आईएमएफ रिपोर्ट के मायने

वर्तमान में अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट को लेकर बड़ी चर्चा है साथ में बांग्लादेश की जीडीपी भारत से ज्यादे हो गई उसकी भी चर्चा है. अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के हालिया रिपोर्ट का मानना है कि कोरोना की मार के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में जो संकुचन हुआ है उस कारण से दक्षिण एशियाई देशों में भारत अब सिर्फ पाकिस्तान और नेपाल से ही आगे रहेगा जबकि बांगला देश की जीडीपी भारत से आगे रहेगी यहाँ तक की पडोसी देश भूटान मालदीव श्रीलंका भी भारत से आगे रहेंगे., हालाँकि यह अनुमान वर्ष २०२० के लिए ही लगाया गया है और अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष २०२१ को भारत के लिए अच्छा बताया है जिसमें भारतीय इकॉनमी ८.२ की दर से वृद्धि करेगी. अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति जीडीपी अर्थव्यवस्था में १०.३ फीसदी संकुचन के साथ १८७० डॉलर प्रति व्यक्ति रहने का अनुमान है जबकि इसी समय बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति जीडीपी १८८८ डॉलर प्रति व्यक्ति है. चौंकाने वाली बात यह है की इसके पहले जून तिमाही में इसी मुद्रा कोष ने भारत में कोरोना के कारण आर्थिक संकुचन की दर ४.५ फीसदी बताई थी जो इस समय उसने इसे दुगुने से भी ज्यादे १०.३ फीसदी कर दिया है. आज से पांच साल पहले बांगला देश भारत से काफी पीछे था और बीते पांच साल में इसकी सम्मिलित वार्षिक ग्रोथ अच्छी रहने के कारण ही वह आज इस हालत में है. हालाँकि मेरा मानना है की यह तुलना सही नहीं है हमें सेब की तुलना सेब से ही करनी चाहिए संतरे से नहीं और अगर दो देशों की हालत सेब जैसी नहीं है तो तुलना करते वक़्त बहुत से कारकों का समायोजन करना चाहिए. भारत की यह गिरावट अस्थायी है और बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था भारत के मुक़ाबले छोटी है. अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़े सिर्फ एक आधार को लेकर बात करते हैं जबकि अर्थव्यवस्था को देखने के कई और पैरामीटर हैं, भारत आज भी क्रयशक्ति के मामले में बांग्ला देश से काफी आगे है, जैसे की प्रतिव्यक्ति क्रय शक्ति यदि ज्यादे है तो प्रति व्यक्ति की इकॉनमी बांग्लादेश से बेहतर ही मानी जाएगी. भूगोल और आबादी के कम्पोजीशन के आधार पर भी बांग्ला देश औ भारत की कोई तुलना नहीं है खुद मुद्रा कोष ने कहा है कि वर्ष २०२१ में भारत काफी तेजी से आगे बढेगा अतः मुद्रा कोष की रिपोर्ट से चिंता करने की जरुरत नहीं है. यहाँ तक की किसी भी रिपोर्ट से घबराने की जरुरत नहीं है क्यों की सबको मालूम है की यह गिरावट क्यों है और जब गिरावट के कारण सबके सामने हैं तो रेटिंग गिरना तो स्वाभाविक ही है, २ महीने लॉकडाउन फिर अनलॉक में भी अभी इकॉनमी खुली नहीं है तो अच्छे आंकड़े कैसे आ जायेंगे , साथ में यदि हम बांग्ला देश से तुलना करें तो यह जान लें की भारत का लॉकडाउन और बांग्ला देश के लॉकडाउन में बहुत अंतर था भारत में लॉकडाउन सख्त था अतः भारत में बाजार बंद थे और जब बाजार बंद होंगे तो वस्तु एवं सेवाओं में सौदे नहीं होंगे और जब सौदे नहीं होंगे तो जीडीपी या प्रति व्यक्ति जीडीपी या आय आंकड़ों के रूप में बाहर कैसे आएगी. दरअसल प्रति व्यक्ति जीडीपी यह बताती