मंदी ऐसे रोकें


चहुँ ओर मंदी की चर्चा है, साधारण शब्दों में इसे समझें तो जनता ने खर्च के मामले में सतर्कता बरत रक्खी
है, और सिर्फ वही खर्च कर रहें हैं जो बहुत जरुरी है, कई बार तो जरुरी खर्चों में वरीयता बना रहें हैं. इसका आशय यही है की लोगों के हाथ में कॅश नहीं है, लोग अब काफी बचाव मुद्रा में आ गए हैं, निवेश बंद हो गया है, पूंजीगत खर्च काफी कम कर रहें हैं और बचत की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में सरकार को जनता के हाथ में तत्काल नगदी पहुँचाने की जरुरत है. हालाँकि सरकार ने मंदी रोकने के उपाय किये हैं, लेकिन ये सारे लॉन्ग टर्म है. अर्थव्यवस्था को अभी तुरंत इंजेक्शन देकर दर्द दूर करने की जरुरत है तत्पश्चात योजनाबद्ध इलाज करने की जरुरत है, यदि आज अर्थव्यवस्था में दर्दनिवारक इंजेक्शन नहीं दिया गया तो मंदी की बीमारी से पहले यह अपने असहनीय दर्द से ही दम तोड़ देगा. हमारे वित्तमंत्री ने मर्ज तो पहचान लिया है और स्वीकारोक्ति भी की है, लेकिन वह समझ नहीं पा रहीं है की यह सिर्फ इकॉनमी की एंटीबायोटिक दवाओं से नहीं ठीक होने वाला है, इसे तुरंत दर्दनिवारक इंजेक्शन, फिर कुशल डाक्टरों की टीम का निर्माण, तत्पश्चात एक सर्जरी, फिर एंटीबायोटिक दवाओं की प्रक्रिया और फिर पोस्ट ऑपरेशन देखभाल जैसी पूरी प्रक्रिया अपनानी पड़ेगी. इन सब उपरोक्त उपायों में से वित्त मंत्री सिर्फ इकॉनमी की एंटीबायोटिक दवाएं दे रहीं हैं, उनका ध्यान दर्दनिवारक इंजेक्शन पर नहीं जा रहा है, उनका ध्यान नहीं जा रहा है की कुशल डॉक्टर कम हो रहें हैं या छोड़कर जा रहें हैं.

आइये चर्चा करते हैं की दर्द क्या है और दर्द निवारक इंजेक्शन कैसे दिया जाय. दर्द यह है की हाथ में पैसा नहीं है और बीमारी का नाम है मंदी. तो सबसे पहले इस दर्द पर काम करना पड़ेगा, यदि उनके हाथ में पैसा पहुंचा दिया जाय तो दर्द कम होगा और वो जो खर्च करना बंद कर दिए हैं, यहाँ तक की जरुरी खर्चों को भी प्राथमिकता में बाँट दिए हैं को वो फिर से शुरू करेंगे जिससे इकॉनमी की साइकिल फिर से चलनी शुरू हो जाएगी.

