साक्षी और अजितेश के नाम एक खुला ख़त

          
हालिया जो प्रकरण चल रहा है उसके मसले को समझना जरुरी है. मौजूदा दौर में बालिग के प्रेम विवाह को गलत नहीं माना जाता है कानूनन,  लेकिन सामाजिक व्यवहार में यह केवल विकसित शहरों में ही स्वीकार्य हो पाया है. शादी करने वाले जोड़े के माता पिता और परिवार वाले चाहे वो छोटे शहर गाँव या बड़े शहरों के हो पहली प्रतिक्रिया ९९% में, शुरू में थोड़ी नाराजगी भरी रहती है, लेकिन चूँकि ज्यादातर केसों में बड़े शहरों में बंदिश बहुत कम होती है इसलिए भागने की नौबत नहीं आती है, प्रेम की अवधि लम्बी होती है, और इस अवधि में दोनों एक दुसरे को अच्छे से समझ लेते हैं, इसलिए उनके परिवार वालों को भी इससे ज्यादे आपत्ति नहीं होती है यदि लड़का-लड़की का मैच अच्छा है तो. यहाँ पर कसौटी दोनों के बीच प्रेम, समर्पण और आत्मनिर्भरता देखी जाती है.

बड़े शहरों का समाज भी किस जात पात में शादी हो रहा है वह नहीं देखता है, वह देखता है की लड़की के लिए लड़का और लड़का के लिए लड़की एक जोड़ी के रूप में पूरक हैं की नहीं, कहीं मिस मैच तो नहीं. बस इसी कारण से अंतरजातीय प्रेम विवाह बड़े शहरों में स्वीकार्यता प्राप्त करते हैं और इनमें इतना घर्षण नहीं होता है और इनके परिवार वालों को अपमानजनक सामाजिक टिप्पणी का लगभग नहीं ही सामना करना पड़ता है. यदि लड़का लड़की दोनों प्रोफेशनल हैं तो समस्या लगभग ९९% साल्व ही रहती है.
मैंने भी ऐसी कई शादियाँ देखी हैं और मेरे कई मित्रों ने अंतरजातीय/अंतर्धार्मिक शादियाँ की हैं. जिन मित्रों ने आज के कई साल पहले प्रेम विवाह किया है, तो ऐसा नहीं की उन्हें संघर्ष नहीं करना पड़ा, उन्हें भी करना पड़ा, लेकिन इस संघर्ष को उन दोनों परिवारों ने घर के अन्दर ही सुलझा के रस्ते निकाल लिए, किसी का लम्बा संघर्ष चला किसी का छोटा चला, लेकिन ये संघर्ष कुछ चुनिन्दा लोगों के बीच ही रहा, किसी पक्ष ने भी इसे लेकर सड़क पर हंगामा नहीं मचाया. अब उनके सारे परिवार में आपस में सब के बीच सौहार्द्र है, कारण ऐसे प्रेम विवाह में उन सब लोगों ने सौहार्द्र कायम होने की गुंजाईश छोड़ रक्खी थी. वर्तमान में जो प्रेम विवाह हो रहें हैं उनमे लड़की या लड़कीयों को उतना संघर्ष नहीं करना पड़ रहा है, कारण जो मैंने अपनी जानकारी में  देखा है दोनों केस में लड़का और लड़की दोनों की उम्र २१ वर्ष से ज्यादे है और ज्यादेतर केस में दोनों या दोनों में से कोई एक सेटल्ड है. इसलिए बड़े शहरों में तो प्रेम विवाह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है.

