बैंक बाबू खतरे में

आज से करीब तीन दशक पहले भारत के एक बड़े हिस्से पर बैंक बाबू लोगों की बड़ी इज्जत थी, कस्बों और गाँवों में प्रद्योगिकी लोग बैंक बाबू कह कर बुलाते थे और यह तब की भारत के दूर दूर तक फैले गाँवों और कस्बों में ऑफिस जैसी कोई पहली चीज थी. उन दिनों बैंक की नौकरी एक सुरक्षित नौकरी थी और समाज में उसका एक बड़ा स्थान था. बैंक के केशियर बाबू केशियर साहब थे तो लोन बाँटने वाले लोन बाबू. लेकिन आज की तारीख में प्रौद्योगिकी में हो रहे वैश्विक प्राकृतिक विकास ने इन बैंक बाबू को खतरे में डाल दिया है. आप याद करिए आज से तीस साल पहले बैंक में कॅश बांटने के लिए कई काउंटर हुआ करते थे और कई लोग केशियर हुआ करते थे, इस काम का ९०% हिस्सा अब एटीएम मशीनें हुआ करती हैं अब. एटीएम मशीन आने के बाद भी बैंक में काउंटर उतने कम नहीं हुए थे लेकिन जब एटीएम मशीनों में डिपाजिट भी चालू हो गया तो अब उतने काउंटर की जरुरत नहीं रही और कई बैंकों में काउंटर घटने लगे, और लाजमी है जब काउंटर घटे तो नौकरियों पर संकट के बादल मंडराने लगे. बैंक का जो एक बड़ा और मुख्य काम था कॅश जमा करना और निकालना उसका एक बड़ा हिस्सा अब आदमियों की जगह मशीनें करने लगीं और बैंक में कैशियर बाबू की संख्या कम होने लगी. इसके बावजूद भी बैंक में इंसानी विवेकाधिकार के कुछ काम थे मसलन चेक जमा करना, चेक इशू करना, लोन बांटना, चालु खाते खोलना आदि आदि. इसमें से चेक जमा करना ट्रान्सफर करना और चेक बुक रिक्वेस्ट भेजना पहले धीरे धीरे एटीएम के द्वारा हुए और जब से मोबाइल बैंकिंग और इन्टरनेट बैंकिंग शुरू हुआ अब ज्यादे से ज्यादे इस तरह के कार्य मोबाइल और इन्टरनेट बैंकिंग से होने लगे. लोगों का बैंक आना कम होने लगा और बैंको में लोग कम होने लगे, बैंक का एक बड़ा काम अब मोबाइल और इन्टरनेट बैंकिंग करने लगे. चालू खाता खोलने के लिए अब बैंक आना कम हो गया, बैंक की शाखा के हाथ में अब यह भी नहीं बचा यह सब केंद्रीकृत होने लगा और सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट ने चालु खाता खोलने का काम अब अपने हाथ में ले लिया और आउटसोर्सिंग एजेंसी के लोग दरवाजे दरवाजे पहुँचने लगे और ये बैंक बाबू न होते हुए भी एक नए तरह के बैंक प्रतिनिधि थे जो घर आकर खाता खोलता था और बैंक का भी नहीं होता था. जो थोड़ी बहुत विवेकाधिकार लोन बाँटने के लिए बची थी अब वह भी ख़त्म हो रही है अब लोन प्रोसेस करने का एक बड़ा काम कई बैंकों में सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट के द्वारा होने लगा और बैंक की शाखाएं सिर्फ क्लीयरिंग एंड फोर्वार्डिंग एजेंट बन कर रह गई.


आज देश के कई बैंकों में खासकर के निजी बैंकों में आप पायंगे तो बैंक के कर्मचारियों के पास कोई बड़ा अधिकार नहीं होता है, उनके बड़े हिस्से का काम या तो एटीएम मशीने करेंगी या तो मोबाइल एवं इन्टरनेट बैंकिंग करेंगी और इनका काम बस प्रतिनिधि शाखा बन कर संग्रह केंद्र बन कर रह जाना होगा, आप जाइये बात करिए पता चलेगा उनके हाथ में कुछ भी नहीं है. बैंक के ऑपरेशन में हुआ यह बदलाव प्राकृतिक बदलाव है क्यों की यह तकनीक के कारण है और इसमें किसी सरकार का दोष नहीं है अब बैंकिंग बिज़नस का इको सिस्टम बदल रहा है, अब टेक्नोलॉजी अपनाने की वजह से पैदा हुआ खतरा अब सिर्फ आईटी सेक्टर पर नहीं बल्कि बैंकिंग सेक्टर पर भी मंडराने लगा है. सरकार और समाज को एक विचार प्रक्रिया डालनी पड़ेगी की बैंक बिजनेस का एक बड़ा काम जो बैंक करती थी उसे मशीन और तकनीक ने प्राकृतिक तौर पर रिप्लेस कर दिया है और इससे जो आदमी खाली होंगे उन्हें रोजगार के इकोसिस्टम में कैसे जगह दें. इन तकनीकों से नई नौकरियों के तुलना में रिप्लेसमेंट की संख्या ज्यादे है. इस नए इकोसिस्टम से लड़ते हुए कुछ बैंकों में क्रॉस सेलिंग की रणनीति अपना ली है और ये बैंक बाबू धीरे धीरे बीमा बाबू और सेल्समेन बनते जा रहें हैं, इनके काम में अब यंत्रवत काम नहीं अब टारगेट आधारित काम हो गया टारगेट नहीं पूरा हुआ तो विदाई का खतरा सर पर. इस नए इकोसिस्टम में बैंकों ने इंसानी हाथों के लिए काम तो ढूँढा तो उधर पता चला की बीमा क्षेत्र में छंटनी का खतरा मंडराने लगा.  


