व्यवहारपरक अर्थशास्त्र और भारत सरकार


पिछले हफ्ते आये बजट में एक शब्द ने जो सबसे ज्यादा कौतुहल पैदा किया वह था व्यावहारिक अर्थशास्त्र शब्द का प्रयोग. जब इसके बारे में इकनोमिक सर्वे का रिपोर्ट पढने गया तो पाया की बकायदे इसपर एक चैप्टर है. हालाँकि इतना कठिन तरीके से उसे संग्रहित किया गया है की हिंदी और अंग्रेजी दोनों वर्जन में थोडा अव्यवहारिक ही लगता है. मुझे लगा की इस विषय को सरल शब्दों में देश को जानना चाहिए. शुरुआत से पहले आपको बताना चाहूँगा की 2017 में, अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को इस व्यावहारिक अर्थशास्त्र के प्रतिपादन हेतु नोबल प्राइज मिल चूका है. इस सिद्धांत के अनुसार व्यावहारिक अर्थशास्त्र व्यक्तियों और संस्थानों के आर्थिक निर्णयों पर मनोवैज्ञानिक, संज्ञानात्मक, भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक कारकों के प्रभावों का अध्ययन करता है जो पारम्परिक सिद्धांत से भिन्न होता है। इनके अनुसार व्यावहारिक अर्थशास्त्र किसी भी आर्थिक निर्णय के पीछे लिए जाने वाले निर्णयन प्रक्रिया में लगने वाले मनोविज्ञान का अध्ययन करता है, जैसे यदि आप किसी मॉल में कोई चीज खरीदने जाते हैं लेकिन दूसरी या कई अन्य चीजें भी खरीदकर लाते हैं.

परंपरागत अर्थशास्त्र के सिद्धांत जिसमे बताया गया की एक व्यक्ति कोई भी आर्थिक निर्णय शांत एवं ठन्डे दिमाग से, अपने स्थापित अनुभव एवं नियमों एवं तर्क लगा के करता है के विपरीत व्यवहारिक अर्थशास्त्र के अंतर्गत आर्थिक निर्णयन प्रक्रिया में तर्कहीन व्यवहार को मान्यता दी जाती है और यह समझने का प्रयास किया जाता है कि ऐसा क्यों हो सकता है. रिचर्ड थेलर के अनुसार इस अवधारणा को व्यक्तिगत स्थितियों में छोटे स्तर पर या अधिक व्यापक रूप से समाज के व्यापक कार्यों के लिए या वित्तीय बाजारों में रुझानों के लिए किया जा सकता है।

यह सिद्धांत बताता है की जरुरी नहीं की किसी आर्थिक निर्णय पर पहुँचने के लिए कोई तर्कपूर्ण निर्णय करे, कई बार तर्कों के अलावा कुछ विशेष उत्प्रेरणा के द्वारा उसे उसके द्वारा बिना तर्क के इस्तेमाल किये एक आर्थिक निर्णय पर पहुँचाया जा सकता है और उस निर्णय तक पहुँचने के लिए जिस मनोविज्ञान का अध्ययन किया जाता है वह है व्यावहारिक अर्थशास्त्र. आपको भी कई बार लगता होगा आप माल में जाते हैं किसी एक मॉडल का मोबाइल खरीदने काफी दिमाग और तर्क लगाकर आप एक मॉडल सेलेक्ट कर के जाते हैं लेकिन कई बार आप पाते हैं की जो मॉडल आप सोचकर गए थे थे उसके जगह आप दूसरा मॉडल खरीदकर चले आये, यहाँ व्यावहारिक अर्थशास्त्र का मनोविज्ञान काम करता है जो बताता है की तर्कपूर्ण प्राणी या एक निश्चित ढर्रे के प्राणी को भी हल्का से प्रेरित या धक्का दे दिया जाए तो वह आपके इच्छानुसार निर्णय ले सकता है. इसे ही बजट में NUDGE कहा गया. व्यावहारिक अर्थशास्त्र का एक उदाहरण ब्रेक्सिट है, जो बताता है कि तर्कसंगत निर्णय लेने के विपरीत कैसे यूरोपीय संघ छोड़ने का एक संकीर्ण निर्णय भी लिया जा सकता है।

