अबकी बार टैक्स सुधार

 बजट २०१९ का आने वाला है, पिछले लेख में मैंने बजट के सामाजिक पहलु का उल्लेख किया था और इस लेख में बजट के राजस्व पहलू पे चर्चा करना चाहूँगा. अभी हाल में आपने सुना होगा की एक कचौरी वाले के यहाँ छापा पड़ा और उसकी बिक्री ६० लाख पाई गई और उसने GST का पंजीयन नहीं कराया था. ऐसे देश में बहुत लोग हैं जो सालों से व्यापार करते आ रहें हैं लेकिन उन्हें बदलते कानून की समयानुकूल जानकारी नहीं है. वैसे ऐसे व्यापारी जो खुदरा व्यापारी हैं और उनकी बिक्री ४० लाख हो एवं अन्य कोई आय ना हो तो उन्हें आयकर के लिए चिंता करने की जरुरत नहीं है क्यूँ की आयकर के नियम के अनुसार खुदरा व्यापार के मामले में बिक्री का ५% आय माना जायेगा तो यदि खुदरा बिक्री सालाना ४० लाख है तो अनुमानित मान्य लाभ २ लाख हुआ और २ लाख तक कोई कर नहीं है, तो ऐसे लोगों के लिए आयकर के लिए चिंता की कोई बात नहीं है, यदि आपका खुदरा व्यापार को छोड़कर अन्य व्यापार है तो यही ५% की जगह ८% अनुमानित लाभ आयकर विभाग मान्य करेगा तो ऐसी दशा में अगर आपका सकल व्यवसायिक टर्नओवर ६२.५ लाख है तो लाभ ५ लाख होगा और यदि कोई अन्य आय नहीं है तो ५ लाख तक तो ऐसे ही आयकर नहीं है, और यदि सारी बिक्री ऑनलाइन है तो यही ८% की दर ६% हो जाएगी मतलब ८३.३३ लाख तक आप सुकून हैं. और इस प्रतिशत लाभ के हिसाब से सुविधा आयकर की अनुमानित लाभ की स्कीम के तहत सालाना २ करोड़ तक बिक्री वाले व्यापारियों को यह सुविधा दी जाती है.

मेरा ऐसा सुझाव है की सरकार ने GST आने के बाद व्यवसाय एवं पेशे की लगभग हर मद की HSN कोड के हिसाब से GSTप्रतिशत निकाल ली है और इसे न्यायसंगत बना ली है, मतलब जरुरत की चीजों पर कम दर और विलासिता पर ज्यादे. दूसरी तरफ आयकर में अनुमानित लाभ की स्कीम है ही जो २ करोड़ की आय तक पर ८% को लाभ मानती है. यदि आयकर की प्रभावी औसत दर २५% ही माने तो इस ८% का प्रभावी टैक्स दर २% आएगा. यदि सरकार GST के साथ ही वस्तु एवं सेवा के व्यापारियों से प्रगतिशीलता के आधार पर आयकर भी प्रगतिशील दर के हिसाब से वसूल ले तो आयकर विभाग का बोझ और उसकी साइज़ कम हो जाएगी, व्यापारी को GST और आयकर की अलग अलग स्क्रूटिनी नहीं झेलनी पड़ेगी एक ही स्क्रूटिनी से दोनों काम हो जायेगा, एक ही डाटा से आयकर और GST दोनों का काम हो जायेगा, और इस तरह से आयकर विभाग आय के अन्य हेड जैसे की कैपिटल गेन,अन्य आय, हाउस प्रॉपर्टी आदि पे फोकस रह सकता है और देश का व्यापारी वर्ग के लिए इज ऑफ़ डूइंग बिज़नस हो सकता है और देश में व्यापारिक खुशहाली आ सकती है. साथ ही वेतन वर्ग वाला चूँकि खरीदी के माध्यम से टैक्स दे ही रहा है तो वेतन वाले को आयकर विवरणी भरने से मुक्त कर देना चाहिए यदि वेतन के अलावा किसी अन्य मद से उनकी आय ना हो तो.

इस बजट में GST में भी शत प्रतिशत टीडीएस का प्रावधान लाना चाहिए और ITC को आटोमेटिक रिफंड में बदल देना चाहिए, इससेGST की चोरी और ITC की गड़बड़ी दोनों रूक सकती है,व्यापारियों की वर्किंग कैपिटल और नॉन पेमेंट से होने वाली पेनाल्टी की समस्या से मुक्ति हो जाएगी, क्यों की बहुत से GST इसलिए नहीं भुगतान हो पा रहें हैं की बिल देने के बाद पार्टियों से भुगतान काफी लेट आता है जबकि GST को अगले महीने ही भरना पड़ता है, और सामने वाली पार्टियाँ तो ITC लेकर अपना कॅश फ्लो बचा लेती हैं लेकिन पार्टियों का भुगतान लेट करती हैं, अतः GST का भुगतान सप्लाई प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कर देने से टीडीएस की तरह GST भुगतान करना काफी आसान हो जायेगा.

