मध्यम के बोझ से दबता माइक्रो


अभी हाल में दो घटनाएँ हुई हैं पहला स्माल इंडस्ट्रीज एंड मैन्युफैक्चररस एसोसिएशन- सीमा के एक वेबिनार में मैंने माइक्रो के लिए एक अलग सेल बनाने के प्रस्ताव पर भारत सरकार के सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग केंद्रीय राज्य मंत्री श्री प्रताप सारंगी ने सहमति व्यक्त की और इसके कुछ दिनों बाद ही जब सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग के लिए विशेष पैकेज की घोषणा हुई उसमें तीन बड़ी राहत थी, पहला की अब 200 करोड़ के सरकारी टेंडर के लिये ग्लोबल टेंडर नहीं होगा, दूसरा सरकारी भुगतान 45 दिन में होगा और तीसरा 3 लाख करोड़ का पहले आओं पहले पाओ की नीति पर क्रेडिट गारंटी दी जाएगी. यहाँ तक तो ठीक थी, लेकिन इसके कुछ दिन के बाद एक और बड़ी घटना हुई जिस पर व्यापक राष्ट्रीय विमर्श नहीं हो सका. इस निर्णय का प्रभाव समझना है तो एक उदाहरण को समझना पड़ेगा. एक गाँव में एक घर था . उस घर में 99 फीसदी लोग कमजोर थे और 1 फीसदी थोडा ठीक ठाक, ये लोग खासकर 99 फीसदी हमेशा गाँव के संसाधन बंटवारे में अपने हिस्से का हक़ नहीं पाते थे. इस घर के लिए नियम लाया गया की गाँव में जब भी संसाधनों का बंटवारा होगा तो 25 फीसदी इसी कमजोर परिवार को मिलेगा. आगे कोई धंधा किया जायेगा तो उसमे भी इस परिवार को प्राथमिकता दी जाएगी, साथ में यह भी सुविधा दी गई की इस परिवार का जो भी ग्राम पंचायत के पास बकाया होगा वह इन्हें कुछ ही दिनों के अंदर भुगतान कर दिया जायेगा. यह सब सुन यह परिवार बड़ा खुश हुआ की इस गृह निवासी के पहचान वाले हर व्यक्ति को यह सुविधा मिलेगी और जो गाँव के अन्य शक्तिशाली वर्ग है इनका हक़ नहीं मारेंगे. लेकिन कुछ दिन बाद ही इनकी ख़ुशी फुर्र हो गई,जब उन्हें पता चला की उनके घर में गाँव के कुछ शक्तिशाली को नियम बना ठहरा दिया गया, अब वह अपने आपको ठगा महसूस करने लगे क्यों की उन्हें लगने लगा की इस घर को दी जारी सुविधा का जो कानून बना था उसका फायदा ले इस घर को मिलने वाले हिस्से को यही नए शक्तिशाली ले लेंगे इन्हें फिर कुछ मिलेगा ही नहीं क्योंकी गाँव के पास संसाधन तो वैसे ही कम था, उसमें से कुछ व्यवस्था इस घर के लिए बनी थी लेकिन इन्हें सुविधा तो कुछ मिली नहीं इनसे ही इनके नाम पर इनका हिस्सा मारने वाले आ गए.

अब मै आपको भारत में सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) सेक्टर के वर्ष 2018-19 के वार्षिक रिपोर्ट के कुछ आकंडे बताता हूँ. एमएसएमई सेक्टर का जीडीपी में  योगदान 29 फीसदी है और इस सेक्टर में पूरे देश में 11.09 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है. इस 11.09 करोड़ लोगों में से 10.76 करोड़ लोगों को रोजगार मतलब 96.96 फीसदी लोगों को रोजगार सिर्फ माइक्रो (सूक्ष्म)  सेक्टर देता है. अब आते हैं संख्या पर, 2018-19 के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कुल एमएसएमई की संख्या देश में 6.33 करोड़ है और इस 6.33 करोड़ में सिर्फ माइक्रो (सूक्ष्म)  सेक्टर ही 6.30 करोड़ है मतलब 99.47 फीसदी और बाकी बचे 0.53 में लघु एवं मध्यम. ,मतलब सूक्ष्म जो है, संख्या में 99.47. फीसदी है और रोजगार प्रदाता में 96.96 फीसदी है, लेकिन 1 जून को जो अंतिम समय में हालिया बदलाव हुए उसने इस माइक्रो (सूक्ष्म) सेक्टर को एक बड़ी टीस और गहरा घाव दे दिया, लेकिन इस पर राष्ट्रीय विमर्श नहीं हो पाया. विमर्श नहीं हो पाने का एक प्रमुख कारण है की एमएसएमई का यह माइक्रो (सूक्ष्म) सेक्टर इतना सूक्ष्म है की उसे मालूम ही नहीं होता है की एमएसएमई का विमर्श मतलब उसका विमर्श होता है. बहुतों ने तो पंजीयन ही नहीं कराया है , क्या आपको मालूम है गाँव का एक पिक अप चलाने वाला भी एमएसएमई है, मशीन से काम करने वाला भी एमएसएमई है मतलब मशीन से फसल काटने वाला भी, आटा चक्की वाला भी, मशीन से गाडी धुलने वाला भी, किराये पर ट्रेक्टर चलाने वाला भी और छोटे मोटे कारोबार करने वाले जैसे बढई और लोहार भी. चूँकि उन्हें मालूम नहीं हँ तो इनके हिस्से के फायदे का बड़ा हिस्सा यही 0.53 फीसदी वाले ले जायेंगे.