अब आते हैं छोटे शहरों में, तो छोटे शहरों में लड़का या लड़की के परिवार वाले अपने व्यक्तिगत स्तर पर इसके लिए मानसिक तौर पर समझौता करने के लिए तैयार ही रहते हैं, लेकिन जो उनके आसपास का व्यापक समाज होता है वह ऐसी शादियों को हेय दृष्टि से देखता है और उस परिवार की ऑफ द रिकॉर्ड बदनामी करता है. लड़के या लड़की के मातापिता ज्यादेतर केसों में जहाँ सख्त होकर शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं होते हैं, लड़का-लड़की के अच्छा मैच होने पर भी, वहां यही सामाजिक दबाब ही कारण रहता है, अन्यथा अपने संतान के दबाब और प्यार में लगभग सब आ ही जाते हैं एक दिन, अगर दोनों ने मैचिंग अच्छी सेलेक्ट की है. लेकिन यदि मैचिंग अच्छी नहीं है तो दोनों परिवार के लोग पूरा प्रयास करते हैं की शादी न होने पाए , और इसमें लड़की के परिवार वाले खासकर, क्यों की शादी के बाद उन्हें उनकी लड़की के भविष्य पर आसन्न खतरा दिखाई देता है. यहाँ जो मैच की बात होती है वह मोटा मोटी यह होती है की लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो, कोई एब न हो, अपराधी न हो और अगर लड़की वाला हिन्दू परिवार वाला है तो लड़का भी हिन्दू ही हो जहाँ तक भरसक कोशिश होती है और उसके घर की आर्थिक हालत ठीक हो. जहाँ सवर्ण दलित के बीच की शादी की बात होती है तो जब तक बहुत अप्वाद्जनक स्थिति न हो, या बहुत सामाजिक दबाब न हो एक अवधि के बाद चीजें सामान्य हो जाती है.

ऑनर किलिंग भी एक सच्चाई है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है, और ये अक्सर उनके यहाँ पाया जाता है जो ऑर्थोडॉक्स टाइप के होते हैं और पितृसत्ता के आसपास स्वाभिमान को केन्द्रित कर रखते हैं, ईसे समाज और परिवार के द्वारा भी पल्लवित और पुष्पित किया जाता है, जिस कारण से हल्के से भी लगे इस आघात को वह अपने वर्षों से संचित प्रतिष्ठा पर प्रश्न मान लेता है, वहां उसका स्व इतना हावी रहता है की उसके सामने उसके परिवार की खुशियाँ उसमें भी खासकर के महिलाओं का प्रतिरोध उसे उसके स्वाभिमान पर प्रहार लगता है और इसमें वह हर तरह के पितृसत्ता को इकठ्ठा कर अपवादजनक केस में अपने उस लड़का या लड़की, महिला या दोनों की हत्या कर देते हैं या कई बार खुद आत्महत्या कर लेते हैं.

मौजूदा केस में जो साक्षी का मसला है, साक्षी ने शुरुवाती बढ़त के बाद एक के बाद एक गलतियाँ कर समाज को ही अपने खिलाफ खड़ा कर लिया है जो शुरू में दो विडियो आने पर उसके साथ था. जो शहरी समाज प्रेम विवाह को स्वीकार करता है उसे भी साक्षी का दो विडियो के बाद चैनल में दिए गए इंटरव्यू से,  उसके जबाब से और साक्षी से असहमति जताने लगा.

भारत के बड़े शहरों का समाज प्रेम विवाह को सहज मान्यता तो देता ही देता है साथ में अपने माता पिता से पुनर्संवाद की सम्भावना को भी बरक़रार रखता है. हो सकता है की साक्षी को अपने पिता से ज्यादे भय हो क्यों की उन्हें वह ही अच्छी तरह से नजदीक से जानती होगी. लेकिन उनसे बचने के लिए जो उसने कदम उठाया वह तो दो विडियो रिलीज होने के बाद और नेशनल मीडिया में आने के बाद वह सुरक्षित ही थी. उनपर इस समय हमला करा उनके पिता भावनात्मक हानि के बाद राजनैतिक नुकसान की गलती तो नहीं करेंगे.
वह नेशनल मीडिया में इंटरव्यू को वह अपने माता-पिता से पुनरसंवाद स्थापित करने के एक साधन के रूप में इस्तेमाल कर सकती थीं, लेकिन यहीं साक्षी चूक गई. साक्षी को खुले चैनल पर वह बातें नहीं करनी चाहिए जो भारतीय सामजिक परिवेश में आम है. माता पिता आज भी चाहे वह बड़े शहर के हो यां छोटे शहर के हो किसी न किसी रूप में अपने बच्चों पर नजर रखते ही हैं जब तक वह पढाई कर रहा हो, बच्चों के पढाई के बीच में यदि कोई आता है तो उसे दूर करने का भी प्रयास करते हैं चाहे वो मोबाइल हो या बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड हो और यह तभी तक करते हैं जब तक पढाई चल रही हो. आपकी उम्र १८ साल ही है यदि मोबाइल या फेसबुक बंद करने के लिए बोला तो वह एक सामान्य निगरानी में आता है क्यों की उन्हें लगा होगा की आपकी अभी पढने की उम्र है और प्यार की उम्र नहीं है, इस उम्र के प्यार के भटकाव में आप अपनी पढाई से विरत हो रही हो, आपकी परीक्षा चल रही थी तो आपकी मम्मी आपके पास चली गईं तो इसे निगरानी कह के इंटरव्यू में रेखांकित करना कहाँ की समझदारी है, यह तो कोई भी माँ करती है. अगर माँ बाप को लगता है की बेटी गलत चयन कर बैठी है तो समाज की सच्चाई के लिए अख़बारों में घटित घटनाएँ दिखाती है तो कौन सा गलत काम किया था उन्होंने यह तो हर माँ का काम है की आसन्न खतरों से बेटी को आगाह करते रहे क्यों की इस समाज में रेप, सेक्स, धोखा होना भी एक सच्चाई है.

