अब चाहिए “अनिवार्य इलाज बीमा” सुरक्षा

जिस तरह चारों ओर कोरोना से लोगों के बीमार होने, जान जाने और उनके मेडिकल खर्चों की खबर आ रही है वह काफी अंदर तक हिला देने वाला है. इस महामारी की पीड़ा उसे तो हो ही रहा है जो इसका शिकार हो रहा है यह पीड़ा उनके परिजनों को भी ज्यादा है . कोरोना काल में में किसी की नौकरी छूट गई है तो कोई आधे वेतन पर काम कर रहा है तो स्वरोजगार वालों के बिक्री और आय में बड़ी गिरावट है. इस समय देश के सरकारी हेल्थ इन्फ्रा के साथ साथ निजी इन्फ्रा भी पूरी तरह से लोडेड हैं लाजमी है लोगों के खूब रुपये खर्च हो रहें हैं. अभी गोरखपुर की एक खबर थी एक दम्पति के एक सप्ताह में 17 लाख खर्च हो गए फिर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. इस समय आयुष्मान बीमा के साथ बैंकों द्वारा दी जा रही दुर्घटना बीमा की चर्चा आवश्यक हो जाती है क्यों की आयुष्मान की जानकारी कई लोगों को है और लोग इसका लाभ उठा लेते हैं लेकिन बैंकों द्वारा दी जाने वाली दुर्घटना बीमा जो लगभग हर एटीएम कार्ड के साथ मिलती है इसके बारे में ज्यादातर लोग अनभिज्ञ ही रहते हैं और इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं जबकि उनके बैंक खाते से इसका प्रीमियम उनके द्वारा ही भरा जाता है. बैंकों द्वारा दी जारी दुर्घटना बीमा के परिभाषा में कोरोना से मृत्यु को भी शामिल करना चाहिए क्यों की कोरोना की ज्यादातर मृत्यु सिस्टम के कारण है बीमारी के कारण कम, ऑक्सीजन ना मिलने, मेडिकल सुविधा नहीं मिलने, बेड नहीं मिलने के कारण होती है अतः यह बीमारी से नहीं दुर्घटना से मौत माना जाना चाहिए. यदि सरकार सिर्फ इन मृत्यु को या कोरोना की बीमारी को दुर्घटना घोषित कर दे तो जो वर्षों से बैंक ग्राहकों के खाते से बीमा के नाम पर या अन्य चार्ज के नाम पर शुल्क लेती है वह सार्थक सिद्ध हो जायेगा. साथ ही आयुष्मान बीमा या कोई निजी मेडीक्लेम के लिए हॉस्पिटल किस स्तर का हो इसकी अनिवार्यता खत्म होनी चाहिए और इलाज के सारे खर्च किसी भी हॉस्पिटल में या होम आइसोलेशन में सारे खर्च सीमा नियमों के तहत प्राप्त होने चाहिए. क्यों की हॉस्पिटल चुनने का विकल्प अब नागरिकों के लिए ख़त्म हो चूका है उन्हें गली मोहल्ले किसी भी हॉस्पिटल या क्लिनिक तक में जगह मिल जा रही है तो अपने आपको धन्य मान रहें हैं. अनिवार्य कर बीमा भी एक उदाहरण है जिसकी मांग मै खुद व्यक्तिगत स्तर पर करीब दस वर्षों से कर रहा हूँ और इसके लिए पत्र प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी और प्रधानमंत्री मोदी जी को भी लिखा है लेकिन इसके बारे में अभी भी कदम उठाया जाना बाकी है. दरअसल अनिवार्य कर बीमा हो या कार्ड के माध्यम से दी जाने वाली बीमा यह “आग्रह नहीं नागरिकों के अधिकार” की विषय वस्तु है. आज कोरोना काल में जब मेडिकल इन्फ्रा से ले खुद का मेडिकल की जिम्मेदारी आत्मनिर्भर नागरिकों पर आ गई है तो जरुरी हो जाता है की हम तुलना करें की सरकार हमसे क्या ले रही है और सरकार हमे दे क्या रही है। हकों की बाते करें तो हमारी ये लिस्ट तो बहुत लंबी है लेकिन इस कोरोना काल में मै “बीमा सुरक्षा” की ही बात करूंगा और इसे आप दूसरे अर्थों मे जीवन एवं स्वास्थ्य सुरक्षा के रूप मे सामाजिक सुरक्षा का आवरण कह लीजिये जिसे सरकार को ही देना चाहिए। मैं ये भी बिलकुल नहीं कह रहा हूँ की सरकार इसे अपने जेब से दे । सरकार और बैंक हमे हमारे ही पैसे से बीमा तो कर ही रहें हैं अब इसे टैक्स से भी जोड़ दें तो सामाजिक सुरक्षा का केर और बड़ा हो जायेगा. हमे और आपको मालूम ही है की देश मे बीमा कंपनियाँ हैं, जो एक निश्चित प्रीमियम के भुगतान पर जीवन, स्वास्थय, शिक्षा और दुर्घटना