मंदी मीमांसा

अर्थव्यवस्था इन दिनों बेहद सुस्ती के दौर से गुजर रही है। विकास दर भी बीते छह साल के निचले स्तर पर आ गई। कई सेक्टरों में बिक्री काफी घट गई है। कई लोगों की नौकरी छूट गई है और आगे भी नौकरी जाने का संकट बना हुआ है। लोगों ने घर, गाड़ी और पूंजीगत खर्चे करना कम कर दिया है। बीएसई स्टॉक एक्सचेंज में बीते मंगलवार को बड़ी गिरावट दर्ज हुई और सेंसेक्स 769 अंक लुढ़ककर 36,562 पर बंद हुआ। निफ्टी 225 अंक लुढ़ककर 10,797 से नीचे आ गया। हालाँकि इसकी बड़ी वजह घरेलू के साथ साथ ग्लोबल स्तर पर कमजोर संकेत बने। ऑटो सेगमेंट में मारुति सुजुकी, हुंडई, महिंद्रा एंड महिंद्रा समेत देश की ज्यादातर कार निर्माता कंपनियां मंदी की चपेट में आ गई हैं। जानकारों की मानें तो यह भारतीय ऑटो सेक्टर में इतिहास की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है।आज देश में चंहु ओर मंदी की चर्चा है और प्रभाव है. ऑटोमोबाइल क्षेत्र के कई बड़े उद्योगपति खुल के मंदी के बारे में बयान दे चुके हैं.
सरकार ने भी इसकी गंभीरता को समझा है , ऐसा पहली बार हुआ है की पूर्णकालिक बजट के बाद भी सरकार एवं वित्त मंत्री को प्रेस कांफ्रेंस कर के उन सभी सुधारों को लागू करना पड़ रहा है जो अमूमन वार्षिक बजट में होते हैं. सरकार ने कॅश फ्लो बढ़ाने हेतु बैंको के माध्यम से रेपो रेट लिंक कर ब्याज कमी के संकेत दिए हैं लेकिन NBFC और बैंक शायद ही इस फायदे को ग्राहक और बाजार तक पहुंचाए, अक्सर देखा गया है की ब्याज घटने पर बैंक और NBFC, EMI की राशि कम करने की बजाय लोन की अवधी घटा देती हैं जिससे कॅश फ्लो की बचत लोन लेने वालों को नहीं होती है, जबकि ब्याज रेट में सरकार कमी शोर्टटर्म इलाज और नागरिकों के कॅश फ्लो बढ़ाने के तौर पर करती है ना की बैंकों के , लेकिन बैंक और NBFC अपनी चालाकी से इस उद्देश्य को सफल नहीं होने देते और व्यक्ति की EMI वही बनी रहती है.  केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी मंदी से उपजी बेरोजगारी की समस्या को बड़ी चुनौती बताया और ऐसे में MSME की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि यदि भारत को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है तो छोटे, लघु व सूक्ष्म उद्योगों (MSME) को पांच करोड़ नौकरियां पैदा करनी होंगी. और मेरे हिसाब से यह MSME सेक्टर छोटे शहरों और कस्बों में बड़ी संख्या में है.
हमें मंदी के कारण और निवारण को समझना पड़ेगा. इसके पहले भी वैश्विक मंदी आती थी लेकिन उसके प्रभाव भारत पर कम पड़ते थे, कारण भारत में कॅश की समानान्तर इकॉनमी थी, जिसे मौजूदा सरकार ने नोटबंदी के बाद लगातार ख़त्म किया, और इसे डिजिटल एवं नियमित इकॉनमी की तरफ मोड़ा. नियमित इकॉनमी के फायदे हैं तो नुक्सान भी हैं, जब भी वैश्विक मंदी आती है तो नियमति इकॉनमी इससे अछूती रह नहीं सकती जबकि समानान्तर इकॉनमी इससे बच जाती है. अतः सामानांतर इकॉनमी का लगातार कम होना भी मंदी के प्रभाव को बढ़ा गया है. दूसरा नोटबंदी के बाद GST लागू करने के लिए थोडा वक़्त दिया जाना चाहिए था, हालाँकि GST एक अच्छा कदम है लेकिन नोटबंदी के तुरंत बाद इसको करना समझदारी नहीं थी देश अभी अपने आपको नोटबंदी के बदलाव से अपने आपको कैलिबेरेट ही कर रहा था तभी उसे अपने आपको GST के हिसाब से कैलिबेरेट करना पड़ा, और जब किसी भी सिस्टम को लगतार अपने आपको दो बार कैलिबेरेट करना पड़े तो आफ्टर रिकवरी में टाइम लगता ही है और इस टाइम में सुस्ती आना लाजमी है.
इसे आप इस उदाहरण से समझ सकते हैं. एक कुशल डॉक्टर ने अपने सहयोगियों और सज्ज मशीनों के साथ एक मरीज में डायग्नोस किया की इसके पुरे खून को बदलना जरुरी है और कुशल निर्णय के तहत उसने ऐसा किया लेकिन सज्ज मशीनें वैसा परफॉरमेंस नहीं कर पाई जैसा उस कुशल डॉक्टर ने अनुमान किया था लेकिन मरीज की जीने की जिजीविषा, संघर्ष और डॉक्टर की मेहनत ने किसी तरह से पुरे खून को बदलने में सफलता पाई और मरीज के जीवन को वापस लाया. कुछ दिन बाद डॉक्टर ने तय किया की अब मरीज का किडनी बदलना चाहिए तो नए बदले हुए खून का फ़िल्टर ठीक होगा और कुछ ही समय के भीतर किडनी का भी ट्रांसप्लांट कर डाला. अब डॉक्टर की नीयत और डायग्नोसिस तो ठीक है लेकिन उस मरीज के इम्यून सिस्टम का ठीक आंकलन नहीं हो पाया जिस कारण से लगातार दो ट्रीटमेंट होने के कारण वह इसके आफ्टर इफ़ेक्ट से लड़ते हुए सुस्त महसूस कर रहा है. डॉक्टर और उसके टीम का लगातार भरोसा और उत्साहवर्धन और दवाई के डोज में लगातार किये जा रहे परिवर्तन से उसे उम्मीद है कि वह ठीक हो जायेगा.
