MSME का काल बन सकता कोरोना

विकास की जिस भयानक दौड़ में हम दौड़ रहे थे उसमें ब्रेक लगना ही था, ब्रेक लगा भी तो ठीक वैसे जैसे बहुत व्यस्त और लापरवाह आदमी को पहली बार डायबिटीज का पता चलता है तो वह सन्न हो जाता है ठीक  वैसा ही हाल किया इस कोरोना ने, आज पूरी दुनिया सन्न और सन्नाटे में है. लोगों के लिए अब जीवन प्राथमिकता हो गई और विलासिता पीछे छूट गई. देश के अब बड़े नेता भी कहने लगे हैं की अर्थव्यवस्था तो बाद में भी सुधार लेंगे पहले जीवन बचाना बहुत जरुरी है. कोरोना काल का यह संक्रमण दौर बड़ा दुखदाई होने वाला है जब तक इसकी वैक्सीन या दवाई नहीं बन जाती. यह संक्रमण अगर 6 माह भी चला तो सबसे अधिक मार खायेगा मध्य वर्ग और MSME सेक्टर. इकॉनमी की अगर बात करें तो MSME वर्ग के सर्विस सेक्टर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर एवं ट्रेडिंग सेक्टर के पास उतना शॉक अब्जोर्बेर नहीं होता की लगातार लग रहे इस झटके को वह उबार ले.

जितने भी MSME हैं उनकी आयर्जन की क्षमता काफी घट गई है जबकि सरकार का दिशानिर्देश है की मजदूरों एवं वेतनभोगियों को तनख्वाह देना है, इसके अलावा MSME के कुछ स्थाई खर्चे होते हैं जिन्हें आय हो न हो खर्च करने पड़ते हैं और इसमें मुख्य रूप से वेतन के अलावा रेंट, CC का ब्याज जो जून में ४ माह का इकठ्ठा देना है, बिजली का फिक्स्ड लोड आदि खर्चे हैं जो बड़े खर्चे हैं और उसे देना ही देना है बिक्री हो या न हो. ऐसे में जब जीवनावश्यक वस्तुवों के व्यापार को छोड़ किसी और व्यापार की बिक्री नहीं के बराबर है, सप्लाई चेन बुरी तरह रूका पड़ा है, तब भी उन्हें यह खर्चे करने हैं.  सरकार ने जो EMI और वर्किंग कैपिटल के ब्याज पर छूट दी है वह बहुत ही अल्पकालिक है और सिर्फ मई तक दी है और देते देते मार्च महीने के अंत में दी है जिस कारण मार्च महीने की बहुत सी EMI तो पे हो चुकी है, ब्याज वसूला जा चूका है वह EMI और ब्याज २७ मार्च के पहले वाला अब कोई बैंक लौटाने वाला नहीं है.

MSME के सामने सबसे बड़ी चिंता है की इस लॉक डाउन में वह अपने स्टाफ एवं मजदूरों को वेतन कहाँ से दे, बिक्री तो नगण्य ही हो गई है, बैंक EMI या ब्याज की राहत बहुतों के केस में नाकाफी है वेतन बिल के भुगतान के लिए और जब लॉक डाउन खुलेगा तो भी इन्हें उठ कर सामान्य होने में कम से कम ६ माह लग जायेंगे. जितने भी MSME हैं कहीं न कहीं वह लार्ज इंटरप्राइजेज के ही वेंडर हैं और लार्ज इंटरप्राइजेज के ऊपर पड़ी मार का भार आज भी और आगे भी MSME पर ही आने वाला है, देनदारी वसूली के साथ साथ MSME के कॉन्ट्रैक्ट की साइज़ भी कम होने की सम्भावना है . इसमें सबसे अधिक प्रभावित होंगे बिल्डिंग मटेरियल एवं कंस्ट्रक्शन श्रेणी के MSME क्यूँ की रियल एस्टेट या इन्फ्रा कम्पनी अपना कॅश फ्लो संतुलित करने के लिए कंस्ट्रक्शन MSME का बिल या तो होल्ड कर सकती हैं या इनसे अपनी दरें परिवर्तित करने को कह सकती हैं और इसका प्रभाव इस कड़ी के नीचे तक जायेगा. ठीक उसी प्रकार ऐसे सर्विस सेक्टर जो उत्पादन से सीधें नहीं जुडी हों वह भी बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं, उदाहरण हेतु किसी कम्पनी में आंतरिक अंकेक्षण या सलाहकार देने वाली संस्थाए, लॉक डाउन के तुरंत बाद कई कम्पनियां ऐसी सेवाओं को लम्बे समय के लिए या तो स्थगित कर सकती हैं या उसकी साइकिल कम कर सकती हैं या उसकी फीस कम कर सकती हैं जिस कारण से इन उद्यमों को भयंकर नुक्सान और नौकरी में छंटनी जैसे कदम उठाने पड़ सकते हैं. लॉक डाउन के बाद उसे मजदूरों की अनुउपलब्धता, ग्राहक व्यवहार में परिवर्तन, रेट कट का दबाब, उत्पादन बंद करने की नौबत, नकदी संकट, सप्लाई चेन का संकट आदि से दो चार होना है. ये तो चुनिन्दा उदाहरण हैं लगभग खपत कम होने से MSME की लगभग कमर टूटने वाली स्थिति हो सकती है.

