खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता कब ?

हम पेट्रोलियम तेलों पर हल्ला मचा रहें हैं क्या मालूम है की हम खाद्य तेलों के मामले में भी आयात पर निर्भर हैं. जैसा की हम सब जानते हैं की भारत की रसोई में खाद्य तेल का उपयोग अपरिहार्य हैं, इसके बिना भोजन कल्पना नहीं कर सकते । लेकिन आपको जानकर यह आश्चर्य  होगा कि भारत अधिकांश कृषि उत्पादों के विपरीत, जो स्थानीय स्तर पर उत्पादित किए जाते हैं, अपना अधिकांश तेल आयात करता है ना की घरेलु उत्पादन। यह सवाल है आत्मनिर्भर भारत के अभियान के बीच सबसे अधिक उपभोग की जाने वाली, विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों, प्रचुर भूमि और आबादी के बड़े हिस्से के कृषि पर निर्भर होने के बाद भी, भारत को खाद्य तेलों का आयात क्यों करना पड़ता है? सरकार के खजाने पर खाद्य तेलों के आयात का बोझ क्यों है? और खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?  कुल तेल आयात में पाम तेल की 62 फीसदी हिस्सेदारी है, इसके बाद सोया तेल और सूरजमुखी तेल क्रमशः 21 फीसदी और 16 फीसदी  हैं। पाम तेल मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से प्राप्त होता है, अर्जेंटीना और ब्राजील से सोया तेल, जबकि उक्रेन और अर्जेंटीना भारत के लिए सूरजमुखी तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं। 2019 में, भारत ने लगभग 7,300 करोड़ रुपये के लगभग 15 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात किया, जो कृषि आयात बिल का 40 प्रतिशत और देश के समग्र आयात बिल का तीन प्रतिशत था इसी से आप लगा अंदाजा लगा सकते हैं की अंतराष्ट्रीय कारकों से हमारा खाद्य तेल कितना प्रभावित है ।

आपको मालूम होना चाहिए पहले गांवों में लोग स्थानीय तेल की चक्की पर सरसो ले जा तेल पिरा कर खुद के प्रयोग में लाते थे, व्यापारी भी कच्चे सरसो को खरीदकर तेल निकालकर उसे खुले तेल के रूप में बेचते थे , ऐसे तेल की बिक्री और उसकी गुणवत्ता को नियमित करना कठिन हो  रहा था क्यों की इस तरह के खुले तेल पर कौन निर्माता है पता नहीं चल पा रहा था, इसे रेगुलेट करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को चिट्ठी लिखा की खुले में तेल को बंद करने का कानून जो पहले से है राज्य सरकारों को इसे सख्ती से लागू करवाना है. राज्य सरकारों ने इसे लागू कर दिया लेकिन इसके साइड इफ़ेक्ट भी पड़ गए , क्यों की खाद्य तेल के मामले में हम पहले भी आत्मनिर्भर नहीं थे उसी बीच रेगुलेट और गुणवत्ता की कीमत पर खाद्य तेल का पारम्परिक उत्पादन और आपूर्ति बंद होने से इसकी मांग काफी बढ़ गई और आपूर्ति कम हो गई.  

सरसों के साथ साथ अन्य खाद्य तेलों के मामले में भी आत्मनिर्भर नहीं है, और मौजूदा काल में जो खाद्य तेल की मांग तेजी से बढ़ रहा है उसका उपरोक्त के अलावा सबसे महत्वपूर्ण  कारण है तो अंतराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों का मांग और मूल्य दोनों बढ़ जाना है। पिछले कुछ महीनों में खाद्य तेलों की कीमतों में २०% से लेकर ३०% तक की वृद्धि हुई है, और इसके  आगे आने वाले कुछ महीनों में ही नरम होने की उम्मीद है। हालांकि सरकार ने इससे निपटने के लिए और बढ़ती खाद्य तेल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए नवंबर में पाम ऑयल पर आयात शुल्क 10% घटा दिया था फिर भी मदद नहीं मिली, क्योंकि निर्यातक देशों ने कीमतों के साथ-साथ निर्यात करों में भी वृद्धि कर दी थी , बढ़ती वैश्विक मांगों को देखते हुए वह भी सुरक्षित मोड और अपने यहां की मांग आपूर्ति के आधार पर ही निर्यात कर रहें हैं ।

