चीन के ट्रैप में न फंसे

चीन से हमें मुकाबला करना है तो हमें चीन के ट्रैप को समझना पड़ेगा. चीन के पास भारत की मनःस्थिति का हर तरह का डेटा है, और वह सिर्फ सीमा विस्तारवाद की नीति नहीं व्यापारिक विस्तारवाद की नीति पर चलता है, कम्युनिज्म उसके लिए नीति नहीं उसका औजार है जिसका इस्तेमाल वह चीनियों को बांधने के लिए करता है उन्हें कम्युनिज्म की अफीम की गोली पिला बकिया वह पूरे विश्व में पूंजीवाद का प्रतीक है और हर मौके पर लाभ बनाना जानता है कोई शक नहीं की वह बायकाट चाइना के नाम पर जिस सामग्री का प्रयोग कर रहें हों टीशर्ट से ले बैनर तक वही बना रहा हो, क्यों की उसके लिए आप सिर्फ एक उपभोक्ता हो जो उसके कम्पनियों को लाभ और उसे टैक्स देते हैं.

चीन से विरोध के नाम पर पूरे देश में चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम चल पड़ी है लेकिन इसमें हमें सतर्कता बरतनी पड़ेगी नहीं तो चीन को अंततः फायदा और भारत को दोहरा नुक्सान झेलना पड़ेगा. चीनी सामान के बहिष्कार को दो हिस्से में बाँटना पड़ेगा एक जो हमने चीन को १००% पेमेंट कर दिया है और भारत के बाजार में वह माल पड़ा है, उस माल को हम फेंके जलाएं या ख़रीदे उससे चीन को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है उसे उस माल का १००% भुगतान मिल चुका है, वह बॉर्डर उस पार से यही देख मुस्कराएगा की भारतीय अपनी पूंजी में आग लगा रहें हैं. अतः जो माल १००% पेमेंट के बाद भारत आ चुका है उसके बहिष्कार का कोई मतलब नहीं वह अपने पूंजी में ही आग लगाना है. चीन चाहता भी होगा की हम उस माल को जला दें क्यों की नार्मल कोर्स में वह माल कई महीनों में खपत हो खत्म ता, जलाने से वह तुरंत खत्म होगा और उसकी मांग यकायक बड़ी मात्रा में पैदा होगी, उतने कम समय में हम अपनी उत्पादन तंत्र क्षमता विकसित नहीं कर पाएंगे और वह दुसरे तरीके से माल की पुनः सप्लाई कर बाजार को पाट दगा और हमें पता भी नहीं चलेगा, ऐसे में कहाँ हम भारत से उसके १०० फीसदी बाजार को खत्म करने चले थे और वह १५० फीसदी बाजार बढ़ा लेगा. इसीलिए चीनी सामान के बहिष्कार में समझदारी की बहुत जरुरत है नहीं तो हम उसके ट्रैप में फंस जायेंगे.

अगर हमें व्यापार के माध्यम से चीन को मात देना चाहते हैं तो एक कट ऑफ डेट लेना पड़ेगा जैसे आज का और आज के बाद भारत का कोई भी आयात करने व्यापारी चीन से कोई सौदा, व्यापार, ठेका एवं आयात सब बंद कर दे एक बाद ध्यान देना चाहिए की चीन का माल आयात गेटवे से अन्दर आता है इसलिए सिर्फ इसी जगह कदम उठाना चाहिए और एक आयात वाला व्यापारी यह निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है उसके ऊपर अपने व्यवसायिक निर्णय हेतु कोई विश्व व्यापार संगठन का नियम लागू नहीं होता. लेकिन मेरा मानना है की व्यापारिक स्तर पर जनता को इसके लिए प्रेरित करने से अच्छा इसके लिए सरकार को प्रेरित किया जाय क्यों की सरकार के एक निर्णय से ही आयात और आयात के माध्यम से भुगतान दोनों को नियंत्रित किया जा सकता है. बरी बरी नमक नहीं डालने की बजाय के पूरी कढ़ी में नमक डालना उचित है. जैसे अमेरिका कई बार करता है और विश्व व्यापार संगठन का नियम आड़े नहीं आता उसी प्रकार सरकार या तो चीनी सामान बैन करे या इतना आयात शुल्क लगाये ताकि भारतीय बाजार में उचित प्रतिद्वंदिता हो और चीनी सामान सस्ता हो घरेलू उद्योगों को मृत न करें. चीनी सामान का उपभोग करने वाले भी जान लें हर चीनी उत्पाद पर जो हम मूल्य भुगतान करते हैं उस मूल्य में चीनी कम्पनियों को सिर्फ उनका लागत और लाभ नहीं होता है उसमें चीनी सरकार का टैक्स भी शामिल होता है जो मूल्य में शामिल होता है, और वह उसी टैक्स का इस्तेमाल सैन्य खर्च में करता है जो अंततः भारत के खिलाफ ही होता है, अतः आज से चीनी वस्तुवों के आयात से पहले १० बार सोचें लेकिन सरकार को तुरंत सोचना पड़ेगा. और हाँ छोटे दुकानदारों, रेहड़ी वालों या अन्य के पास जो चीनी सामान पडा है उसके बहिष्कार का कोई मायने नहीं है यह भारतीय इकॉनमी की ही रीढ़ तोड़ेगा क्यों की इसका पेमेंट तो चीन बहुत पहले ही प्राप्त कर मुस्करा रहा है.