आप जिस तरह से अपने माँ को चैनल पे कटघरे में खड़ा कर रही थी वह दुःख देने वाला था, चलो पिता सख्त और गुस्से वाले हो सकते हैं, उनसे जीवन को खतरा तो मान भी लिया जा सकता है, लेकिन उस माँ से खतरा! उसके इमोशन के साथ इतना अत्याचार! दर्शक और समाज कैसे बर्दाश्त कर लेता, जबकि दूर का होने के बावजूद, आपसे कोई वास्ता न होने के बावजूद किसी भी दर्शक को आपकी जोड़ी बेमेल लग रही थी, जब एक तटस्थ दर्शक को आपकी जोड़ी बेमेल लग रही थी, तो वह फिर भी माँ बाप हैं, उनके ऊपर क्या गुजरती होगी.

बात बाप के पगड़ी उछलने की भी बिलकुल नहीं है, पगड़ी उछालने जैसे शब्द के इस्तेमाल करने वाले लोग समाज के दुश्मन हैं क्यों की यही प्रेम विवाह को इतना प्रतिष्ठा से जोड़ लेते हैं की इसके हॉनर किलिंग या आत्महत्या जैसे परिणाम आते हैं, अतः इसे मै पगड़ी उछालने से नहीं कनेक्ट करूँगा, बेशक यह आपका निजी निर्णय है लेकिन इस बेमेल जोड़े को देख के जब हम लोगों को पीड़ा हो रही है तो माता पिता पर क्या गुजरती होगी. यहाँ बेमेल जाति पाती को लेकर नहीं है, क्यों की आपका अब विरोध शहरी और जागृत समाज भी करने लगा है, क्यों की उसको लगता है की इसी अजितेश से ही शादी करने के लिए आपको २ से ३ साल और रूकना चाहिए था, इस रिश्ते को समझने के लिए वक़्त देना चाहिए था, आप दोनों के उम्र का फासला अधिक दिख रहा है और यह फासला सिर्फ १० साल का नहीं दिख रहा है १८ से २० साल का दिख रहा है, आप १८ की वह ३८ का. आप कल्पना करिए आप जब ३० साल की होंगी तो वह ५० का होगा ऐसे में वैवाहिक जीवन की sustainability क्या होगी इसको भी लेकर लोगों की आशंकाएं हैं. यहाँ लोगों को लग रहा है की चलो आप की उम्र कम है लेकिन अजितेश की उम्र तो समझदारी की थी, उसे तो समझना चाहिए, अगर तुम नादानी कर रही थी तो उसे तो समझना चाहिए था की ये बेमेल रिश्ता है, ना उम्र की सीमा हो ना हो प्यार का कोइ बंधन ये पाश्चात्य समाज में और मेट्रो में सफल होता है वह भी तब जब दोनों पैर पर खड़े हों, आंकड़े गवाह है की आपकी उम्र में किसी अधेड़ से हुई शादी लगभग असफल ही रहती है, इसी डाटा के परिणाम से आपके परिवार वाले और समाज के बड़े तबके को तो लग ही रहा है की आपने गलत ही किया है. 

आंकड़े बताते हैं की उम्र १६ से १९ के बीच हार्मोन की तीव्रता ज्यादे होती है अतः तीव्र भावनात्मक आवेग में निर्णय लिया जाता है जिसमें से ज्यादेतर समय की कसौटी पर फेल हो जाते हैं अतः शहरों में भी प्रेम विवाह के लिए न्यूनतम २१ वर्ष की आयु में ही शादियाँ होती है क्यों की तब तक निर्णय सिर्फ हार्मोन की तीव्रता से नहीं होते, कुछ अनुभव की कसौटियां भी उनमे जुड़ जाती है. अतः साक्षी आप चैनल पर जाइए लेकिन इस मौके का इस्तेमाल रिश्ते को फिर से जोड़ने के लिए करिए गाँठ और गड्ढे बड़े करने के लिए नहीं, क्यों कि अब आपको इतना सार्वजनिक होने के बाद अपने पिता की तरफ से जीवन को खतरा नहीं है और अजितेश को भी नहीं है.