है कि किसी देश में प्रति व्यक्ति के हिसाब से आर्थिक उत्पादन कितना हुआ है और इसकी गणना किसी देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी को उस देश की कुल जनसंख्या का भाग देकर निकाला जाता है जिस देश की जनसंख्या ज़्यादा होगी, बेस आंकड़ा ज्यादा होने के कारण उस देश का आँकड़ा कम ही आएगा. भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुआयामी कारणों से तेजी से वापसी करने की क्षमता है, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए की अगली तिमाही से आर्थिक परिस्थितिया बदलने लगेंगी । मुद्रा कोष का भी मानना है की अगर सही कदम उठाए गए तो भारत के लिए वित्त वर्ष २०२१-२०२२ के जीडीपी ग्रोथ का लक्ष्य कोई कठिन लक्ष्य नहीं है। भारत में आजकल कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या भी कम हो रही है और लगता है पीक आकार अब ढलान पर है अतः भारतीय अर्थव्यवस्था अब सरप्राइज कर सकता है। शुरुवात में लॉकडाउन और असमंजस के कारण इस कोरोना महामारी में आर्थिक गतिविधियां बंद सी पड़ गई थीं और अब जैसे-जैसे उद्योग और लोग काम शुरू कर रहे हैं सामाजिक दूरी और मास्क के नियमों का पालन करते हुए बाहर निकल रहें हैं , वैसे वैसे इकोनॉमी में सुधार देखने को मिल रहा है। इस कोरोना महामारी ने हालाँकि लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई है और चूँकि भारत आबादी के हिसाब से बहुत बड़ा देश है फिर भी भारत ने बेहतर किया है। पूरी दुनिया में किसी ने कोरोना महामारी के प्रकोप के इस रूप का अनुमान नहीं लगाया था, इसलिए दुनिया का हर देश एक ही पैटर्न पर लगभग मुकाबला कर रहा था और वह था लॉकडाउन लगाना जिसकी परिणिति ऐसे आंकड़ों के रूप में बाहर आनी ही थी अतः इस काल के आंकड़ों का पिछले आंकड़ों से तुलना करना बेमानी है, इस पूरे अवधि के आंकड़ों के पैमाने और आधार दोनों अलग होने चाहिए, और यह चीज मान लेनी चहिये की जो भी गिरावट आई है वह एक बार कोरोना वैक्सीन के आने के बाद उसमें तेजी से रिकवरी करेगी। इसके लिए भारत को भी अगले दो तिमाही में भारत को तेजी से सुधार के लिए कदम उठाने होंगे और बाजार में मांग बढ़ाने पर काम करना होगा। लोगों और खासकर के गरीबों और मजदूरों के हाथों में पैसे पहुंचाने होंगे क्यों की यही तबका है जिसके पास यदि १०० रुपया भी जाता है तो वह इस सौ रुपया को खर्च के मध्य से इकॉनमी में डालता है वह इससे सोना या अन्य जगह डालकर पैसे को ब्लाक नहीं करता है, सरकार को महंगाई दर को भी नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने होंगे। सरकार को अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर के साथ साथ कुछ कुछ डायरेक्ट इनकम सपोर्ट भी करना चाहिए साथ में कोरोना संकट से प्रभावित उद्योग एवं व्यापार को भी सँभालने करने की जरूरत है। इस काल में चीन की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट ना होने की वजह है कि इस देश ने कोरोना को काबू में करने के लिए शुरुआत में ही खूब टेस्ट किए और इस मौके का फायदा भी उठाया उसके बाद जब पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही थी तो उसने बड़े पैमाने पर अपनी मेडिकल क्षमता विकसित की और इसे निर्यात किया जिससे उनके अर्थव्यवस्था में गिरावट नहीं आई।

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