टैक्स की जनभागीदारी एवं सहकारी संघवाद

जीएसटी राजस्व की धीमी वृद्धि और और राज्यों को मुआवजा उपकर के देरी से हो रहे आवंटन पर चिंता व्यक्त करते हुए, गत दिसम्बर में  कुछ गैर बीजेपी शासित राज्य सरकारें केंद्र के खिलाफ कानूनी सहारा लेने पर विचार कर रही थी, यदि उनको दिया जाने वाला बकाया बकाया भुगतान तुरंत नहीं हुआ तो। केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी जैसे सभी गैर-भाजपा राज्य - सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की योजना बना रहे हैं, अगर उनकी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया तो। जीएसटी का केंद्र एवं राज्यों के बीच बंटवारा सहकारी संघवाद के लिए एक बड़ी और नई व्यावहारिक चुनौती है. बकाया बढ़ने से राज्य हिल गए हैं। केंद्र से उनकी वित्तीय पाइपलाइन सूख रही है ऐसा वे दावा करते हैं, और वे अब अपना बकाया भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, क्यों कि जुलाई 2017 में लागू हुई जीएसटी ने अधिकांश केंद्रीय और राज्य करों को रद्द कर दिया और राज्यों के विवेकाधिकार को जीएसटी  कौंसिल के माध्यम से रूट कर दिया। जीएसटी लागू होने के पहले पांच वर्षों में राजस्व के किसी भी नुकसान के लिए राज्यों को कानून द्वारा गारंटी दी गई थी। हालांकि, कई राज्य अब दावा कर रहे हैं कि केंद्र ने उन्हें अगस्त से भुगतान नहीं किया है।

राज्यों की चिंता करने वाली एक और बात यह है कि 15 वां वित्त आयोग केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करने वाला पैनल केंद्र द्वारा एकत्र करों के राज्यों के हिस्से को कम कर सकता है। यह उनके लिए फिर से राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता के बारे में सोचने पर मजबूर करता है जब वे देश के अधिकांश सार्वजनिक खर्चों के लिए जिम्मेदार होते हैं और केंद्र सरकार की तुलना में अधिक विवेकपूर्ण होते हैं। जीएसटी भुगतान की देरी ने राज्यों के राजकोषीय गणित को अव्यवस्थित कर दिया है। राज्य अपने राजस्व के लगभग आधे हिस्से के लिए केंद्र से स्थानान्तरण पर निर्भर हैं। राज्यों के पास संकट से निपटने के लिए उधार लेने के लिए ज्यादा जगह नहीं है क्योंकि उनका सकल राजकोषीय घाटा उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 3% से अधिक नहीं हो सकता है, हालांकि सीमा को 3.5% तक बढ़ाने के कड़े प्रावधान हैं और उन्हें इसके लिए केंद्र की मंजूरी लेनी होगी ।

सहकारी संघवाद की इस चुनौती को टैक्स की जनभागीदारी से दूर किया जा सकता है. वर्तमान में जो टैक्स प्रणाली है वह इस त्रिस्तरीय लोकतंत्र में सिर्फ दो स्तर के सरकारों को ही इस टैक्स संग्रह ने हिस्सेदार बनाता है, सबसे जमीनी एवं प्रत्यक्ष सरकार पंचायत को इस टैक्स में भागीदार नहीं बनाया गया है, यह टैक्स उनके पंचायत से ही संग्रह होकर पुनः एक लम्बी प्रक्रिया एवं अप्रूवल के बाद रिस रिस के उनके पास आता है.

टैक्स की जनभागीदारी, पंचायतों एवं जन को एक निश्चित सीमा तक विवेकाधिकार देना दुनिया में एक नया विचार है और मेरा मानना है कि इसकी पहली शुरुआत भारत में ही होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश और त्रि-स्तरीय सरकार की प्रणाली में, यह सहकारी संघवाद आधारित अवधारणा जमीनी स्तर के लोकतंत्र को मजबूत करेगी और देश के वित्तीय प्रशासन में सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ाएगी, लोग अपने गांवों, शहरों, राज्यों, योजनाओं को निधि दे सकते हैं और पसंद की या सरकार भी किसी विशेष योजना के लिए टैक्स दे सकते हैं।

सरकार को अपने कर ढांचे में इस जनभागीदारी आधारित टैक्स सिस्टम को शुरू करना चाहिए। टैक्स की यह जनभागीदारी, देश में नागरिक लोकतंत्र में प्रत्यक्ष वित्तीय भागीदारी होगी और इसके माध्यम से देश के कर का संग्रह बढ़ेगा। वर्तमान कर संरचना में केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास संग्रहित कर के उपयोग के बारे में एक विवेकाधिकार है जो जिसका विस्तार पंचायत और जन तक बस कर देना है. इस व्यवस्था के तहत सरकारों के साथ साथ जो अब तक अपने विवेक के अनुसार सरकारी योजनाओं और खर्चों में वितरित करती रही हैं हैं उसमें कुछ हद तक पंचायतों एवं नागरिक को भी अधिकार मिल जायेगा जो उन्हें कर भुगतान के लिए आकर्षित करेगा। सरकार को यदि NUDGE सिद्धान्त का प्रयोग करना है तो यहाँ करना चाहिए.