इन्ही सब को सूंघते हुए सिटी ग्रुप इंक के पूर्व सीईओ विक्रम पंडित का अनुमान है कि प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हो रहे तेजी से बदलाव अगले सालों में30% बैंकिंग जॉब्स खत्म कर देंगी. अगले कुछ सालों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स का के विकास तेज होंगे और बैंकों में इनका खूब इस्तेमाल होने लगेगा और इसके आने से बैंकों में इंसानों की जरूरत कम होती जाएगी. इसकी शुरुआत हम अभी से देख पा रहे हैंअब हमलोग बैंक ना जाकर इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग सेवा से ही सब काम करने लगे हैं.


तकनीक के इस नए इकोसिस्टम के कारण दुनिया की सबसे बड़ी फर्म वॉल स्ट्रीट भी मशीन संचालन और क्लाउड कंप्यूटिंग सहित नए प्रौद्योगिकियों का अब उपयोग कर रही हैंताकि वे अपने कामकाज को ऑटोमेटिक कर सकेंइससे इंसानी डिमांड घट रही है और लोगों को अब इस नए इकोसिस्टम से संगत बिठा नई जॉब खोजने के लिए जद्दोजहद करनी पढ़ रही है. अमेरिका में मार्च 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार खुदरा बैंकिंग में ऑटोमेशन के आने से 30% लोगों की डिमांड कम हुई हैजिसके चलते अमेरिका में कुल 770,000 लोगों को पूर्णकालिक नौकरी छोड़नी पड़ी और यूरोप में लगभग 10 लाख लोगों की नौकरी चली गई. कमोबेश भारत में भी यही हाल होने वाला है.


अभी बैंक बाबू इस तकनीक के कारण बैंक के रोजगार में आये इकोसिस्टम से लड़ ही रहे थे की बैंकों के विलय और नई नई रणनीतियों ने इनके मन में एक और भय ला दिया है की शायद नौकरियां खतरे में आ जाएँगी और बैंक अपनी शाखाएं एकीकरण की प्रक्रिया में कम करेंगी क्यों की अब एक ही मोहल्ले में चार या पांच ब्रांच एक ही बैंक हो जाएगी विलय के बाद तो एक ही जगह पांच पांच ब्रांच रखने की जरुरत क्यूँ पड़ेगी बैंको को. हालाँकि फौरी तौर पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इन बैंकों के प्रस्तावित विलय से कर्मचारियों की नौकरी जाने के खतरे से होने वाली चिंता को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि विलय के इन निर्णयों से किसी एक कर्मचारी की भी नौकरी नहीं जाएगी. हालाँकि यह तो शुरुवाती प्रक्रिया है बैंक एक स्वतंत्र व्यवस्था हैं और जब वह व्यवसायिक धरातल पर अपने नफे नुक्सान का आकलन करेंगी तो इसपर सोच सकती हैं जिसको लेकर बैंक कर्मचारी और उनके संगठन चिंतित हैं. इसी बीच खबर आई की एचएसबीसी बैंक में काम कर रहे कर्मचारियों की नौकरी पर संकट मंडराने लगा है। एचएसबीसी बैंकहजारों कर्मचारियों को नौकरी से निकाल सकता है क्योंकि एचएसबीसी होल्डिंग्स पीएलसी अपने नफे नुक्सान की कसौटी पर काम कर रहा है और अपनी लागत को कम करना चाहता हैजिसके लिए इंसानी छंटनी उसकी पहली प्राथमिकता हो सकती है। 


सरकार को और समाज बैंकिंग इकोसिस्टम में हो रहे इस बदलाव पर विचार करना पड़ेगा अन्यथा इंसानी हाथों का रिप्लेसमेंट एक नई तरह की शुन्यता लेकर आएगा जो बहुत ही खतरनाक होगा


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