बैंक जमा के जोखिम


एक दिन टीवी पर विज्ञापन देखा जिसमें एक युवा लड़की बैंक से पर्सनल लोन लेकर यूरोप घुमने के अपने विकल्प पर गर्व करती है और कहती है बैंक का लोन तो किश्तों में चुकाया जा सकता है हम अपना जीवन किश्तों में क्यों बिताएं. एक बार सुनने में यह अच्छा लगता है लेकिन यह पश्चिम से उधार लिया गया विचार है जो अक्सर वित्तीय संकट में फंसाता है. यूरोप में आज भी लोग ज्यादे ऋण के कारण ग्लोबल मंदी के शिकार हो जाते हैं. आज भारत में जो क्रयशक्ति में कमी आई है उसमें पश्चिम से उधार लिए गए इस विचारधारा का भी योगदान है जिसने जीवन को रिश्तों और किश्तों में बाँट दिया है. दरअसल भारत अब तक ग्लोबल मंदी से उतना प्रभावित नहीं होता था, यहाँ बचत की अर्थव्यवस्था हावी थी ना की किश्त की. आज भी भारत के बुजुर्ग समाज और घरेलु महिला समाज के लिए उनके बचत का सबसे प्रथम विकल्प बैंक में रक्खा गया उनका जमा ही है. नोटबंदी के वक़्त तक किसी को यह पता ही नहीं था की उनके जमा पर बैंकों की अंतिम देयता सिर्फ एक लाख है और यह नकदी की भांति नहीं है जिसपर केंद्र सरकार की गारंटी है, बाद में पता चला की बैंकों के जमा पर बैंको के विफल होने पर केंद्र सरकार की नहीं डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन की गारंटी रहती है जिसकी सीमा अभी १ लाख है. जब PMC वाली घटना हुई तो भारतीय नागरिकों की इस पर फिर से आँख खुली और उन्हें अपने आँखों के सामने अपना पैसा डूबता हुआ दिखाई दिया. भारत में बैंकों ने तो जमा लेने में तत्परता दिखाई लेकिन उसके जोखिम के बारे में ग्राहकों को नहीं बताया, यह भी एक तरह से ग्राहकों से धोखा का ही मामला है जिसमें ग्राहकों को बिना पूरा तथ्य बताये उनसे कम दर के ब्याज पर पैसा ले लिया गया और उसे ऊँचे ब्याज दर पर बाँट दिया गया.


बैंकों में आम आदमी की जमा कहाँ तक और कैसे सुरक्षित है के क्रम में जानते हैं की कौन कौन से बैंक यह जोखिम सुरक्षा देते हैं. भारत में कार्यरत सभी वाणिज्यिक बैंकों समेत विदेशी बैंकों की शाखाओं, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा जमा का बीमा डीआईसीजीसी द्वारा किया जाता है। इसके अलावा सहकारी बैंको में सभी राज्य, केंद्रीय और प्राथमिक सहकारी बैंक जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को कई निश्चित अधिकार प्राप्त हैं को भी यह कवर प्राप्त है । वर्तमान में सभी सहकारी बैंक डीआईसीजीसी द्वारा कवर किए गए हैं सिवाय प्राथमिक सहकारी समितियों के. यह जमा बीमा योजना उपरोक्त बैंकों के लिए अनिवार्य है। डीआईसीजीसी द्वारा सिर्फ बचत खाता, फिक्स्ड डिपाजिट , करंट अकाउंट , आवर्ती जमा, आदि का ही बीमा किया जाता है. डीआईसीजीसी विदेशी सरकारों के जमा, केंद्र या राज्य सरकारों की जमा राशि, इंटर-बैंक जमा, राज्य भूमि विकास बैंकों का जमा जो राज्य सहकारी बैंक के पास रहता है, भारत के बाहर प्राप्त और जमा के कारण कोई देय राशि या कोई भी ऐसी राशि जिसे विशेष रूप रिजर्व बैंक द्वारा इस सम्बन्ध में छूट प्राप्त हो, को बीमा कवर नहीं प्रदान करता है .


