायें। कालांतर में जब मानवीय सभ्यता विकसित हो रही थी तो इस ग्रह के बुद्धिमान प्राणियों ने विनिमय व्यवस्था की शुरुआत की । सिंधु घाटी की सभ्यता एवं अन्य सभ्यतावों के अध्ययन से पता चलता है की तत्कालीन दौर में वस्तु विनिमय ज़ोरों पर था। जैसे जैसे मानवों की बसावट बढ़ने लगी, ग्राम राज्य बने, गांवों की संख्या बढ़ने लगी तो राज्य बने और सत्ता या राज्य प्रतिष्ठान का जन्म हुआ। इस राज्य प्रतिष्ठान की प्रमुख जिम्मेदारियों में नागरिक प्रशासन एवं सुविधा के साथ व्यापार एवं लेन देन के नियमन की प्रक्रिया चालू हुआ और यहीं पर वस्तु विनिमय की जगह सत्ता या राज्य प्रतिष्ठान द्वारा मान्यता प्राप्त धातु की एक भौतिक मुद्रा का चलन प्रारम्भ हुआ और शनैः शनैः विनिमय का मानकीकरण मुद्रा के रूप मे होता गया और राज्यों का नियंत्रण मुद्रा के माध्यम से नागरिकों के उपर बढ़ता चला गया और इस प्रकार मुद्रा का जन्म हुआ । दरअसल मुद्रा किसी भी देश के सत्ता द्वारा अपना नियंत्रण स्थापित करने का सबसे कारगर अस्त्र है। वस्तु विनिमय या जिसे बार्टर एक्सचेंज कह सकते हैं में जहां विनिमय हो रही मुद्रा का मानकीकरण नहीं था और विनिमय हो रही वस्तुओं के मूल्यों का निर्धारण विनिमय कर रहे दो व्यक्तियों के खुद के जरूरत और निर्धारण पर निर्भर करता था और राज्य सत्ता का हस्तक्षेप “कर भार” को छोड़ दें तो नगण्य था इस कमी को मुद्रा के जन्म ने दूर किया । जब मुद्रा का जन्म हुआ तो राज्य को इन सौदों को, कर को, राज्य के नागरिकों को और विभिन्न राज्यों के बीच अपने आपको मजबूत करने का एक साधन मिल गया, और इसे विदेश व्यापार में भी प्रयोग किया जाने लगा। आज मुद्रा को लेकर दिमाग में बहुत सारे विचार आते रहते हैं। इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? पूरी दुनिया की एक ही करेंसी क्यूं नहीं? क्यूं अलग अलग देश की अलग करेंसीयां हैं? अगर पूरी दुनिया में एक ही करेंसी हो जाये तो आदि आदि। शुरु में तो आइडिया बहुत अच्छा लगा, लेकिन जैसे जैसे और तह में गया तो वर्तमान दुनिया के हिसाब से अप्रासंगिक लगा। हो सकता है भविष्य के किसी पड़ाव पर दुनिया में यह प्रासंगिक हो जाये लेकिन वर्तमान में यह संभव नहीं लगता क्योंकि लगभग सारे देश बॉर्डर नेशन थ्योरी पर आधारित हैं और अपने देश, सीमा रेखा और राष्ट्रवाद को लेकर काफी संवेदनशील हैं । कल्पित मान्य वैश्विक करेंसी के लिए, एक वैश्विक केन्द्रीय बैंक होना चाहिये जो संयुक्त राष्ट्र या ऐसे ही किसी संस्था के अंतर्गत होना चाहिये। उस वैश्विक केन्द्रीय बैंक के पास किसी देश या किन्ही देशों के समूह का प्रभाव नहीं होना चाहिये। मुद्रा छापने से पहले सभी देशों की सहमति होनी चाहिये। इसके अपने खतरे भी हैं मौजूदा विश्व के अनुसार एक देश दूसरे देश में वैश्विक करेंसी के माध्यम से आर्थिक घुसपैठ भी कर सकता है, मौद्रिक नीति संभव नहीं ही सकेगा और ऐसा वैश्विक सर्व