अजितेश की गलती इस मसले में ज्यादे है क्यों की अजितेश से maturity की अपेक्षा की जा सकती थी जबकि अजितेश ने बहुत फ़ाउल प्ले किया इसमें. इसे तो पहले अपने दोस्त की अपने से २० साल छोटी बहन से रिश्ते में आगे ही नहीं बढ़ना चाहिए था, और यदि बढ़ गया था शादी कर लिया था तो सिर्फ सुरक्षा के लिए विडियो में बात करते वक़्त लड़की से मोबाइल छीन के उसे इंटरप्ट कर के बीच में दलित ब्राह्मण का मुद्दा डाल के इस पुरे विमर्श को कहाँ ले जाना चाहता था वह. सोशल मीडिया तो तुमसे भी ज्यादे समझदार निकला इस बार जिसने इसे दलित ब्राह्मण का मुद्दा नहीं बनने दिया और अभी तक किसी ने आर्टिकल १५ मूवी की तरह यह नहीं पुछा दलित में कौन से दलित हो तुम, जबकि तुम तो अपने आपको अभी सिंह लिख के अपने दलितों होने को स्वतः ही चुनौती दे रहे थे.

पब्लिक को गुस्सा इसी बात से है की तुम्हारे हाव भाव शातिर लग रहें हैं और यह साफ़ दिख रहा है की लड़की इस समय स्वतंत्र दिमागी अवस्था में नहीं है हार्मोनल इफ़ेक्ट के कारण अभी प्रेम की चादर उसके आँख के सामने पड़ी हुई है जिसमें से उससे गलती की गुंजाईश हो सकती है, भगवान करे ऐसा ना हो और तुम काबिल पति साबित हो लेकिन फिलहाल चैनल पर ऐसा नहीं दिख रहा हो. ये बात मैंने नोट किया की साक्षी तुम्हारे पिता को पापा डायरेक्ट बोल रही है जबकि ऐसे रिश्ते में लड़कियां अगर मायके में पिता को पापा बोलती हैं तो ससुर को पापा जी बोलती हैं लेकिन यहाँ साक्षी तो तुम्हारे पिता को पापा ही सीधे बोल रही है जबकि तुम साक्षी के पिता को पहले अंकल बोल रहे हो फिर उसे सुधार कर विधायक जी बोल रहे हो, मने तुम तो उन्हें ससुर स्वीकार ही नहीं कर रहे हो मतलब तुम्हारे नजर में तो अगर साक्षी के पिता ससुर नहीं है की पापा बोला जाए तो तुम कब तक साक्षी को अपना मानोगे! तुम तो एक तरह से उसे बीबी नहीं मान रहे हो उसके पिता को अंकल और बाद में विधायक बोलकर.

जहाँ तक राजेश मिश्र की बात हो रही है, घोषित और प्रमाणिक तौर पर उनके तरफ से कोई प्रमाण ऐसा नहीं आया है की वह सामान्य विरोध या जैसा की होता आया है इस तरह की शादियों के बाद जो बाद में स्वीकृत भी हो जाता है, उससे ज्यादे कुछ किये हों, साक्षी और आप दोनों लोग संभावनाओं को ही बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहे हो. मै नहीं कहता सम्भावना नहीं ही है वह विधायक हैं उनके रसूख और पॉवर को साक्षी और आप अच्छे से जानते हैं, लेकिन वह खतरा तो टल ही गया था न, तो फिर चैनल पर बैठकर एक बेटी के मूंह से उसके बाप और माँ की इज्जत क्यूँ उछलवा रहे हो, कोई दुश्मनी तो नहीं हैं न तुम्हारी. तुमसे अच्छे तो अजितेश तुम्हारे पिता हैं जिन्होंने खुलेआम माना की तुमने गलती की है और एक परिवार का ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट किया है, नहीं कुछ तो अपने पिता की बात मानो और खुद mature बनो और अपनी पत्नी को भी बनाओ.


  

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