GDP नहीं GNH हो विकास का पैमाना

कल ५ जून को पर्यावरण दिवस था और इस गर्मी में भारत के कई शहरों में तापमान 50 पार कर चुका है। 46 डिग्री सेल्सियस तापमान में जल रहे शहरों की संख्या भी अब बढ़ गई है। आज दुनिया के 15 सबसे गर्म शहर भारत और पाकिस्तान में हैं। बेसब्री से हम मानसून को भूल जायेंगे लेकिन उसमें भी असंतुलन पाएंगे कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ पाएंगे तो कहीं भू-स्खलन.
अभी अभी एक रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है की जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसे आसार नजर आ रहें हैं की 2050 तक मानव सभ्यता समाप्ति की तरफ है। एक रिपोर्ट बता रही है कि सारा खेल मात्र 30 साल का रह गया है। एक ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक के एक नए पॉलिसी पेपर का दावा है कि जलवायु परिवर्तन के जोखिम जितना हम सोचते हैं , वास्तव में उससे कहीं बहुत ज्यादा हैं, जो हमारी कल्पना से भी बदतर हो सकता है। और यह इतना तेजी से होगा जिसे हजारों साल से इंसानों ने कल्पना नहीं की होगा, विकास के रूप में जो विनाश की गति है वह इन्ही ३० सालों में बढ़ी है और यह अगले ३० सालों में हमें ख़त्म कर देगी. सामान्य जलवायु मॉडल - जैसे कि 2018 में संयुक्त राष्ट्र के पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने भविष्यवाणी की थी कि 3.6 डिग्री फ़ारेनहाइट (2 डिग्री सेल्सियस) की वैश्विक तापमान वृद्धि लाखों लोगों को जोखिम में डाल सकती है संकट कहीं उससे भी ज्यादे है. इस रिपोर्ट के लेखक के अनुसार वैश्विक भूमि क्षेत्र का पैंतीस प्रतिशत, और वैश्विक जनसंख्या का 55 प्रतिशत, मानव, जीवन जीने के तापमान के परे जो घातक गर्मी की स्थिति होती है उसमें वह औसतन एक वर्ष में कम से कम 20 से अधिक दिनों तक वैसा रहता है, आप कल्पना कर लीजिये. भविष्य की इस भयावह दृष्टि को कैसे रोका जा सकता है? तो जबाब है  जब तक इसे आपातकाल के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता और जब तक हम अपनी वैश्विक अर्थव्यवस्था को शून्य-कार्बन-उत्सर्जन प्रणाली में बदलना शुरू नहीं कर देते हैं. एक वैश्विक आंदोलन को संभव करने के लिए वर्तमान मानव जाति के पास लगभग केवल दशक बचा है।
हमें विकास के मानक भी बदलने पड़ेंगे. अब जीडीपी को विकास के पैमाने को GNH ( ग्रॉस हैप्पीनेस इंडेक्स ) जिसे हिंदी में सकल राष्ट्रीय खुशहाली कहते हैं से रिप्लेस करने का वक़्त आ गया है. जीएनएच, विकास के लिए एक समग्र और स्थायी दृष्टिकोण है, जो भौतिक और गैर-भौतिक मूल्यों को संतुलित करता है और मनुष्य की खुशी को ही मापन करता है। जीएनएच का उद्देश्य जीवन के सभी पहलुओं में एक संतुलित विकास प्राप्त करना है जो हमारी खुशी के लिए आवश्यक हैं।

हम उस पड़ाव पर हैं जब ग्रह और सभी जीवों का भाग्य मानव की शक्ति में अन्तर्निहित हो गया है। असीम उपभोक्तावाद, सामाजिक-आर्थिक असमानता और अस्थिरता को व्यापक बनाने के कारण तेजी से प्राकृतिक संसाधन की कमी और गिरावट हो रही है। जलवायु परिवर्तन, प्रजातियों का विलुप्त होना, कई संकट, बढ़ती असुरक्षा, अस्थिरता और संघर्ष न केवल हमारी खुशहाली को कम कर रहे हैं बल्कि हमारे अस्तित्व को भी खतरे में डाल रहे हैं।
आज, आधुनिक समाज के लिए वाणिज्य, वित्त, उद्योग या व्यापार के बिना कार्य करना या जीना, उनकी समझ से बाहर है। ये कारक सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार से असाधारण तरीके से मानव के भाग्य को बदल रहे हैं। GNH गैर-भौतिक जड़ों की ओर इशारा करके ऐसी वैश्विक, राष्ट्रीय और व्यक्तिगत चुनौतियों को सीधे संबोधित करता है जो प्रकृति द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर मनुष्य की दोहरी जरूरतों को संतुलित करने और संतुष्ट करने के तरीकों को बताता है जो विकास को अक्षुण बनातीहै।