बीमा करती हैं और इसमे से किसी तरह का संकट आने पे जोखिम का निवारण करती हैं। सरकार ने जितनी तत्परता बीमा कंपनियों मे विदेशी निवेश के लिए दिखाई उतनी तत्परता अगर उसने सरकारी कर ढांचे को अनिवार्य बीमा से जोड़ के दिखाती तो ज्यादा अच्छा था। हम सभी को मालूम है की चाहे जीएसटी हो या आयकर हो किसी न किसी रूप मे सरकार को हम करों का भुगतान करते हैं, बदले मे कभी हमने सोचा है की जितना हम देते हैं क्या सरकार उतना लौटा पाती है। मेरी तो राय है की कोरोना की इस आपदा में जब सरकार हमें वह सुविधा देने में असमर्थ हो रही है तो हमे हिसाब मांगनी चाहिए और हिसाब के साथ साथ कर को अनिवार्य बीमा के प्रीमियम से जोड़ने की भी मांग करना चाहिए। जिस प्रकार सेस किसी योजना विशेष के प्रमोशन के लिए लाया जाता है वैसी ही एक योजना सरकार टैक्स से जोड़ बना सकती है । आइये हम बात करते हैं की सरकार अगर चाहे तो इसे कैसे कर सकती है। आप आयकर का उदाहरण लीजिये।आपका आयकर अगर 10000 है तो हेल्थ सेस लेके यह बन सकता है है 10300 रुपये। 10300 रुपये का यह जो 300 रूपये हैं उसे सरकार दुर्घटना बीमा , स्वास्थ्य बीमा और जीवन टर्म बीमा प्रीमियम राशि में बांट सकती है और इस जोखिम में बीमा कम्पनियों को भागीदार बना सकती है. इस प्रकार आयकर देने वाला प्रत्येक व्यक्ति का वर्तमान करभार के साथ ही उसका बीमा हो जाएगा और किसी तरह का स्वास्थ्य खर्च , दुर्घटना या मृत्यु होने पर देश को कर के रूप मे दिये गए लगान के बदले सम्मान की बीमा राशि प्राप्त होगी । नागरिकों द्वारा दिये गए कर के अनुपात और राशि के हिसाब से बीमा कंपनियाँ बीमा सुरक्षा प्रदान करेंगी। इसके लिए सरकार को विभिन्न बीमा कंपनियों से साझेदारी करनी पड़ेंगी और साथ ही साथ सरकार विदेशी बीमा कंपनियों को इस योजना मे भाग लेना अनिवार्य कर सकती है। ये तो रही आयकर की बात जहां कर देने वाले व्यक्ति की पहचान होती है जिसके द्वारा सरकार चिन्हित व्यक्ति का और उसके परिवार को बीमा सुरक्षा दे सकती है। लेकिन अप्रत्यक्ष कर के रूप मे सरकार एक बड़ा हिस्सा पाती है जो अमूमन आयकर की तुलना मे दोगुने से थोड़ा ज्यादा होता है । ऐसे कर के साथ सरकार चाहे तो अनिवार्य समूह बीमा का प्रयोग कर सकती है। अगर सरकार अप्रत्यक्ष कर के सेस को समूह बीमा योजना के साथ जोड़ दे, तथा बीमा कंपनियों के साथ मिल के पंचायत स्तर के ढांचे के सहयोग के साथ हर उस व्यक्ति को सामाजिक समूह सुरक्षा बीमा देवे तो सामाजिक बीमा के रूप मे एक क्रांति आ जाएगी और सरकार पर अतिरिक्त भार भी नहीं आएगा। इसके लिए डाटा तंत्र को ऐसा बनाना पड़ेगा की हर पंचायतवार जीएसटी संग्रह का डाटा आ जाए और उसमें से जो सेस का हिस्सा हो उससे सम्पूर्ण नागरिकों का समूह बीमा हो जाए. सरकार उपरोक्त प्रकार से अनिवार्य बैंक और कर बीमा के मार्फत बीमा सुरक्षा प्रदान कर सकती है जो सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र मे पूरे विश्व मे एक उदाहरण होगा और बिना किसी अतिरिक्त करभार के नागरिकों को स्वास्थ्य खर्च , दुर्घटना, जीवन एवं समूह बीमा का लाभ दे सकती है। वर्तमान बीमा कंपनियों के साथ साथ नयी आने वाली देसी और विदेशी बीमा कंपनियों की अनिवार्य सहभागिता की नियम भी सरकार लगा सकती है। और साथ ही साथ करों के भुगतान के प्रति नागरिकों मे प्रोत्साहन बढ़ेगा। कोरोना काल में यदि यह सबक ले सरकार शुरू कर दे बैंक के दुर्घटना बीमा में कोरोना को शामिल कर ले, आयुष्मान और निजी मेडीक्लेममें हर स्तर के इलाज को शामिल कर ले और टैक्स को बीमा से जोड़ दे तो नागरिक और सरकार दोनों के जोखिमों की वित्तीय नियोजन हो सकता है.

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