यदि कर संग्रह एवं इसके वितरण में नागरिक एवं पंचायत की भागीदारी बढ़ जाती है,  जिसके तहत उन्हें अपने स्वयं के कर उपयोग के लिए अनुमति दी जाएगी , यदि उन्हें अपनी पसंद की योजनाओं को वित्त करने की अनुमति है, तो लोग अधिक कर का भुगतान करने में प्रसन्न होंगे और देश के कर ढांचे में अधिक भाग लेंगे ।

यदि कानून यह प्रदान करता है कि नागरिक अपने स्थानीय पंचायत या सरकार की योजनाओं के चुनाव में स्वेच्छा से अपने कर के 20% या किसी निश्चित प्रतिशत पर खर्च कर सकता है, और इसके लिए आय से व्यय में कटौती के विपरीत, जो वर्तमान में 80 जी धारा में है की जगह, कर भुगतान ही मान लिया जाय, क्योंकि अंततः इसका उपयोग  वहीँ किया जा रहा है जहां एकत्रित कर को सरकारों दुबारा रिवर्स चैनल से उनके पास भेजने वाली थी।

अधिकांश लाभार्थी पंचायत होंगे चाहे वह ग्राम पंचायत हो, नगर पंचायत या नगर निगम। पंचायती राज का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त होगा और सुराज और स्वराज की अवधारणा वास्तविकता में होगी। कस्बे और गाँव के विकास के लिए अधिक धन इस प्रणाली से ही आएगा। यदि कोई पंचायत अपनी पंचायत के लिए अपनी  साधारण सभा में किसी भी विकास परियोजना को मंजूरी देता है, तो उसके लिए केवल कोष के लिए राज्य वित्त या केंद्र वित्त की तरफ देखना जरुरी नहीं है, वे अपने नागरिकों से अपने कर विवेकाधिकार का उपयोग करने के लिए अपील कर सकते हैं और इसके माध्यम से, वे आवश्यक धन एकत्र कर सकते हैं, हां इसकी एक महत्तम सीमा निश्चित की जा सकती है।

यदि नागरिक अपनी स्वयं की पंचायत परियोजना में से कुछ का विकास करना चाहता है जैसे सीवर सिस्टम का निर्माण, पार्क का निर्माण, पेयजल की व्यवस्था आदि, और यदि पंचायत के सामान्य सदन द्वारा कार्य को मंजूरी दी जाती है, तो नागरिक स्वयं अपने विवेक का उपयोग कर पसंद की योजनाओं की फंडिंग कर सकता है।

यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि एक करदाता के रूप में, विवेक की सीमा केवल एक निश्चित प्रतिशत होनी चाहिए, जैसे मान लो यह सीमा २०% निश्चित की और अगर एक नागरिक ने इसके तहत विवेकाधीन टैक्स 5000 रूपये दिया, लेकिन उसका कुल टैक्स 10000 बना, तो उसका टैक्स भुगतान २००० ही माना जायेगा तथा अतिरिक्त 3000 रूपये का भुगतान केंद्र सरकार के विवेकाधीन हिस्से में आना चाहिए। सरकार इस अतिरिक्त योगदान को उसके कर का भुगतान मान सकती है। यदि उस नगरपालिका के लिए कर विवेकाधीन योजना के तहत प्राप्त संचयी योगदान उसके अनुमानित बजट से अधिक हो जाता है, तो अतिरिक्त संग्रह फिर से केंद्र या राज्य सरकार के हिस्से आएगा और सरकार इस राशि को अपने स्वविवेक से देश के लिए पुन: व्यय तंत्र के तहत खर्च कर सकती है।इस तरह स्थानीय पंचायत पर 20% या किसी भी स्वीकृत प्रतिशत कर को करदाता की पसंद के अनुसार खर्च किया जाएगा और 80% सरकारों की इच्छा के अनुसार खर्च किया जाएगा।

इस प्रणाली को किसी भी कर प्रणाली में भी लागू किया जा सकता है। जीएसटी में पंजीकृत व्यापारियों को अपनी पसंद का एक निश्चित प्रतिशत, अपनी पंचायत की अपनी पसंदीदा योजनाओं या सरकारी योजनाओं में भुगतान करने का एक विकल्प होना चाहिए। जीएसटी में अंतिम कर की गणना की तुलना करने की जरुरत नहीं है , क्योंकि जीएसटी में टैक्स उसके अंतिम गणना के बाद भुगतान किया जाता है, इस तरह के अतिरिक्त टैक्स संग्रह की संभावना आयकर में ही उत्पन्न हो सकती है. यह योजना लोकतंत्र को अंतिम स्तर तक मजबूत करेगी और व्यवस्था को जवाबदेह बनाएगी। नागरिकों के भीतर लोकतंत्र की भावना विकसित होगी और कर संग्रह को भी बढ़ाएगी, राज्यों एवं पंचायतो की वित्तीय भागीदारी रहेगी जो सहकारी संघवाद के सिद्धांत को और मजबूत करेगी.

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