वित्त मंत्री ने टैक्स सुधार के जो भी उपाय किये हैं उसके लॉन्ग टर्म प्रभाव हैं, लेकिन ज्यादेतर के असर अगले वर्ष मार्च जुलाई और सितम्बर में आयेंगे जब अंतिम तौर पर टैक्स भरने का समय आएगा, तत्काल में इनकम टैक्स फ्लो में बचत नहीं आएगा, वैसे भी कई लोग नुक्सान में चल रहें हैं तो टैक्स और एडवांस टैक्स वैसे भी उन्हें कम भरना था. GST के रेट को कम करना भी लॉन्ग टर्म एंटीबायोटिक दवा है क्यों की यहाँ तो लोग बेसिक प्राथमिकता खर्च ही कम कर रहें है तो माल ५% से सस्ता भी हो जाए तो बहुत दर्द कम नहीं होने वाला. दर्द तभी कम होगा जब उनके हाथ में पैसा आएगा. वित्त मंत्री ने बोला रेपो रेट कम करेंगी जिसका फायदा बैंक अपने ग्राहकों को देंगे, लेकिन यहाँ बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनिया चालू हैं वो फायदा तो देती हैं लेकिन मासिक किश्त कम करने की बजाय इसका समायोजन वह ऋण की अवधि घटा कर करती हैं. जनता ने ध्यान दिया होगा की रेपो रेट घटने के बाद उनके पहले से लिए गए लोन की किश्त नहीं घट रही है, कारण यही है की बैंक इसका समायोजन अवधि घटा के कर रहें हैं, जबकि उन्हें किश्त की राशि घटाने में करनी चाहिए. सरकार को सबसे पहले तो यह स्पष्ट आदेश देना चाहिए की रेपो रेट की घटोत्तरी से जो फायदा पहुँचाना है वह सिर्फ और सिर्फ किश्त घटा कर के ना कि अवधि घटा कर के. साथ में सरकार को अगले जुलाई तक, जब तक टैक्स सुधार के फायदे अंतिम तौर पर जनता तक नहीं पहुंचता है उसे जनता के लोन की किश्त अन्य तौर पर कम करने का प्रयास करना चाहिए. मसलन आपने देखा होगा की इस मंदी से मुख्य रूप से शहरी मध्य वर्ग परेशान है क्यों की पिछले दशक के आक्रामक बैंक विपणन की वजह से सबने पर्सनल लोन, व्हीकल लोन, होम लोन आदि लेकर रक्खे हुए हुए हैं, कई तो किराये के घर पर हैं ऐसे में उनका नगदी प्रवाह रुकता है तो पूरी साइकिल के साथ उनके जीवन पर संकट आ जाता है, सरकार को सबसे पहले एक साल तक इन तीनों पर्सनल लोन, व्हीकल लोन, होम लोन की किश्त आधी करने पर विचार करना चाहिए बजाय बहुत ज्यादे टैक्स रेट कम कर के क्यों की टैक्स रेट बहुत ज्यादे कम करेंगे तो राजकोषीय घाटा बढेगा और सरकारी खर्च कम होगा जिससे मंदी की अवधि फिर बढ़ जाएगी. फिर अनिवार्य ऋण अवधि पुनर्गठन के माध्यम से सरकार सभी बैंकों को आदेश दे की एक साल तक वह इस विधि का इस्तेमाल कर जनता के किश्तों की राशि को आधा करें बैंकों की तरफ से तो यह अनिवार्य हो लेकिन ग्राहकों की तरफ से यह विकल्प दिया जाय की यदि किसी ग्राहक की माली हालत ठीक है तो वह ऋण अवधि पुनर्गठन को स्वीकार न करे और वर्तमान ऋण अवधि के हिसाब से वर्तमन किश्त पर ही अपना ऋण चालु रखे. इस कार्य को अनिवार्य कानून बना के करना पड़ेगा क्यूँ की यहाँ पर क्रिटिकल मरीज का इलाज होना है जहाँ मरीज और नर्स के हिसाब से नहीं जो डॉक्टर फौरी तौर पर कहे वही इलाज होना है हो. यदि कोई कहता है की इससे बैंकों की तरलता प्रभावित होगी तो इसका जबाब यह होगा की जब पैसा पब्लिक के हाथ में जाएगी यो यह खरीदी करेंगे जब खरीदी करेंगे तो यह पैसा कम्पनियों के पास बिक्री के माध्यम से जायेगा, अतः जो तरलता कम्पनियों को ऋण और उसपर ब्याज  भार के रूप में बैंकों के द्वारा आता वह तो उसे बिक्री के माध्यम से लाभ के साथ आ रहा है, ब्याज का भार कम हो रहा है तो उसका शुद्ध लाभ भी बढ़ रहा है, और अंत में बैंकों की तरलता का उपयोग भी तो व्यवसाय को ऋण देने के लिए होना ही था जो अब बिक्री के माध्यम से हो रहा है, मतलब तरलता का अंतिम उद्देश्य तो प्राप्त हो ही रहा है और अवधि बढ़ने से बैंको की लाभप्रदता पे तो कोई असर नहीं पड़ रहा , वैसे भी जब आग लगी हो तो महाजन की चिंता की जाये या जनता की, राजधर्म कहता है आग लगी हो तो पहले जान बचाओं, बाद में माल बचाना. ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में कृषि यन्त्र, केसीसी और छोटे छोटे बिजनेस टर्म लोन होते हैं यहाँ भी जो ऋण किश्त वाले हैं वहां एक साल के लिए यह विधि अपनाई जा सकती है. साथ में सरकार को मनरेगा का इस्तेमाल हर तरह के निर्माण में करना शुरू कर ग्रामीण,कस्बाई और शहरी मजदूरों के हाथ में पैसा पहुंचाना चाहिए ताकि वह भी खर्च करना चालु करें. निर्माण खर्च और बढाने और उसमें मनरेगा का राशि बढाने से कई स्तरों से पैसा पब्लिक और बिजनेस में आएगा. सरकार को नगदी कृषि खरीद की प्रक्रिया भी तेज कर तुरंत पैसा किसानों के हाथ में पहुंचानी चाहिए साथ में निजी क्षेत्रों को एडवांस क्रॉप क्रय के बारे में प्रोत्साहन नीति बनानी चाहिए. GST में दर तो उतना ही कम करे जितना युक्ति सम्मत हो लेकिन उसे तत्काल GST, TDS और अन्य कानून के तहत देरी होने पर जो प्रतिदिन वाला पेनाल्टी मीटर है उसे एक साल के लिए विलम्बित करना चाहिए. सरकार के पास फंसे हुए लोगों के सभी तरह के भुगतान चाहे वो रिफंड हो या कॉन्ट्रैक्ट का हो या माल और खरीद का हो उसे तीव्र योजना बना के तुरंत निकालें ताकि पैसा बाजार में पहुंचे. MSME को ऋण और उसके देनदार वसूली के जो नियम बनाये गए हैं उसे युद्ध स्तर पर लागू करे और सरकारी स्कीम और MSME के लिए बने बैंक ऋण के निर्गत होने की मोनिटरिंग करें बैंक और NBFC में तत्काल आवश्यक राशि को डाले जो घोषित हुआ है.

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