अगर चीन भारत की व्यापारिक सम्बन्ध को समझना है तो यह जान लिजिय की निर्यात की तुलना में हमारा आयात उनसे कहीं ज्यादा है, भारत अपने कुल निर्यात का 9 प्रतिशत और कुल माल आयात का 18 प्रतिशत चीन से करता है, इसी से समझ जाइये की उसके साथ हमारी व्यापारिक निर्भरता कितनी है। सिर्फ बिजनेस टू उपभोक्ता (B2C) ही नहीं चीन इंडिया में बिजनेस टू बिजनेस(B2B) बड़ा बिजनेस करता है. बिजनेस टू बिजनेस(B2B) में कच्चे माल , एपीआई, बेसिक रसायन, कृषि-मध्यवर्ती वस्तुएं , ऑटो पार्ट्स, कैपिटल गुड्स में भारतीय बाजार और उत्पादक बहुत सीमा तक चीन पर निर्भर हैं। हमारे कुल आयात में , 20 प्रतिशत ऑटो कंपोनेंट और 70 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक आइटम चीन से आते हैं। इसी तरह, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का 45 प्रतिशत, एपीआई का 70 प्रतिशत और आयातित 40 प्रतिशत चमड़े का सामान चीन से आता है। अतः बिजनेस टू उपभोक्ता (B2C) आइटम में चीन के बैन करने या उनपर आयात शुल्क बढ़ाने से से घरेलू उद्योगों को तत्काल राहत और आत्मनिर्भरता नहीं बढ़ेगी क्यों की इनके वस्तुवों की लागत भारत के उपभोक्ताओं को भारतीय कम्पनियों की अपेक्षा आधे से भी कम रेट पर मिलती हैं. इस कारण कई सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग बंद हो गए क्यों की इनकी उत्पाद लगात चीन की बिक्री मूल्य से भी ज्यादे आती थी. सरकार को बिजनेस टू बिजनेस में में बैन या आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी केस टू केस बेसिस पर करना पड़ेगा ताकि अपना मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित ना हो.

चीनी सामान के शत प्रतिशत बायकाट से भारत के आयातक उनका माल मंगाना बंद कर देंगे जिससे भारत का चालू खाते का घाटा कम होगा, विदेशी मुद्रा का भण्डार बढेगा ही साथ ही साथ उन उत्पादों की भरपाई फिर घरेलू उद्योग करेंगे और सप्लाई कम होने पर मूल्य थोड़ा ज्यादे पड़ने पर भी घरेलू माल की बिक्री बढ़ेगी और लॉन्ग रन में मृतप्राय पड़ा माइक्रो सेक्टर फिर खड़ा हो जायेगा लेकिन इसमें समय लगेगा. हालाँकि शुरुवात के दिनों में जब तक घरेलू उत्पादक इस गैप को नहीं भरते हैं तब तक घरेलू माइक्रो फुटकर व्यापारियों को सप्लाई न मिलने से व्यापार प्रभावित होगा, साथ ही साथ बायकाट सरकार के लेवल पर होना चाहिये जनता के स्तर पर इसे प्रमोट करना व्यापारियों को भारी नुक्सान पहुंचा सकता है खासकर के सूक्ष्म फुटकर व्यापारी अन्यथा जो व्यापारी माल खरीद के पूंजी फंसा के बैठे हैं इस बहिष्कार से उनका बड़ा नुक्सान हो जाएगा साथ में रेहड़ी वाले दुकानदारों का जिसकी मलाई चीन पहले ही काट चुका है. अतः नए आयात बंद होने चाहिए और हो चुके आयात का खपत कर लेना चाहिए और इस खपत वाले समय में वैकल्पिक उत्पादन क्षमता विकसित करनी चाहिए. भारत और चीन के ट्रेड में नफा-नुकसान की समग्रता में देखें तो नफे में चीन और नुक्सान में भारत है. यह सिर्फ चालू खाते का घाटा बढ़ने और विदेशी मुद्रा का भण्डार घटने को लेकर ही नहीं है. चीन से उपभोक्ता वस्तुओं के निर्यात में यहाँ के MSME सेक्टर की रीढ़ तोड़ने का काम किया है. बड़े उद्यम तो किसी तरह बच गए लेकिन छोटी पूंजी से उद्योग चलाने वाले मर गए थे, उनके उत्पाद महंगे और चीन के सस्ते होने पर बाजार के व्यापारी चीन का माल ही खरीदते थे, और इस प्रकार यहाँ का व्यापारी उद्यमी बनने की बजाय मजबूरी में ट्रेडर बनता था. 
 

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