रिवर्स आइसोलेशन से बचायें देश

शुक्र है की कोरोना का ग्राफ गिर रहा है अन्यथा जब कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई थी और शुरू में संक्रमण का ग्राफ काफी तेजी से ऊपर जा रहा था तब एक चर्चा आम थी की लगता है अब संक्रमितों के आइसोलेशन की जगह घर में उस व्यक्ति को आइसोलेट कर बचाना पड़ेगा जिसे कोरोना नहीं हुआ है. यह कहने को कहावत है लेकिन जबसे तीसरी लहर की आशंका और वैज्ञानिकों द्वारा लम्बी लड़ाई के संकेत मिल रहे हैं ऐसे में इस कहावत को घर के लिए तो जरुरत नहीं पड़ेगी लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए हकीकत में बदलना पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकी किसी भी लम्बी लड़ाई को लड़ने के लिए वित्तीय  रूप से मजबूत होना जरुरी है ताकि रसद और दवाई में हम हमेशा आत्मनिर्भर रहें, भारत को यदि कोरोना से लड़ना है तो अपनी इकनोमिक प्लानिंग में भी दूरगामी सोच लानी पड़ेगी, और इसमें जो सबसे कारगर विचार है वह यही कहावत है जिसे हम रिवर्स आइसोलेशन कह सकते हैं.

अभी पिछले हफ्ते प्रेस कांफ्रेंस कर देश के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया की देश के 180 जिलों में बीते सात दिनों कोविड-19 का एक भी नया कोरोना का मामला सामने नहीं आया, बीते 21 दिन में 54 जिलों में कोई नया कोरोना केस नहीं आया है  जबकि बीते दो हफ़्तों में 18 जिले किसी भी संक्रमण से मुक्त हैं. यह जो आंकड़ा है सिर्फ हेल्थ प्लानिंग के लिए नहीं इकनोमिक प्लानिंग के लिए भी एक आंकड़ा है. इस समय हम देश को दो हिस्सों में बाँट सकते हैं एक हिस्सा जहाँ पर कोरोना संक्रमण है और दूसरा हिस्सा जहाँ कोरोना संक्रमण नहीं है, इस लिहाज से इन जिलों के आंकड़ों को दो हिस्सों में रख सकते हैं पहला देश के उतने जिले जो संक्रमण से मुक्त हैं और वो जिले जो संक्रमण से युक्त हैं. फिर इसे थोडा और नीचे के स्तर में विभाजित करना चाहिए की देश के वो थाने जो संक्रमण से मुक्त है और वो थाने जो संक्रमण से युक्त है. और इसके बाद शुरू होना चाहिए इन संक्रमण मुक्त थानों को बाकी संक्रमित थानों से आइसोलेट करने का. इस तरह से इन संक्रमण मुक्त थानों के लोग यदि अपने आपको बाकी थानों से आइसोलेट कर लेते हैं, जिन्हें हम रिवर्स आइसोलेशन कहते हैं तो ना केवल इनका जीवन मात्र कोरोना उपयुक्त व्यवहार पालन करने से ही सामान्य रहेगा बल्कि यहां इन जिलों की आर्थिक गतिविधियाँ भी सामान्य रहेंगी जैसी प्रायः रहा करती थी. सरकार इन थानों में  या जिलों में कार्य करने वाली उद्योगों एवं सेवा प्रदाताओं से उत्पादन दुगुना करने को कह उन जिलों की कमी को पूरा कर सकती है जहाँ उत्पादन कोरोना के कारण कम हो रहा है. इस तरह से सरकार की पहली आर्थिक प्राथमिकता में होगा की इन जिलों या थानों में संक्रमण अब  दुबारा न फैले और इन्हें पूरी तरह से रिवर्स आइसोलेट करते हुए इनके आर्थिक गतिविधियों और स्वास्थ्य को सरंक्षित करे और यहीं से जितना संभव हो देश की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करे.

रिवर्स आइसोलेशन के फ़ॉर्मूले को आप ऐसे समझ सकते हैं की जब आपके घर में आग लग गई है तो पहले आप क्या करते हैं , पहले आप उन सामानों को बचाने की कोशिश कर सकते हैं जो बच सकते हैं, उसके बाद आप उन हिस्सों में जाते हैं जहाँ आग लगी है वहां आग बुझाने का काम करते हैं. ठीक यही एप्रोच सरकार को कोरोना में आर्थिक हालात बचाने के लिए करना पड़ेगा. कोरोना ने लोगों के शरीर में ही आग नहीं लगाई  है इसने इकॉनमी के हालात में भी आग लगा दी है अब हमें उन हिस्सों की तरफ पहले से ध्यान देना है जिसे हम सबसे पहले बचा सकते हैं, नहीं तो सर्वस्व जल जाने के बाद रिकवरी और दुबारा खड़ा करने में बड़ी परेशानी हो सकती है . इसलिए रिवर्स आइसोलेशन का यह फार्मूला लागू करने के बाद सरकार को अब उन जिलों पर ध्यान केन्द्रित कर योजना बनाने का पर्याप्त आधार मिलेगा जहाँ कोरोना केस हैं. इन्हें भी वह कुछ श्रेणियों में बाँट धीरे धीरे संक्रमण मुक्त थानों और जिलों में परिवर्तित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन और आर्थिक गतिविधियों में संतुलन स्थापित किया जा सके और सरकार को टीकाकरण शत प्रतिशत करने के लिए समय मिल सके.

