आत्मनिर्भरता के मायने

कोरोना काल में आजकल चहुँओर आत्मनिर्भर शब्द की चर्चा हो रही है, आइये समझते हैं इस चर्चा के क्या मायने हैं. आत्मनिर्भर का मतलब है जो आपकी जरुरत की चीजें हैं उसे आप खुद पूरा करते हैं. जैसे की यदि आप घर पर हैं तो घर की साफ़ सफाई से लेकर खाना बनाने तक का काम आप बिना किसी और पर निर्भर होकर खुद करते हैं, अपने जरुरत भर की शाक सब्जी आप घर पर ही उगाते हैं, और अपने किसी व्यक्तिगत कार्य के लिए आप दूसरे पर निर्भर नहीं हैं तो यह हुआ आप खुद आत्मनिर्भर हैं. एक गाँव को आत्मनिर्भर तब माना जायेगा जब वह गाँव अपने जरुरत की सभी चीजों को गाँव के संसाधनों और लोगों से ही पूरा करती है, जैसे लोगों के लिए खाद्य का उत्पादन, गाँव की साफ़ सफाई में गाँव के लोगों का ही सहयोग, गाँव की अन्य जरूरतों के लिए भी गाँव के उत्पादन से ही आपूर्ति, सिंचाई के लिए खुद के सिंचाई साधन. यही नियम शहरी व्यवस्था पर भी लागू होता है जिसमें वह शहर अपने जरुरत भर की चीजों का खुद ही उत्पादन करता है एवं अपने ही संसाधनों का उपयोग करता है, थोड़ा जरुरत का दायरा गाँव से बड़ा हो जाता है तो अधिकतम स्वतः उत्पादन एवं स्थानीय संसाधन से और न्यूनतम के लिए बाहर निर्भर रहता है, उसी तरह जब दायरा बढ़ाते हैं तो राज्य या देश जब अपने जरुरत की चीजों के लिए अधिकतर अपने राज्य में ही उत्पादित उत्पाद और संसाधनों पर निर्भर रहता है तो उसेआत्मनिर्भर राज्य या देश कहते हैं.

अब प्रश्न उठता है की कोरोना काल में जब दो अलग अलग मौकों पर आत्मनिर्भर बोला गया तो उसके क्या मायने हैं, यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं की अर्थव्यवस्था की गाड़ी परस्पर निर्भरता पर ही चलती है यदि कोई इस चेन को रोकेगा तो इकॉनमी की साइकिल रूक जाएगी. अब आते हैं वो दो मौके क्या थे, एक था की आप आत्मनिर्भर बनें का आवाहन और दूसरा आत्मनिर्भर भारत की कार्ययोजना. पहला जो आवाहन था की आप आत्मनिर्भर बनें उसके मूल में था की आप सोशल डीस्टेंसिंग का पालन करें और जरुरत की कई चीजों को आप अपने घर पर ही रहकर पूरा करें जैसे साफ़ सफाई का काम, गाड़ी धोने का काम, यदि घर में कुछ ख़राब हो जाए तो बाहर से किसी को न बुलाएँ खुद ही ठीक कर लें, लेकिन यह फार्मूला सोशल डीस्टेंसिंग के साथ साथ ईकोनोमिक डीस्टेंसिंग भी पैदा कर रहा था अतः यह ज्यादे अपील नहीं कर पाया और यह आर्थिक चक्र के सिद्धांतों के विपरीत था और सबसे निचले तबके के रोजगार का हनन हो रहा था इसमें, अतः इसी दौरान कोरोना काल में आत्मनिर्भर भारत की कार्ययोजना आई जिसमें देश के एमएसएमई सेक्टर के साथ साथ उद्योग क्षेत्र को राहत और सहायता देने के लिए कई घोषणायें और योजनायें लाई गईं ताकि देश का विनिर्माण उद्योग प्रभावित न हो उत्पादन निर्बाध जारी रहे और भारत उत्पाद के लिए आयात पर कम से कम निर्भर रहे, देश ने इसी बीच मास्क और पीपीई किट का सरप्लस उप्तादन करना चालू कर दिया था और जैसा की सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री नितिन गड़करी ने बताया देश इसका निर्यात भी करने लगा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट के इस दौर में भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया था. इस पैकेज को आत्मनिर्भर भारत अभियान का नाम दिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना था कि इस बड़े राहत पैकेज से भारत में लोगों को कामकाज करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी और यह कोशिश की जाएगी कि अगले कुछ सालों में भारत अपनी जरूरत की अधिकतर चीजों के लिए खुद पर निर्भर हो जाए. इस हिसाब से अभियान का नाम आत्मनिर्भर भारत अभियान रखा गया. इसी बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने उद्बोधन से वोकल फॉर लोकल का नारा भी दिया और लोगों से अपील भी की अपने लोकल उप्तादों के लिये आप वोकल बनें लेकिन इस अपील की न्यूज़ चैनलों ने हवा निकाल दी जब वे रफ़ाएल के वेलकम के चक्कर में वोकल फॉर विदेशीं उत्पाद होने लगे और उसके स्वागत में पाने पलक पांवड़े बिछा दिए यह पूरी तरह से अपने प्रधानमंत्री के भावनावों एवं अपील के विरूद्ध था जिसका मेसेज यही गया की हम अभी भी लड़ाकू विमान में अपने लोकल पर नहीं बाहरी पर निर्भर हैं.  