इस बार की बढ़ोत्तरी के अंतराष्ट्रीय कारक ज्यादा है और हम आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम तेल का उत्पादन बढ़ा नहीं  है, मलेशिया और इंडोनेशिया ने इसे ऑटो ईंधन के साथ मिश्रित होने के लिए बायोडीजल में उपयोग की अनुमति दी है और इस निर्णय के कारण उनकी निर्यात आपूर्ति  प्रभावित हुई है जिसका असर भारत पर पड़ रहा है । पाम तेल का  सबसे ज्यादा लगभग ७० फीसदी उपयोग प्रसंस्करण उद्योग  करता है इस कारण  सरसों के तेल के अलावा अन्य तेलों के दाम भी बढ़ें हैं.  

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कुछ माह पूर्व जारी किए गए बुआई आंकड़ों के अनुसार, तिलहनी फसलों का रकबा इस साल 68.24 लाख हेक्टेयर रहा है, जो पिछले साल की तुलना में 2.47 लाख हेक्टेयर कम है। पिछले खरीफ सीजन में प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन का उत्पादन पिछले साल की तुलना में देश में लगभग 18 प्रतिशत कम होने का अनुमान है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुमान के मुताबिक, इस साल देश में सोयाबीन का उत्पादन 89.94 लाख टन है, जो पिछले साल के 109.33 लाख टन के उत्पादन से 71.73 फीसदी कम है।

इस संदर्भ में, यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में तिलहन के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की सनातन क्षमता है जो आयात निर्भरता को कम कर सकता है, भुगतान संतुलन बना सकता है और किसानों को भी लाभान्वित कर सकता है। खाद्य तेल बीजों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत सरकार कई उपाय भी कर रही है। उदाहरण के लिए, तिलहन पर प्रौद्योगिकी मिशन और अन्य नीतिगत पहलों ने भारत में तिलहन के क्षेत्र को 1986 में 9 मिलियन टन से 2018-19 में 32 मिलियन टन तक बढ़ाने में मदद की है, हालांकि अभी भी यह  घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई अन्य पहल जैसे कि पाम क्षेत्र विस्तार, तिलहन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि, तिलहन के लिए बफर स्टॉक का निर्माण, क्लस्टर निर्माण आदि ।

इसके अलावा भारत परती भूमि का उपयोग करके तिलहनी फसलों के क्षेत्र का विस्तार कर सकता है। इन परती क्षेत्रों का उपयोग सूरजमुखी और सरसों की फसलों की खेती के लिए किया जा सकता है, जिन्हें पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती है। राइस ब्रान ऑयल जैसे विकल्प शहरी उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं, ऐसे में राइस ब्रान का उत्पादन के लिए चावल की भूसी का उपयोग करके बड़ी मात्रा में खाद्य तेल का उत्पादन किया जा सकता है और इससे चावल मीलों और चावल उद्योग को भी फायदा होगा । कपास का बीज भी वनस्पति तेल का स्रोत है और इसमें भी पर्याप्त संभावनाएं हैं ।

इन सब के अलावा भी सरकार को यदि मूल्यवृद्धि की इस स्थिति से पार पाना है तो अति रेगुलेशन की स्थिति से बाहर आकर मिनी प्रसंस्करण उद्योगों को विकसित करना पड़ेगा, गुणवत्ता पर निगाह रखते हुए यदि गांव देहात कस्बे में छोटे छोटे तेल की चक्कियां डाली जाएं उन्हें पैकिंग एवं गुणवत्ता की ट्रेनिंग दी जाए उनसे उत्पादित छोटे छोटे तेल की मात्रा को यदि सप्लाई चेन से जोड़ने का प्रयास किया जाय तो हम तेल में आत्मनिर्भर बन आयात को भी कम कर सकते हैं और मूल्य को भी बढ़ने से रोक सकते हैं. मिनी एवं माइक्रो उद्योग ही हमें खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बना सकते हैं इससे हमारा किसान भी आत्मनिर्भर बनेगा, उसकी आय भी दुगुनी होगी। भारत जैसा विशाल देश जिसका जलवायु और मृदा जो पूरे विश्व में सर्वोत्तम है वो यदि एक बड़ा हिस्सा खाद्य तेल का अभी भी आयात करता है तो वह आत्मनिर्भर भारत के लिए शर्मिंदगी की बात है.


Comments