बीमा कवर के तहत एक बैंक में प्रत्येक जमाकर्ता को मूल और ब्याज राशि दोनों के लिए अधिकतम रुपए एक लाख तक का ही बीमा किया जाता है। अगर आप एक ही बैंकों के विभिन्न शाखाओं के कई खाताओं में जमा राशि रखते हैं तो भी हर जमा राशि का अलग अलग एक लाख का बीमा कवर नहीं है आपके पास, उस एक बैंक के सभी शाखाओं में जमा आपकी राशि के टोटल का सिर्फ १ लाख का ही बीमा रहेगा चाहे आप एक ब्रांच में एक खाते में रखिये या उसी के बैंक के कई ब्रांचों के कई खातों में रखिये. लेकिन यदि फंड विभिन्न प्रकार के स्वामित्व में रखे गए हैं या उन्हें अलग-अलग बैंकों में जमा किया गया है तो उन्हें अलग अलग बीमा कवर मिलेगा मतलब हर एक बैंक में एक एक लाख का बीमा कवर मिलेगा। यदि व्यक्ति संयुक्त रूप से बैंक की एक या एक से अधिक शाखाओं में एक से अधिक जमा खाते रखते हैं और यदि उनका संयुक्त नाम हर जगह एक ही क्रम में पंजीकृत है, तो इन सभी खातों को एक माना जाता है और सभी शाखाओं से धन जोड़कर ऐसे जमाकर्ताओं के लिए जमा बीमा की गणना कुल राशि पर 1 लाख तक होता है, हालांकि, यदि नाम अलग-अलग क्रम में हैं या नामों का सेट प्रत्येक खाते में अलग-अलग होता है तो जमाकर्ताओं को संयुक्त खातों के लिए 1 लाख रुपये तक का अलग-अलग बीमा कवर मिलता है । आपके जमा राशि का बीमा के लिए निर्धारण से पूर्व यदि कोई बकाया आपका बैंक के पास है तो बैंक आपके जमा से इस बकाये को काटने के बाद आपके बीमा कवर के बारे में गणना करेगी.


डीआईसीजीसी कभी भी सीधे विफल बैंकों के जमाकर्ताओं से नहीं निपटता है यह कार्य नियुक्त परिसमापक का होता है. यदि कोई बैंक परिसमापन में जाता है तो डीआईसीजीसी परिसमापक के माध्यम से प्रत्येक जमाकर्ता को भुगतान करने के लिए परिसमापक से दावा सूची प्राप्त होने की तारीख से दो महीने के भीतर उत्तरदायी है. यदि कोई बैंक लगातार तीन अवधि तक प्रीमियम का भुगतान करने में विफल रहता है तो यह बीमा निगम एक बीमित बैंक का पंजीकरण रद्द कर सकता है। डीआईसीजीसी द्वारा, यदि प्रीमियम के भुगतान के कारण किसी भी बैंक से अपना कवरेज वापस लेगा तो वह जनता को समाचार पत्रों के माध्यम से सूचित करेगा।


ग्राहकों में बढती चिंता को देखते हुए ग्राहकों के पैसे पर बीमा कवर बढ़ाने के लिए विचार हो रहा है, हो सकता है इससे बैंकों को अधिक प्रीमियम देना पड़ जाये। एक लाख रुपये की सीमा 1993 में तय की गई थी, जिसे आज बढ़ाए जाने की जरूरत महसूस हो रही है. आरबीआई ने डीआईसीजीसी को बैंक का प्रीमियम जोखिम के आधार पर तय करने के लिए एक मॉडल पेश करने के लिए कहा है, शायद RBI अधिक जोखिम वाले बैंकों से अधिक प्रीमियम ले. हालांकि जोखिम आधारित प्रीमियम मॉडल के संभावित खतरे भी हैं यदि बैंकों को जोखिम के आधार पर वर्गीकृत किया जाएगा, तो जिस बैंक को अधिक जोखिम वाली सूची में डाला जाएगा, उस बैंक के ग्राहक डर जाएंगे और बैंक से अपनी जमा राशि को निकालने में लग जाएंगे, लेकिन कॉपरेटिव, वाणिज्यिक और अन्य प्रकार के बैंकों  के वर्गीकरण के आधार पर अलग-अलग प्रीमियम लिया जा सकता है।


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