करों का नाम हो "राष्ट्र निर्माण आहुति कर"

दो साल पहले वित्त मंत्री ने ऐलान किया था की सरकार NUDGE सिद्धांत को स्वीकार कर वित्तीय नीतियां बनायेगी और उसका असर कम्पनी लॉ सहित अन्य जगह देखने को मिलने लगा जब कम्पनी फॉर्म करते ही आपको अब पैन टैन पीएफ पीटी पंजीयन मिल जाता है अलग से पंजीयन नहीं कराना पड़ता और बैंक आपके पीछे पड़ जाता है अकाउंट खोलने के लिये। कर संग्रह सरकार के प्राप्ति का मुख्य जरिया है और सर्वविदित सत्य है की अगर आप प्यार सम्मान और गरिमापूर्ण तरीके से कर संग्रह करेंगे तो सामने वाले को टैक्स देने में गर्व और संतोष की अनुभूति होगी जबकि वर्तमान में उसे दर्द होता है यदा कदा बार.
     
यह आर्टिकल एक गल्प में लिख रहा हूं लेकिन गल्प में भी यह एक गंभीर बात है. पिछले दिनों कुछ कॉर्पोरेट मित्रों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान रोचक और आश्चर्यजनक इनपुट मिले जो सरकार और व्यवस्था को जानना जरुरी है. एक मित्र ने बताया की यार इस कोरोना काल में भी मेरा 10 लाख इन्कम टैक्स कट गया, एक दोस्त ने बोला की यार मैं तो व्यापार करता हूं और मैं तो साल भर में खुद का 10 लाख आयकर देता हूं और कम से कम एक करोड़ का जीएसटी देता हूं, तीसरे दोस्त ने बोला हां यार मैं भी फैक्ट्री चलाता हूँ साल का करीब २० से २५ करोड़ मैं भी जीएसटी भरता हूं।  तीनों का दर्द एक ही था की हम तीनों मिल कर मेहनत कर रहें हैं, कमा रहें हैं और अपने इसी हाड़तोड़ मेहनत की कमाई से कोई १० लाख टैक्स दे रहा है, कोई एक करोड़ दे रहा है तो कोई २० करोड़ दे रहा है लेकिन जो गरिमापूर्ण सम्मान इतना कुछ देने के बाद भी देश की व्यवस्था, सरकारी कर्मचारी, टैक्स अधिकारी की तरफ से मिलना चाहिये वो उन्हें नहीं मिलता है. उनका कहना था की हम तीनों ने ही मिलकर करीब करीब २५ करोड़ टैक्स दिया है और उसी टैक्स से इस व्यवस्था को, सरकारी कर्मचारी और टैक्स अधिकारी सैलरी जाती है देश में सड़कें, पोर्ट,  इंफ़्रा का विकास होता है लेकिन इसका अहसास हमको नहीं हो पाता है, इसका सम्मान और गरिमा ना हमें अहसास होता है खुद से, और ना सामने वाला भी हमें इस नजरिये से देखता है, कोई भी हाथ दे गाडी रोक देता है, कोई नहीं यह सोचता की राष्ट्र निर्माण के वास्तविक अंशदाता हमीं हैं, किसानों के बाद पोषण और विकास के लिए योगदान हम ही देते हैं.

कहने को तो उपरोक्त कही गईं बातें एक गल्प हैं और तीन दोस्तों की औपचारिक मजाक मजाक में कही गई बात है लेकिन यह अपने आप में एक बड़ी गंभीर बात है, कि  इतना मौद्रिक योगदान राष्ट्र निर्माण में देने के बाद भी चौराहे पर खड़ा ट्रैफिक पुलिस वाला , पुलिस में जाने पर पुलिस वाले, टैक्स विभाग के अधिकार वह न्यूनतम आवश्यक आदर और कृतज्ञता व्यक्त नहीं करते जो उन्हें मिलना चाहिये, इस टैक्स भरने के बाद भी उनके पास ऐसा कोई प्रमाण वह साथ लेकर नहीं चलते की देखो राष्ट्र निर्माण में मैंने इतना योगदान दिया है कुछ तो गरिमापूर्ण सम्मान और बातचीत का अधिकार दो, कुछ तो कहीं वरीयता दो. मेरा मानना है की एक व्यक्ति संस्था पूरे वर्ष में सब तरह के टैक्स चाहे जीएसटी हो या आयकर हो या स्टाम्प हो या अन्य कर हो को मिला कर एक डाटा बनाना चाहिये तथा इस सम्मिलित राशि का एक सर्टिफिकेट उन्हें प्रदान करना चाहिये जिसे हम राष्ट्र निर्माण आहुति प्रमाण पत्र का नाम दे सकते हैं ताकि उन्हें यह महसूस हो की इस राष्ट्र निर्माण यज्ञ के महा आयोजन में उनकी भी आहुति है, सब कुछ तो होता ही है बस इसे चिन्हित और रेखांकित करना है और मेरा ऐसा मानना है की सिर्फ ऐसा कर देने से देश में ना वरन राष्ट्रवाद की भावना मजबूत होगी, इससे राष्ट्रीय एकता और कर संग्रह दोनों बढ़ेगा. यह नज सिद्धांत का बेहतरीन अनुप्रयोग हो सकता है की कैसे सिर्फ एक रेखांकन से राष्ट्र चरित्र में सकारात्मक बदलाव कैसे लाया जा सकता है और इस प्रमाण पत्र के साथ कुछ श्रेणी बना वरीयता वाले लाभ भी उन्हें देने चाहिए जैसे कहीं आपको लाइन नहीं लगानी पड़ेगी जैसे कुछ श्रेणीवार विशेषाधिकार   .        