यह सिद्धांत कंपनियों और बाजार के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जो उपभोक्ताओं के व्यवहार में परिवर्तन को प्रोत्साहित करके बिक्री में वृद्धि करना चाहते हैं। इसका उपयोग सार्वजनिक पोलीसी की स्थापना के लिए भी किया जा सकता है, जिसमे व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन को प्रोत्साहित कर पब्लिक पालिसी को लागू किया जा सकता है। थेलर को विशेष रूप से "NUDGE THEORY" पर उनके काम के लिए जाना जाता है, एक शब्द जो उन्होंने यह समझाने में मदद करने के लिए गढ़ा कि कैसे छोटे हस्तक्षेप व्यक्तियों को विभिन्न निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। थेलर ने सुझाव दिया कि व्यवहार को प्रभावित करने के लिए किसी व्यक्ति के "पसंद के वातावरण" में भी परिवर्तन कर उससे इच्छित निर्णय कराया जा सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण सुपरमार्केट है, जहां उपभोक्ताओं को और पैसा खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कुछ उत्पादों पर ध्यान आकर्षित किया जा सकता है, जैसे डी-मार्ट के बिल भुगतान के काउंटर पर जाते जाते शौपिंग ख़त्म करने के बाद भी आप कुछ खरीद लेते हैं या आप जाते हैं सोच के १० आइटम खरीदूंगा लेकिन आप २० आइटम खरीद के आते हैं. एक और उदाहरण, नियम मनवाने के लिए कैसे इसका प्रयोग किया गया, वह है कि UK में थेरेसा एक पहले से मान ली गई सहमति की एक प्रणाली पर विचार कर रही हैं  जिसका अर्थ होगा कि व्यक्तियों को अंगदान के लिए सहमति आटोमेटिक ही माना ली जाय  जब तक कि वे OptOut नहीं करते हैं, इससे अंगदान करने वालों की संख्या बढ़ जाएगी ऐसा अनुमान है, क्यों की किसी से कहा जाय की आप अंगदान करिए शायद वह मुश्किल से तैयार हो, लेकिन यदि किसी से कहा जाय आप को तैयार मान लिया गया है, अब आप नहीं चाहते हैं तो नहीं का विकल्प चुनिए, तो ऐसी दशा में नहीं विकल्प चुनने के बाद भी अंगदानियों की संख्या बढ़ सकती है.

