वर्षों से
भारतीय पारम्परिक बचत की अर्थव्यवस्था में बैंकों की फिक्स्ड डिपाजिट व्यवस्था को
सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है और खासकर महिलाएं और बुजुर्ग अपने आर्थिक
सुरक्षा और भविष्य के लिए बैकों की फिक्स्ड डिपाजिट पर आँख मूँद कर भरोसा करते
रहें हैं. नोटबंदी के बाद लोगों को प्रेरित किया गया की बैंक में पैसा रक्खे और
ऐसे ऐसे कानून बनाये गए की आप बैंक से ही सौदे करें और ऐसे में जब पता चलता है की
बैंक ही सुरक्षित नहीं है,
हमारा डिपाजिट ही सुरक्षित नहीं है, बैंकों के संकटकाल में करेंसी
की भांति इस पर केन्द्रीय सरकार की कोई गारंटी नहीं है जो हर नोट पर लिखा होता है
तो आम आदमी के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. उसे बाद में पता चलता है की इस पर
सरकार की गारंटी नहीं डिपॉजिट इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीएस) की
गारंटी है जो बैंकों में जमा रकम पर एक तरह का डिपॉजिट इंश्योरेंस प्रदान करता है
जिसके मुताबिक हर जर्माकर्ता को अपने जमा पर अधिकतम एक लाख रुपए का सुरक्षा बीमा
मिलता है, मतलब यदि आपका जमा १ लाख से कम है तो पूरी राशि बीमा कवर में आ गई और एक
लाख से ज्यादा है तो सिर्फ १ लाख तक ही बीमा कवर में हैं। और इस एक लाख रुपए में आपका
मूल धन और ब्याज दोनों राशि शामिल है।
गौरतलब है वित्तीय
अनियमितता का मामला सामने आने के बाद आरबीआई ने 23 सितंबर को पीएमसी बैंक पर छह महीने के लिए
प्रतिबंध लगा दिया है। इसके तहत बैंक के जमाकर्ताओं को पूरे छह महीने में सिर्फ एक
हजार रुपए निकालने की अनुमति दी गई थी। बाद में इस सीमा को बढ़ाकर पहले 10,000
रुपए और फिर से बढ़ाकर 25,000 रुपए किया गया था।
भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार को पीएमसी बैंक से डिपॉजिट की निकासी की सीमा को
बढ़ाकर 40,000 रुपए कर दिया। इससे सभी बैंकों के
ग्राहकों में अपने डिपॉजिट राशि की सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा हो गई है।
अब सब उसके बीमा कवर को लेकर भी चर्चा करने लगे हैं की किस बैंक का बीमा कवर अच्छा
है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट
के मुताबिक सरकारी, क्षेत्रीय और कॉपरेटिव बैंकों का बीमा कवरेज
अनुपात निजी बैंकों के बीमा कवरेज से बेहतर है और विदेशीं बैंकों का सबसे कम है । एक
खबर के अनुसार विदेशी बैंकों की जमा पर सुरक्षा कवर का अनुपात पूरी बैंकिंग
प्रणाली में सबसे कम है। 2017-18 में सरकारी बैंकों के जमा
खातों का कवरेज अनुपात 31.5 फीसदी था। क्षेत्रीय बैंकों के
लिए यह 61.4 फीसदी और कॉपरेटिव बैंकों के लिए 47 फीसदी था। दूसरी ओर निजी बैंकों के लिए 18.2 फीसदी
था। जबकि विदेशी बैंकों में कुल जमा राशि का महज 3.1 फीसदी
ही सुरक्षित था। हालाँकि विदेशी बैंकों में अधिकतम ग्राहक बहुत अधिक जमा राशि वाले
हैं, और बीमित सीमा सिर्फ एक लाख है इसलिए कुल जमा रकम के
मुकाबले सुरक्षा कवर का अनुपात बहुत कम आता है, जबकि सरकारी एवं अन्य बैंकों में डिपोजिटर
छोटे छोटे हैं अतः इस एक लाख की संख्या में उनकी ज्यादे संख्या कवर हो जाती है ।
हालिया प्रकरण से अब RBI के सूचना तंत्र और उसके इस एक्शन पर भी सवाल उठ रहें हैं. बैंकों के परिचालन
को वह चलते समय नियंत्रित नहीं कर पाती है और जब ऐसी सूचना मिलती है तो अचानक से
ब्रेक लगा देती है. ऐसे बैंक जिसमें आम आदमी, महिलाओं
एवं बुजुर्गों का पैसा जमा रहता हँ, वहां RBI के द्वारा अचानक से ब्रेक लगा देना
तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है भीषण आर्थिक दुर्घटना हो सकती है समाज में .
हालिया कारण से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास को भी पिछले हफ्ते बैंक
की बोर्ड की बैठक में अपने स्वतंत्र निदेशकों के तीखे सवालों का सामना और एक एक
करके उनका जबाब देना पड़ गया था जब स्वतंत्र निदेशकों ने RBI की कार्यप्रणाली और एक के बाद बैंकों की आ रही रपटों के बारे में पूछना
चालू किया तो. निदेशकों की चिंता यह थी कि इस तरह के फ्रॉड वर्षों से कैसे होते आ
रहे और RBI का सूचना प्रवाह तंत्र इसपर कैसे काम कर रहा है। बोर्ड
मीटिंग में पंजाब नेशनल बैंक, आईएल एंड एफएस और पीएमसी बैंक के बारे में भी चर्चा
हुई. रिजर्व बैंक के गवर्नर ने इस मीटिंग में RBI कैसे सूचना
प्राप्त करती है, उसका सूचना तंत्र क्या है आदि विषयों पर
अपना पक्ष रक्खा. आज RBI को मीडिया,
सोशल मीडिया , जमाकर्ताओं और विशेषज्ञों के सवालों का सामना करना पड़ रहा है जो इसके
निरीक्षण और पर्यवेक्षण तंत्र की प्रभावकारिता पर सवाल उठा रहें हैं। यदि RBI समय रहते ऐसे समस्याओं का समाधान कर लेती तो उसे इस स्थिति का सामना नहीं
करना पड़ता. सिर्फ नियम बना देने और सर्कुलर बनाने से ऊपर उठकर अब रिजर्व बैंक को
क्रियाशील मोड में आना पड़ेगा क्यूँ की भारत की परम्परागत इकॉनमी में बैंकों पर
भरोसा आम जनमानस का ज्यादा है और यदि यह भरोसा टूटा तो देश टूटा.
