एक गांव एक उत्पाद से होगा वोकल फॉर लोकल




इस कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल का आवाहन किया ही था की चीन के कारण उपजे हालात ने अब आम जनमानस समेत सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है की हमें जल्द से जल्द आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा, सरकार ने इसी सम्बन्ध में कारवाई करते हुए टिकटोक समेत ५९ चीनी एप बैन कर दिए. दिखने में यह कारवाई सामान्य लग रही है लेकिन इसने एक चिंतन को भी जन्म दिया है जिसे भारत का जनमानस सरकार और कॉर्पोरेट वर्ग नहीं समझ पा रहा है. कहने को भारत आईटी का सुपर पॉवर है लेकिन हम आज जो भी पोपुलर एप यूज करते हैं वह विदेशी है, एक भारतीय के तौर पर हम उस एप की कम्पनी में काम करते हैं उसके मालिक नहीं है. सबसे अधिक प्रचलित एप फेसबुक, गूगल, व्हाट्सएप, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, जीमेल, टिकटोक और टेलीग्राम एक का भी अविष्कार भारत में नहीं हुआ है. आज ट्विटर एक तरह से सरकारी प्लेटफोर्म की तरह काम कर रहा है सरकार की एक तरह से निर्भरता हो गई है और किसी दिन ट्विटर १ दिन डाउन हो जाये तो सरकारी सूचना के साथ प्रशासनिक कार्य तक बाधित हो जायेंगे. हमने ट्विटर को अपना लिया लेकिन ना तो देसी ट्विट्टर बनाने की सोची ना देसी गूगल. वैश्विक युद्ध की दशा में हो सकता है हमारा सारा डाटा विदेशी कम्पनी के हाथ में हो, और वह देश अपनी राष्ट्रवादी नीतियों एवं संविधान के हवाले से इसे बैन कर सकती है और हम कुछ नहीं कर सकते हैं. जीमेल और ट्विटर यदि बंद हो जाए तो उसे चालू करवाने का कोई अधिकार नहीं है हमारे पास यह पूरी तरह से उस कम्पनी की इच्छा पर निर्भर है, अतः यदि हमें आत्मनिर्भर बनना है तो हमें इस तरफ सोचना पड़ेगा जिसे चीन ने बहुत पहले सोच लिया था और आईटी ही नहीं उद्योग के क्षेत्र में भी क्लस्टर आधारित एप्रोच अपनाया था.

चीन को यदि हमें हराना है तो हमें उसे उसी के हथियार से हराना पड़ेगा, स्वदेशीआत्मनिर्भर की नीति और उद्योगों का क्लस्टर आधारित एप्रोच लाकर. उत्तर प्रदेश में क्लस्टर आधारित औद्योगिक विकास के लिए एक जिला एक उत्पाद लाया गया है. वैश्विक स्तर पर ठीक ऐसा ही एक मॉडल है एक गाँव एक उत्पाद जिसे अपनाकर हम भारत में आत्मनिर्भरता ला सकते हैं और हमारी वोकल फॉर लोकल की नीति सफल हो सकती है. अभी हाल में हमने एक खबर पढ़ी होगी की यूपी के निचलौल क़स्बे और बिहार के सिवान से गया काला नमक धान जापान में लहलहा रहा है , जरा सोचीये एक बीज ने इतना कमल कर दिया तो भारत के ऐसे तमाम बीज उत्पाद हैं जो दुनिया में छा सकते हैं. संजोग से एक गांव एक उत्पाद (OVOP) अवधारणा का जन्म भी जापान में हुआ था. यह ओवीओपी अवधारणा वोकल फॉर लोकल के लिए एक अद्वितीय दृष्टिकोण है जो ओइता प्रान्त के जापानी पूर्व गवर्नर, हीरामत्सु की सोच थी, इन्होने अपने अनुभव और एक्सपोज़र का जापानी अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय के समाधान के लिए उपयोग किया ताकि ओइटा के गंभीर होते ग्रामीण आर्थिक पतन को रोका जा सके। यह दृष्टिकोण जापान के ओइटा में बहुत सफल रहा है और इसने व्यापक अंतर्राष्ट्रीय अपील को अपनी तरफ आकर्षित किया, विशेष रूप से विकासशील देशों में। इसे अपनाने वाले मुख्य देशों में दक्षिण पूर्व एशिया में थाईलैंड, वियतनाम, कोरिया, चीन, कंबोडिया, फिलीपींस, लाओस और इंडोनेशिया शामिल हैं और भारत में यूपी।