लगातार दो ट्रीटमेंट के कारण जो सबसे पहला झटका पड़ा वो रियल एस्टेट पर पड़ा, उसके खरीददार कम होते गए, क्यों की अब कॅश खपाने के मौके कम हो गए और बिल्डरों ने पहले ही प्रोजेक्ट की ओवर कास्टिंग कर रक्खी थी. जब घर कम बिकने लगे तो निर्माण कम होने लगे, निर्माण कम हुए तो निर्माण उद्योग पे मार पड़नी शुरू हुई. रियल एस्टेट के बाद जो दूसरा बड़ा प्रभाव पड़ा वह वाहन उद्योग पर पड़ा क्यों की यहाँ भी अब कॅश खपाने के मौके कम हो गए. हालाँकि जुलाई और अगस्त में जो वाहन बिक्री या रियल एस्टेट में गिरावट आई है उसमे कुछ भाग वार्षिक नियमित चक्र का भी योगदान है और बारिश में अमूमन लोहे, गाडी और निर्माण की गतिविधियाँ कम हो जाती हैं, अतः इस बार जब गिरावट के आंकड़े को देखना चाहिए तो उसमें इस हिस्से के गिरावट को फैक्टर कर के देखना चाहिए. इन दो सेक्टर के कारण वाहन ऋण, होम लोन और निर्माण लोन देने वाली NBFC पर मार पड़ी और NBFC लड़खड़ाने लगी.   
मंदी का जो तीसरा कारण है वह ग्राहक व्यवहार में परिवर्तन और ई कॉमर्स कम्पनियों की अब कस्बों तक पहुँच है. अब त्योहारों या वैसे भी कस्बों के दुकानदारों की बिक्री कम होती जा रही है और कस्बों और कस्बों से जुड़े गाँवों के लोग अब ऑनलाइन खरीददारी करने लगे हैं. कॅश ओन डिलीवरी विकल्प होने के कारण उनको पैसा तभी देना पड़ रहा है जब माल मिल रहा है ऐसे में कस्बाई और ग्रामीण ग्राहक स्मार्ट मोबाइल के इस दौर में परंपरागत बाजार से दूर होता जा रहा है और अनजाने में उसे यह भी ख्याल नहीं आ रहा है की वह अपने स्थानीय बाजार के टर्नओवर को कम कर रहा है. और ई कॉमर्स का कस्बों और ग्रामीण बाजार में यह दखल रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल से भी बड़ी खतरनाक होने वाली है और अगर इसपर सरकार की तरफ से ध्यान नहीं दिया गया तो सैकड़ों साल से भारतीय इकॉनमी का बुना हुआ जाल जिसमे सामूहिक रूप से सब सुरक्षित रहते थे उसमें यह बड़ी ई कॉमर्स कंपनिया बड़ा छेद कर देंगी. सरकार को अमेज़न एवं फ्लिप्कार्ट जैसी कम्पनियों के लिए यह अनिवार्य कर दें की वह किसी भी क्षेत्र में डिलीवरी शुरू करने से पहले वहां के स्थानीय दुकानदारों को अपना प्लेटफार्म दे और पंजीयन कराये और थर्ड पार्टी ऑनलाइन ऑफर से उन्हें सज्ज करे. उसके प्लेटफार्म पर कोई आर्डर आने पर सबसे पहले उस क्षेत्र के रेडियस में पड़ने वाले दुकानदारों से उस ओर्डर की पूर्ति करे बनिस्पत अपने वेयरहाउस या दूरस्थ क्षेत्र के व्यापारी से और यदि उनके यहाँ विकल्प उपलब्ध नहीं हो तभी वह दुसरे दूरस्थ व्यापारियों से माल की पूर्ति का विकल्प दे. अमेज़न और फ्लिप्कार्ट को ज़ोमैटो या स्विग्गी वही सिस्टम अपनाना चाहिए जिसमें वह आर्डर की पूर्ति एक निश्चित सीमा के तहत पड़ने वाले रेस्टोरेंट से ही आर्डर की पूर्ति करते हैं, और जब तक ई कॉमर्स की तकनीक का बेहतर इस्तेमाल, नियमन, और इसकी खूबियों से स्थानीय दुकानदारों को जोड़ते हुए स्थानीय बाजार के सरंक्षण का काम नहीं किया जायेगा तो अगला साल और भारी पड़ जायेगा. गड़करी जी ने भारत क्राफ्ट पोर्टल बनाने की बात तो की है लेकिन जब तक इसमें ज्योग्राफिकल सुप्रिमेसी का ख्याल नहीं रक्खा जायेगा, कसबे टूटते जायेंगे और जब कसबे टूटेंगे तो गाँव टूटते जायेंगे और जब गाँव टूटेगा तो देश टूटता चला जायेगा.  

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