अनलॉक के दौर में एक बार बाहर निकला चारों ओर
सन्नाटा था, लोग टुकुर टुकुर शायद किसी को निहार रहे थे, सड़क किनारे एक्का दुक्का लोग मेज रख बड़ा पाव बेच रहे थे लेकिन शायद लोग
अब डर रहें हैं तो कोई भी ग्राहक नहीं था और हर आने जाने वालों को वह बड़ी आशा से
देखता था की शायद यह पलटेगा. इस बार सड़क पर एक चीज एकदम से गायब थी जो कोरोना काल
से पहले मुंबई में हर दो सौ मीटर पर दिखाई दे जाती थी, वह थी
पानी पूरी वाले की दुकान बहुत ही कम पूंजी में आत्मनिर्भर भारत. आज वह आत्मनिर्भर
भारत जो बमुश्किल २००० की पूंजी में सफल उद्यमी था उसे कोरोना काल ने एक झटके में
बहार दिया. शुद्धता के नाम पर खुले तेल पर गिरने वाली गाज जिसने भारत के गाँव कसबे
में फैले लाखों तेल चक्की वालों की आत्मनिर्भरता खत्म कर दी थी उससे कहीं ज्यादे
दर्दनाक थी मुंबई के पानी पूरी वालों की आत्मनिर्भरता खत्म होना वो भी उस दौर में
जब हम आत्मनिर्भर भारत का नारा गढ़ रहें हों. मुझे याद है लॉक डाउन शुरू होने से कुछ
ही दिन पहले मैंने उस पानी पूरी वाले से पानी पूरी खाते हुए पूछा था की भाई सुने
हैं कोई वायरस आ रहा है कुछ मालूम है, उसने भोजपुरी में बोला
नाही साहब टीवी और अखबार पढ़ेके फुरसत कहां बा आप जइसन लोगनसे सुननी हं की कवनो
वायरस आईल बा ओकरे कारण एक दिन के जनता कर्फ्यू बा और ओकरे बाद एकर चेन ब्रेक हो
जाई. हम भी भोजपुरी में ही पूछे एतना भरोसा की एक्के दिन में ख़त्म हो जाई, उसने बोला भैया हम त एतना पढ़ल लिखल नाही बानी की जान सकीं की बाहर का
होता लेकिन एतना जानतनी की मोदी जी कहले बन त एक दिन नाही त एक हफ्ते में ख़त्म हो
जाई, एक हफ्ता संभाल लेहल जाई. फिर एक हफ्ता क्या २१ दिन आया लॉक डाउन १, फिर चार
तक पहुंचा और फिर नाम बदलकर आया अनलॉक का दौर , वह पानी पूरी
वाला जिसकी एक दिन की भी बचत अगले दिन की पूंजी बननी थी और जिसके घर में बमुश्किल
१ हफ्ते से लेकर २ हफ्ते तक का राशन जमा था अचानक आये इस कोरोना के हमले से हैरान
और परेशान था १ दिन एक हफ्ता, फिर २१ दिन और फिर महीनों में
बदल रहे थे और उधर कोरोना की चेन तो नहीं टूटी मुंबई की सडकों पर फैली पानी
पूरी के दुकानों की चेन टूट गई और दिल्ली
से आ रहें आत्मनिर्भर भारत के नारों के बीच वर्षों से मुंबई में स्वाभिमान से सीना
तान खड़े इस आत्मनिर्भर पानी पूरी भारत की कमर टूट रही थी.
और सिर्फ इसी आत्मनिर्भर
भारत की कमर नहीं टूट रही थी, मुंबई के लोकल प्लेटफोर्म पर भी लोकल आत्मनिर्भर की
चेन खड़ी थी वह भी टूट गई, उनमें से एक बमुश्किल हजार रूपये
की पूंजी से मोची और जूता पॉलिश का काम करने वाले हजारों आत्मनिर्भर लोगों को इस
वायरस के आहट का पता ही नहीं चला की कब यह इनके धंधे को लील गई, जिनका जीवन लोगों
के जूते की टकटकी में बीता था आज अपने खोली में आसमान की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं
अनिश्चित भविष्य के बीच उनको कुछ समझ में नहीं
आ रहा है, अगर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना नहीं
होता तो शायद हम इससे भी भयावह तस्वीर देख रहे होते.