एक गांव एक उत्पाद का सार एक भौगोलिक स्थान पर रह रहे स्थानीय समुदायों के उच्च आय निर्माण के लिए स्थानीय उत्पादों के वैल्यू एडिशन में निहित है और इसके लिए उप्ताद में सुधार करते हुए स्थानीय निवासियों और पर्यटकों को आकर्षक बनाने के लिए स्थानीय वातावरण में भी परिवर्तन करना शामिल है. एक गांव एक उत्पाद ग्रामीण या स्थानीय सामुदायिक विकास के लिए एक विशिष्ट दृष्टिकोण है. इसमें अव्यक्त स्थानीय सामुदायिक रचनात्मकता और क्षमता को ध्यान में रख, प्रभावी स्थानीय नेतृत्व और मानव संसाधन विकास और पार्श्व में सामुदायिक पुनरोद्धार के उद्देश्य के माध्यम से अद्वितीय उत्पादों का विकास किया जाता है जिससे सनातन विकास के साथ साथ बाजार में भी अपील पैदा किया जा सके। इसका समग्र उद्देश्य स्थायी स्थानीय विकास और गरीबी में कमी के लिए स्थानीय स्व-आयोजन क्षमता को विकसित और समेकित करना है. इसमें स्थानीय जन नेतृत्व लेता है अपनी खुद की रचनात्मकता और आत्मनिर्भरता के माध्यम से स्थानीय संसाधनों से ही अपने लिए और बाजार के लिए उत्पाद बनाता है. इस प्रक्रिया में वे प्रतिस्पर्धी उत्पादों के उत्पादन के माध्यम से विशेषज्ञता विकसित करते हैं और बढ़ी हुई आय के कारण उनकी आजीविका में सुधार होता है, और उनके बीच एकजुटता विकसित होती है। 

एक गांव एक उत्पाद ग्रामीण सामुदायिक विकास अवधारणा को दुनिया में अलग-अलग तरीकों से लागू किया गया है, यह उस देश के उद्देश्यों और प्रत्येक देश की अनूठी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसकी सफलता के सूत्र और अपील के कारण ही यह जापान, थाईलैंड की कई स्थानीय सरकारों द्वारा व्यापक रूप से अपनाया गया और दुनिया के बाकी हिस्सों में फैल गया। जापान के ओइटा मॉडल में एक गांव एक उत्पाद सरकार, समुदाय और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी पर बहुत हद तक निर्भर करता है। यह मॉडल स्थानीय, राष्ट्रीय और बाहरी बाजारों को लक्षित करता है। स्थानीय स्तर पर होमटाउन और सड़क किनारे के दुकान या बाजारों के भीतर यह उत्पाद बेचे जाते हैं। स्थानीय स्तर से परे, प्रदर्शनी दुकान, उत्पाद मेला, डिपार्टमेंटल स्टोर में एक विशिष्ट 'ओवीओपी कॉर्नर' ऐसे माध्यमों से इसका प्रचार किया गया । और यह सब जापान में सकल राष्ट्रीय संतुष्टि (GNS) को बढ़ाने के लिए किया गया है, न कि केवल जापान के सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GDP) का विस्तार करने के लिए। समुदाय के लाभ के लिए समुदाय के भीतर ही संसाधनों का उपयोग करने पर जोर दिया गया है, ताकि उत्पाद विकास और सामुदायिक विकास के बीच सीधा संबंध हो। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, OVOP उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों के सावधानीपूर्वक विश्लेषण के माध्यम से विपणन किया गया है और बेहतर गुणवत्ता और प्रभावी वितरण पर जोर दिया गया है।

जापान से चली यह एक गांव एक उत्पाद (OVOP) यात्रा, थाईलैंड में एक तालुका एक उत्पाद (OTOP) के रूप में और भारत के यूपी में एक जिला एक उत्पाद (ODOP) के भौगोलिक विस्तार में विकसित होती है, जापान से थाईलैंड के अपने प्रथम भौगोलिक विस्तार में यह अवधारणा फेल हो जाती है क्यों की इसने एक गाँव के उत्पाद के सूत्र वाक्य को नहीं पकड़ा था. भारत में भी ODOP थाईलैंड के माध्यम से भी बड़े भौगौलिक विस्तार में है और इसे थाईलैंड के चूकों से सबक लेते हुए जापान के सूत्र वाक्य को पकड़ना होगा वह है आत्मनिर्भरता और रचनात्मकता वहां के स्थानीय समुदाय की, वहां के स्थानीय मानव संसाधन के विकास की और सोच स्थानीय और एक्शन वैश्विक करने की. अगर हम यह सूत्र वाक्य नहीं पकड़ेंगे और इसमें बाहर से कुछ डालने की कोशिश करेंगे तो यह अवधारणा अपनी शुद्धता खो देगा और वोकल फॉर लोकल का आवाहन असफल हो जायेगा. लोकल पैकेजिंग में बाहर का माल नहीं लोकल माल ही होना चाहिए लोकल को सिर्फ नारे तक नहीं सीमित रखना चाहिए.  

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