Privatization Vs Monetization


भारत सरकार ने नेशनल मॉनेटाईजेशन पाइप लाइन योजना का लांच किया है और इसके लांच होते ही चारो ओर इस पर बहस होने लगी. इन बहसों के बीच भारत की एक बड़ी आबादी है जो इन भारी भरकम शब्दों को समझ नहीं पाती है और वह वही समझती है जो मीडिया में सुनाई देता है या पक्ष विपक्ष के नेता बोलते हैं जिस कारण भ्रम की स्थिति बनी रहती है. इसी भ्रम के कारण ही बहुतों ने मीडिया में बयानों से यही समझा की सरकार ने बेच दिया, किसी ने समझा की निजीकरण हो गया और कई लोग भी तरह तरह से समझते रहे, जबकि सच्चाई है की निजीकरण बेचना या एसेट मॉनेटाईजेशन एकदम से अलग अलग चीजें हैं इन्हे एक नहीं माना जा सकता है. नेशनल मॉनेटाईजेशन पाइप लाइन योजना निजीकरण की योजना नहीं है यह निजीकरण के विकल्प में लाई गई योजना है जिसके तहत संपत्ति का मालिकाना हक़ सरकार के पास ही रहना है मालिकाना हक़ में कोई साझेदार नहीं बनने जा रहा.

 

निजीकरण सदैव बहस का विषय रहा है और गुण दोष के आधार पर इसके पक्ष और विपक्ष में बातें होती रही हैं, मेरा भी मानना है की दशकों के प्रयास से जो हमने सम्पत्ति अर्जित की है यदि उसमें लाभ दिख रहा है तो ही निजी क्षेत्र उसे लेगा और उसकी कार्यसंस्कृति, कार्य क्षमता और नेतृत्व क्षमता बदल कर वह उसे लाभप्रद बनायेगा, और जब वह काम वह कर सकता है तो सरकार एक नया अप्रोच ला वह काम कर सकती है. हर काम आईएएस से कराने की बजाय सार्वजानिक उपक्रमों के प्रबंधन निजी क्षेत्रों के प्रबंधन एक्सपर्ट को दिया जाय, मानव पूंजी पर काम किया जाय तो संपत्ति भी सरकार के पास होगी, लाभ सरकार का भी होगा जनता का भी होगा.

 

निजीकरण की इसी कमियों का आंशिक जबाब है यह नेशनल मॉनेटाईजेशन इसमें संपत्ति का हस्तांतरण निजी हाथों में नहीं होता, यह सम्पत्तियों के क्षरण को रोकने, उनका सरंक्षण करने, उनमें उन्नति करने, उनसे आय कमाने और देश के कैपेक्स के लिये टैक्स बढ़ा कर ब्याज वाला बांड लेकर पैसा लेने की बजाय इस संपत्ति से भविष्य में होने वाले आय को आज की वैल्यू में ही अग्रिम प्राप्त कर नये और निरंतर इंफ़्रा प्रोजेक्ट के लिये पैसा जुटाने की एक योजना है.

 

एक उदाहरण के तौर पर अपने स्तर पर इसे समझिये, आप डॉ हैं और आपने एक होटल भी खोल लिया है. अब होटल भी आपका पूरा समय मांग रहा है और आपका चिकित्स्कीय पेशा भी आपका समय मांग रहा है. आपका मूल काम चिकित्सा करना है, लेकिन होटल की छोटी बड़ी बातों से आपका फोकस ना तो अपने पेशे पर लग पा रहा है और ना ही आप इतना बढ़िया होटल  चला पा रहें हैं. ऐसे में आप क्या करते हैं, आप किसी ऐसे को ढूंढते हैं जो बढ़िया होटल चलाने वाला हो, आप अपनी होटल वाली संपत्ति अपने पास  ही रख अपने अनुबंध के आधार पर चलाने को देते हैं. इसमें संपत्ति अपने मूल मालिक के पास ही है, संपत्ति मने होटल अब चलने लगा तो उसका क्षरण रूक गया, उसका सरंक्षण भी हो गया, संपत्ति मालिक को भी आय हो रहा है और होटल चलाने वाले को भी लाभ हो रहा है. ज्यादातर होटल देश और विदेश में इसी आधार पर चल रहें हैं, एक्सपर्ट का काम एक्सपर्ट को देने से हर तरफ विन विन स्थिति रहती है और पैसा अग्रिम में ही मिल जाने पर उसे बिना बेचे ही अगले संपत्ति विस्तार के लिये वित्त की व्यवस्था हो जाती है.दूसरा उदाहरण व्यक्तिगत स्तर पर इसे ऐसे समझें की यदि आपके पास कोई संपत्ति है जिसे आप किराये पर दे आय कमा सकते हैं और यही यदि यही आप जो आपका किरायेदार कई साल में देने  वाला है उससे शूरू में ही जोड़ के लें ले तो आप नई संपत्ति लेने के अलावा भी कई बड़े और रुके हुये काम कर सकते हैं.