बाहर आई ख़बरों के मुताबिक पीएनबी के साथ-साथ
पीएमसी बैंक के केस में, ऐसा लगता है की कुछ अधिकारियों
ने बैंक के एक्सपोज़र के एक बड़े हिस्से के बारे में, RBI को अंधेरे में रखा और
इसके लिए सूचना तंत्र में गैप का फायदा उठाया। ऐसी खबर मीडिया में आई की पीएमसी
बैंक ने जानकारी को छिपाने और डेटा का हेरफेर कर बैंक की कोर बैंकिंग प्रणाली (CBS)
में जानकारी परिवर्तित करने के लिए "मध्य सर्वर" का उपयोग
किया। वैसे भी अन्य अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में RBI और सहकारी बैंकों के बीच डेटा सहभागिता कम है, जिसका फायदा PMC बैंक को मिला अन्यथा एक रियलिटी फर्म को कुल लोन एक्सपोजर का ७०% दिया
जाना छुपना नहीं चाहिए था, ऐसा तभी संभव है जब बैंक और RBI के सूचना प्रवाह तंत्र में छेद हो और बैंक प्रबंधन के साथ अंकेक्षकों की
भी गंभीर गलती हो. सहकारी बैंकों के सूचना प्रवाह में सूचना प्रदान करने की आवृत्ति
कम है, प्रारूप कमर्शियल बैंकों की तुलना में कमजोर है और
जानकारी ईमेल के माध्यम से भेजने का भी विकल्प है, जबकि
कमर्शियल बैंक सीधे निर्दिष्ट प्रारूप में आरबीआई को अपना डेटा अपलोड करते हैं। वाणिज्यिक
बैंक को अपना डेटा इतनी जगह क्रॉस चेक करवाना पड़ता है की इनके सूचना की गलती तुरंत
में पकड़ में आ जाती है जबकि ऐसी सुविधा सहकारी बैंकों में नहीं है । आमतौर पर,
एक बैंक के कोर बैंकिंग तंत्र से एकत्र किए गए डेटा को एक
केंद्रीकृत डेटा मार्ट में जमा किया जाता है जो स्वचालित रूप से उन रिपोर्टों को
उत्पन्न करता है जिन्हें बाद में आरबीआई के साथ साझा किया जाता है। ऐसा प्रतीत
होता है, पीएमसी बैंक में एक समानांतर या एक अन्य डेटा मार्ट
था जिसका उपयोग सूचनाओं को परिवर्तित कर प्रस्तुत करने के लिए किया जाता था। यह तो
अभी एक अनुमान है और यदि यह सच है तो यह बहुत बड़ी धोखाधड़ी है.
नीरव मोदी का एक्सपोज़र भी RBI को रियल टाइम में पता नहीं चला क्योंकि बैंक की स्विफ्ट प्रणाली सीबीएस
में लिंक नहीं थी। आरबीआई ने बाद में पाया कि स्विफ्ट-सीबीएस लिंकिंग तो कई अन्य
बैंकों में भी नहीं था. RBI सूचना तंत्र प्रवाह, CBS और बैंकिंग प्रबंध के अतिरिक्त जिस रिपोर्ट पर
बहुत भरोसा करती है वह है ऑडिटर की रिपोर्ट, लेकिन IL & FS एवं फिर PMC बैंक के केस ने RBI को इस सम्बन्ध में निराश किया है. जब से IL & FS का पतन
हुआ, तब से सम्बंधित लेखा परीक्षकों की भूमिका गहन जांच के
दायरे में आ गई है, और मौजूदा PMC केस में भी, सवाल यह है की
HDIL का एक्सपोज़र एवं NPA की स्थिति और
इसकी गंभीरता उनके अंकेक्षण रिपोर्ट में दिख क्यों नहीं रही थी।
कुल मिला कर RBI को
अपनी भूमिका व्यावहारिक और क्रियाशील रखनी पड़ेगी. RBI को
दूसरी तरफ सहकारी बैंकों की साख को भी बचाने की तरफ सोचना पड़ेगा क्यूँ की एक PMC की गलती ने पुरे सहकारी बैंकों को कटघरे में खड़ा कर दिया है अब एक आम
आदमी किसी भी सहकारी बैंकों में जमा करने की नहीं सोचेगा और यदि ऐसा हुआ तो सहकारी
बैंक व्यवस्था चरमरा जाएगी. अतः PMC बैंक के केस में RBI ने जो आनन फानन में किया उसे व्यावहारिक नहीं माना जा सकता क्यों की
सहकारी बैंकों के जमाकर्ता छोटे होते हैं. भले ही बीमा एक लाख का हँ RBI को छोटे जमाकर्ता, महिलाओं बुजुर्गों एवं नौकरी
पेशा लोगों के बचत को बचाना ही पड़ेगा भले ही इसके लिए सरकार को कानून बदलना पड़े
अन्यथा बैंक पर से आम आदमी का विश्वास उठ जायेगा.
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