कोरोना का जन्म सुदूर चीन में
हुआ, भारत में आया करोड़पतियों के भारत में पड़े क़दमों से और सजा भुगत रहें भारत के
ये अनजान उद्यमी जिन्होंने हजार रूपये की पूंजी में बहुत पहले ही बता दिया था
दुनिया को की आत्मनिर्भर भारत क्या होता है. आज भारत में ऐसे तमाम दिहाड़ी कामगार
हैं जो आत्मनिर्भर भारत के प्रतीक हैं लेकिन सबसे अधिक अगर मार पड़ी है तो इन्ही
दिहाड़ी आत्मनिर्भर भारत के प्रतीक समाज पर पड़ी है. भारत के माइक्रो इकॉनमी के ये
रीढ़ आज कोरोना काल में सबसे अधिक प्रभावित हैं, हम मध्य वर्ग
के पास महीने भर की रसद और और कुछ बचत तो थी भले ही वो जेवर के रूप में हो इनके
पास तो यह भी नहीं थी.
मेरे ऑफिस के नीचे एक पकौड़ी वाला है और थोड़ी दूर
पर रेहड़ियों पर कई दुकानें जिसमें कई अच्छे जोड़े आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर थे
अक्सर नाश्ते और लंच के टाइम पर मैं देखता था की उस दो घंटे में पति पत्नी मिल कोई
आलू पराठे तो कोई बिरयानी के कडाहे से बिरयानी बेच अपने परिवार को चला रहे थे,
उनके परिवार में उम्र के आधार पर अनुमान लगा सकता हूँ की छोटे छोटे बच्चे भी होंगे.
अक्सर जाते वक़्त उन्हें देख भावुक भी होता था और उनके हौसले को सलाम भी करता था
क्यों की उन पति पत्नी की मेहनत सलाम करने लायक थी जिसे भारत की पूंजी बाजार और
उसके महाजन बैंक ने पैसा देना बंद कर दिया हो उसने कुछ सैकड़े रूपये में ही
आत्मनिर्भर भारत और कौशल विकास की तस्वीर खींच
उसी बैंक के सामने उन्हें चुनौती दे रहे थे. मैंने एक दिन एक दुकानदार से पुछा था
जो साथ में खड़ी महिला का पति था, भाई तुम्हारा काम तो खाना बनाना नहीं है लेकिन
तुम ये काम कैसे कर लेते हो, तो उसने बोला साहब यह मेरा कौशल विकास है, मैंने अपनी बीबी से सीख के अपनी कुशलता विकसित की है, भले ही आलू पराठा
बनाना मेर जिम्मे का काम नहीं था लेकिन आज धंधे के लिए यह कौशल हमने अपने बीबी से
सीखा और आज यही कुशलता मुझे और मेरा परिवार पाल रही है.
यह माइक्रो इकॉनमी के रूप
में भारत के कौशल विकास और आत्मनिर्भरता की वो तस्वीर थे जो आज के गढ़े गए नारों से
कई साल पूर्व ही बैकों को चुनौती देते हुए खुद के बलबूते खड़े हुए थे और इस कोरोना
से सबसे अधिक मार इन पर गिरी . इनकी वैसे तो कोई बचत थी नहीं लेकिन जो कुछ सैकड़ों
रूपये की पूंजी थी उसे इस कोरोना ने ख़त्म कर दिया था, वो तो भला हो इस
प्रधानमंत्री के रेहड़ी योजना का जो इन्हें दस हजार रूपये की पूंजी दे फिर से खड़ा
होने पे मदद करेगा नहीं तो सुदूर बैठे चीन ने तो भारत के माइक्रो इकॉनमी की रीढ़
तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, बैंकों और पूंजी बाजार की चुनौती
को तो इन्होने धता बता दिया था लेकिन यह कोरोना इस समय सबसे अधिक इन्हें ही परेशान
कर रहा है . मुंबई में बैठे मध्य वर्ग और उच्च वर्ग को लगता है की प्रधानमंत्री
गरीब कल्याण योजना सरकार का टैक्सपेयर का पैसा सिर्फ गरीबों पर व्यय कर रही है
उन्हें मालूम होना चाहिए आज के दौर में सबसे जरुरत मंद यहीं हैं और इन्हें खडा करना ही पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.
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