दरअसल आत्मनिर्भरता के मायने यही होता है की हम अपने मिनिमम जरूरतों की सभी चीजों की पूर्ति खुद से करते हुए अपना आयात न्यूनतम करते जाएँ और निर्यात बढ़ाते जाएँ, हमारे प्रधानमंत्री जानते थे की यह एक दिन में नहीं होने वाला है अतः उन्होंने सबसे पहले बोला की आप वोकल हों लोकल के प्रति, जब आप वोकल होंगे तो लोकल का उत्साह बढेगा और आपके वोकल होने से उनके उत्पाद की खपत भी बढ़ेगी और उत्पादन भी बढेगा, हालाँकि वोकल फॉर विदेशीं ने इस आवाहन को नुकसान पहुँचाया. इसी योजना के तहत प्रधानमंत्री ने  कोयले के  वाणिज्यिक खनन की मंजूरी दे एक बड़ा कदम उठाया उन्होंने कहा इस कदम के जरिये हम कोयला क्षेत्र को दशकों के लॉकडाउन से बाहर निकाल रहे हैं, जो देश कोयला भंडार के हिसाब से दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश हो, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होवह देश कोयले का निर्यात नहीं करताबल्कि वह देश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला आयातक है, इसलिये परिस्थिति को बदलना ही था.आत्मनिर्भरता के मायने को लेकर  प्रधानमंत्री के आवाहन का दो मूल सूत्र था पहला यह की लॉक डाउन के दौरान जब सारी सप्लाई बंद थी तो आपके पड़ोस और मोहल्ले का दूकानदार ही आपके काम आया अतः लॉक डाउन ख़त्म होने के बाद भी उनके इस सहयोग एवं योगदान को न भूलें और बड़े बड़े मॉल और ऑनलाइन ई कॉमर्स पोर्टल की तरफ दुबारा न मुड़कर इनसे भी खरीददारी जारी रखें ये आपके मुसीबत के साथी हैं. दूसरा सूत्र था की आप स्वदेशी को बढ़ावा दें और अपने खान पान से लेकर उपभोग की चीजों में भी स्वदेशी का प्रयोग करें क्यूँ की लॉकडाउन के कारण स्वदेशी उद्योगों पर बड़े खतरे आ गए थे और अभी भी खतरा बरक़रार है.

आत्मनिर्भर भारत में उत्पादन और स्वदेशी के जो मेरुदंड हैं एमएसएमई उनकी कमर टूटने के कगार पर आ गई थी, उनकी कमर न टूटे इसके लिए भी आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत सरकार कई योजनायें लेकर आईं ताकि इस कोरोना के झटके से उपजे पीड़ा को कम किया जा सके और ये दुबारा खड़ा हो देश के घरेलु खपत और निर्यात के लिए तैयार हो सकें.


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