पिछले साल माननीय प्रधानमंत्री ने "पारदर्शी कराधान - ईमानदार का सम्मान" व्यवस्था लागू किया था और एक नया टैक्स चार्टर भी जारी किया था जिसमें करदाताओं के गरिमा को ध्यान में रखते हुए कर तंत्र के कार्यप्रणाली में बड़े बदलाव किये थे. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने भी वर्ष २०१६ में एक योजना चालू किया था जिसमें नियमित और ईमानदार करदाताओं को सम्मान पत्र देने की बात की थी जिसमें से कुछ चुनिंदा प्रमाणपत्र भौतिक रूप से भी दिये  जाने थे, ये अच्छी शुरुवात थी, कुछ  नहीं होने की जगह कुछ शुरू होने का हमेशा ही स्वागत होना चाहिए. मेरा मानना है की इसमें ही थोड़ा सा सुधार कर कर संग्रह को बढ़ा सकते हैं. पहला या प्रमाण पत्र सिर्फ आयकर दाताओं को ही ना दिया जाय, एक व्यक्ति या संस्था द्वारा भुगतान किये गए समस्त करों को मिला कर दिया जाय तथा दूसरा की नियमित और ईमानदार की एक अलग श्रेणी ना बनाई जाये, कर का वास्तविक भुगतान का ही प्रमाण पत्र जब देना है और अगले ने भुगतान किया ही है तो श्रेणी की जरुरत नहीं है, यह श्रेणीकरण दो वर्गों का निर्माण कर रहा है एक नियमित और ईमानदार तथा स्वतः ही एक वर्ग निर्मित हो जा रहा है जो इस श्रेणी में नहीं है मतलब अनियमित और जो ईमानदार नहीं, इसकी जगह जिसने भी भुगतान किया है शत प्रतिशत लोगों के भुगतान को ईमानदार भुगतान मान उन्हें यह मानपत्र दिया जाये, यह एक मामूली कदम है लेकिन राष्ट्र चरित्र और व्यवहार को बदलने का माद्दा रखता है यह कदम.  
 
इस प्रमाण पत्र के साथ सरकार एक पहल की और शुरुवात कर सकती है, जब करदाता टैक्स का चालान भरता है तो वहां सिर्फ जीएसटी की जगह राष्ट्र निर्माण जीएसटी टैक्स, आयकर की जगह राष्ट्र निर्माण आयकर लिख दिया जाय तो भुगतान के समय भी उसे गर्व और संतोष की अनुभूति होगी. इन छोटे छोटे क़दमों से हम करदाताओं का सम्मान तो करेंगे ही उन सरकारी तंत्र के सोच में भी बदलाव लायेंगे जो आम जनता के साथ वह आदर और गरिमा पूर्ण व्यवहार नहीं रखते जो उन्हें मिलना चाहिए. यह लेख गल्प और अनौपचारिक बातचीत पर आधारित है लेकिन  यह अनौपचारिक बातचीत में भी आम आदमी का दर्द छुपा है , अगर भौतिक रूप से नहीं तो कम से कम शब्दों से हो हौसला बढ़ाया जाय, बड़े बड़े जंग और चुनाव तो शब्दों से गढ़े नारों और भाषणों से ही जीते जाते हैं, तो राष्ट्र निर्माण का जंग भी इस शब्द परिवर्तन से जीत लेंगे.   

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