समावेशी मौद्रिक नीति बनाना संभव नहीं है क्यूं की दुनिया के देशों के अपने अपने राष्ट्रवाद हैं जहां राष्ट्र प्रथम की नीति है। हमारे यहां पृथ्वी की आयु कई हजार साल पुरानी है और यहां कई देश बन चुके हैं, उनके बीच सीमा रेखायें खिंच चुकी हैं और उनके बीच स्व की भावना आ गई है ऐसे में कोई भी अब वैश्विक एकल करेंसी को शायद ही समर्थन दे, भले ही अनौपचारिक रूप से आज किसी एक देश की मुद्रा सर्व मान्य हो लेकिन जरूरी नहीं वो आगे आने वाले सदी या समय में अपनी उस स्थिति को बरकरार रख सके । डॉलर की तरह मुद्रा की स्वीकार्यता वैश्विक करेंसी की अवस्था नहीं है यह एक समय विशेष पर उसकी स्वीकार्यता है जो आगे परिवर्तित भी हो सकती है, डालर की जगह कोई और करेंसी भी ले सकती है। मुद्रा की सबसे बड़ी विशेषता जो कि सत्ता या राज्य प्रतिष्ठान द्वारा मान्यता प्राप्त होने के शर्तों से भी ज्यादा जरूरी है वह है सौदों के रूप में इसकी जन स्वीकार्यता। अगर किसी मुद्रा में राज्य प्रतिष्ठान द्वारा मान्यता प्राप्त होने के बाद भी सौदों के लिए जन स्वीकार्यता नहीं है तो वह मुद्रा नहीं हो सकता है। और इसी सूत्र को पकड़ कर आगे बढ़ा है क्रिप्टो करेंसी। यह वह बीज है जो अकेले ही शनैः शनैः सत्ता की प्रासंगिकता को शून्य करता जायेगा। जहां सारी मुद्रायें सत्ता प्रतिष्ठान के खूंटे से बंधी हैं वही यह अति लोकतांत्रिक और क्रांतिकारी है जिसे दायरे में बांधा नही जा सकता। चूंकि सत्ता का स्थायित्व मुद्रा से ही सम्भव हुआ था और यदि यही अधिकार उससे छीन लिया जायेगा तो विश्व सत्तायें हिलने लगेंगी औऱ अंडर करेंट अरबियन स्प्रिंग की तरह एक वर्ल्ड स्प्रिंग आयेगा जिसके मूल में कारण होगा मुक्त मुद्रा के द्वारा स्थापित आर्थिक आजादी। इसीलिये दुनिया का सत्तायें चिंतित हैं और चीन भारत समेत इसके मंथन में लगे हैं कहीं आगे चल कर यह उनके राष्ट्र और उनकी सत्ता की प्रासंगिकता को ही ना समाप्त कर दे। हालाँकि इस सम्भावना को नकारा जा नहीं सकता, जैसे आधुनिक शासन व्यवस्था में लोकतंत्र समाजवाद साम्यवाद जैसे विचारधारा पनपे, हो सकता है क्रिप्टो वसुधैव कुटुंबकम या इसी तरह किसी नये ग्लोबल शासन व्यवस्था को जन्म दे, क्यों की यह तकनीक का परिणाम है जिसे अब सारी दुनिया स्वीकारने लगी है। चूंकि बार्टर एक्सचेंज पर रोक नहीं लग सकता इसलिये इस पर भी रोक नहीं लग सकता, एक सत्ता प्रतिष्ठान इसे स्वीकारने से नहीं रोक सकती, ज्यादे से ज्यादे अपने भौगोलिक शासन क्षेत्र में मुद्रा के रूप में रोक दे लेकिन बार्टर एक्सचेंज रूप में या बाकी दुनिया के प्लेटफॉर्म स्वीकार करने लगेंगे तो क्या करेगी वहां तो इसका वश नहीं चलेगा। इसीलिए आने वाले कुछ दशक इंतज़ार करिये तकनीक का प्रसार और विस्तार बॉर्डर नेशन थ्योरी में भी बड़ा बदलाव करने वाला है और जिसमें क्रिप्टो करेंसी एक मूल कारण होगा.

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