 

अब आपको बताते हैं की एमएसएमई के परिभाषा में 250 करोड़ बिक्री वाले यहाँ तक की हजारों करोड़ वाले भी क्यों की निर्यात बिक्री शर्तों की गणना में शामिल नहीं है, कैसे दबंग हिस्सेदार बन माइक्रो का नुक्सान पहुंचाएंगे. बड़े उद्यमी अब एमएसएमई का आवरण पहन सूक्ष्म एवं लघु उद्यम के हिस्से का हक अपनी तरफ खींच लेंगे, परिभाषा बदलने से एमएसएमई में 250 करोड़ बिक्री वाले भी आ जायँगे और कई तो हजार करोड़ वाले भी आ जायेंगे यदि उनका निर्यात ज्यादे है और घरेलू बिक्री 250 करोड़ से कम जो इससे पहले बड़े उद्यम में आते थे. यह परिभाषा परिवर्तन एमएसएमई के बुनियादी सिद्धांत एवं स्थापना के उद्देश्यों के खिलाफ है. इन बड़े उद्यमों के पास विशेषज्ञों का एक पूरा तंत्र होता है जो एमएसएमई के लिए सुरक्षित 25 फीसदी कोटा को खुद ही संतृप्त कर जायेंगे, 200 करोड़ के टेंडर के ग्लोबल ना होने की सहूलियत का फायदा भी यही बड़े उद्यम एमएसएमई का आवरण ओढ़ उठा ले जायेंगे, बड़े सेट अप के कारण इनकी उत्पादन या कार्य लागत भी कम आएगी और इससे बाकी बचे 99.47 फीसदी  सूक्ष्म उद्यम को कुछ नहीं मिलेगा. 3 लाख करोड़ गारंटी पैकेज जो पहले आओ पहले पाओ के सिद्धांत पर है उसकी सारी मलाई भी यह ले जायेंगे, एमएसएमई के लिए सुरक्षित बैंकिंग सुविधाओं को भी यही संतृप्त कर लेंगे और बैंक भी इन्हें ही प्राथमिकता दे अपना कोटा संतृप्त कर लेंगे क्यों की इनके पास तंत्र है. यहाँ एक चीज और स्पष्ट होनी चाहिये की रेहड़ी व पटरी वाले एमएसएमई में नहीं आते हैं, अतः उनको दी गई सुविधा को एमएसएमई से न जोड़ा जाय इस नए नियम से घर और सुविधाओं का साइज़ बड़ा करने की जगह घर और सुविधा उतना ही रख इसमें बलशाली दावेदार आ गए हैं जो अब सूक्ष्म एवं लघु का ही हिस्सा खा जायेंगे जबकि हर हाथ को काम देने की बात हो तो माइक्रो 97 फीसदी का योगदान करते हैं और यदि महिला रोजगार की बात करें तो भी माइक्रो आगे हैं वह 20.44 फीसदी योगदान करते हैं जबकि मध्यम सिर्फ 2.67 फीसदी. सरकार को इस पर पुनः विचार करना चाहिए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही एक आनुसंगिक संगठन लघु उद्योग भारती के प्रस्ताव जिसमें उन्होंने मध्यम उद्योगों को सूक्ष्म एवं लघु से अलग रखने को कहा था उसे मान लेना चाहिए अन्यथा यह मध्यम वर्ग, सूक्ष्म उद्यम का हिस्सा खा जायेंगे, आकडे में तो एमएसएमई को दी गई राहत संतृप्त दिखेगी लेकिन हकीकत में 99% एमएसएमई मछली बिन पानी की तरह तरसेगी और एक दिन तड़प तड़प कर दम तोड़ देगी.

 

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