सरकारें मजदूरों के भुगतान के लिए तो दबाब और कानून बना रहीं है लेकिन वह पैसा कहाँ  से आएगा देने के लिए उसकी व्यवस्था पूरी तरह से नहीं कर पा रहीं हैं, बैंकिंग में दी गई रहत काफी नाकाफी हैं, साथ में यह खर्चे को बढाने ही वाला है जून माह से, जबकि कोरना के असली आर्थिक दुष्प्रभाव तो जून से शुरू हो कम से कम दिसम्बर तक रहने के आसार हैं, सरकार इसके लिए वेज  सब्सिडी भी ला सकती है यदि चाहे तो. दरअसल MSME देश के उद्यम और वव्यापार में वह मध्य वर्ग है जो दो चक्की के पाटों में अक्सर पीस जाता है, देखा जाय तो निम्न वर्ग के लिए तो सरकार खड़ी है, उच्च वर्ग तो वर्षों तक की सक्षमता लेके बैठा हुआ है लेकिन इस मध्य वर्ग के साथ कौन खड़ा है? यह MSME के बीच बड़ा सवाल है. इन माध्यम वर्गीय लोगों में सिर्फ MSME के मालिक ही नहीं है इसमें काम करने वाले वो मध्यम-वर्गीय लोग भी हैं जिन्हें शायद नौकरी से निकाले जाने का संकट ज्यादे है, MSME का धंधा कम होने पर पहली मार ऐसे MSME वेतनभोगियों पर ही पड़ेगी.

ऐसा नहीं है की इस समस्या का इलाज नहीं है, इलाज है, सरकार को MSME के लिए कॅश फ्लो का इंतजाम बिना किसी अतिरिक्त भार के करना पड़ेगा, जब रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर एवं एसएलआर के माध्यम से बैकों के पास तरलता पहुँच ही गई थी तो यह मोरेटेरियम सरकार कम से कम 6 माह कर सकती थी, साथ ही साथ जो ब्याज का भार भी पड़ रहा है उसे सिर्फ EMI राशि पर लेती बजाय पुरे बकाये राशि के तो अच्छा रहता क्यों की राहत की राशि तो उतनी EMI की राशि है, लेकिन बैंकों की जो गणना आई है उसमें सम्पूर्ण बकाये राशि पर मासिक ब्याज लेने से मोरेटेरियम का पूरा उद्देश्य असफल हो रहा है. आज देश के MSME की भी वही हालत है जैसे सूखा पड़ने पर किसान की होती है, किसान की कर्ज माफ़ी से कोई आपत्ति नहीं लेकिन MSME के कर्जमाफी की जगह ब्याजमाफी तो सरकार कर ही सकती है. सरकार सभी तरह के ऋणों पर ब्याज दर कम करने का भी प्रस्ताव ला सकती है, बैंकों द्वारा अनावश्यक सुपर विजन, इंस्पेक्शन, न्यूनतम बैलेंस और पेनल जैसे चार्ज एवं पेनल ब्याज हटाने का भी प्रस्ताव ला सकती है. सबसे अधिक प्रभावित सेक्टर जैसे की टूरिस्ट, एविएशन, सप्लाई चेन पर सरकार चाहे तो विशेष पैकेज ला सकती है, और जरुरत समझी जाए तो इंडस्ट्री के हिसाब से टैक्स हॉलिडे भी लाया जा सकता है.

यदि सरकार को लगता है की इससे राजकोषीय घाटा पर भार पड़ेगा तो वह कोरोना राहत फंड को टैक्स पेमेंट या सरकारी बांड से लिंक कर दे, देश के बड़े घराने जो सक्षम हैं और सैकड़ों करोड़ दे रहें हैं वही लोग जब इसे टैक्स देयता से एडजस्ट करने या सरकारी बांड में परिवर्तित करने के ऑफर से इस राशि को हजारों करोड़ में कर देंगे और ऐसे सरकार का टैक्स कलेक्शन भी हो जायेगा और राजकोषीय घाटे की उस कमी की भी भरपाई हो जाएगी जो MSME से टैक्स न आने के कारण हो रही थी, सिर्फ कोरोना फंड पर 80जी की छूट इसे आकर्षक बनाने के लिए काफी नहीं है, इस योजना से देश का राजकोषीय घाटा भी संभल जायेगा और MSME सेक्टर को भी बड़ी राहत हो जाएगी, वैसे भी जो भी घोषित बजट और अनुमान थे इस वर्ष के उसमें से आधे तो कोरोना इन्फ्रा पर ही इस वर्ष खर्च होने वाले हैं तो क्यों न कोरोना फंड को टैक्स देयता से जोड़ कर दोनों को साध लिया जाय, यह योजना कोरोना केजंग में जनता की टैक्स के माध्यम से जनभागीदारी हो जाएगी. .

साथ ही सरकार को चाहिए की जो भी बिजली की फिक्स्ड चार्ज है उसे माफ़ कर दे और ६ माह तक सिर्फ प्रयोग में लाये गए बिजली पर ही बिल ले. व्यापारी द्वारा भरे गए टैक्स की राशि के बराबर उसे प्रतिभूति रहित ओवरड्राफ्ट ऋण को सुगम बनाये. कोई भी ऋण कम से कम एक वर्ष तक सिर्फ इसलिए NPA न हो की वह इस दिसम्बर 2020 माह तक की किश्त न चूका पाया हो. NCLT की कठोरता को भी कम करे. MSME के बिक्री की चिंता को कम करने हेतु MSME से जो सरकारी खरीद की सीमा है उसे ४०% तक किया जाए. वैधानिक टैक्स और कम्पनी कानून की कई प्रक्रियाओं में तो राहत दी गई है लेकिन इस राहत की जून में समीक्षा कर फिर सितम्बर तक बढाया जाए. MSME को आसान ऋण, क्रेडिट रेटिंग के बिना और सिर्फ प्राथमिक प्रतिभूति के साथ सुगम बनाया जाय.

यदि सरकार ये सब उपाय तत्काल नहीं करती है तो MSME सेक्टर वैसे ही कई संकटों से जूझ रहा था ऐसे में यह कोरोना संकट उसके लिए काल बन जायेगा.

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