 

अब दुनिया के स्तर पर एसेट मॉनेटाईजेशन कैसे काम करता है इसे समझते हैं. एसेट मॉनेटाईजेशन एक पुराना और मान्य सिद्धांत है दुनिया भर में जिसमें सरकारें, पब्लिक और प्राइवेट क्षेत्र अपने एसेट को मोनेटाइज कर पैसे की व्यवस्था करते हैं. उदाहरण के तौर पर कोई सरकार किसी हाई वे का निर्माण करती है और उसकी उम्र 25 साल होती है. अब हाई वे रख रखाव के लिये उसे टोल कलेक्ट करना है और उसने उसके लिये किसी को दिया है, उसके अनुमान से वह टोल वाला प्रति वर्ष 10 करोड़ का टोल देगा और बढे दर के हिसाब से वह पूरे २५ साल के दौरान ४०० करोड़ का टोल देगा. अब सरकार को यह ४०० करोड़ का टोल कलेक्शन एक साल में नहीं मिलेगा उसे २५ साल आगे आने वाले साल में धीरे धीरे मिलेगा. ऐसे में सरकारें क्या करती हैं वह किसी ऐसे फंड के पास जाती हैं जो यह टोल संग्रह का २५ साल अधिकार है उसे ले वह जो ४०० करोड़ आगे आने वाला है वह आज मिलता तो क्या वैल्यू रहती उसका नेट प्रेजेंट वैल्यू क्या रहती के बराबर का पैसा उस फंड से ले लेती है और टोल संग्रह का अधिकार उसे दे देती है, ध्यान रखिये उसने हाई वे नहीं बेचा है उसने उसे एक निश्चित अवधि के लिये जो आय साल दर साल आती उसे इकठ्ठा ले साल दर साल लेने के लिए उसे दे दिया है, और अब इस इकठ्ठा आय से पुनः नये इंफ़्रा में लगाएगी. इसीलिए दुनियाभर में एसेट मॉनेटाईजेशन पैसा पहले खाली करने का एक अच्छा माध्यम माना जाता है बिना संपत्ति बेचे क्यों की इंफ़्रा प्रोजेक्ट की उम्र २५ से ५० साल होती है, उससे आय की दर भी दीर्घ अवधि की होती है और धीरे धीरे मिलती है इसलिये अग्रिम पैसा ले लेना एक अच्छा विकल्प माना जाता है।  ऐसा नहीं है यह मॉडल केवल सरकारें करती है निजी क्षेत्र भी करते हैं, लीज रेंटल डिस्कॉउंटिंग इसका एक बहुत ही प्रचलित स्वरुप है बैंकिंग और निजी क्षेत्र में लोगों के लिये जो अक्सर लोग प्रयोग करते हैं.

 

पिछले बजट में सरकार ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) घोषित किया था जिसके तहत लॉन्ग टर्म रणनीति के तहत १०० लाख करोड़ के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट आने थे और इसके फंडिंग के लिए डीएफआई ( डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीटूशन )  की घोषणा की थी उसी योजना का अगला पड़ाव है यह नेशनल मॉनेटाईजेशन पाइप लाइन (एनएमपी ) योजना. इसके पहले सरकार बिल्ट ऑपरेट एवं अंत में ट्रांसफर मॉडल (बीओटी) पर काम करती थीं जबकि इस मॉडल में सरकार कोर सम्पत्तियाँ जो ब्राउन फिल्ड सम्पत्तियों के रूप में चिन्हित हैं मतलब जिस पर खर्चा और फोकस दोनों लगना है उनका मॉनेटाईजेशन मोटा मोटी दो अवधारणा के आधार पर  पहला ऑपरेट मेन्टेन एवं अंत में ट्रांसफर (ओएमटी ) तथा दूसरा ऑपरेट मेन्टेन डेवेलप  एवं अंत में ट्रांसफर (ओएमडीटी)  अवधारणा के आधार पर होगा और यह लॉन्ग टर्म लीज, पीपीपी कन्सेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट जैसे अन्य कारकों के आधार पर होगा जिससे आम आदमी भी इसमें भागिदार हो सकता है एक निवेशक के रूप में  ।            


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