भौगोलिक रिवर्स आइसोलेशन के इस वर्गीकरण के बाद सरकार को कार्यों का वर्गीकरण करना चाहिए, उद्यमों के ऐसे कार्य जो घर पर रहकर किये जा सकते हैं जैसे एकाउंटिंग का काम, डाटा आधारित काम, आईटी, बीपीओ या बैक ऑफिस का कोई भी काम उनके लिए आवश्यक वर्क फ्रॉम होम कर देना चाहिए तथा जहां वर्क फ्रॉम होम बिलकुल संभव ही नहीं है वहां कार्य करने का परमिशन देना चाहिए वह भी कोरोना उपयुक्त व्यवहार के पालन की शर्त पर. इससे कोरोना संक्रमित जिलों और थानों में भी आर्थिक गतिविधिया शूरू की जा सकती है.

तीसरा जो भारत के पास सबसे बड़ी ताकत है उसके एग्रो इकॉनमी का, सिर्फ शहरों में ही माइक्रो मैनेजमेंट द्वारा आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान ना दें, इस कोरोना काल में यह एग्रो इकॉनमी ही है जो भारत को शेष विश्व से अलग करती है, यदि हम पूरी दुनिया से दशकों तक आइसोलेट हो जाएँ तो भी हम अपने एग्रो इकॉनमी के कारण दशकों तक अपने पैरों पर खड़े रह सकते हैं. इसलिए सरकार को रिवर्स आइसोलेशन के फ़ॉर्मूले के आधार पर अपने एग्रो सेक्टर को भी संरक्षित रखना पड़ेगा.   

सरकार के पास ऐसा नहीं है सिर्फ अर्थशास्त्र की चुनौतियाँ है सरकार के पास समाजशास्त्र की भी चुनौतियाँ है. आने वाले बीस साल भारत के समाज विज्ञान में बड़ा बदलाव लाने वाला है. देश में एक बड़ी संख्या में लोग मनोवैज्ञानिक तौर पर आइसोलेट हो गए हैं उन्हें रिवर्स आइसोलेशन के द्वारा मुख्य धारा में लाना है, मतलब उन्हें और आइसोलेट नहीं करना है. एक बड़ी संख्या में देश में बच्चों के अनाथ, या उनके यहाँ कमाने वाले शख्स की मृत्यु होने या  और महिलाओं के विधवा होने के बाद एक सोशल ट्रामा फैलने का अंदेशा है जिस पर सरकारों को तुरंत ध्यान देने की जरुरत है. ऐसे बच्चो के शिक्षा से लगायत पोषण तक एक चिंतन और नीति की जरुरत है नहीं तो इनके भटकाव और लालन पालन की समस्या बड़ी समस्या हो सकती है. सरकार को ऐसे समस्या से निजत पाने के लिए कोरोना पुनर्वास नाम का  एक मंत्रालय या टास्क फ़ोर्स का गठन करना चाहिए क्यों की इस सोशल मेंटल ट्रामा का प्रभाव काफी बड़ा बड़ा और दूरगामी होगा. महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने की योजना लानी पड़ेगी क्यों की देश की एक बड़ी संख्या महिलाओं की अब तक पति के बिजनेस में हाथ नहीं बंटाती थी और घरेलू महिला थी अचानक से उनके ऊपर आई इस चुनौती के लिए वह तैयार भी नहीं थी.

और अंत में हो सकता है जब दुनिया इस कोरोना वायरस से उबरे उस वक़्त हमें बिलकुल नई कार्य संस्कृति और नए आर्थिक समीकरण देखने को मिलें. कॉर्पोरेट के कार्य करने का तरीका बदल गया हो, वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति में बूस्ट आ जाए और हेल्थ पहले और वेल्थ बाद में की अवधारणा प्रचलित हो. विश्वस्तर पर चीन से निर्भरता कम हो और विश्वबाजार में चीन का दबदबा कम हो, इस अवधि में कई देश अपने लिए वैकल्पिक बाजार और सप्लाई चेन विकसित कर चुके हों, युद्ध के बाजार और संयुक्त राष्ट्र में बायो वेपन पर एक विश्वव्यापी बहस हो और कोरोना वायरस के जन्म की असली कहानी पता चल सके फिलहाल तो पूरी दुनिया अभी अपने अपने घर की जान माल बचाने में लगी है और जिस तरह से भारत सरकार और राज्य सरकारें इसे लेकर गंभीर है लगता है इसे जीतने में हम जल्द सफल होंगे.

 

 

   

 


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