भारत सरकार ने भी थेलर के इसी सिद्धांत को पब्लिक पालिसी के लिए अपनाने की कोशिश की है. सरकार के अनुसार किस प्रकार व्यावहारिक अर्थशास्त्र भारत जैसे देश में परिवर्तन लाने के लिए एक प्रभावी उपाय हो सकता है जहां सामाजिक और धार्मिक नियम व्यवहार को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि ‘’मानवीय व्यवहार के मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक अर्थशास्त्र लोगों को वांछित व्यवहार की ओर प्रेरित करने के लिए दृष्टि प्रदान करता है” जो दर्शाता है की सरकार कैसे इसका उपयोग करने वाली है. हाल के समय में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और स्‍वच्‍छ भारत मिशन जैसी लोकप्रिय सरकारी योजनाओं की सफलता का हवाला देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि इन योजनाओं ने नीति के प्रभाव को व्‍यापक बनाने के लिए व्‍यवहारिक ज्ञान को सफलतापूर्वक लागू किया गया है। जैसे सोशल मीडिया पर  ‘#सेल्‍फी विद डॉटर’ दुनिया भर में लोकप्रिय हो गया और बालिका के जन्‍म पर खुशियां मनाना एक ट्रेंड बन गया, और ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग पालन करने के इच्‍छुक हो गये। इसी तरह कई योजनाओं जैसे नमामि गंगे, उज्‍ज्‍वला, पोषण जैसे सामाजिक और सांस्‍कृतिक पहचान वाले नामों की योजनाओं ने NUDGE सिद्ध्नातों के तहत जनता के बीच अपनापन कायम करने में सहायता प्रदान की। ठीक इसी तरह स्वच्छ भारत मिशन में सत्‍याग्रही से मिलते-जुलते शब्‍द स्‍वच्‍छाग्राहियों के इस्तेमाल से इस संदेश को लागू करने में मदद मिली। स्वच्छ भारत मिशन के महिला सशक्तिकरण संघटक ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को पूर्णता प्रदान करने में सहायता की। आर्थिक समीक्षा के अनुसार, व्‍यवहारिक अर्थशास्‍त्र का इस्तेमाल ‘लाभकारी सामाजिक नियमों पर जोर देने’, ‘पारम्‍परिक विकल्‍प में बदलाव’ और ‘बार-बार इसके लिए जोर देना’ में किया जायेगा। सरकार ने ठीक इसी प्रकार सब्सिडी छोड़ने के अभियान को राष्ट्र सेवा से जोड़ कर इसे सफल बनाया. अभी PAN नहीं होने के बावजूद भी आधार को आयकर रिटर्न के लिए मान लेने पर एक झटके में ही सरकार ने इनकम टैक्स का कवरेज बढ़ा दिया. कुंभ को सामाजिक उत्सव बताकर यूपी के मुख्यमंत्री ने इसे विश्व उत्सव के रूप में मनाया. सरकार ने अपनी योजनाओं को जन जन से कनेक्ट करने और उन तक पहुँचाने के लिए ऐसे नामकरण और प्रचार स्लोगनों का सहारा लिया जो लोगों को सरकारी योजनाओं एवं इच्छाओं से जोड़ने के लिए प्रेरित कर रही है, इसके कुछ उदाहरण है सेल्फी विद डॉटर, सौभाग्य योजना, उज्जवला योजना, किसान सम्मान निधि योजना, गैस सब्सिडी के छोड़ने के लिए अपील, डिजिटल इंडिया, स्वयं, रेलवे टिकेट की सब्सिडी छोड़ने की योजना यहाँ तक की नोटबंदी के साइड इफ़ेक्ट से बचने और लोगों को इसके तरफ आकर्षित करने के लिए सरकार ने व्यावहारिक अर्थशास्त्र का सहारा लिया. अब सरकार इसे और आगे ले जाते हुए स्वच्छ भारत से सुन्दर भारत मतलब सिर्फ साफ़ सुथरा रहना ही नहीं खुद को और देश को सुन्दर दिखना भी जरुरी है तभी लोगों का आत्मविश्वास और देश का टूरिज्म भी बढेगा और बेटी पढाओं बेटी बचाओं से आगे इसे BADLAV के नामकरण से जिसका अर्थ है बेटी आपकी धन लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी,  बेटियां आत्मनिर्भर बन इकॉनमी में भागीदार बन सकेंगी. सरकार इस नामकरण से सफलता के आंकड़े बढ़ाने की सोच रही है क्यों की सरकार का मानना है की भारतीय धार्मिक सामाजिक और पौराणिक सन्दर्भों का उपयोग संदेश उत्प्रेरणा के लिए कर इच्छित लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है. हालांकि मेरा मानना है की रिचर्ड थेलर ने व्यावहारिक अर्थशास्त्र का कोई नया सिद्धांत इस दुनिया को नहीं दिया है सनातन अर्थशास्त्र में ये ज्ञान हजारों साल से भारत के पास है थेलर ने भी सिर्फ इसका नामकरण कर नोबल कमेटी के मनोविज्ञान पे विजय प्राप्त कर ली है. सनातन अर्थशास्त्र क्यों इस व्यावहारिक अर्थशास्त्र से आगे है इसे अगले लेख में बताऊंगा.

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