इस मुहीम में हमारा एक पडोसी छोटा सा देश भूटान है, जिसने वैश्विक सोच में हमसे बाजी मार ली है, इसने अपनी प्रगति का पैमाना सकल ख़ुशी सूचकांक को बनाया है जिसका आशय है की उसका देश कितना खुशहाल है व्यापक टर्म में. सन 1971 से ही भूटान ने जीडीपी को विकास मापनके  एकमात्र तरीके के रूप में खारिज कर दिया है और विकास के एक नए मापन GNH को स्वीकार  किया, जो कि सकल राष्ट्रीय खुशी (GNH) के औपचारिक सिद्धांतों और अपने नागरिकों और प्राकृतिक पर्यावरण के आध्यात्मिक, शारीरिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के माध्यम से समृद्धि का मापन करता है। पिछले तीन दशकों से, यह धारणा कि भौतिक विकास को ही प्राथमिकता देना चाहिए, वैश्विक चिंता का विषय बनी हुई है। अब, वित्तीय प्रणालियों, सकल असमानता और व्यापक पैमाने पर पर्यावरण विनाश को ध्वस्त करके विकास के मापन के उलट, इस छोटे से बौद्ध राज्य का दृष्टिकोण अब दुनिया को आकर्षित कर रहा है। UN ने विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण के लिए भूटान के इस प्रयोग को अपनाने में दिलचस्पी भी दिखाई है , 68 देशों द्वारा इसका समर्थन किया गया। संयुक्त राष्ट्र का एक पैनल अब उन तरीकों पर विचार कर रहा है, जो भूटान के सकल राष्ट्रीय ख़ुशी सूचकांक मॉडल को दुनिया भर में दोहराया जा सके. पिछले २ दशकों में भूटान ने जीवन प्रत्याशा को दोगुना कर दिया है, प्राथमिक स्कूल में लगभग 100% बच्चों को दाखिला दिया और इसके बुनियादी ढांचे को फिर से खड़ा किया है। अपने सार्वजनिक नीति के केंद्र में पर्यावरण संरक्षण को रखकर इसे संविधान में निहित किया। कार्बन न्यूट्रल रहने और यह सुनिश्चित करने का संकल्प लिया है कि कम से कम 60% भूमि सदा के लिए वनाच्छादित रहेगा। और यहां तक ​​कि मासिक पैदल चलने वालों को भी प्रेरित किया ताकि वाहन वहां सडकों पर न चलें या बहुत ही कम चलें। भूटान दुनिया का अकेला देश है जो कार्बन पैदा नहीं करता है। जितना करता है वो भी उसे वन क्षेत्र सोख लेते हैं। इस तरह वह कार्बन निगेटिव देश हो जाता है। इस मुल्क में कई जंगलों को बायो-कोरिडोर से जोड़ा गया है जिससे जानवरों के आने-जाने का मार्ग लंबा हो जाए। वहां कोई इन जंगलों को नहीं काट सकता है। भूटान के शिक्षा मंत्री का मानना ​​है कि आप पास लंबे समय तक एक समृद्ध राष्ट्र नहीं रह सकते हैं जब तक आप अपने प्राकृतिक वातावरण का संरक्षण नहीं करते हैं. इनके अनुसार सकल राष्ट्रीय ख़ुशी सूचकांक एक लक्ष्य है, यह  मार्गदर्शक सिद्धांतों का एक सेट है जिसके माध्यम से वह एक स्थायी और न्यायसंगत समाज की दिशा में अपना रास्ता बना रहे हैं। भूटान के सिद्धांत, उसकी नीतियों में सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक के माध्यम से, जो कि समान सामाजिक विकास, सांस्कृतिक संरक्षण, पर्यावरण के संरक्षण और सुशासन को बढ़ावा देने के आधार पर बनाये गए हैं। भौतिक प्रगति कहीं मापक नहीं है. भूटान ने GNH सिद्धांतों को कई साल पहले अपने शिक्षा प्रणाली में भी आत्मसात कर लिया है , अब वहां ग्रीन स्कूल होते हैं और इसकी शिक्षा प्राथमिक स्तर से दी जाती है। और यहाँ ग्रीन होने का विचार सिर्फ पर्यावरण नहीं है, यह जीवन के एक दर्शन के रूप में स्वीकार किया गया है. वहां गणित और विज्ञान के साथ-साथ बच्चों को बुनियादी कृषि तकनीक और पर्यावरण संरक्षण सिखाया जाता है। एक नया राष्ट्रीय कचरा प्रबंधन कार्यक्रम यह सुनिश्चित करता है कि स्कूल में उपयोग की जाने वाली प्रत्येक सामग्री का पुनर्नवीनीकरण किया जाए। इसमें दैनिक ध्यान सत्र ,पारंपरिक संगीत का आनंद को भी समावेशित किया गया है। उनका मानना है कि एक शिक्षा का मतलब सिर्फ अच्छे ग्रेड प्राप्त करना नहीं है, इसका मतलब है अच्छे लोगों को तैयार करना, आने वाले समय के लिए तैयार करना। अगली पीढ़ी बहुत डरावनी दुनिया का सामना करने जा रही है क्योंकि उनके पर्यावरण में परिवर्तन होता है और सामाजिक बदलाव होने हैं और उन्हें इसके लिए तैयार होना है. और इनका मानना है कि बहुत देर होने से पहले दुनिया को भी ऐसा करने की जरूरत है।

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