आयकर की एक और विसंगति है वह है छोटे कसबे से लेकर मुंबई तक आयकर का एक ही दर है और अपने और अपने परिवार के जीने और जीवनस्तर के जो खर्चे हैं जिसकी छूट आयकर में निजी खर्च मानकर नहीं मिलती है, इस कारण से एक ही वेतन प्राप्त करने वाले दो एम्प्लोयी अगर एक छोटे शहर में रहता हँ तो उसे पैसे बचते हैं जबकि बड़े शहर वाले एम्प्लोयी को पैसे तो बचते ही नहीं हैं उलटे उसे ऋण लेना पड़ता है, अतः शहरों और जीवनस्तर के हिसाब से जोन बाँट के आयकर की अलग अलग दर होनी चाहिए ताकि बचत में कोई असमानता न आये.

आज मुंबई जैसे शहर में रहने वाला व्यक्ति १२ लाख रुपये सालाना कमाता है तो भी उसे कुछ नहीं बचता है और यदि दिल्ली में है तो १० लाख कमाने पर कुछ नहीं बचता है, निचलौल जैसे कसबे में है तो ६ लाख तक कमाता है तो कुछ नहीं बचता है, अतः जोन के हिसाब से आयकर की दर अलग अलग तो होनी ही चाहिए, टैक्स का स्लैब भी अलग अलग होनी चाहिए. मुंबई जैसे शहर में में टैक्स का स्लैब १२-२४-३६ की होनी चाहिए तथा दिल्ली जैसे शहरों के लिए १०-२०-३० होनी चाहिए. कस्बों के लिए यह स्लैब ५-१०-१५ की हो सकती है. कम से कम पहला स्लैब उतना तक माफ़ होना चाहिए जितना उसका बेसिक खर्च है सालाना.

कॉर्पोरेट वर्ग को एक बड़ा दर्द है उन्हें चौतरफा टैक्स की मार पड़ती है, वह अपने व्यापार पर GST देने के बाद जो लाभ कमाते हैं उसपर आयकर २५% से ३०% की दर कम्पनी की साइज़ के हिसाब से तो देते ही हैं,सेस और सरचार्ज देते हैं, कम्पनी से जब उसके शेयरहोल्डर पैसा निकालते हैं तो फिर २०.३६% लाभांश कर कम्पनी देती है और जब यह लाभांश कर लगने के बाद यह पैसा उनके हाथ में जाता है तो फिर इसे उनकी निजी आय मानकर इसपर आयकर भरना पड़ता है, मतलब एक ही आय पर तीन तीन जगह आयकर देना पड़ रहा है, इसी कारण से देश के कई लोग अब कम्पनी के अलावा साझेदारी फर्मों या प्रोपराइटरशिप की तरह लौट रहें हैं.

GST की मासिक/त्रैमासिक, वार्षिक, एवं अन्य फाइलिंग, टीडीएस की मासिक.त्रैमासिक फाइलिंग, आयकर की फाइलिंग तो है ही अब कम्पनी मंत्रालय ने भी अपनी फाइलिंग की औपचारिकता बढ़ा दी है और हर महीने कुछ न कुछ फॉर्म भरना ही पड़ता है जिससे अब कई लोग नई कम्पनी बनाने से या तो बच रहें हैं या पुरानी कम्पनियां बंद कर रहें हैं.

दूसरा टैक्स वालों का एक कष्ट और है की जीरो लेवल टैक्स पेमेंट की जानकारी का सिस्टम नहीं है, एक पंचायत से सभी तरह GST,आयकर, स्टाम्प एवं अन्य ड्यूटी मिला के कितना कर गया उन्हें नहीं पता और जब तक ऐसा सिस्टम बनता नहीं है सरकार को चाहिए की कुछ निश्चित प्रतिशत ऐसा हो जिसे करदाता अपने पसंद की पंचायत या सरकार की योजना में डायरेक्ट भर दे जो वैसे भी टैक्स का पैसा ऊपर जा के उनके पंचायत में वापस ही आना है. इससे उनकी तुरंत की जरुरत कार्यों की तुरंत फंडिंग हो जाएगी और इसे टैक्स का पेमेंट भी मान लिया जायेगा आखिर टैक्स तो घूम के वहीँ आना था. इसको मंथन करकर इसपर एक अच्छी योजना बनाई जा सकती है.  

GST के साथ सरकार ने दुर्घटना बीमा की शुरुवात की है यदि आयकर में भी सेस जोड़कर करदाता का अनिवार्य बीमा भी सरकार कर देती तो आयकर देने की रूचि बढ़ जाती और किसी मुश्किल स्थिति में इस अनिवार्य बीमा की वजह से सरकार के निजी खजाने की जगह बीमा कम्पनियों के फंड का इस्तेमाल हो सकता है.

टैक्स सुधारों के बीच जिस तरह से जेट एयरवेज बंद हो रहा है एयर इंडिया संकट में है एयरलाइन विशेष के लिए अलग बैंकिंग प्रणाली सरकार को विकसित करना चाहिए, क्यों की इसकी प्रकृति अलग है, और ताकि इस प्रणाली के शुरुवात से एयरलाइन कम्पनियों के वित्त एवं व्यवसाय का वैश्विक और पेशेवर प्रबंधन हो सके और और इतने बड़े सेगमेंट में ऐसे झटके न आयें.

बजट से ज्यादे इकनोमिक सर्वे को हाईलाइट करते हुए इस बजट में बदलते वक़्त के साथ पोपुलर हो रहे कोवर्क, संसाधन शेयरिंग, वाहन पूलिंग, कार क्रशिंग, धार्मिक पर्यटन को विशेष पैकेज और ध्यान देते हुए देते रेलवे हॉस्पिटैलिटी पर भी सरकार को पूरा ध्यान लगाना चाहिए.     


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